कहने के लिए तो फेमिनिज्म का अर्थ होता है कि महिलाओं के लिए आजादी या समानता की बात करना, परन्तु कैसी आजादी? कैसी समानता? इस पर कई प्रश्न है? परन्तु कथित रूप से इस आजादी की बात करने वाली औरतें कहाँ पर जाकर कैसे अंत को प्राप्त होती हैं, यह कोई नहीं देखता? परिवार से आजादी औरतों को किसकी झोली में डालती है, यह भी देखना होगा? जिस पति को जानवर यह फेमिनिस्ट बताती हैं, उस पति से अलग होकर हिन्दू महिलाएं कैसे सूखे पत्ते की तरह गिरती हैं, कहीं और!
ऐसा एक नहीं कई मामले सामने आए हैं, जिनमें शादीशुदा हिन्दू महिला कथित रूप से किसी न किसी कारणवश हिन्दू पति से अलग हुई और बाद में किसी मुस्लिम प्रेमी के सम्पर्क में आकर या तो मुस्लिम बन गयी या फिर हत्या हो गयी। मेरठ में एक माँ बेटी की हत्या और उनके शव को घर में ही दफनाने की घटना किसी को भूली नहीं होगी।
उस घटना में भी महिला अपनी बेटी को लेकर अलग रह रही थी। हालंकि शमशाद उससे नाम बदलकर मिला था, और जब प्रिया को यह पता चला था कि वह मुस्लिम है, तब भी वह इस कारण अलग नहीं हो पाई थी कि लोग क्या कहेंगे कि एक तलाक के बाद फिर दूसरा भी तलाक और फिर अंत में उसका अंत बहुत भयानक हुआ था, न केवल उसका, बल्कि उसकी मासूम बेटी कशिश का भी!

ऐसा ही एक और मामला फिर सामने आया है और वह भी गाजियाबाद से। गाजियाबाद नंदग्राम थाना क्षेत्र के आश्रम रोड पर शुक्रवार को हुई एक महिला आशा देवी की ह्त्या में पुलिस ने उसके प्रेमी नदीम को गिरफ्तार किया है। इस घटना में भी महिला आशादेवी अपने पति से अलग रहती थी। उसके तीन बच्चे हैं, जो अपने पिता के साथ रहते हैं।
मीडिया के अनुसार “नदीम पहले मुरादनगर में जूस की दुकान लगाता था। एक दोस्त के माध्यम से एक साल पहले आशा देवी से मुलाकात हुई जो पहले दोस्ती और फिर प्यार में बदलती गई।“
उसके बाद जब उसे यह संदेह हुआ कि आशा देवी किसी और व्यक्ति से बात करती है तो उसे गुस्सा आया और उसने आशादेवी की हत्या की योजना बनाई।
उसने आशा देवी को पहले आधी रात तक शराब पिलाई और फिर जब वह सो गयी तो आशा के सिर पर कुल्हाड़ी से वार किया। जब वह मर गयी तो वह उसकी लाश के साथ रहा और फिर सुबह होते ही अपने बैग में कुल्हाड़ी, खून में सने कपड़े, आशा का मोबाइल और उसे दिए हुए गहने लेकर फरार हो गया।
हालांकि अपने गुनाह को सही ठहराने के लिए उसके पास कई कारण थे जैसे कि वह आशा का पूरा खर्च उठाता था। पुलिस का कहना है कि आरोपित नदीम ने पूछताछ में बताया कि वह आशा का पूरा खर्च उठाता था और उसे कई बार जेवर भी खरीदकर दिए। जब आशा दूसरे युवक से बात करती थी तो उसे गुस्सा आता था। वह आशा से कहता था कि तेरा सारा खर्च मैं उठाता हूं और हर तरह से ध्यान रखता हूं, इसके बाद तू दूसरों से बात क्यों करती है। इस पर भी जब आशा ने युवक से बात करनी नहीं छोड़ी तो गुस्से में आरोपित ने उसकी हत्या कर दी। वह हत्या के बाद अलमारी से आशा देवी को खरीदवाए हुए जेवर भी अपने साथ ले गया था।
आशा और प्रिया दोनों की ही हत्याएं तब हुईं, जब वह अपने पहले रिश्ते से बाहर आ गयी थीं।
क्या यह माना जाए कि हिन्दुओं के परिवार टूटने का लाभ यह जिहादी उठाते हैं? क्या यह मानकर चलें कि यह लोग इस फिराक में रहते हैं कि कोई ऐसी महिला मिले, और यह समझ नहीं आता है कि हिन्दू महिलाएं जो बातें अपने पूर्व हिन्दू पति की सहन नहीं कर पाती हैं, वह इनकी शाब्दिक एवं यौनिक दोनों ही हिंसा को सहती हैं? यह कारण न ही समझ आता है और न ही इसके कारण बहुत अधिक स्पष्ट हो पाते हैं, सिवाय इसके कि वह जाल में फंस जाती हैं?
