पिछले दिनों हरियाणा में आम आदमी पार्टी की पूर्व पार्षद एवं दिल्ली के उपमुख्यमंत्री की सलाहकार रही निशा सिंह को न्यायालय द्वारा 7 वर्ष की सजा सुनाई गयी है। उन्हें यह सजा पुलिस पर हमला करने के आरोप में सुनाई गयी है। और यदि आप समझते हैं कि निशा सिंह कोई अनपढ़ या कुछ हिन्दी भाषी क्रांतिकारी पत्रकारों की भाषा में कहे तो “हिन्दी” मीडियम से पढी नहीं हैं।
वह सोफिस्टिकेटेड हैं, वह अंग्रेजी बोलती हैं और वह लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से पढ़कर आई हैं। कई बहुराष्ट्रीय कम्पनियों में अपनी सेवाएं भी दे चुकी हैं।
इन्हें सजा सुनाते समय न्यायालय ने क्या टिप्पणी की है, उसे भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। न्यायालय ने कहा कि “यह विश्वास करने का कारण है कि इन्हें सुधारा नहीं जा सकता है!”
हालाँकि जैसे ही यह सजा सामने आई आम आदमी पार्टी ने तुरंत ही निशा सिंह का पेज डिलीट कर दिया, परन्तु यह सब इतना आसान नहीं है। इतना आसान नहीं है डिजिटल मेमोरी को मिटा पाना और वह कोई हिंदी मीडियम वाली दंगाई तो थी नहीं, इसलिए उनका महिमामंडन भी आम आदमी पार्टी ने खूब किया था। आम आदमी पार्टी के ही कई ट्वीट हैं, जो निशा सिंह का परिचय दे रहे हैं:
यह ट्वीट वर्ष 2019 का है अर्थात उस समय तक निशा सिंह आम आदमी पार्टी में थीं और मनीष सिसौदिया की सलाहकार भी थीं। अब देखते हैं कि क्या आम आदमी पार्टी या हर झडप के लिए हिन्दी मीडियम के लड़कों को उत्तरदायी ठहराने वाले क्रांतिकारी भाजपा और हिन्दू विरोधी पत्रकार यह कह सकते हैं कि उन्हें मामले की जानकारी नहीं थी।
मामला कब का है और क्या है?
दरअसल जब आम आदमी पार्टी ने यह ट्वीट किया था और लोगों के सामने निशा सिंह द्वारा आंगनवाडी और गुरुग्राम के विकास के विषय में विजन रखने के लिए निशा सिंह को आमंत्रित किया था, तब तक वह उस कारनामे को कर चुकी थीं, जिसके लिए उन्हें यह सजा सुनाई गयी है।
दरअसल हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण अर्थात हुडा की एक टीम गुरुग्राम में झिमार बस्ती से 15 मई 2015 को अतिक्रमण हटाने के लिए गयी थी। इस अतिक्रमण हटाने वाली टीम पर लोगों ने हमला कर दिया था। लोगों ने पेट्रोल बम और सिलिंडर भी फेंका गया था। वर्ष 2015 में यह मामला हुआ था, और ऊपर जो हमने ट्वीट दिखाया है आम आदमी पार्टी का, वह वर्ष 2019 का है। इसलिए आम आदमी पार्टी यह नहीं कह सकती कि उसे नहीं पता था। दरअसल आम आदमी पार्टी के साथ जुड़ने के बाद ही एमएनसी में काम करने वाली निशा सिंह ने दंगों की राजनीति सीखी।
हालांकि आम आदमी पार्टी ने इस सम्बन्ध में निशा सिंह से दूरी बनाते हुए उसका पेज अपनी वेबसाईट से डिलीट कर दिया, परन्तु यह अभी भी आर्काइव में मौजूद है
कहा जा रहा है कि आम आदमी पार्टी है जहाँ दंगे हैं वहां!
