राजस्थान में जालौर में नीलकंठ महादेव मंदिर में एक दलित नव विवाहित जोड़े को पूजा से रोकने का आरोप एक पुजारी पर लगा और फिर उस पुजारी को एससी/एसटी एक्ट में जेल भेज दिया गया। इस घटना से जुड़ी एक क्लिप भी वायरल हो रही है।
और जैसा होता आया है कि इस घटना को लेकर कथित दलित राजनीति भी आरम्भ हो गयी है। परन्तु प्रश्न यह उठता है कि क्या वास्तव में जोड़े को पूजा नहीं करने दी गयी या मामला कुछ और है? जालौर पुलिस, राजस्थान में जो रिपोर्ट दर्ज कराई है और उसके बाद पुलिस ने जो घटना का खुलासा किया है, उसमें कहीं यह नहीं है कि नव विवाहित को मंदिर में प्रवेश नहीं करने दिया गया। पुलिस ने लिखा है कि दिनांक 22/04/2022 को थाना भाद्राजून क्षेत्र के गाँव नीलकंठ में नीलकंठ महादेव मंदिर में अनुसूचित जाति के नव विवाहित दूल्हा दुल्हन को मंदिर में प्रवेश करने से नहीं रोका गया, जो घटना के वक्त लिए गए वीडियो में दिख रहा है। नव विवाहित दूल्हा दुल्हन द्वारा मंदिर में नारियल चढ़ाए जाने को लेकर दूल्हे के साथ आए लोगों के साथ मंदिर के पुजारी ने जातिसूचक शब्दों का प्रयोग किया।

इस सम्बन्ध में जालोर एसपी ने भी बताया है कि दलित दंपत्ति को मंदिर में प्रवेश देने से नहीं रोका गया:
एससीएसटी एक्ट के झूठे मामलों को सामने लाने वाले पोर्टल फलाना दिखाना के अनुसार मंदिर में प्रवेश न देने वाली बात गलत है। उसके अनुसार “नियो पॉलिटीको से बात करने पर थाना भाद्राजून क्षेत्र के गांव नीलकंठ की प्रधान ने हमें बताया कि मंदिर में दलितों को प्रवेश पर कोई रोक टोक नहीं है। नव विवाहित जोड़े को भी प्रवेश दिए गया था। उन्होंने पूजा पाठ भी किया था। बहस नारियल फोड़ने को लेकर हुई थी। परंपरा के अनुसार नारियल फोड़ने के बाद उसे जलाया भी जाता है। जिसपर पुजारी ने उनसे अनुरोध किया था कि नारियल आप बाहर जाकर जलायें। लेकिन दलित दंपत्ति उसे गर्भ गृह में फोड़ने व जलाने पर अड़े रहे।“
इसके अनुसार “वीडियो में भी कही पुजारी ने जातिसूचक शब्दों का उपयोग नहीं किया है।“
हिन्दुओं के मंदिरों के विषय में बात करते समय यह क्यों नहीं ध्यान रखा जाता है कि हर मंदिर की अपनी एक परम्परा होती है और यह भी सत्य है कि गर्भगृह में जाने की अनुमति पुजारी के अतिरिक्त किसी और को नहीं होती है। भारत में यह बहुत ही आम बात है कि किसी भी मंदिर में जाकर उसकी परम्परा को खंडित करने का प्रयास करना।
क्या यह उचित नहीं है कि मंदिर की परम्परा में प्रशासन का कम से कम हस्तक्षेप हो। एक यूजर ने इस मामले पर भी लिखा कि मैं यह भाषा अच्छी तरह से जानता हु मंदिर के गर्भ गृह में पूजारी जी के अलावा किसी को भी प्रवेश नही दिया जाता और नारियल हमेशा मंदिर के बाहर ही चढ़ाया जाता है इसलिए इनको नही जाने दिया यदि आप ध्यान से सुनेंगे तो इस लड़के ने ये कहा की बाकी लोग चढ़ाते होंगे बाहर मैं तो अंदर ही चढ़ाऊंगा
एक और यूजर ने लिखा कि चाहे किसी भी जाति का व्यक्ति हो, उसे गर्भ गृह में प्रवेश करने की अनुमति नहीं होती है क्योंकि वहीं पर मंदिर की शक्ति होती है। अत: पुजारी ही मात्र पूजा करने के लिए वहां जाता है।
परन्तु शोर में जैसे कहीं सत्य दब कर रह गया है? क्या समानता का सिद्धांत मंदिर के विशेष स्थानों पर भी लगेगा? क्या ऐसा हो सकता है कि प्रशासन किसी मौलवी या प्रीस्ट को इस आधार पर हिरासत में ले कि उन्होंने अपने धार्मिक संस्थानों के नियम के अनुसार किसी को प्रवेश देने से इंकार कर दिया? नारियत हमेशा ही मंदिर के बाहर ही चढ़ाए जाते हैं, एवं दीपक तथा धूप एवं अगरबत्ती भी बाहर ही जलाई जाती हैं।
लोग आपत्ति व्यक्त कर रहे हैं कि मात्र मंदिर के नियमों का पालन करने के लिए पुजारी को कैसे हिरासत में लिया जा सकता है?
हम सभी को सबरीमाला मंदिर की घटना का स्मरण होगा ही, जिसमें समानता का सिद्धांत सदियों पुरानी परम्परा पर लागू करने का कुप्रयास किया गया था!
एक और यूजर ने कहा कि यदि कल को कोई व्यक्ति मंदिर के भीतर अपने पैर धोना चाहेगा तो क्या उसका विरोध करने पर भी उस पर एससीएसटी एक्ट लगाया जाएगा?
यह बहुत ही बड़ा दुर्भाग्य है कि इस कथित समानता की शोर में कहीं न कहीं मदिरों की परम्पराओं पर आघात होता जा रहा है और प्रश्न यह भी है कि क्या हिन्दुओं के धार्मिक स्थलों की परम्परा का कोई महत्व नहीं है? हालांकि मामला तब और स्पष्ट होगा, जब पुजारी जेल से बाहर आएँगे! इसकी प्रतीक्षा करनी होगी!