अंतत: योग गुरु बाबा रामदेव ने इंडियन मेडिकल एसोसिएशन से क्षमा मांग ली थी कि उन्हें अपने वक्तव्य पर खेद है। एवं उनका उद्देश्य एलॉपथी को ठेस पहुंचाने का नहीं था। दरअसल वह तो किसी का भेजा गया मेसेज पढ़ रहे थे। परन्तु आईएमए ने पूरे वीडियो को न देखकर मात्र आधा ही वीडियो देखा। कोरोना के उपचार में अभी लगातार प्रयोग चल ही रहे हैं। जैसा हमने भी कई लेखों में लिखा है कि कैसे प्लाज्मा और रेमेदिसिविर अप्रभावी सिद्ध हुए।
योग गुरु बाबा रामदेव ने रविवार को तो क्षमा माँगी, परन्तु शाम होते होते उन्होंने कुल 25 प्रश्न आईएमए और फार्मा लॉबी से पूछे। यद्यपि यह सही है कि आपदा का समय चिकित्सा पद्धतियों के आपस में लड़ने का नहीं है। परन्तु यह कार्य बार बार आईएमए कर रही है और जब से उनके प्रमुख एक कट्टर ईसाई बने हैं, तब से यह हमले बाबा रामदेव के बहाने से आयुर्वेद पर अधिक हो गए हैं। जब वह क्रिश्चिनियटी टुडे में दिए गए अपने साक्षात्कार में स्पष्ट कहते हैं कि “आयुर्वेद का विरोध इसलिए है क्योंकि यदि इसका प्रचार होगा तो हिंदुत्व के प्रति लोगों के दिमाग में असर बढेगा।” और उनका उद्देश्य है भारत में चिकित्सा के माध्यम से ईसाइयत के “सर्वेंट सिद्धांत” के उदाहरण के साथ यह दिखाना कि कैसे चिकित्सा हो सकती है।
इसी के साथ जब वह यह कहते हैं कि भारत में वह एक ईसाई होने के नाते एक ऐसा मौक़ा मिला है कि वह फैमिली मेडिसिन का कांसेप्ट ला सकें। और यह तेजी से भारत से विलुप्त हो रही है। अब वह सुपर स्पेशिलियटी आधारित स्वास्थ्य सेवा की व्यवस्था ला रहे हैं क्योंकि भारत में ऐसी व्यवस्था है कि कोई कहीं से भी दवाई ले सकता है और किसी भी अस्प्ताल में दिखा सकता है और यही कारण है कि भारत में महामारी उतनी नहीं फ़ैली।
कोरोना के भारत में अधिक न फैलने को लेकर उनकी यह राय भी थी कि भारत में चूंकि टीबी के टीका बच्चों को पैदा होते ही लगाया जाता है, और हर किसी को लगाया जाता है। अनिवार्य टीकाकरण है, और इन टीकों ने ही भारत में लोगों को संक्रमण से बचाया है।
अब प्रश्न यह उठता है कि क्या यही कारण है कि ईसाई पास्टर टीकाकरण का विरोध कर रहे थे? भारत में हमने देखा कि ईसाई पादरियों की ओर से टीकाकारण का विरोध किया गया। हिन्दू पोस्ट में हमने नवम्बर 2020 से ही इस बात पर आवाज़ उठाई है कि कैसे कुछ ईसाई पादरियों ने वैक्सीन के बारे में अफवाहें फैलाईं और वैक्सीन से बचने के लिए कहा।
सुन्दर सेल्वाराज, जो एक ईसाई पादरी है, और जिसने जीसस मिनिस्ट्रीज की स्थापना की है, परन्तु खुद को हिन्दू रूप में दिखाता है। उसका लक्ष्य है जीसस की सेवा करना और हिन्दुओं को ईसाई बनाना तथा संवाद के हर उपलब्ध साधनों का प्रयोग करना। सुन्दर सेल्वाराज के विषय में थ्रेड इस ट्वीट में है:
Directors of Jesus Ministries Intl., a 'non-profit' in Lancaster, California, USA.
