अमेरिका में हुए ब्लैक लाइव्स मैटर्स अभियान और उसके बाद हुए दंगे सभी को याद होंगे, क्योंकि इसने पूरे विश्व के सम्मुख मात्र अमेरिका में हुए दंगों को ही नहीं रखा था बल्कि राष्ट्रपति ट्रंप को सत्ता से हटाने की पूरी रूपरेखा भी बना दी थी। मगर इतने दिनों बाद फिर से पोर्टलैंड में फिर से दंगों की स्थिति है।
पोर्टलैंड पुलिस ने एक किशोर को दोषमुक्त किए जाने और रिहा किए जाने के विरोध में हो रहे प्रदर्शनों को दंगा करार दे दिया है। इस किशोर के हाथों आत्मरक्षा में विस्कॉन्सिन में एक प्रदर्शन के दौरान दो लोगों की मृत्यु हो गयी थी और एक घायल हो गया था।
काइले रिटेनहाउस विस्कॉन्सिन, केनोशा में एक सड़क पर खड़ा था और उसकी छाती तक एक असॉल्ट राइफिल बंधी हुई थी। उसने अपने पीछे एक कार डीलरशिप की ओर इशारा करते हुए एक पत्रकार से कहा था कि उसका दायित्व इसकी रक्षा करना है।
मीडिया के अनुसार सत्रह वर्ष का काइले रिटेनहाउस न ही पुलिस में था और न ही सैनिक था। वह एक नज़दीकी स्विमिंग पूल में लाईफगार्ड था।
क्यों हुए थे अमेरिका में दंगे
वर्ष 2020 में अमेरिका में श्वेत पुलिस अधिकारी के हाथों अश्वेत अमेरिकी जॉर्ज फ्लॉयड की मृत्यु के बाद अचानक से दंगे भड़क गए थे। और साथ ही उसके बाद 23 अगस्त 2020 को एक और अश्वेत व्यक्ति की पुलिस के हाथों मृत्यु के उपरान्त केनोशा में प्रदर्शन हो रहे थे। उसी समय रिटेनहाउस, जो मीडिया के अनुसार पुलिस में जाना चाहता था और जिसने पुलिस वालों के समर्थन में ब्लू लाइव्स मैटर्स का अभियान चलाया था, के हाथों दो प्रदर्शनकारियों की मृत्यु हो गयी थी।
रिटेनहाउस ने आत्मरक्षा में गोली चलाई थी। रिटेनहाउस ने कहा था कि उसका काम दुकानों और व्यापार की रक्षा करना है और साथ ही जो घायल हो रहे हैं उनकी मदद करना है, यही कारण है कि उसके पास उसकी राइफिल है, जिससे वह अपनी रक्षा कर सके।”
मीडिया के अनुसार रिटेनहाउस ने बताया कि 23 अगस्त 2020 को केनोशा पुलिस अधिकारी द्वारा एक एक घरेलू डिस्टर्बेंस में एक अश्वेत व्यक्ति जैकब ब्लेक की मृत्यु के बाद प्रदर्शन शुरू हो गए थे। उसने कहा कि उसने सोशल मीडिया पर इस प्रदर्शन के वीडियो देखे। और फिर दो दिन बाद जब वह केनोशा में गया और वह एक काल डीलरशिप के मालिकों से मिला, जहाँ पर वाहन जला दिए गए थे और उसने अपनी सांत्वना प्रकट की और कहा कि वह मदद करना चाहता है। और फिर जब उसके मालिक ने अपने दोस्त से उसकी डीलरशिप की रक्षा के लिए कहा तो वह भी उनके साथ आ गया। उसने कहा कि उसने अपनी सेमी-ऑटोमेटिक राइफिल ली और फर्स्ट एड की जरूरी चीजें ले ली।
उसने ज्यूरी के सामने कहा कि उसे रोसेनबाम ने जान से मारने की दो बार धमको दी थी और फिर उसने कहा कि हालांकि स्थिति बिगड़ने पर उसने भागने की कोशिश की थी, पर रोसेनबाम चीख रहा था कि “पीछा करो और मार डालो” फिर उस पर रोसेनबाम ने एक बैग से प्रहार किया।
तब उसने आत्मरक्षा में राइफिल का प्रयोग किया। फिर उसके बाद जब वह भागा तो हुबेर ने उसकी गर्दन पर प्रहार किया और उसकी बन्दूक पकड़ ली। फिर उसने कहा कि मुझे लगा कि मैं अपने शरीर पर स्ट्रैप को महसूस कर रहा था।” और कहा कि मैंने एक गोली चलाई।
फिर एक व्यक्ति के हाथ में गोली मारी, जो धोखे से उसे मारने आ रहा था।
ऐसा उसने खुद पर लगे आरोपों के उत्तर में कहा था। अब जब ज्यूरी ने उसे आरोपमुक्त कर दिया है, तो अमेरिका बंट गया है।
वामपंथी आत्मरक्षा का अधिकार नहीं देते हैं:
इस निर्णय के आते ही फिर से बहस आरम्भ हो गयी है और रिटेनहाउस के वकील को जान से मरने की धमकी मिलने लगी हैं
लोग कुछ और मामलों से तुलना करके इसे श्वेत वर्चस्व की जीत बताने लगे हैं:
पत्रकार भी इस निर्णय की आलोचना कर रहे हैं:
हालांकि राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इस निर्णय पर हैरानी और गुस्सा व्यक्त किया है और कहा है कि वह इस निर्णय से हैरान हैं पर यह ज्यूरी का निर्णय है। और उन्होंने शान्ति बनाए रखने की अपील की।
वहीं एक यूजर ने कहा वह इस निर्णय को पलट दें:
भूतपूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हालांकि इस मामले पर रिटेनहाउस को बधाई देते हुए कहा कि अगर यह आत्मरक्षा नहीं है तो क्या है?
