19 जनवरी का दिन पूरे भारत को अत्याचार और दर्द की वह रात याद दिलाता है, जब कश्मीर से हिन्दुओं का पलायन हुआ था, और यह पलायन किसी प्राकृतिक आपदा के कारण नहीं हुआ था। यह पलायन हुआ था, इस्लामी कट्टरता के कारण। 19 जनवरी 1990 को एक पलायन हुआ था, और अब वही मॉडल हर प्रदेश में लागू किया जा रहा है। कैराना में भी हमने देखा था कि कैसे हिन्दुओं को आतंकित करके भगाया गया था।
हिन्दुओं का वह दर्द कोई भी नहीं भूल सकता है, और भूल भी नहीं सकेगा, क्योंकि उन्हें किसी और ने नहीं मारा था, बेटियों का बलात्कार किसी और ने बाहर से आकर नहीं किया था, बल्कि आस पास के ही लोगों ने किया था। घर किसी और ने नहीं जलाए थे, बल्कि उनके पड़ोसियों ने ही जलाए थे। जो भी इस क्रूरता के भुक्तभोगी रहे हैं, वह आज भी उस दौर को स्मरण कर सिहर उठते हैं।

अभिनेता अनुपम खेर ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट से एक मार्मिक कविता साझा की
न जाने कितनी दर्द भरी कहानियाँ बिखरी पड़ी हैं, और यह कहानियाँ उस मजहबी विश्वास घात की कहानियाँ हैं, जो कश्मीरी हिन्दुओं के साथ हुआ। समूचे विश्व के सामने जब यह कहानी गयी थी कि कैसे अपने पड़ोसी ही शत्रु हो गए थे, तो सभी अवाक रह गए थे। फिर भी कश्मीरियत के नाम पर इस समूचे कत्लेआम को पहले तो सही ठहराने का प्रयास किया गया। और फिर अब जब इस्लामिक कट्टरपंथियों के काले कारनामे, कि उन्होंने कश्मीरी हिन्दुओं के साथ क्या-क्या किया, सामने आने के बाद यह प्रयास होता है कि अब हिन्दुओं की पीड़ा पर कम से कम बात हो।
जब सोशल मीडिया पर लोग 19 जनवरी 1990 की रात में हुए उस पलायन की बात कर रहे थे, और उन कारणों पर बात कर रहे थे, कहानियाँ साझा कर रहे थे, उसी समय अपने कट्टरपंथी इस्लामी विचारों के लिए कुख्यात ‘पत्रकार’ आरफा खानम शेरवानी ने हिन्दुओं की उस पीड़ा पर नमक छिडकते हुए ट्वीट किया
अर्थात नरसंहार के आह्वान से लेकर मुस्लिम महिलाओं के बलात्कार को फैंटीसाइज़ करने तक मुस्लिम जीवन का हर पहलू खतरे में है। मुस्लिमों पर हर कोने से अत्याचार हो रहे हैं और मुस्लिमों के लिए भारत रहने के लिए असुरक्षित स्थान बन गया है!
आरफा खानम ने जब यह ट्वीट किया था, उस समय ‘कथित’ हेट स्पीच में यति नरसिम्हानन्द सरस्वती जेल में हैं, और हिन्दुओं को मारने की धमकी देने वाले तौकीर रजा कांग्रेस को समर्थन दे रहे हैं। तौकीर रजा ने साफ़ कहा कि
जिस दिन मेरा यह नौजवान क़ानून अपने हाथ में ले लेगा उस दिन हिन्दुओं का क्या होगा?
क्या होगा, जिस दिन उनका यह नौजवान क़ानून अपने हाथ में लेगा, उस दिन वही होगा जो 19 जनवरी 1990 को हुआ था। उस दिन वही होगा जो कैराना में हुआ था, उस दिन वही होगा जो पश्चिम बंगाल में चुनावों के परिणाम के बाद हुआ था, उस दिन वही होगा जो दुर्गापूजा के दौरान बांग्लादेश में हुआ था।
और आरफा खानम इस जहरीले मौलाना की प्रियंका गांधी के साथ हुई मुलाक़ात पर मौन है, वही नहीं बल्कि पूरा लिबरल समाज मौन है। परन्तु क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि यदि तौकीर रजा और प्रियांका गांधी की मुलाक़ात के स्थान पर यति नरसिम्हानन्द सरस्वती जी और भारतीय जनता पार्टी के किसी नेता की मुलाक़ात हुई होती तो क्या होता?
