ऐसा माना जाता है कि संसार में भू-राजनीतिक परिवर्तन आने में कई दशक लगते हैं। कोई भी देश अपनी सम्प्रभुता और सुरक्षा का ध्यान रखते हुए ही निर्णय लेता है, जिसके लाभ और हानि भी होते हैं। अगर हम आज की परिस्थिति की बात करें तो पाएंगे कि रूस और यूक्रेन के बीच हो रहे युद्ध के कारण दुनिया में कई तरह के राजनीतिक और सामरिक परिवर्तन आने शुरू हो गए हैं।
जहां एक तरफ अमेरिका के नेतृत्व में नाटो और अन्य पश्चिमी देशों ने एक गुट बना लिया है, जो रूस के विरुद्ध एक अघोषित युद्ध लड़ रहे हैं। इन देशों ने रूस पर कई प्रकार के आर्थिक प्रतिबन्ध लगा दिए हैं, और इनका एक ही उद्देश्य है, रूस को आर्थिक रूप से इतना कमजोर करना, कि वह यूक्रेन से पीछे हट जाए। वहीं कुछ देशों ने रूस के साथ आर्थिक सम्बन्ध प्रगाढ़ कर लिए हैं, क्योंकि उन्हें अपने सामरिक, आर्थिक और ऊर्जा जरूरतों को पूरा करना था। भारत भी ऐसे ही देशों में से एक है।
भारत ने भी पिछले महीनों में अपनी सामरिक और आर्थिक आवश्यकताओं का ध्यान रखते हुए रूस के साथ अपने आर्थिक सम्बन्धो को और प्रगाढ़ करना शुरू किया। भारत ने रूस से तेल और गैस का आयात कई गुणा बढ़ा दिया है, वहीं आपसी व्यापार को रूपया-रूबल में करने के लिए नया तंत्र भी बना लिया है। दूसरी तरफ भारत की कंपनियां रूस के ऊर्जा, मनोरंजन, रिटेल, और आईटी आदि क्षेत्रों में निवेश कर रही हैं, ताकि आपसी व्यापार को और बढ़ाया जा सके।
लेकिन यह कदम अमेरिका और उसके यूरोपीय सहयोगियों को पचा नहीं, और यही कारण रहा है कि पिछले महीनों में हमने देखा है कि कैसे अमेरिका और उसके सहयोगी भारत पर आक्रामक हुए हैं। हमने देखा है कैसे जर्मनी और अमेरिका के प्रशासन ने कश्मीर पर प्रश्न उठाये, वहीं अमेरिका ने भारतीयों के लिए वीसा के लिए अवधि बढ़ा दी है। अमेरिका ने पिछले लगभग दो वर्षों में भारत में अपना राजदूत नियुक्त नहीं किया है।
अमेरिका और उसके सहयोगियों के मानवाधिकार संगठन, विभिन्न रेटिंग संस्थानों ने पिछले कुछ महीनों में भारत को हर मोर्चे पर घेरने का प्रयास किया है। वहीं पश्चिमी मीडिया ने भी भारत में हो रही छोटी मोटी घटनाओं को बढ़ा चढ़कर छद्म प्रचार कर भारत की छवि को कलुषित करने के प्रयास किये हैं। भारत को हरसंभव मंच पर रूस को दिए जा रहे अघोषित समर्थन के लिए प्रश्न पूछे गए, उस पर दबाव बनाया गया कि वह रूस से दूर रहे। हालांकि भारतीय सरकार ने ऐसे किसी भी दबाव में आये बिना अपनी कूटनीति और अर्थनीति को स्वतंत्र रखते हुए देशहित में निर्णय लिए हैं।
बदलने लगे हैं अमेरिका के तेवर
लेकिन पिछले दिनों कुछ ऐसा हुआ है कि अमेरिका के सुर बदलने लगे हैं। अमेरिका ने अब भारत को अपना मजबूत सहयोगी बोलना शुरू कर दिया है और वह भारत के साथ सम्बन्ध सुदृढ़ करना चाहता है क्योंकि उसके रूस और चीन के साथ सम्बन्ध तनावपूर्ण हैं। अमेरिकी सरकार भारतीय पर्यटकों को वीसा देने की प्रक्रिया को ठीक कर उसमे लगने वाली अवधि को बहुत कम करने पर विचार कर रही है। अमेरिका ने G-20 देशों के गुट में भारत को अध्यक्ष बनाने के प्रस्ताव का भी समर्थन किया है। वहीं अमेरिका ने भारतीय मुद्रा को अपनी मुद्रा निगरानी सूची से हटा दिया है।
आप सोच रहे होंगे कि एकाएक अमेरिका के सुर कैसे बदल गए? जैसा कि हमने कहा भू-राजनीतिक वातावरण इतनी आसानी से नहीं बदलता, ऐसे में अमेरिका और उसके सहयोगियों के एकदम से भारत के पक्ष में बोलने के पीछे एक बहुत बड़ा कारण है। वह है ब्रिक्स संगठन का होने वाला फैलाव और भारत की उसमे महत्वपूर्ण भूमिका।
भारत और ब्रिक्स के वार से अमेरिका हुआ हतप्रभ
ब्रिक्स एक संगठन है जिसके सदस्य हैं ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिणी अफ्रीका। यह ऐसा संगठन है जिसमे अमेरिका और उसके पश्चिमी सहयोगियों का कोई स्थान नहीं है, इस संगठन की अलग संरचना है, एक अलग आर्थिक व्यवस्था है। इसका मुख्यालय चीन में है, वहीं इसकी बैंक का पहला मुख्यालय गुजरात की गिफ्ट सिटी में खुलने जा रहा है। भारत की इस संगठन में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका रही है, और संगठन में लिए जाने वाले हर निर्णय में कहीं ना कहीं भारत की छाप आपको देखने को मिलेगी।
रूस और यूक्रेन के युद्ध के पश्चात दुनिया में एक वैकल्पिक सामरिक और आर्थिक व्यवस्था बनाने की ओर देशों का ध्यान गया है। इसी प्रकार से ब्रिक्स संगठन के विस्तार की भी तैयारी की जा रही है। पिछले ही दिनों अफ़्रीकी देश अल्जीरिया ने इस संगठन की सदस्यता लेने के लिए आवेदन किया है। इसके अतिरिक्त अन्य 12 देशों जैसे अर्जेंटीना ,ईरान,इंडोनेशिया,टर्की, सऊदी अरब और मिस्र ने भी इस संगठन से जुड़ने में रूचि दिखाई है । अगर यह सभी देश आने वाले समय में ब्रिक्स से जुड़ जाते हैं, तो इससे अमेरिका और उसके सहयोगियों के नियंत्रण से चलने वाली वैश्विक सामरिक और आर्थिक व्यवस्था का एक सुदृढ़ विकल्प उठ खड़ा होगा।
ब्रिक्स के विस्तार से दुनिया पर क्या असर होगा?
