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Friday, December 6, 2024

देश की बेटियों का यह कैसा अपमान?

टोक्यो ओलंपिक्स में भारत की बेटियों ने बहुत शानदार प्रदर्शन किया है और इस बार वह जिस तरह से पदक जीत कर आई हैं या फिर बहुत ही मामूली अंतर से रह गयी हैं और इसे लेकर पूरे भारत को उन पर गर्व है और बार बार उन लड़कियों को लेकर कहा जा रहा है, भारत की बेटियों ने कमाल कर दिया। यह एक सहज प्रतिक्रिया है किसी भी देश की। मगर कुछ लोग हैं जिन्हें यह पसंद नहीं है।

सेक्युलर पत्रकार आरफा खानम शेरवानी ने एक ट्वीट किया है कि “लड़कियों को बेटियाँ या डॉटर कहने से रोका जाए। औरतों को किसी और व्यक्ति के प्रति रिश्ते से जोड़ना बहुत पिछड़ा और औरतों के प्रति अपमानजनक है, उन्हें इन्सान, औरतों और नागरिकों के रूप में पहचानें। आप पुरुष हॉकी खिलाडियों को तो बेटा नहीं कहते, फिर महिला हॉकी खिलाडियों को बेटियाँ क्यों कहना?”

आरफा खानम शेरवानी, जो हिन्दुओं के प्रति एक दुराग्रह से भरी हुई हैं, उनके लिए शायद बेटियाँ केवल वही हैं, जो हिन्दुओं का अपमान करती हैं या फिर उनके एजेंडे के अनुसार चलती हैं। और यह किस पहचान की बात करती हैं, जब “खानम” उपनाम वह खुद अपनाई हुई हैं। खानम का अर्थ ही है खान से सम्बन्धित! जैसे खान की पत्नी, या मुस्लिमों में उच्च कुल की औरत।

आरफा खानम क्यों खान शब्द से जुड़ी हुई हैं? यह वह जबाव नहीं देंगी, पर वह हिन्दुओं की उस भावना को मारने के लिए आगे आ जाएँगी, जिसके अंतर्गत वह हर बच्ची में अपनी बच्ची देखता है। खैर, आरफा किस प्रकार की लड़कियों को भारत की बेटियाँ बताती हैं, वह इन चित्रों से स्पष्ट होता है:

आरफा के लिए वह हादिया भारत की बेटी है जिसने हिन्दू धर्म छोड़कर इस्लाम अपनाया और अपने मातापिता को रोता हुआ छोड़ दिया। आरफा के लिए हॉकी में ओलंपिक्स में अपना सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाली लडकियां कैसे “बेटियाँ” हो सकती हैं, जिन्होनें अपने कार्यों से अपने देश और धर्म का नाम रोशन किया है, जिन्होनें उस कथित पितृसत्ता के झूठे गुब्बारे में अपने प्रदर्शन से पिन मारा है, जिसे वह बार बार फुला कर हिन्दू समाज को बदनाम करती हैं।

यह वही आरफा है, जिन्होनें सीएए के दौरान मुस्लिमों से कहा था कि उन्हें केवल अपनी रणनीति बदलनी है, विचार नहीं, तो देश को तोड़ने वाली रणनीति बनाने वाली आरफा देश को एक सूत्र में बाँधने वाली उन लड़कियों को “बेटियाँ” कह पाएंगी, जिन्होनें लाखों लड़कियों की आँखों में जीत की आस जगाई है, जिन्होनें हर हृदय में वात्सल्य उत्पन्न किया है और जिन्होनें अपने देश की लाखों लड़कियों को विदेशों में गर्व से सिर उठाकर चलने का अधिकार दिया है, इस बात पर संदेह होता है, क्योंकि आरफा जैसे लोग विरोध प्रदर्शन भी ऐसी रणनीति बनाकर करते हैं कि मजहब भी रहे और वह बहुसंख्यक हिन्दुओं पर प्रहार भी करते रहें!