परन्तु उत्तर प्रदेश कांग्रेस के आधिकारिक हैंडल से यह तस्वीर ट्वीट की गयी है और यह अह्सान मानते हुए ट्वीट की गयी है, कि मौलाना ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में अपनी पार्टी से न चुनाव लड़ाते हुए कांग्रेस को अपना समर्थन देने का निर्णय लिया है:
इस मुलाक़ात पर किसी को कोई आपत्ति नहीं है! और परन्तु आरफा खानम चुप रहती हैं, इन जहरीली तहरीरों पर। हिन्दुओं के खिलाफ भरे जा रहे इस जहर से आरफा को कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि उनका एजेंडा एकदम स्पष्ट है।
आरफा के इस असमय ट्वीट पर सोशल मीडिया का गुस्सा फूट पड़ा। कश्मीरी हिन्दू नामक हैंडल ने ट्वीट करते हुए लिखा
इससे बढ़कर न्याय की विसंगति क्या होगी कि भारत में एक व्यक्ति उस दिन मुस्लिमों की असुरक्षा पर बात कर रहा है जब हजारों कश्मीरी हिन्दुओं को उनके पूर्वजों की भूमि से पलायन करने के लिए बाध्य कर दिया था
आरफा जब मुस्लिम लड़कियों की नीलामी की बात कर रही थीं, उस समय वह उन सैकड़ों ही नहीं बल्कि हजारों हिन्दू लड़कियों के दर्द पर नमक छिडक रही थीं, जो इस्लाम की कट्टरता का शिकार होती हैं।
वर्ष 1990 में जहाँ कश्मीरी हिन्दू इस्लामिक बर्बरता और कट्टरता का शिकार होकर अपने ही देश में शरणार्थी होने को विवश हुए थे तो वहीं वर्ष 1992 में अजमेर में एक ऐसा सेक्स स्कैंडल सामने आया था, जिसने पूरे शहर को हिलाकर रख दिया था। अजमेर के एक विख्यात गर्ल्स कॉलेज की हाई प्रोफाइल लड़कियों की नंगी तस्वीरें अचानक से सर्कुलेट होने लगी थीं। एक दो नहीं बल्कि 100 से अधिक लड़कियों की तस्वीरें थीं। मामला सामने आया और फिर सामने आया एक ऐसा सेक्स स्कैंडल, जिसमें अधिकतर हिन्दू लड़कियों को फंसाया गया था। और जिन्होनें फंसाया वह आम लोग न होकर बहुत ही रसूखदार थे,

9 जनवरी को, जब पूरा लिबरल समान एक स्वर में कथित रूप से मुस्लिम महिलाओं की एप पर नीलामी पर उत्तेजित हो रहा था, उस समय दैनिक भास्कर ने उस दर्द को अपनी कहानी से जिंदा किया, जो उन सैकड़ों लड़कियों का दर्द था, जो अजमेर यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष फारुख चिश्ती, नसीफ चिश्ती ने दिया था।
यह एक ऐसा दर्द है जो अभी तक ताजा इसलिए है क्योंकि उस समय की लडकियां अब शादी के बाद अपनी गृहस्थी में रम गयी हैं, परन्तु बार बार उन्हें केस के मामले में बुलाया जाता है! जरा पीड़ा समझकर देखिये आरफा जी! पर आप नहीं समझेंगी क्योंकि आपको मुस्लिम कार्ड खेलना है, आपको स्वतंत्रता के बाद हुए हिन्दुओं के साथ इतने बड़े पलायन पर और इस्लामिक कट्टरता के कारण हुए पलायन पर नमक छिडकना है, इसलिए आपने वही दिन चुना!
लोग इस बात को कह रहे हैं
सोशल मीडिया पर यूजर्स का कहना है कि आरफा ने जानते बूझते यही दिन चुना,
आरफा खानम की इस बात से एक दो लिब्रल्स भी सहमत नहीं दिखे और राहुल ईस्वर ने ट्वीट किया कि आरफा मैडम, कुछ समस्याएँ हैं, परन्तु यदि उन्हें बढ़ा चढ़ा कर कहा जाएगा तो इससे हमारे मुस्लिम भाइयों और बहनों के दिमाग में अधिक असुरक्षा उत्पन्न होगी, अधिकतर राज्यों में लोग मिलजुलकर रहते हैं, हर त्यौहार मिलजुलकर मनाते हैं
फिल्म निर्माता अशोक पंडित ने ट्वीट किया, कि ऐसी बातें बोलकर सामजिक सौहार्द के वातावरण को प्रभावित किया जा रहा है,
यह देखना बहुत ही दुखद है कि कथित लिब्रल्स का एक बड़ा वर्ग कैसे सौहार्द को नष्ट कर रहा है। जब दिन था सभी वर्गों द्वारा पाकिस्तान के समर्थन वाली इस्लामी कट्टरता के खिलाफ खड़े होकर यह दिखाने का कि अब 19 जनवरी 1990 जैसी घटना को नहीं दोहराने दिया जाएगा, तब हिन्दुओं को ही कोसने का कार्य किया गया।