परन्तु वह कौन सी बात है जो उन्हें उनके परिवार से अलग कर देती है? यह नहीं समझ आता है! और वह कभी कभी मुस्लिम प्रेमी के इश्क में इतनी अंधी हो जाती हैं कि वह अपने पति का खून तक कर देती हैं? मध्यप्रदेश में अभी चार पांच दिन पहले ही पुलिस ने ऐसी ही घटना का पर्दाफ़ाश किया और बताया कि एक युवक की हत्या उसकी पत्नी ने अपने मुंहबोले भाई जीशान के साथ मिलकर कर दी थी।

जिशान कुरैशी ने पुलिस को बताया था कि युवक की पत्नी से उसके विगत 6 महीने से अवैध संबंध थे और युवक की पत्नी से वह इस्लामिक तरीके से शादी करना चाहता था इसलिए पत्नी और एक अन्य दोस्त की मदद से बरनी/लाठी व कैंची से हत्या कर शव को नदी में डालकर फरार हो गया।
पुलिस के अनुसार जिशान का शिकार केवल यह हिन्दू युवती ही नहीं थी, बल्कि वह कई और लड़कियों को भी अपने प्रभाव में ले चुका था!
अब यही समस्या सामने आती है कि आखिर ऐसा क्या कारण है जो हिन्दू महिलाओं को उन आदमियों की ओर धकेल देता है, जिनके एक बड़े वर्ग के लिए बकरी, गाय आदि सभी सेक्सुअल ऑब्जेक्ट्स हैं और आए दिन ऐसे समाचार सामने आते रहते हैं कि बकरी आदि को भी एक बड़ा वर्ग अपनी शारीरिक आवश्यकताओं के लिए प्रयोग करता है, फिर ऐसे लोगों की असली इच्छा के प्रति हिन्दू महिलाएं सजग क्यों नहीं हो पाती हैं?
आशादेवी की हत्या एवं मध्यप्रदेश में जिशान के इश्क में फंसकर अपने पति की हत्या करने वाली युवती दोनों ही मामले इस समस्या पर गहन मंथन की मांग करते हैं कि अंतत: हिन्दू महिलाएं जो अपने पति की बात नहीं सुनती हैं, अपने पति को शोषक मानती हैं, वह इनकी हवस का शिकार कैसे हो जाती हैं?
If you notice Hindu men has become less sympathetic to such Hindu women who died at the hand of their Muslim boyfriends and husbands.
They reject Hindu men and go with Muslim men yet in so many cases they want Hindu men to help and protect them. Amazing
if a member of a family goes astray due to wrong influences, should the family disown that person or figure out how to protect them and others from the wrong influence? Hindu women are influenced by Bollywood degeneracy, Hinduphobic media, academia, politicians, secular state and judiciary just like Hindu men are. All Hindu youth are being conditioned to think that risky and rebellious behavior from young age is ‘cool’, that it is Hindus who are oppressing others and holding the country from developing….the challenge is collective, our response will also have to be collective.