भारत के सबसे अमीर व्यवसायी गौतम अडानी ने एनडीटीवी नेटवर्क के अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू कर दी है, जिसके पश्चात भारत के मीडिया का एक पक्ष इसे लेकर चिंतित है। यह वो मीडिया है जो देशविरोधी खबरें चलने और नरेंद्र मोदी की सरकार की आलोचना करने के लिए कुख्यात है। एनडीटीवी ने पिछले दशकों में अपनी स्वतंत्र और निष्पक्ष मीडिया की ‘छद्म’ छवि बनायी है।
यह कहने को तो सरकार की कथित रूप से आलोचना करते हैं, लेकिन जहां तक विचारधारा का प्रश्न है तो एनडीटीवी एक वामपंथी मीडिया समूह है, और यह अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर फेक न्यूज और पक्षपातपूर्ण राय फैलाने के लिए जाना जाता है। अब गौतम अडानी के समूह द्वारा संभावित अधिग्रहण ने वामपंथी और पश्चिमी मीडिया पारिस्थितिकी तंत्र के बीच एक अनोखा डर उत्पन्न कर दिया है।
एनडीटीवी नियामक प्रतिबंधों और अन्य नियमों का हवाला दे कर अडानी की बोली को रोकने का प्रयास कर रहा है, और उनके प्रबंधन द्वारा ऐसा बताया जा रहा है कि उन्हें इस प्रक्रिया के बारे में सूचित नहीं किया गया था। वहीं जबकि दूसरी ओर वामपंथी मीडिया इस पूरी प्रक्रिया को गलत बता रहा है, वह गौतम अडानी पर भारत में मीडिया परिदृश्य को नियंत्रित करने के लिए पैसे की ताकत का उपयोग करने का आरोप भी लगा रहे हैं।
वामपंथी तत्वों के पश्चिमी मित्र द वाशिंगटन पोस्ट, टाइम्स मैगजीन, बीबीसी, ब्लूमबर्ग, रॉयटर्स, द गार्जियन, द फॉर्च्यून आदि जैसे अति प्रभावशाली और प्रसिद्ध मीडिया समूहों ने अडानी के इस कदम की निंदा करते हुए लेख प्रकाशित किए हैं। इसे ऐसे चित्रित किया गया है जैसे कि इस तरह का अधिग्रहण एक बुरी प्रथा है। यह सभी मीडिया घराने इसके लिए गौतम अडानी के साथ साथ भारत सरकार पर भी आरोप लगा रहे हैं। ऐसा दर्शाया जा रहा है, जैसे व्यापारिक प्रतिष्ठान के द्वारा मीडिया चैनल को खरीदना एक कलुषित प्रक्रिया हो।
वामपंथी और पश्चिमी दुनिया के मीडिया समूहों का पाखंड
यह मीडिया घराने इस अधिग्रहण द्वारा ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ पर पड़ने वाले कथित नकारात्मक प्रभाव से चिंतित हैं। हालांकि, वह भूल जाते हैं कि अधिकांश पश्चिमी मीडिया समूह पहले से प्रसिद्ध व्यवसायियों या कॉर्पोरेट द्वारा खरीदे या नियंत्रित किए जा रहे हैं। उदाहरण के लिए, दुनिया के तीसरे सबसे अमीर आदमी और अमेज़न के सीईओ जेफ बेजोस ‘वाशिंगटन पोस्ट’ के स्वामी हैं। क्या आपको नहीं लगता, दुनिया को वाशिंगटन पोस्ट के बारे में अधिक चिंतित होना चाहिए, क्या उन्हें डर नहीं लगता कि जैफ द्वारा वाशिंगटन पोस्ट के स्वामित्व से स्वतंत्र पत्रकारिता के लिए गंभीर स्थिति पैदा हो सकती है?
लेकिन वह ऐसा नहीं करते, क्योंकि यह उनके कलुषित एजेंडे के अनुरूप नहीं है। यही इन पश्चिमी मीडिया और वामपंथी समूहों का पाखंड है, क्योंकि यह भारत को तो उपदेश दे रहे हैं, लेकिन स्वयं को इन मापदंडों से दूर रखते हैं। क्या यह लोग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मामले पर हमें उपदेश देने के योग्य भी हैं?