पर वह कभी तीन तलाक या हलाला के विरोध में बोली होंगी, ऐसा नहीं लगता क्योंकि जब वह बेटियों की अवधारणा में ही विश्वास नहीं करती हैं तो उनके मजहब की बेटियों के साथ क्या हो रहा, इससे उन्हें क्या मतलब?

मीराबाई चानू, पीवी सिन्धु, अदिति अशोक, हॉकी टीम की सभी ग्यारह खिलाडियों सहित हर वह लड़की भारत की बेटी है जो भारत का नाम अपने कार्यों से रोशन कर रही है।  जब वह तिरंगे को सम्मान पहुंचाती हैं तो हर व्यक्ति का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है, और उनके मुंह से अपने आप ही भारत की बेटियाँ निकल जाता है।

मगर आप नहीं समझेंगी, जो अपनी पहचान खान से जोड़ती है वह कभी भी उस देश में बेटियों को दिए गए सम्मान को नहीं समझ पाएगी जो जनक ने अपनी दत्तक पुत्री सीता को दिया, और जो मद्र देश के नरेश अश्वपति ने अपनी पुत्री सावित्री को दिया। सीता और सावित्री जैसी बेटियों के देश में जो कन्या जन्म लेती है, वह उन्हीं गुणों से युक्त होती है। पर इसे आत्मसात करने और समझने के लिए मन पवित्र होना चाहिए।

भारत में जहाँ मीराबाई जैसी भी बेटियाँ हुई हैं, जिन्हें आज तक भारत पूजता है। दरअसल भारत उन्हें अपनी बेटी मानता है, जो सृजन में विश्वास रखती हैं। वह उस सूर्या सावित्री को अपनी बेटी मानता है, जिन्होनें विवाह के सूक्त रचे और जिन्हें अभी भी विवाह में पढ़ा जाता है।

भारत की न जाने कितनी बेटियाँ थीं, जिन्होनें हँसते हँसते अपनी जन्मभूमि के लिए प्राण अर्पित कर दिए। लक्ष्मीबाई, झलकारी बाई, अवंतिबाई लोधी, अहल्याबाई होलकर, रानी दुर्गावती, जीजाबाई, ताराबाई, रानी कर्णावती, ओनाके ओबावा, ननी बाला देवी, प्रीतिलता वादेदार, सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, मंगल मिशन में भाग लेने वाली मीनल संपत, अनुराधा टीके, नंदिनी हरिनाथ, एवं बैडमिन्टन खिलाडी साइना नहरवाल सहित वह सभी बेटियाँ भारत की बेटियाँ हैं, जिन्होनें अपने कर्मों से भारत का सीना हमेशा चौड़ा किया है, जिनके कार्यों पर आज हर भारतवासी गर्व करता है।

परन्तु आरफा के लिए भारत की बेटियों में हादिया शामिल है, वह सभी औरतें शामिल हैं, जिनकी जुबां पर भारत और हिन्दुओं के लिए नफरत रहती है और जिनका एजेंडा केवल हिन्दुओं को ही गाली देना और हिन्दुओं से घृणा करना होता है।

जो लोग बेटियाँ कहे जाने पर आपत्ति व्यक्त कर रहे हैं, वह जानें कि हमारे यहाँ स्त्रियों को बेटियों के रूप में ही सम्मानित नहीं माना जाता है बल्कि, माँ के रूप में पांच प्रकार की माएं बताई गयी हैं:

रजतिम ओ गुरु तिय मित्रतियाहू जान।

निज माता और सासु ये, पाँचों मातृ समान।।

अर्थात जिस प्रकार संसार में पांच प्रकार के पिता होते हैं, उसी प्रकार पांच प्रकार की मां होती हैं। जैसे, राजा की पत्नी, गुरु की पत्नी, मित्र की पत्नी, अपनी स्त्री की माता और अपनी मूल जननी माता।

आरफा क्या आप भी औरतों को केवल खेती मानती हैं, क्योंकि आप कभी इसके विरोध में खड़ी नहीं हुईं कि क्यों आपके मजहब में औरतों को केवल खेती माना जाता है और क्यों काफिर की लड़कियों के साथ बलात्कार तक जायज होता है। क्या काफिर की लडकियां आपकी बेटियाँ नहीं होती हैं? क्या आप इसी कारण लड़कियों से बेटियों की पहचान छीनना चाहती हैं जिससे कोई उनके सम्मान में खड़ा ही न हो पाए?

