नए तालिबान का शोर जैसे जैसे थमता जा रहा है, वैसे वैसे ही उसकी परतों से पुराना तालिबान वापस आता जा रहा है। ताजा समाचार यह है अब नए तालिबान ने महिलाओं पर अफगानिस्तान में टेलीवीजन सीरियल में काम करने पर प्रतिबन्ध लगा दिया है। और साथ ही यह भी आदेश दिए हैं कि अब महिला पत्रकार एवं समाचार प्रस्तोता टीवी में केवल सिर पर स्कार्फ में ही दिखाई दें! परन्तु यह नहीं बताया है कि किस प्रकार का स्कार्फ पहना जाना है.
उल्लेखनीय है कि जब अगस्त में तालिबान ने सत्ता हासिल की थी, उस समय नए तालिबान की बहुत चर्चा थी और बार बार लिब्रल्स एवं हिंदी लेखिकाओं द्वारा उनमें आदर्श खोजा जा रहा था, और कहा जा रहा था, कि वह कम से कम हिन्दू कट्टरवादियों से बहुत अच्छे हैं, दरअसल हिन्दू कट्टरवादी तो नाम के लिए कह रही थीं, उनका संकेत पूरी तरह से केवल और केवल भारतीय जनता पार्टी की ओर एवं साथ ही उन हिन्दुओं की ओर था, जो अब मुखर हो रहे हैं!
मजहब को आहत करने वाले या फिर अफगानों के प्रति अपमानजनक कॉमेडी और मनोरंजन शो भी प्रतिबंधित हैं।
वह विदेशी फ़िल्में जो विदेशी संस्कृति को प्रोत्साहित कर रही हैं, उन्हें प्रसारित नहीं किया जाएगा।
अफगानिस्तान के टेलीवीजन विदेशी महिलाओं वाले विदेशी धारावाहिक प्रसारित करते हैं।
हालांकि अफगानिस्तान में इन निर्णयों से निराशा है। वहां पर पत्रकारों का प्रतिनिधित्व करने वाले संगठन के एक सदस्य हुज्जातुल्ला मुजाबेदी ने कहा कि इस प्रकार के प्रतिबन्ध अपेक्षित नहीं थे। बीबीसी के अनुसार उन्होंने इन प्रतिबंधों के विषय में नहीं सोचा था।
हालांकि ऐसा होगा ही, ऐसा एक बड़े वर्ग का मानना था, जिसने उन्नीस सौ नब्बे के दशक में तालिबान का शासन देखा है। तालिबान ने अपने पिछले शासन काल में भी इसी प्रकार से प्रतिबन्ध लगाए थे और औरतों का घर से बाहर ही निकलना लगभग मना था।
उस समय भी महिलाएं स्कूल और कॉलेज नहीं जा पाती थीं। हालांकि अभी जब तालिबान ने पंद्रह अगस्त को सत्ता हासिल की थी, तो एक ऐसा भी वर्ग था, जिसने तालिबान की प्रशंसा की थी। भारत में एक बड़ा वर्ग ऐसा भी था। जो इस बात से गुस्सा था कि तालिबान की बुराई कथित दक्षिणपंथी क्यों कर रहे हैं। और वह “दक्षिणपंथियों” एवं “संघियों” के पीछे पड़ गए थे।
आरफा खानम शेरवानी, जैसे लोगों ने यह नहीं देखा था कि तालिबान ने आने से पहले ही महिलाओं को निशाना बनाना शुरू कर दिया था, और क्या इन लोगों को यह नहीं पता था कि आने वाले समय में अफगानिस्तान में उन्हीं के मजहब की लड़कियों के साथ आगे क्या होने जा रहा है, पर नहीं, उन्होंने हिन्दुओं को कोसने के लिए मोर्चा खोल दिया था:
लिब्रल्स यहाँ तक तालिबान के पक्ष में आ गए थे कि नसीरुद्दीन खान को ही उन्होंने निशाने पर ले लिया था। जब तालिबान की जीत पर भारतीय मुसलमानों के जश्न मनाने पर आपत्ति नसीरुद्दीन खान ने जताई थी तो सबा नकवी समेत कई कथित कट्टरपंथी लिब्रल्स के निशाने पर नसीरुद्दीन खान आ गए थे।
हालांकि जो लेखिकाएं तक इस बात पर खुशी व्यक्त कर रही थीं कि चलो तालिबान लड़कियों को पढने तो दे रहा है, वह तालिबान द्वारा किए जा रहे अत्याचारों पर मुंह खोलने के लिए तैयार नहीं हैं। तालिबान ने लड़कियों के साथ अत्याचारों की हर सीमा को पार कर दिया है। यहाँ तक कि वह महिला जज भी खौफ में जी रही हैं, जिन्होंने कभी तालिबानियों को उनके किए कुकृत्यों के लिए कभी सजा सुनाई थी। कई जज अपनी जान बचाने के लिए छिप छिप कर रह रही हैं।
इतना ही नहीं महिला खिलाड़ियों की हत्या भी तालिबान कर चुका है। परन्तु तालिबान की तारीफ़ करने वाला भारतीय कट्टरपंथी और पिछड़ा लिबरल वर्ग कुछ बोल नहीं रहा है। उनके लिए तालिबान के हर गुनाह क्षमा हैं। अब जब आज यह निश्चित हो गया है कि तालिबान में महिलाओं के लिए रुपहला पर्दा एक इतिहास बन जाएगा और वह देख नहीं पाएंगी तो ऐसे में तालिबान से प्रेम करने वाली आधुनिक पिछड़ी लेखिकाओं का दृष्टिकोण क्या रहेगा यह देखना होगा!
पाठकों को याद होगा कि काबुल में मेयर ने उन सभी महिला कर्मचारियों को घर बैठने के लिए कह दिया था, जिनका काम आदमी कर सकते हैं, केवल उन्हीं कामों के लिए औरतें घर से बाहर निकलेंगी, जिन पदों पर आदमी नौकरी नहीं करेंगे।
इतना ही नहीं अभी तक बच्चियों के लिए स्कूल नहीं खोले गए हैं और नृत्य संगीत आदि के सभी केंद्र बंद कर दिए गए हैं।
परन्तु यह तालिबान या कहें इस्लाम की कट्टरता के लिए कट्टर और पिछड़े लिब्रल्स का प्यार है कि उन्होंने अभी तक इन सभी प्रतिबंधों पर मुंह नहीं खोला है। वैसे भी पिछड़े लिब्रल्स और कट्टर इस्लामियों में अंतर नहीं हैं, वह एक ही हैं!