टेक्सास में लेडी अल कायदा “आफिया सिद्दीकी” की रिहाई को लेकर चार लोगों को जिस व्यक्ति ने बंधक बनाया था, उसे पुलिस ने मार गिराया है और चारों बंधकों को छुड़ा लिया है। इन चारों को यहूदियों के धार्मिक स्थल सिनेगॉग में बंधक बनाया था और इनमें एक यहूदियों के धार्मिक गुरु (रब्बी) भी सम्मिलित थे। मीडिया के अनुसार इन्हें पाकिस्तानी आतंकवादी आफिया सिद्दीकी को रिहा करने की मांग को लेकर बंधक बनाया था।
कौन है आफिया सिद्दीकी
आज अचानक से ही जब एक व्यक्ति ने आफिया सिद्दीकी की रिहाई को लेकर बंधक बनाने की घटना हुई है, तो प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि आखिर आफिया सिद्दीकी कौन हैं? आफिया सिद्दीकी को लेडी अल कायदा क्यों कहा जाता है और उन्हें किस मामले में सजा मिली हुई है और पाकिस्तानी एवं कथित इस्लामी विचारक उनके विषय में क्या सोचते हैं?
आफिया सिद्दीकी एक पाकिस्तानी नागरिक हैं, और उन्हें वर्ष 2010 में 14 दिनों की जांच के बाद न्यूयॉर्क की एक अदालत ने अमेरिकी सैन्यकर्मियों को मारने के लिए कोशिश के लिए दोषी ठहराते हुए 86 वर्षों की सजा सुनाई थी।
और आफिया पर अमेरिया में रह रहे पाकिस्तानी राजदूत हुसैन हक्कानी को मारने के षड्यंत्र का भी आरोप है,
मीडिया के अनुसार आफिया ने जेल में रहते हुए एफबीआई अधिकारी को मारने का षड्यंत्र रच डाला था। आफिया का नाम पहली बार दुनिया के सामने तब आया था जब एक रिपोर्ट में यह कहा गया था कि पाकिस्तान और अमेरिका के बीच एक डील हुई थी, और जिसमें पाकिस्तान ने डॉ शकील अहमद के बदले आफिया सिद्दीकी को वापस लौटाने की मांग की थी। डॉ शकील अहमद ने अलकायदा के ओसामा बिन लादेन को मारने में अमेरिकी ख़ुफ़िया एजेंसियों की मदद की थी। तो वहीं आफिया वर्ष 2018 में तक अचानक से सुर्ख़ियों में आई थीं, जब आतंकी शेख मोहम्मद ने एफबी आई को उसके विषय में जानकारी दी थी।
हालंकि बंधकों को छुड़ा लिया गया है और पुलिस ने बंधक बनाने वाले को मार गिराया है।
मुस्लिम विचारक और संगठन आफिया को निर्दोष मानते हैं और उसकी रिहाई की बार बार मांग करते हैं
अमेरिका में आफिया सिद्दीकी की रिहाई के लिए मुस्लिम विचारक और संगठन मांग उठा रहे हैं, वह लोग उन्हें निर्दोष मानते हैं।। पाकिस्तान में भी यही माना जाता है कि एक तीन बच्चों की माँ को गलत तरीके से कैद किया हुआ है। कल जब बंधक बनाने की घटना हुई तो कई मुस्लिम जैसे अपने बचाव में उतर आए और यह कहा जाने लगा कि अब मुस्लिम फोबिया की पोस्ट आएंगी:
परन्तु मुस्लिमफोबिया की बात करने वाले वाजाहल अली आफिया सिद्दीकी के लिए न्याय मांगते हुए एक ग्राफिक नावेल भी लिखा था।
प्रश्न वास्तव में यही है कि क्या आज उस बंधक बनाने वाले ने कुछ अलग किया क्या? जबकि यही काम वजाहल अली ने अपनी कलम से किया था।