वैसे उनके इस ट्वीट के उत्तर में एक यूजर ने पीटी उषा का भी एक ट्वीट लगाया जिसमें हॉकी टीम के खिलाड़ियों के लिए बेटा शब्द प्रयोग किया था:

आरफा के एक पुराने ट्वीट का स्क्रीनशॉट भी वायरल हो रहा है जिसमें बुलंदशहर की खातून बी उन्हें कसकर पकड़कर कहती हैं कि “बेटी, जिस घर में 50 साल रही, आज उसी घर में डर लगता है, ये देस पराया हो गया है!”

हमारे यहाँ भारत का सिर गर्व से उठाने वालों को लाल कहा जाता है, भारत के लाल, भारत के सपूत! राम जैसा पुत्र पाने के लिए लोग व्रत रखते हैं और फिर राम पूरे भारत के बेटे बन जाते हैं! देश के लिए प्राण देने वाले वीर फौजी हर घर के बेटे बन जाते हैं, जिस दिन कोई आतंकी हमला होता है और भारत के बेटे अपना सर्वोच्च बलिदान देते हैं, उस दिन न जाने कितने उन घरों में भी चूल्हा नहीं जलता है जो उस बच्चे से अनजान होते हैं. दरअसल वह लोग अपनी जन्मभूमि के कारण, अपनी पहचान के कारण बेटा और बेटियों के साथ जुड़े होते हैं, पर आरफा जैसे लोग जो खान से जुड़े होने में गर्व अनुभव करते हैं, वह इस देश से जुड़े ही नहीं होते तो इस देश की बेटी या बेटे से क्या जुड़ेंगे?

आरफा जैसे लोग, जिन्हें खान से जुड़ा हुआ खानम शब्द गौरव का प्रतीक लगता है, वह भारत को समझ पाएंगी इसमें संदेह है और वह “बेटियाँ” जैसे पवित्र शब्द समझ पाएंगी इसमें भी संदेह है, क्योंकि अभी तक किसी ने उन मुस्लिम बच्चियों के लिए जरा भी आवाज़ नहीं उठाई है, जो अपने ही जन्मदाता की हैवानियत का शिकार हुई थीं। क्या वाकई बेटियाँ शब्द होता ही नहीं है, केवल औरत होता है, औरत अर्थात लज्जाजनक चीज! आरफा कभी मदरसों में होने वाले शोषण पर नहीं बोलती हैं, आरफा कभी भी अपनी उस मुस्लिम बहनों के साथ जाकर खड़ी नहीं हुई हैं, जिन्हें वास्तव में उनकी जरूरत है, क्योंकि उनके लिए भारत ही जब उनका देश नहीं है तो उससे मोहब्बत करने वाली या जमीन से जुड़े मुसलमानों की बेटियाँ भी कहाँ से अपनी होंगी?

या फिर आरफा इन लड़कियों से इसलिए चिढ़ रही हैं क्योंकि इनमें से अधिकतर खुलकर हिन्दू धर्म को मानती हैं और सभी लडकियाँ अपने देश का आदर करती हैं? यह भी एक प्रश्न हैं!

क्या ऐसे लोग अभी तक उस गुलामी मानसिकता से जकड़े हुए हैं, जिस मानसिकता को बेटी, माँ जैसे सम्मान देने वाले शब्दों से नफरत है और औरत से प्यार!


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