अगर ब्रिक्स का विस्तार होता है, तो दुनिया के सामरिक और आर्थिक समीकरण बदल जाएंगे, और यह नया संगठन एक नयी वैश्विक व्यवस्था को स्थापित कर सकता है। दुनिया की व्यवस्था को चलाने वाले कुछ महत्वपूर्ण अवयव हैं, जैसे ऊर्जा (तेल और गैस), हथियार, आर्थिक शक्ति, फार्मा, आईटी, और उपभोक्ता की संख्या। अगर ब्रिक्स का विस्तार होता है, तो इन अवयवों पर ब्रिक्स के देशों का आधिपत्य हो जाएगा, जिससे अमेरिकी समर्थित वैश्विक व्यवस्था ख़त्म होने का डर है।
अगर यह सब देश ब्रिक्स में जुड़ जाते हैं, तो दुनिया में क्या बदल जाएगा, यह आप नीचे दिए गए आंकड़ों से समझ सकते हैं :
- दुनिया में सबसे ज्यादा जनसँख्या वाले देश – चीन और भारत
- दुनिया का सबसे बड़ा गैस निर्यातक – रूस
- दुनिया के सबसे बड़े तेल निर्यातक – रूस, सऊदी अरब, ईरान और अल्जीरिया
- दुनिया का सबसे बड़ा पाम तेल उत्पादक और निर्यातक – इंडोनेशिया
- दुनिया की सबसे बड़ी सेना वाले देश – चीन, भारत और रूस
- दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक देश – चीन
- दुनिया में सबसे ज्यादा दवा बनाने वाला देश – भारत
- दुनिया का सबसे बड़ा आईटी सर्विसेज प्रदाता – भारत
- दुनिया के सबसे बड़े ऑटोमोबाइल निर्माता – चीन और भारत
- दुनिया के सबसे बड़े मोबाइल फोन उत्पादक और निर्यातक देश – चीन और भारत
- दुनिया के सबसे बड़े इलेक्ट्रॉनिक्स सामान के उत्पादक – चीन और भारत
- दुनिया के सबसे बड़े बाजार – चीन और भारत
- दुनिया के बड़े हथियार बनाने वाले देश – रूस और चीन
सोचिये जब इतनी बड़ी क्षमता के यह देश एक साथ होंगे, और यह अपना अलग आर्थिक तंत्र और आपूर्ति तंत्र बना लेंगे, तो इन्हे अमेरिका और पश्चिमी देशों पर निर्भर रहने की क्या आवश्यकता होगी? क्या यही एक कारण है कि अमेरिका के व्यवहार में एकाएक बदलाव आया है? क्या अमेरिका को यह लगने लगा है कि भारत अब उसके खेमे से दूर जा रहा है, और इसी कारण अब वह भारत की मान मनौव्वल कर रहा है?
देखिये इसके और भी कई कारण हो सकते हैं, लेकिन पिछले दिनों जिस प्रकार से भारतीय सरकार और भारत के विदेश मंत्री जयशंकर ने अमेरिका और उसके सहयोगियों को आड़े हाथों लिया है, रूस-यूक्रेन के विषय पर उनके दबाव में आये बिना स्वतंत्र निर्णय लिए हैं, उससे तो यही निश्चित हो रहा है कि भारत ने यह मन बना लिया है कि अब वह किसी भी देश के दबाव में नहीं आने वाला है।
भारत अब निर्भीक तरीके से ब्रिक्स के विस्तार में अग्रणी भूमिका निभाएगा और संयुक्त राष्ट्र संघ में अपना समय खराब करना बंद करेगा। भारत को अब अपने निर्णय अपने लाभ और दीर्घकालिक आर्थिक और सामरिक लक्ष्यों को देखते हुए ही लेने चाहिए। हो सकता है इसमें हमे कुछ हानि भी हो, लेकिन अगर भारत को एक महाशक्ति बनना है, तो उसका यही तरीका है, कि भारत एक महाशक्ति और संप्रभु राष्ट्र की तरह व्यवहार भी करे।