(EIN=75-3018096).
Do you recognize the highlighted name?
Tamil TV watchers anyone? சாது சுந்தர் செல்வராஜ் #AngelTV
1/n pic.twitter.com/xmC21m9zx0— URFD00m (@by2kaafi) August 11, 2020
यही सुन्दर सेल्वाराज लोगों को भड़काते हुए कहते हैं कि कोरोनावायरस वैक्सीन को प्राइवेट डेटा एक्सेस करने के लिए बायोमैट्रिक चिप के रूप में इंजेक्ट किया जाएगा” और लोगों को वैक्सीन के खिलाफ भड़काते हुए पाए गए। क्या टीबी के टीकाकरण ने जिस तरह से लोगों को बचाया और ईसाई बनने से रोका, तो क्या यही कारण है कि ईसाई मजहबी नेता टीकाकरण के विरोध में ही बोलने लगे? हालांकि ऐसा नहीं है कि सुन्दर सेल्वाराज अकेले थे यह बोलने वाले!
नागालैंड में भी एक प्रेयर सेंटर में यह कहा गया कि “कोविड वैक्सीन गॉड की इच्छा नहीं है,”
जबकि किसी भी हिन्दू साधु ने वैक्सीन के प्रति गलत वक्तव्य नहीं दिया एवं कुम्भ में भी जब ऐसा लगा कि मामले बढ़ जाएंगे, हिन्दू साधुओं ने उदार हृदय एवं मानवता के प्रति कल्याण का भाव रखते हुए कुम्भ को आम जनता के लिए बंद कर दिया। जूना अखाड़ा के महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद आचार्य जी ने अपनी ही ओर से कुम्भ की समाप्ति की घोषणा की:
भारत की जनता व उसकी जीवन रक्षा हमारी पहली प्राथमिकता है। #कोरोना महामारी के बढ़ते प्रकोप को देखते हुए हमने विधिवत कुम्भ के आवाहित समस्त देवताओं का विसर्जन कर दिया है। #जूनाअखाड़ा की ओर से यह कुम्भ का विधिवत विसर्जन-समापन है।@narendramodi @AmitShah@ANI @z_achryan @TIRATHSRAWAT pic.twitter.com/rOUaqL1egU
— Swami Avdheshanand (@AvdheshanandG) April 17, 2021
परन्तु ऐसा विशाल हृदय मजहबी लोगों का नहीं दिखा। बल्कि वह तो हिन्दू धर्म पर ही हमला करते हुए नज़र आए।
ऐसा नहीं है कि केवल ईसाई मजहबी गुरु ही वैक्सीन के खिलाफ बोलते हुए नज़र आए। वैक्सीन का विरोध कट्टर इस्लामियों ने भी किया था, यही कारण था कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, जहाँ पर सभी आधुनिक शिक्षा के आधार पर शिक्षित एवं कथित धर्मनिरपेक्ष एवं निष्पक्ष लोग पाए जाते हैं, वहां पर लगातार कई मौतों से हाहाकार मच गया।
फिर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के वाईस चांसलर तारिक मंसूर ने खुद कहा कि वैक्सीन के प्रति हिचकिचाहट ने ही विश्वविद्यालय परिसर में कोरोनावायरस के विस्तार में बहुत बड़ी भूमिका निभाई, जिसके कारण लगभग 40 से अधिक सेवारत तथा सेवा निवृत्त शिक्षकों ने कोरोना वायरस से दम तोड़ दिया।
जबकि ऐसा कोई भी आधिकारिक वक्तव्य किसी भी हिन्दू धर्मगुरु ने नहीं दिया था। कोरोना प्रोटोकॉल का पालन करने की अपील सबसे अधिक हिन्दू धर्म से ही आईं। फिर भी कुम्भ को सुपर स्प्रेडर कहा गया! क्यों कहा गया, क्योंकि जिन्होनें इस विचार को फैलाया, उसमें केवल और केवल हिन्दू धर्म के प्रति घृणा है, और वह घृणा बहुत गहरे धंसी है।
आईएमए के ईसाई प्रमुख तो खुद ही कोरोना को भारत के लिए इसलिए वरदान मानते हैं क्योंकि इस बहाने लोग ईसाई बनेंगे। उस साक्षात्कार में वह कहते हैं कि “मुझे व्यक्तिगत रूप से लगता है कि गॉड अब अमेरिका से अपनी नज़र हटाएंगे और अब वह सारा ध्यान भारत पर केन्द्रित कर रहे हैं।” और इतना कहते हुए वह हँसते हैं। ऐसा उन्होंने क्रिश्चिनियटी टुडे में दिए गए अपने साक्षात्कार में कहा था:
जरा सोचिये, कि देश की सबसे बड़ी मेडिकल पेशेवरों की संस्था, जिनका उद्देश्य यह होना चाहिए था कि हर प्रकार की चिकित्सा पद्धति के प्रयोग के साथ इस वायरस को समाप्त किया जाए, और लोगों की जान बचे, वहां पर वह यह कह रहे हैं कि अब प्रभु भारत की ओर रुख करें!
