कनाडा में माँ काली को लेकर लीना मणिकेलाई ने जो भी बनाया था, उसका विरोध अब वह लॉबी भी कर रही है, जो कल तक हिन्दू धर्म की आलोचना को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बताते थे। इनमें सबसे पहला नाम आता है उद्धव ठाकरे वाली शिवसेना की प्रियंका चतुर्वेदी का। आज प्रियंका चतुर्वेदी ने सभी को हैरान करने वाला ट्वीट करते हुए लिखा कि
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कभी भी हिन्दू देवी और देवताओं के लिए ही अकेली नहीं है, जबकि दूसरे समुदायों के प्रति आदर व्यक्त किया जा रहा है। मैं माँ काली पर इस मूवी के पोस्टर से आहात हुई हूँ, और आदर सभी के लिए होना चाहिए
इस ट्वीट के बाद सभी को हैरानी हो गई क्योंकि अभी तक ऐसा नहीं हुआ था कि कोई राजनीतिक दल हिन्दुओं के आराध्यों के लिए इस प्रकार बोले।
तृणमूल कांग्रेस की नेता महुआ मोइत्रा ने माँ काली पर अत्यंत आपत्तिजनक वक्तव्य दिया था। उन्होंने कहा था कि यह आप पर निर्भर करता है कि आप अपने देवी देवताओं को कैसे देखते हैं। उन्होंने कहा कि अगर आप भूटान या सिक्किम जाएंगे तो पूजा के लिए देवी-देवताओं पर शराब चढ़ाई जाती है तो उत्तर भारत में ऐसा करना धार्मिक भावनाओं के खिलाफ हो सकता है। माँ काली मेरे लिए मांस और मदिरा ग्रहण करने वाली देवी हैं!”
मोइना मित्रा के इस वक्तव्य पर हंगामा मच गया। हालांकि जन भावनाओं को ध्यान में रखते हुए या बंगाल में काली माँ के प्रति जो भावनाएं हैं, उनको ध्यान में रखते हुए तृणमूल कांग्रेस ने मोइना मित्रा के इस बयान से किनारा कर लिया।
इस बात पर मोइना मित्रा पार्टी से नाराज हो गईं। परन्तु उन्होंने उस नाराजगी को भी संघियों को कोसते हुए निकाला कि संघी लोगों, तुम्हें झूठ कोई बेहतर हिन्दू नहीं बना देगा। मैंने कभी भी किसी फिल्म या पोस्टर का समर्थन नहीं किया और न ही स्मोकिंग शब्द का प्रयोग किया। मैं कहूंगी कि तारापीठ में माँ काली का मंदिर है, वहां जाओ कभी और देखो कि कैसे भोजन और ड्रिंक को भोग में लगाया जाता है!
परन्तु बाद में यह भी समाचार आया कि उन्होंने अपने पार्टी के ही twitter हैंडल को अनफॉलो कर दिया!
यहाँ तक कि नुपुर शर्मा को पूरी तरह से दोषी मानने वाले राहुल ईस्वर ने भी यह कहा कि काली माँ का जो पोस्टर है, वह हिन्दुओं के विरुद्ध घृणा को दिखाता है!
इन प्रतिक्रियाओं से एक बात कहीं न कहीं उभर कर आती है कि कथित ब्लेसफेमी कानून की वकालत करने वाले लोग अब कहीं अपने ही जाल में तो नहीं फंसने लगे? क्योंकि भारतीय जनता पार्टी ने तो अपने कार्यकर्ता पर कार्यवाही कर दी, क्या अब शेष पार्टियों को अपने कार्यकर्ताओं को धार्मिक मामलों पर बोलते समय सावधान रहने की बात नहीं करनी चाहिए? क्या ये लोग भी हिन्दू विरोध से डर रहे हैं?
आखिर हिन्दू आस्था पर ही हमला क्यों?
यह बात बार-बार परेशान करने वाली है कि अंतत: हिन्दुओं की आस्था पर ही हमला बार बार क्यों होता है और क्यों कथित प्रगतिशील यह सोचकर चलते हैं कि हिन्दुओं को उनके धर्म की उदारता का झुनझुना थमाकर शांत कराया जा सकता है और अपनी तमाम कुंठाओं को हमारे भगवान के नाम पर सौंपकर, हिन्दुओं को अपमानित किया जा सकता है?