बड़े कॉरपोरेट्स द्वारा अधिग्रहीत पश्चिमी और वामपंथी मीडिया घराने
पश्चिमी मीडिया और वामपंथी पारिस्थितिकी तंत्र की बेशर्मी और पाखंड को उजागर करने के लिए, हमने पश्चिमी मीडिया समूहों की एक सूची तैयार की है, जिन्हें बड़े कॉर्पोरेट्स द्वारा खरीदा गया है।
- वाशिंगटन पोस्ट – यह दुनिया के तीसरे सबसे अमीर आदमी जेफ बेजोस द्वारा अधिग्रहित हो चुकी है। बेजोस अमेज़न के संस्थापक और सीईओ हैं। यह मीडिया समूह भारत के विरुद्ध झूठी खबरें छपने के लिए कुख्यात है।
- लॉस एंजिल्स टाइम्स – यह एक प्रसिद्द मीडिया समूह है जिसे एक चीनी-दक्षिण अफ्रीकी प्रत्यारोपण सर्जन, अरबपति व्यवसायी, और जैव वैज्ञानिक पैट्रिक सून शियोंग ने खरीद लिया है।
- टाइम– यह अमेरिका के सबसे लोकप्रिय और प्रतिष्ठित मीडिया समूह में से एक है। इसे सेल्सफोर्स के संस्थापक और अरबपति मार्क बेनिओफ ने खरीद लिया है।
- फॉर्च्यून – यह एक और अत्यंत लोकप्रिय पत्रिका है, जो दुनिया भर के अमीर देशों, बड़ी अर्थव्यवस्थाओं और कॉर्पोरेट समूहों की वरीयता सूची बनाती है । इसे कुछ समय पहले थाई अरबपति चटचवल जियारावन ने खरीद लिया था।
- द अटलांटिक – इस मीडिया हाउस को एप्पल के चेयरमैन और सीईओ स्टीव जॉब्स ने खरीदा था। जॉब्स विज्ञापन ने अपने एमर्सन कलेक्टिव संगठन के माध्यम से इस समूह का स्वामित्व ग्रहण किया था।
- द इकोनॉमिस्ट – यह ब्रिटैन के सबसे लोकप्रिय मीडिया समूहों में से एक है। यह रोथ्सचाइल्ड, एग्नेली, कैडबरी, श्रोएडर और लेटन परिवारों के स्वामित्व में है।
यह बिल्कुल स्पष्ट है कि ये पश्चिमी मीडिया समूहों और वामपंथी तंत्र एक छद्म प्रयत्न कर रहे हैं, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर भारतीय कॉर्पोरेट्स, मीडिया परिदृश्य और सरकार को बदनाम करने का। वह भी तब, जब उनमें से अधिकांश या तो विभिन्न कॉर्पोरेट समूहों द्वारा खरीदे या नियंत्रित किए जाते हैं। ऐसे में क्या उन्हें अडानी और भारत सरकार पर आरोप लगाने का कोई अधिकार है?
क्या एनडीटीवी सच में अभिव्यक्ति की आजादी और स्वतंत्र पत्रकारिता का योद्धा है?
स्वतंत्र पत्रकारिता का पथप्रदर्शक होने के सभी बड़े-बड़े दावों के विपरीत, एनडीटीवी ऐतिहासिक रूप से कांग्रेस और वाम दलों के निकट रहा है। यह जनता के बीच झूठे समाचार और भ्रामक आख्यानों को फैलाने के लिए जाना जाता है।
एनडीटीवी ‘पत्रकारिता’ शब्द के ठीक विपरीत कार्य करता है। 2014 के पश्चात तो वह मोदी विरोधी वक्तव्यों में व्यस्त ही रहता है। भारत का एक बड़ा वर्ग यह मानता है कि ‘स्वतंत्र पत्रकारिता’ और एनडीटीवी के बीच दूर दूर तक कोई भी सम्बन्ध नहीं है।