इस वर्ष देश के सर्वोच्च सम्मानों की घोषणा होते ही एक नाम को लेकर लोगों ने विरोध करना आरम्भ कर दिया। यह नाम है समाजवादी पार्टी के दिवंगत नेता मुलायम सिंह यादव का। उन्हें मरणोपरांत पद्म विभूषण प्रदान किया जा रहा है। जैसे ही यह सूची लोगों ने देखी, सोशल मीडिया पर इस निर्णय का विरोध आरम्भ हो गया। लोगों को इस बात को लेकर आपत्ति है, क्षोभ है और क्रोध है कि जिन मुलायम सिंह यादव ने निर्दोष रामभक्तों पर गोलियां चलाई थीं।
तमाम ऐसे हैंडल जिन्हें सरकार का समर्थक माना जाता है, वह इस निर्णय से आहत दिखे और उन्होंने प्रश्न भी किए कि ऐसा क्यों किया जा रहा है?
इस बात को लेकर एक बड़ा वर्ग सरकार के विरोध में है, वह सोशल मीडिया पर प्रश्न उठा रहा है, अपनी बात रख रहा है कि मुलायम सिंह यादव को पद्म विभूषण एक अनावश्यक कदम है:
कई यूजर्स ने पुराने भी सन्दर्भ साझा किये कि तत्कालीन सरकार के इस कदम पर माननीय न्यायालय ने क्या टिप्पणी की थी। एक यूजर ने लिखा कि मुलायम सिंह यादव की सरकार के विषय में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा था कि इसने उत्तराखंड के लोगों के साथ वही व्यवहार किया था जैसा जर्मनी में नाजियों ने यहूदियों के साथ किया था।
सोशल मीडिया पर इस निर्णय को लेकर उबाल आया हुआ है। जो भी विरोध कर रहा है, उसका विरोध इसी कारण को लेकर है कि कैसे रामभक्तों पर गोलियां चलाने वाले को एवं उसके लिए कोई अपराधबोध न अनुभव करने वाले व्यक्ति को पद्मविभूषण दिया जा सकता है।
राजनीति को समझा जा सकता है, परन्तु राजनीति के लिए उन तमाम लोगों की पीड़ा पर नमक छिड़कना, जो उस हिंसा के शिकार हुए, और जो प्रभु श्री राम के काज के लिए बलिदान हो गए, किसी की भी समझ में नहीं आ रहा है।
दरअसल भारतीय जनता पार्टी का एक बड़ा मतदाता वर्ग वह है जो समाजवादी पार्टी की सरकार में क़ानून व्यवस्था की स्थिति से दुखी रहता है। उत्तर प्रदेश में रहने वाले लोग जानते हैं कि कैसे समाजवादी पार्टी की सरकार में कानून व्यवस्था को ठेंगे पर रखकर आपराधिक तत्वों को संरक्षण दिया जाता था। और यह सब जनता ने देखा कि कैसे कबाड़ माफिया तक फलते फूलते थे।
मेरठ में कबाड़ माफिया की कमर कैसे उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने तोड़ी, यह सभी ने देखा था। कैसे पूर्ववर्ती सरकारों ने उस माफिया को संरक्षण दे रखा था, जो लोगों के रोज के जीवन से जुड़ा हुआ था। इसके अतिरिक्त भी सपा सरकार में कई ऐसे काण्ड हुए थे, जो पूरी तरह से हिन्दू विरोधी थे जैसे कैराना से पलायन। हालांकि लोगों की आपत्ति इन सब मामलों पर है ही नहीं क्योंकि यह बाद के मामले हैं। उनकी तमाम शिकायतें कारसेवकों पर गोली चलाने वाले को पद्मविभूषण दिए जाने से है।
परन्तु यदि मुलायम सिंह यादव की राजनीति एवं सपा सरकार के दौरान क़ानून व्यवस्था की लचर स्थिति को देखा जाए तो मायावती का नारा ही इसी के इर्द गिर्द घूमता था जैसे “चढ़ गुंडन की छाती पर, मोहर लगेगी हाथी पर!” हालांकि मायावती ने भी जब अखिलेश के साथ हाथ मिलाया था, तो उन्हें हर तंज का सामना करना पड़ा था और उनकी पार्टी भी चुनावों में बुरी तरह पराजित हुई थी, और इस गठबंधन पर भारतीय जनता पार्टी ने भी तंज कसा था
हर चुनावों में क़ानून व्यवस्था की लचर स्थिति सबसे मुख्य मुद्दा हुआ करता था एवं स्वयं भारतीय जनता पार्टी की योगी सरकार भी बेहतर क़ानून व्यवस्था के आधार पर वापस चुनकर आई है। जनता बुलडोज़र बाबा के नाम से उनके कार्यों को स्वीकृत कर चुकी है!