जैसे ही यह पोस्टर आया वैसे ही पहले तो धार्मिक हिन्दुओं को क्रोध आया और twitter पर विरोध के साथ ही जगह जगह एफआईआर भी दर्ज होनी आरम्भ हो गईं। इस मामले में हिन्दुओं का विरोध इस सीमा तक था कि कनाडा में भारतीय दूतावास तक ने इस विषय पर संज्ञान लेते हुए प्रेस रिलीज जारी की और कहा कि
“हमें हिन्दू समाज की ओर से शिकायतें मिली हैं कि आगा खान म्यूजियम टोरंटो में “अंडर द टेंट” परियोजना में एक ऐसी फिल्म दिखाई जा रही है, जिसके पोस्टर में हिन्दू देवी को बहुत ही विकृत रूप में दिखाया गया है।
टोरंटो में हमारे कांसुलेट जनरल ने आयोजकों को इन चिंताओं को बता दिया है। हमें यह भी सूचना मिली है कि कई हिन्दू समूहों ने कनाडा में अधिकारियों से इस सम्बन्ध में कदम उठाने के लिए कहा है!
हम आपसे अनुरोध करते हैं कि इस प्रकार की भड़काऊ सामग्री को वापस लिया जाए!”
हिन्दू विरोध करना सीख रहा है!
यह बात सत्य है कि हिन्दुओं के भीतर अपने धर्म के नाम पर मारने की प्रवृत्ति नहीं है, परन्तु इसी बात का लाभ उठाकर हिन्दू धर्म के साथ शहरी नक्सलियों ने जो भी किया है, उसे क्षमा नहीं किया जा सकता। उन्होंने हिन्दू धर्म को विकृत करने का हर संभव प्रयास किया। उन्होंने महादेव, पार्वती, माँ काली, प्रभु श्री राम, श्री कृष्ण आदि के सम्बन्ध में हर सम्भव झूठ फैलाने का कुप्रयास किया।
इतने वर्षों तक हिन्दुओं ने संगठित होकर सही माध्यम से आवाज नहीं उठाई थी, परन्तु अब सही माध्यम से आवाज उठाना सीखा जा रहा है, यही कारण है कि सोशल मीडिया पर तो विरोध व्यक्त किया ही गया, कई स्थानों पर लीना मणिकेलाई के विरुद्ध एफआईआर भी दर्ज की गयी।
परन्तु यह बहुत ही हैरानी की बात है कि एक ओर तो लीना स्वयं एक ऐसे आदमी के साथ खड़ी होने का दावा करती है जिसने नुपुर शर्मा की अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला ही नहीं किया, बल्कि उसके बहाने हिन्दुओं को ही एक ऐसे जाल में फंसा दिया है, जहाँ पर उनकी रोज ही कोई न कोई हत्या हो रही है, तो वहीं दूसरी ओर अपनी अभिव्यक्ति की आजादी की बात करते हुए माँ काली को टोरंटो की सड़कों पर घुमते हुए और सिगरेट पीते हुए एवं एलजीबीटी का झंडा उठाए दिखाया है।
लोग पूछ रहे हैं कि यह अभिव्यक्ति की आजादी एक तरफ़ा क्यों है? एक तरफ कुछ कहने पर सिर तन से जुदा के नारे लगाए ही नहीं जा रहे हैं बल्कि हिन्दुओं को वास्तव में मारा जा रहा है, तो वहीं कई स्थानों पर हिन्दुओं को धमकाकर माफी मंगवाई जा रही है तो वहीं, कई स्थानों पर उन्हें उनका घर आदि छोड़ने पर विवश किया जा रहा है!
यह भी संतोष की बात है और संभवतया पहली ही बार हो रहा है कि इतने संगठित विरोध के बाद “पिछड़ेपन” के आरोप के स्थान पर फिल्म को दिखाया जाना रद्द किया गया है।
यह एक छोटी सही परन्तु संगठित प्रयासों की जीत है, इससे यह भी प्रमाणित होना चाहिए कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मार्ग एकतरफा नहीं हो सकता है। हिन्दुओं की आस्था पर बार-बार प्रहार नहीं किया जा सकता! लीना मणिकेलाई यद्यपि अभी भी यह कह रही हैं कि वह स्वतंत्र आवाज के रूप में ही इस दुनिया से जाएँगी, अर्थात वह अभिव्यक्ति की पूर्ण स्वतंत्रता चाहती हैं, परन्तु अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सदा कुछ न कुछ नियमों के साथ आती है, और इन नियमों को इन अर्बन नक्सल्स को समझना अत्यंत आवश्यक है!