और वहीं आयुर्वेद में निरोग रहने की बात की गयी है, अर्थात अस्पताल का रुख कम करना पड़े, तो क्या लोग बीमार कम पड़ना गलत बात है क्या? क्या आधुनिक चिकित्सा यह चाहती है कि लोग उसके प्रयोगों से मारे जाएँ? और लाखों लोग आधुनिक चिकित्सा में गलत प्रयोगों से मारे जाते हैं। और लोग आधुनिक चिकित्सकों की लापरवाही से मारे जा रहे हैं, ऐसा और कोई नहीं बल्कि विश्वस्वास्थ्य संगठन के आंकड़े कहते हैं।

इसीके साथ अब कोरोना के इलाज को लेकर डॉक्टर समुदाय से ही विरोध आने लगा है। स्टेरायड और एंटीबायोटिक की ओवरडोज़ से ब्लैक फंगस बढ़ने से सवाल उठ रहे हैं। इससे प्रश्न तो उठते ही हैं कि क्या वाकई भारत में लोगों को गिन्नीपिग माना जाता रहा एवं मात्र प्रयोग हुए? या फिर यह आयुर्वेद या प्राकृतिक चिकित्सा को साथ न लाने की आईएमए के ईसाई प्रमुख की हठ थी जिसने इतने लोगों को असमय मौत के घाट उतार दिया।
अपने उस साक्षात्कार में आईएमए के अध्यक्ष जॉन रोज़ कहते हैं कि उन्होंने आयुर्वेद के खिलाफ भूख हड़ताल करवाई थी।
जबकि हमारे पाठकों को याद होगा कि इस सरकार ने आयुर्वेद के चिकित्सकों को भी सर्जरी की अनुमति दी थी, जिससे गावों में भी लोग समय पर इलाज पा सकें।
पिछले वर्ष पाठकों को याद होगा कि आयुर्वेद के लिए 58 प्रकार की सर्जरी की अनुमति देने के बाद आईएमए ने हंगामा किया था। जबकि सरकार ने यह स्पष्ट किया था कि शल्य चिकित्सा में 58 प्रकार की सर्जरी की जाने की अनुमति पहले से है। सरकार ने इस हंगामे पर स्पष्टीकरण देते हुए कहा था कि शुरुआत से ही, शल्य और शलाक्य सर्जिकल प्रक्रियाओं के लिए आयुर्वेद कॉलेजों में स्वतंत्र विभाग है। हालांकि 2016 की अधिसूचना में यह निर्धारित किया गया था कि सीसीआईएम द्वारा जारी स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों के लिए जारी संबंधित सिलेबस के तहत छात्र को संबंधित प्रक्रिया में प्रबंधन की जांच प्रक्रियाओं, तकनीकों और सर्जिकल प्रदर्शन का प्रशिक्षण दिया जाएगा। इन तकनीकों, प्रक्रियाओं और सर्जिकल प्रदर्शन का विवरण सीसीआईएम ने किया है नियमन में नहीं।
हालांकि सर्जरी को लेकर शब्दों पर काफी बहस हुई थी, और आधुनिक चिकित्सा ने कुछ शब्दों पर अपना अधिकार माना था। इस पर भी सरकार की ओर से कहा गया कि
मानकीकृत शब्दावली सहित सभी वैज्ञानिक प्रगति संपूर्ण मानव जाति की विरासत हैं। किसी भी व्यक्ति या समूह का इन शब्दावली पर एकाधिकार नहीं है। चिकित्सा के क्षेत्र में आधुनिक शब्दावली, एक अस्थायी दृष्टिकोण से आधुनिक नहीं हैं, लेकिन ग्रीक, लैटिन और यहां तक कि प्राचीन संस्कृत और बाद में अरबी जैसी भाषाओं से काफी हद तक व्युत्पन्न हैं। शब्दावली का विकास एक गतिशील और समावेशी प्रक्रिया है।