कई यूजर्स ने प्रोपोगैंडा के विरोध में भी ट्वीट किए। एक यूजर ने उन सभी का पिछ्ला इतिहास बताया जिनकी मृत्यु रिटेनहाउस के हाथों आत्मरक्षा में हुई थी:
एक यूजर ने निर्णय सुनाए जाते समय का वीडियो साझा करते हुए लिखा कि यह संविधान की जीत है, और लिखा कि जो लोग कह रहे हैं कि रिटेनहाउस को उस रात सड़क पर नहीं होना चाहिए था, तो दंगाइयों, लुटेरों और बच्चों का बलात्कार करने वालों के लिए सड़क पर होना उचित था
ट्विटर मिश्रित प्रतिक्रियाएं हैं। पर इस निर्णय से एक बात समझनी चाहिए कि यह वामपंथी नीति है कि वह स्वयं के लिए तो दंगे करने का अधिकार तक मांगते हैं, परन्तु जो उनके विचार का विरोधी है, उसे वह आत्म रक्षा का अधिकार भी नहीं देना चाहते हैं।
जैसे अमेरिका में यह पूरी तरह से वामपंथी आन्दोलन था, उसमे उन लोगों ने हिंसक प्रदर्शन किये और मजे की बात यह है कि अभी वीर दास ने दो इंडिया की कुंठित कविता अमेरिका में पढ़ी थी, ऐसा ही कुछ एक यूजर ने लिखा है कि दो अमेरिकाओं की एक कहानी:
भारत में जिस प्रकार मुख्यधारा की वामपंथी मीडिया झूठ परोसती है और झूठे मामले बनाती है, जैसा हमने कई मामलों में देखा है, वैसे ही अमेरिका में भी यूजर यही कह रहे हैं कि स्वतंत्र मीडिया और उनके पत्रकारों ने सत्य और निष्ठा से पत्रकारिता की है, और मुख्यधारा की मीडिया की तरह झूठ नहीं परोसा है:
अब प्रदर्शनकारी उसे जान से मारने की धमकी दे रहे हैं:
जैसे ही यह निर्णय आया वैसे ही बीएलएम/एंटिफा ने इस निर्णय के विरोध में शिकागो में प्रदर्शन करना आरम्भ कर दिया। एक यूजर ने लिखा कि यह अंत में प्रमाणित करता है कि यह सब वामपंथ है, दंगे, मौत आदि
ऐसा ही यह लोग भारत में हिन्दुओं के साथ करते हैं। हिन्दुओं को आत्मरक्षा का अधिकार भी नहीं देते हैं। हिन्दुओं के साथ होने वाला हर अत्याचार इन्हें झूठ लगता है। काइले रिटेनहाउस के निर्णय को वह स्वीकार नहीं कर रहे हैं, वैसे ही जैसे उन्होंने आज तक राम जन्मभूमि पर आए निर्णय को यहाँ पर स्वीकार नहीं किया है, वैसे ही जैसे दिल्ली दंगों में ताहिर हुसैन की संलिप्त स्वीकार नहीं की है। कपिल मिश्रा को दंगे भडकाने वाला माना तो माना, जबकि कपिल मिश्रा के विरुद्ध एक भी शिकायत नहीं टिकी।
यह लोग हर जगह अपने एजेंडे को सत्य बताते है और सत्य को एजेंडा। फिर चाहे कोई भी देश हो। इनका एजेंडा जीतना चाहिए।
आज अमेरिका में फिर से दंगे इसलिए भड़क रहे हैं क्योंकि इनका झूठ पकड़ा गया है, जैसा कई नागरिक दावा कर रहे हैं, और कह रहे हैं कि वीडियो फुटेज ने उसे बचा लिया, जिसे जानबूझकर जारी नहीं किया जा रहा था और न ही लिब्रल्स मुक़दमे को सही से देख रहे थे! उन्हें बस उस लड़के के लिए दंड चाहिए था! लड़के के लिए नहीं,बल्कि अपने एजेंडे के पक्ष में!
भारत में भी वीडियो फुटेज से ही ताहिर हुसैन की संलिप्तता दिल्ली दंगों में पाई गयी थी, नहीं तो मीडिया ने इसे हिन्दू दंगा घोषित कर ही दिया था।
ऐसे में instagram पर इस वीडियो को देखना चाहिए कि कौन रेसिज्म का एजेंडा करता है और कौन नहीं:
कुल मिलाकर न्यायालय के इस निर्णय से अमेरिका में एक बार फिर से विद्रोह के स्वर उठ खड़े हुए हैं, वामपंथी अपने एजेंडे को विफल होते गुस्से से भर उठे हैं और अब वह न्यायपालिका को भी अपने एजेंडे के अनुसार चलाना चाहते हैं।
जैसे भारत में चुनी हुई सरकार के हर निर्णय के विरुद्ध खड़े हुए हैं और आन्दोलन कर रहे हैं, जब इन्हें कोई दर्पण दिखाता है तो यह वैसे ही भड़कते हैं, जैसे आज अमेरिका में यह लोग भड़क रहे हैं!