इस निर्णय के सामने आने के बाद से ही यह कहा जाने लगा है कि आम आदमी पार्टी है जहाँ दंगे हैं वहां! निशा सिंह जहाँ वर्ष 2015 में दंगे फैलाने के आरोप में दोषी पाई गयी हैं, तो वहीं दिल्ली दंगों में ताहिर हुसैन की भूमिका को कौन भूल सकता है? हाल ही में जहांगीरपुरी में भी मुख्य आरोपी अंसार आम आदमी पार्टी से जुड़ा हुआ पाया गया था।
हालांकि ऐसे हर मामले में आम आदमी पार्टी इन दंगाइयों से अपना पीछा छुड़ाने की कोशिश में रहती है, परन्तु आधिकारिक चित्र एवं रिकार्ड्स ऐसे होते हैं कि वह कर नहीं पाती है। जैसे अभी निशा सिंह का पेज डिलीट कर दिया गया है, फिर भी यह उत्तर तो देना ही होगा कि जब वर्ष 2015 में निशा सिंह ने यह दंगा किया था, उसके बाद भी वह पार्टी में क्यों बनी रही?
लगभग हर चैनल से यह समाचार गायब है
परन्तु सबसे अधिक हैरान करने वाली बात तो यह है कि इतना महत्वपूर्ण समाचार हर राष्ट्रीय समाचार चैनल से गायब है। लोग ऐसे में प्रश्न पूछ रहे हैं कि आखिर ऐसा क्या कारण है कि आम आदमी पार्टी के इतने महत्वपूर्ण नेता के विरुद्ध ऐसा निर्णय आने पर भी ये चैनल मौन हैं।
लोग कह रहे हैं कि यही आम आदमी पार्टी का सरकार मॉडल है जिसमें मीडिया को खरीद लिया है, कोई भी मीडिया आम आदमी पार्टी की सच्चाई बताते हुए समाचार नहीं चला सकता है
प्रश्न यह भी उठता है कि राजनीति में परिवर्तन का दावा करने वाली आम आदमी पार्टी आखिर क्या परिवर्तन लाना चाहती है? क्या दंगा राजनीति ही उसकी राजनीति है और ऐसा क्या कारण है कि आम आदमी पार्टी में आते ही वह हिंसक हो जाता है, वह दंगा करने लगता है? ऐसा कौन सा विचार था जिसने एक एमएनसी में काम करने वाली और कुछ करने की आस लेकर राजनीति में आने वाली निशा सिंह को ऐसी विध्वंसात्मक राजनीति करने पर विवश कर दिया? यह एक प्रश्न है?
प्रश्न यह भी है कि पार्टी के लिए दंगा करने वालों को क्या मिला? जिन्हें कथित क्रान्ति का ककहरा सिखाकर हाथों में पेट्रोल बम थमा दिए गए, अब जब वह जेल जा रहे हैं, तो क्या उस पार्टी के विचारों पर तनिक भी बात नहीं होने चाहिए जो अराजक बनाती है। जो व्यवस्था का विरोध करना ही राजनीति बताती है? और जब निशा सिंह जैसे लोग पकडे जाते हैं, तो यह व्यक्तिगत कैसे हो जाता है?
निशा सिंह जब कुछ करने की इच्छा लेकर राजनीति में आई थीं तब वह निर्दलीय पार्षद चुनी गयी थी और उसके बाद उसने आम आदमी पार्टी की सदस्यता ली थी। लन्दन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स की पढ़ाई पर आम आदमी पार्टी की दंगाई नीति अधिक प्रभावी हो गयी और सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि इस महत्वपूर्ण विषय पर कि ऐसा क्या जादू है आम आदमी पार्टी की राजनीति में कि वह जिसे छू ले वह अराजक हो जाता है, दंगा करने से नहीं डरता, वह क्रांतिकारी पत्रकार भी शो नहीं करते हैं, जो राम नाम को लेकर राजनीति करते हुए “हिन्दी मीडियम” वाले लड़कों को हिंसा का दोषी ठहराते हैं।