बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से हैरान करने वाली तस्वीरें आई हैं, जो किसी भी हिन्दू के लिए विचलित करने के लिए पर्याप्त हैं। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में जहाँ एक ओर इफ्तार पार्टी के आयोजन में वीसी के सम्मिलित होने के बाद बवाल मचा है और विद्यार्थियों का कहना है कि ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था, और इफ्तार पार्टी का आयोजन आधिकारिक रूप से विश्वविद्यालय में पहली बार किया गया है
तो वहीं इस विवाद को लेकर विश्वविद्यालय से सफाई आई है और यह कहा गया है कि “महामना के मूल्यों व आदर्शों के अनुरूप स्थापित इस विश्वविद्यालय में किसी भी आधार पर, किसी के साथ भी भेदभाव का कोई स्थान नहीं है। सबके प्रति समानता के भाव संबंधी महामना का सद्वाक्य काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर भी उल्लिखित है।“
और फिर कहा गया कि “दिनांक 27।04।2022 को महिला महाविद्यालय में रोज़ा इफ्तार का आयोजन किया गया, जिसमें कुलपति जी को आमंत्रित किया गया था। पिछले दो वर्षों से कोरोना महामारी की वजह से इस कार्यक्रम का आयोजन नहीं हो सका था। इस बार यह आयोजन किया गया जिसमें कुलपति जी समेत विभिन्न अधिकारियों ने शिरकत की।“
वहीं opindia के अनुसार विद्यार्थियों ने बताया कि कैसे पूर्व वीसी ने नवरात्रि पर फलाहार की व्यवस्था आरम्भ की थी जो समाप्त करके इफ्तार की परम्परा आरम्भ कर दी गयी है। और यह उन्हें अस्वीकार्य है। विद्यार्थियों ने वीसी पर मुस्लिम तुष्टिकरण का भी आरोप लगाया। और कहा कि यदि उन्हें इफ्तार कराना है तो वह जामिया या एएमयू जा सकते हैं!
जहाँ इसे लेकर तो विद्यार्थियों में आक्रोश है ही वहीं ब्राह्मणों के विरुद्ध भी भड़काऊ नारे लगे जाने का मामला सामने आया है। इफ्तार पार्टी के अगले ही दिन विश्वविद्यालय की दीवारों पर नारे लिखे नजर आए कि “कश्मीर तो बस झाँकी है, पूरा भारत बाकी है।” और “ब्राह्मणों तेरी कब्र खुदेगी बीएचयू की धरती पर।
परन्तु प्रश्न यह है कि अचानक से ब्राह्मण ही क्यों निशाने पर आ गए हैं? ब्राह्मण या कहें साधु या पंडित आदि! हमने देखा कि कैसे साधुओं और ब्राह्मणों के विरुद्ध अकादमिक स्तर पर एक जहर भरा जा रहा है। यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि कोई भी समुदाय न ही पूरी तरह से अच्छा होता है और न ही पूरी तरह से बुरा। अच्छे और बुरे हर समुदाय में हर समय होते हैं, परन्तु एक समुदाय को और वह भी उसे जिसने हर युग में देश और धर्म की रक्षा के लिए बलिदान दिया है, बहुत ही शर्मनाक है!
हमने देखा कि कैसे आईएएस की कोचिंग में भी मुगलों का महिमामंडन किया जाता है और ब्राह्मणों को सबसे बड़े खलनायक के रूप में पढ़ाया जाता है:
और आज बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से ब्राह्मणों के नरसंहार के नारे सामने आए हैं! क्या यह समझा जाए कि सामाजिक विमर्श के नाम पर मुस्लिमों को महान बताकर उनके प्रति घृणा कम की जा रही है और उनके स्थान पर उन ब्राह्मणों को खलनायक बनाकर विमर्श की पूरी की पूरी दिशा ही बदली जा रही है, जिनका त्याग और बलिदान का इतिहास रहा है!
जिन मुगलों ने अपनी स्वयं की किताबों में लिखा कि उन्होंने कितने हजारों का खून किया, और निर्दोष हिन्दुओं का खून बहाया उन्हें यहाँ के वास्तु और कला के संरक्षक के रूप में चित्रित किया जा रहा है और तुलसीदास जैसे ब्राह्मणों को साहित्य में कट्टर आदि बताकर विमर्श से ही जैसे बाहर किया जा रहा है?
क्या एक नए विमर्श की नींव तैयार हो रही है? यह प्रश्न इसलिए बार बार उठता है कि क्योंकि एक एक कर साधुओ के क़त्ल की इतनी घटनाएं सामने आ रही हैं, उन्हें न्याय दिलाने के लिए हम वह शोर नहीं देखते हैं और न ही हम उनसे कुछ अधिक सुनते हैं, जिनसे न्याय की आस की जाती है! और उनमें सबसे बड़ा मामला है पालघर में साधुओं की ह्त्या का! आज दो वर्ष से अधिक हो गया है, परन्तु उनकी हत्या के आरोपियों को धीरे धीरे जमानत भी दी जा रही है, जबकि एक ठोस कार्यवाही की प्रतीक्षा में देश है!
कल ही हमने राजस्थान में जालौर की घटना के विषय में लिखा था कि कैसे गर्भगृह में नारियल चढ़ाने की हठ के चलते एक विवाद में नीलकंठ मंदिर के पुजारी को हिरासत में ले लिया गया और इस कारण उस मंदिर में सदियों से चली आ रही अखंड ज्योत बुझ गयी!
एक छोटे से विवाद के चलते नीलकंठ महादेव मंदिर में पांचसौ वर्षों से जलती चली आ रही अखंड ज्योतशांत हो गयी। ग्रामीणों के अनुसार यह ऐतिहासिक तथ्य है कि जब खिलजी ने यहाँ शिवलिंग को खंडित किया तो महादेव के भंवरों ने चमत्कार दिखाया था, यहाँ बरसों से ज्योत जल रही थी, जो अब इस विवाद के चलते बंद हो गयी!
राजस्थान में जालौर के पुजारी के बहाने मन्दिर की सदियों पुरानी परम्परा का समाप्त होना हो, या फिर पालघर में साधुओं की पीट पीट कर हत्या पर शांति, और अब बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में ब्राह्मणों के नरसंहार की धमकी, सब कुछ ऐसा लग रहा है जैसे हम सामाजिक विमर्श की एक ऐसी अंधेरी गुफा में प्रवेश कर चुके हैं, जहाँ से आगे की राह “झूठे नैरेटिव” और “सत्य” के बीच बहुत कठिन है!
हालांकि पुलिस ने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में पुलिस ने कहा है कि यह मामला संज्ञान में है और पुलिस द्वारा उचित कार्यवाही की जा रही है,
फिर भी समस्या कहीं न कहीं सामाजिक विमर्श की उन छद्म विमर्श की किताबों में है जो “आसमानी किताबियों” को महान और महान हिन्दू परम्परा को सबसे क्रूर प्रमाणित करने में लगे हुए हैं!