एवं इस प्रेस रिलीज़ में यह स्पष्ट किया गया कि पारंपरिक (आधुनिक) चिकित्सा के साथ आयुर्वेद के “मिश्रण” का सवाल यहां नहीं उठता क्योंकि सीसीआईएम भारतीय चिकित्सा पद्धति की प्रामाणिकता को बनाए रखने के लिए गहराई से प्रतिबद्ध है, और ऐसे किसी भी “मिश्रण” के खिलाफ है।
जबकि भारत में सर्जरी आज से नहीं बल्कि आयुर्वेद में हज़ारों वर्षों से होती चली आ रही हैं।

परन्तु आधुनिक चिकित्सा सर्जरी पर अपना अधिकार चाहती है! कभी कभी ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे वह आयुर्वेद एवं सिद्धा जैसी पद्धतियों के साथ मिलकर चलना ही नहीं चाहती है। यहाँ तक कि कई आधुनिक चिकित्सा वाले देशों में होम्योपैथी को प्रतिबंधित किया गया है या फिर किये जाने पर चर्चा हो रही है।
जबकि भारत में इसे मान्यता प्राप्त है। वह एक और चर्चा का विषय है। परन्तु प्रश्न यह उठता है कि क्या कोई भी चिकित्सा पद्धति, जिसमें अभी प्रयोग ही चल रहे हैं, क्योंकि नई नई बीमारियाँ आ रही हैं। ऐसा नहीं है कि भारत में आयुर्वेद में ही शोध हुए, आधुनिक चिकित्सा में भी शोध हुए एवं भारत आधुनिक चिकित्सा में भी केंद्र बनने की दिशा में है। जैसा कहा गया कि चिकित्सा केवल और केवल मानवता के कल्याण के लिए होनी चाहिए।
ऐसे में उस फार्मा लॉबी के लिए जो एक विशेष रिलिजन द्वारा संचालित है, और जो हर कीमत पर हिन्दू भारत को हारते हुए देखना चाहती है, उससे योग गुरु बाबा रामदेव ने कुछ प्रश्न पूछे हैं, एवं इन दिनों ईसाई मजहब की कैद में बंद आईएमए इन प्रश्नों का उत्तर अवश्य देगी, ऐसी आशा हम भी करते हैं:

इन प्रश्नों के उत्तर तो आईएमए द्वारा नहीं दिए गए हैं, परन्तु बाबा रामदेव पर वैक्सीन के प्रति अफवाह की बात कहकर प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी से बाबा रामदेव पर कार्यवाही करने की मांग की है:
IMA in a letter to PM Modi, "Misinformation campaign on vaccination by Patanjali owner Ramdev should be stopped. In a video he claimed that 10,000 doctors & lakhs of people have died despite taking both doses of vaccine. Action under sedition charges should be taken against him." pic.twitter.com/kJ9inQQRJu
— ANI (@ANI) May 26, 2021
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