इस्लामोफोबिया के नाम पर आतंकी कृत्यों को सहज कर देना एक बहुत ही आम बात है, अफिया सिद्दीकी को रिहा कराने के लिए अमेरिका की मुस्लिम संस्थाएं भी लगी हुई हैं। सीएआईआर अर्थात (Council on American-Islamic Relations) जो अमेरिका में मुस्लिम अधिकारों के लिए कार्य करता है, ने नवंबर में ही आफिया सिद्दीकी की रिहाई के लिए एक आयोजन किया था।
15 नवम्बर 2021 को ही इस संस्था की टेक्सास शाखा ने आफिया सिद्दीकी को रिहा करने की मांग को लेकर एक कार्यक्रम किया था। और उनकी फेसबुक पोस्ट में यह लिखा है कि वह डॉ अफिया सिद्दीकी को रिहा कराने के लिए अभियान के लिए लाइवस्ट्रीम कर रहे हैं।

यद्यपि इस संस्था ने इस बंधक बनाने की घटना की निंदा की थी और यह अपील की थी कि वह यहूदी समुदाय के साथ है, परन्तु इसी संस्था द्वारा यहूदियों के खिलाफ जहर भी उगला जाता है, या फिर यहूदियों के खिलाफ बोलने वालों का समर्थन किया जाता है। जेरुलियम पोस्ट ने एक रिपोर्ट में बताया था कि इस संस्था की एक सदस्य ने कहा था “ज़ायोनी सिनेगॉग” ही इस्लामोफिबिया के पीछे हैं।
ऐसा नहीं है कि सीएआईआर अर्थात (Council on American-Islamic Relations) केवल यहूदियों के खिलाफ ही बोलती है, हिन्दुओं के विरुद्ध भी इसका प्रोपोगैंडा चलता रहता है। इसके फेसबुक पेज पर ही अमनेस्टी इंटरनेशनल अमेरिका के भारत विशेषज्ञ गोविन्द आचार्य के एक वीडियो को साझा करते हुए लिखा कि भारत में मुस्लिम समुदाय खतरे में है क्योंकि “चरमपंथी” मोदी सरकार में यह अपने चरम पर पहुँच गयी है।

यहाँ तक कि इस संस्था ने हिंदी फिल्म सूर्यवंशी का भी विरोध करते हुए लिखा था कि चूंकि यह फिल्म मुस्लिम विरोधी है इसलिए इस फिल्म को पूरे देश में थिएटर द्वारा नहीं दिखाया जाना चाहिए। हिंदी फिल्मों को इस्लामोफोबिक ठहराते हुए इसमें मांग की गयी थी, कि चूंकि मोदी सरकार के आने के बाद फिल्मों के माध्यम से मुस्लिमों के प्रति नफरत फैलाई जाने लगी है, इसलिए विरोध किया जाना चाहिए.

इस रिलीज में कहा गया था कि भारत में मुश्किल से सौ साल पहले फिल्म उद्योग का निर्माण केवल मुस्लिम कलाकारों द्वारा ही किया गया था, और अब भी भारत के तीन बड़े अभिनेता मुस्लिम ही हैं। परन्तु अब यह घृणा फैलाने का माध्यम बन गयी है।
और यह रिलीज़ उन्होंने राना अयूब के उस लेख के आधार पर लिखी थी, जो राना अयूब ने वाशिंगटन पोस्ट में लिखा था।
इस्लामोफोबिया के नाम पर अब एक बड़ा वर्ग न केवल आतंकी घटनाओं का समर्थन करता है बल्कि साथ ही इस्लाम के नाम पर किए जा रही कट्टरता को भी ग्लोरिफाई करता है। वह उस इतिहास को भी इस्लामोफोबिया के नाम पर नकारता है, जिसमें हिन्दुओं सहित कई मतों के लोगों का खून इस्लाम के नाम पर बहाया गया है।
Amnesty international is well know for our Nation especially Hindus. It is good that we could see the face of Mr GA otherwise going to an unnecessary confusion in that name.