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Saturday, April 27, 2024

केरल के प्रशासन का पीएफआई को ‘अघोषित समर्थन’, क्या वास्तव में ‘भगवान की धरती’ बन रही है इस्लामिक आतंकवाद का गढ़?

केरल का भारत के इतिहास में बड़ा ही महत्व रहा है, चाहे इसके प्रमुख व्यापारिक केंद्र होने के कारण हो, या सनातन धर्म के पुनरोत्थान करने वाले आदि गुरु श्री शंकराचार्य जी की जन्मस्थली के रूप में हो। केरल भारतीय संस्कृति और धर्म का एक बड़ा केंद्र रहा है, और यही कारण रहा है कि इसे भगवान् की धरती (God’s Own Country) भी कहा जाता है। यह बड़े दुर्भाग्य की बात है कि पिछले कुछ वर्षों में केरल की छवि एक शांत और साक्षर प्रदेश से एक “आतंकवाद को पोषित करने वाले प्रदेश” में बदल गयी है।

केरल के अधिकांश लोग काम करने के लिए इस्लामिक देशों में जाते हैं, वहाँ से उनकी संस्कृति और पैसा ले कर आते हैं। इसी कारण पिछले कुछ दशकों में केरल में इस्लामिक प्रभाव बढ़ गया है, जनसांख्यिक संतुलन बिगड़ गया है, कट्टर इस्लामिक विचारों के कारण आईएसआईएस और पीएफआई जैसे आतंकवादी संगठनों ने यहाँ पैर फैलाना शुरू कर दिया है। इन संगठनों से हजारों मुस्लिम युवा जुड़ रहे हैं, और आतंकवादी घटनाओं में संलिप्त भी हो रहे हैं। आईएसआईएस जैसे दुर्दांत आतंकवादी संगठन में भर्ती होने के लिए भारत में सबसे ज्यादा युवा केरल से ही जाते हैं।

पुलिस अफसर कर रहे हैं पीएफआई के सोशल मीडिया पोस्ट को साझा

केरल में इस्लामिक कट्टरपन का प्रभाव इतना बढ़ गया है, कि अब प्रशासन भी इन तत्वों को अघोषित समर्थन और सहायता दे रहे हैं। पिछले ही दिनों केरल पुलिस ने विभाग और न्यायपालिका के विरुद्ध पीएफआई के एक सदस्य द्वारा की गयी फेसबुक पोस्ट को साझा करने के आरोप में एक महिला अधिकारी को निलंबित किया है। एर्नाकुलम रेंज के उप महानिरीक्षक (डीआईजी) नीरज कुमार गुप्ता ने 19 जुलाई को आदेश जारी किया, जिसमें कोट्टायम जिले के कांजिरापल्ली पुलिस स्टेशन की सहायक उप-निरीक्षक (एएसआई) रामला इस्माइल को निलंबित कर दिया गया, जिन्होंने 5 जुलाई को पीएफआई के एए रऊफ की फेसबुक पोस्ट साझा की थी।

केरल पुलिस के असफर महत्वपूर्ण जानकारी आतंकवादी संगठनों से साझा कर रहे हैं

पिछले ही दिनों मुन्नार में एक पुलिस थाने के 3 अफसरों को स्थानांतरित कर दिया गया था, उन पर आरोप था कि उन्होंने पुलिस की कुछ गुप्त सूचनाएं आतंकवादी संगठनों के साथ साझा कर दी थी। पुलिस अफसर अब्दुल समद, पीएस रियास, पीवी अलियार पर यह कार्यवाही की गयी है। लेकिन क्या यह कार्यवाही पर्याप्त है?

आतंकवादी संगठनों के साथ महत्वपूर्ण जानकारी साझा करना तो एक बहुत ही गंभीर अपराध है, ऐसे अपराध के लिए कठोर दंड मिलना चाहिए, लेकिन मिला क्या? स्थानांतरण। क्या यह पुलिस अफसर भविष्य में ऐसे कर्म फिर नहीं करेंगे? कहीं न कहीं ऐसा प्रतीत हो रहा है कि प्रशासन ने इतने बड़े अपराध को अनदेखा कर दिया। क्या यह प्रशासन और आतंकवादी संगठनों के बीच एक अघोषित सांठ गाँठ का उदहारण है? ऐसे प्रश्न उठेंगे ही!

मजहब के नाम पर आतंकवादी संगठनों का समर्थन

कुछ महीने पहले ही राज्य अग्निशमन सेवा के दो अधिकारियों को भी निलंबित कर दिया गया था, क्योंकि वह मजहब के नाम पर पीएफआई जैसे संगठन की विचारधारा का समर्थन कर रहे थे। इसके अतिरिक्त फरवरी के महीने में, इडुक्की में थोडुपुझा के पास करीमनूर पुलिस स्टेशन में एक सिविल पुलिस अधिकारी को इसी तरह की संदिग्ध गतिविधियों में शामिल पाए जाने के लिए बर्खास्त करना पड़ा था। अधिकारी, पीके अनस पर पीएफआई और एसडीपीआई जैसे आतंकवादी संगठनों की सहायता करने का आरोप है।

पीएफआई के अधिकांश प्रशिक्षक केरल से हैं

पिछले दिनों बिहार में पीएफआई के कई आतंकवादी पकडे गए थे, पुलिस की जांच में एक चौंकाने वाला तथ्य मिला है। पुलिस के अनुसार आतंकवादियों को प्रशिक्षण देने वाले अधिकांश प्रशिक्षक केरल के रहने वाले थे और आतंकवादी प्रशिक्षण के लिए बिहार पहुंचते थे। वे विभिन्न पीएफआई शिविर कार्यालयों में प्रशिक्षण आयोजित करते थे। इस मामले में पांच को गिरफ्तार किया गया है जबकि 26 के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है।

इससे यह स्पष्ट होता है कि केरल में आतंकवादी संगठनों का जाल पूरी तरह फ़ैल चुका है, और अब यह संगठन केरल को आतंकवाद का गढ़ बना कर पूरे देश में अपनी विचारधारा को फैलाने का काम कर रहे हैं। पटना पुलिस ने यह भी खुलासा किया था कि पीएफआई फुलवारी शरीफ में ट्रेनिंग की आड़ में युवाओं को धार्मिक उन्माद फैलाने और हथियार चलाने की ट्रेनिंग दे रहा था। जांच में यह भी पता चला था कि झारखंड में प्रतिबंधित होने के बाद भी वहां से ही बिहार और उत्तरप्रदेश सहित कई अन्य राज्यों में पीएफआई के विस्तार के लिए फंडिंग की जाती थी।

ऐसे में सवाल यह उठता है कि देश को तोड़ने का षड़यंत्र रचने वाला आतंकवादी संगठन पीएफआई, जो 2047 तक भारत को इस्लामिक मुल्क बनाने पर काम कर रहा है और हिंदुओं और ईसाइयों के सफाये की बात करता है, उसे केरल पुलिस के अधिकारी और अन्य प्रशासनिक अधिकारी क्यों समर्थन दे रहे हैं। क्या सिर्फ इसलिए कि वे पुलिसकर्मी प्रशासनिक अधिकारी भी मुस्लिम हैं और पीएफआई भी एक कट्टर इस्लामिक संगठन है? क्या इन लोगो के लिए अपना मजहब ही सर्वोपरि है, और उसके लिए यह देश को तोड़ने फोड़ने से भी पीछे नहीं हटेंगे?

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