ऐसे में प्रश्न तो यह उठता ही है कि यदि चुनावों के समय समाजवादी पार्टी के नेताओं का विरोध होता है और उनके साथ राजनीतिक लड़ाई लड़ी जाती है, और वह भी उस पार्टी के कैडर्स से जमीनी लोग विरोध मोल लेते हैं, जिनके मुखिया नेता सरकार आने पर बदला लेने और लिस्ट बनाने की बात करते हैं, ऐसे में न ही आम जनता और न ही भारतीय जनता पार्टी का आम मतदाता इस बात को समझ पा रहा है कि सरकार द्वारा यह क्यों किया गया?
लोग बार बार यही प्रश्न कर रहे हैं कि आखिर मुलायम सिंह यादव को कैसे पद्मविभूषण मिल सकता है? हम किसे सम्मान दे रहे हैं, अयोध्या में कारसेवकों पर गोली चलाने के लिए, बलात्कार पर असंवेदनशील बयान देने के लिए!
यह बात लोग भूल ही नहीं पा रहे हैं कि कैसे मुलायम सिंह यादव ने यह बयान खुले आम दिया था कि लड़के हैं, लड़कों से गलतियाँ हो जाती हैं। मोदी जी समर्थक भी यह कह रहे हैं कि वह उनके इस निर्णय से सहमत नहीं है। नरेंद्र मोदी सरकार के लिए समर्पित लोग भी प्रश्न कर रहे हैं कि देश के दूसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान “पद्म विभूषण” को मुलायम सिंह यादव को देने के प्रति सहमत नहीं हैं
लोग तरह तरह की प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं, जिनमें जनसत्ता की उस कटिंग को साझा कर रहे हैं, जिसमें लिखा है कि अयोध्या में कारसेवकों पर अंधाधुंध फायरिंग! और लोग प्रश्न कर रहे हैं आखिर सरकार क्या सन्देश देना चाहती है?
भारतीय जनता पार्टी के समर्थक आहत हैं, आहत इसलिए हैं क्योंकि यह कदम अप्रत्याशित ही नहीं हैं, बल्कि उन्हें स्तब्ध कर देने वाला है। उन्हें ऐसा लग रहा है जैसे उनकी पीठ में छुरा घोंप दिया गया हो, उन्हें ऐसा लग रहा है जैसे उन्हें बीच मझधार में अकेला छोड़ दिया गया हो, और ऐसा अकेला कर दिया हो, जिसे हर कोई अपना शिकार बना सकता है।
चूंकि प्रभु श्री राम के लिए प्राण बलिदान करने वाले शेष दलों के लिए अस्पर्श्य हैं, एवं वह भारतीय जनता पार्टी के मतदाता हैं या कहें वह भारतीय जनता पार्टी को अपना समझते हैं, अब उनके समक्ष उस व्यक्ति को दूसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान से सम्मानित किया जा रहा है, जिन्होनें राम मंदिर के लिए कारसेवा करने वालों पर गोली चलाई थी।
लोग यह भी नहीं भूल पा रहे हैं कि कैसे राममंदिर के लिए सरकार न्योछावर करने वाले कल्याण सिंह के निधन पर समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव पुष्प तक अर्पित करने नहीं गए थे। आनंद रंगनाथन ने भी मुलायम सिंह यादव के उस निर्णय का हवाला दिया है जिसमें वह कह रहे हैं कि बाबरी मस्जिद को बचना के लिए और मुस्लिमों का विश्वास बनाए रखने के लिए गोली चलाया जाना आवश्यक था
भारतीय जनता पार्टी के मतदाताओं में क्षोभ है, क्रोध है, अकेले पड़ जाने की व्यथा है, पीड़ा है और वह अपनी पीठ पर हुए इस वार से घायल होकर यही प्रश्न कर रहे हैं कि “क्यों? क्यों और क्यों! अंतत: राम भक्तों पर गोली चलाने वाले को सम्मान क्यों?”
PM Modi is a politician willing to do anything which may help him in 2024 elections. He has no principles or values. He loves only himself. He has forsaken Hinduism and embraced Islam & Christianity.