टाइम्स ऑफ इंडिया ने एक लेख प्रकाशित किया जिसमें उन्होंने यह दावा किया कि लखीमपुर खीरी में मारे गए भाजपा कार्यकर्ताओं के घर पर कोई भी भाजपा का नेता नहीं गया है, अर्थात शुभम मिश्रा और श्याम सुन्दर निषाद के घर पर। इस रिपोर्ट के आते ही भाजपा के प्रति एक असंतोष तो पैदा हुआ ही और साथ ही भाजपा की संवेदनहीनता के बारे में बातें होने लगीं।
इस बात में कितनी सच्चाई है यह जानने के लिए जब हिन्दू पोस्ट ने दोनों ही कार्यकर्ताओं के परिजनों से बात की, तो सच्चाई कुछ और ही निकली।
हमने पहले शुभम मिश्रा के चाचा अनूप मिश्रा से बात की। उन्होंने हमें बताया कि शुभम की उन दरिंदों ने पीट पीट कर हत्या कर दी और उसकी हत्या केवल लाठी से ही नहीं की, बल्कि तलवार का भी प्रयोग किया गया था। शुभम के परिवार में उसकी पत्नी और एक साल की मासूम बेटी है।
उन्होंने हमें बताया कि शोक संतप्त परिवार से मिलने के लिए पार्टी के कई नेता आए थे। फिर उन्होंने बताया कि विधायक श्री योगेश वर्मा, सांसद एवं केन्द्रीय मंत्री श्री अजय मिश्रा तथा भाजपा जिला अध्यक्ष उन्हें सांत्वना देने आए थे और साथ ही उन्हें 45 लाख रूपए का चेक भी प्राप्त हो गया है। उन्होंने बताया कि प्रशासन की ओर से उन्हें एक सरकारी नौकरी का भी आश्वासन दिया है एवं ग्राम प्रधान स्वयं उन्हें वह चेक प्रदान करने आए थे।
और उन्होंने टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्टिंग के उस हिस्से को भी झुठला दिया, जिसमें शुभम मिश्रा के पिता श्री विजय मिश्रा के पिता, जो एक व्यापारी हैं, के हवाले से कहा था
“मगर कोई भी बड़ा नेता हमारे पास नहीं आया है, जैसे किसानों से मिलने के लिए और दलों के लोग जा रहे हैं। पार्टी का कोई भी बड़ा नेता हमारे पास नहीं आया है।”
अनूप मिश्रा ने हिन्दू पोस्ट को बताया कि सांसद अजय मिश्रा को लखीमपुर खीरी में उनके सहज संपर्क और विकास कार्यों के लिए जाना जाता है। आशीष मिश्रा भी जमीन से जुड़े ही व्यक्ति हैं, जिनमें किसी सांसद के बेटे का कोई घमंड नहीं है।
फिर हमने श्याम सुन्दर निषाद के छोटे भाई संजय निषाद से बात की। बाईस वर्षीय निषाद उत्तराखंड में रंगाई के कार्यों को कर रहे थे, जब उन्होंने सुना कि उनके भाई की हत्या कर दी गयी है। उन्हें यह खबर 3 अक्टूबर को शाम 5 बजे मिली। श्याम अजय मिश्रा द्वारा आयोजित किए जा रहे दंगल में लगातार दस साल से जा रहे थे और संजय ने कहा कि उस दिन श्याम सुन्दर की बेटी ने उनसे जाने से मना भी किया था, परन्तु उन पर आयोजन की कुछ जिम्मेदारियां थीं, तो वह चले गए।
उन्होंने फिर वह दर्द से भरा हुआ वीडियो देखा, जिसमें खून से लथपथ श्याम अपने जीवन की भीख मांग रहे हैं, परन्तु उनकी किसी ने बात नहीं सुनी और उनसे झूठ बुलवाते रहने का प्रयास करवाते रहे कि उन्हें किसानों को मारने के लिए भेजा गया था। संजय ने कहा कि उनके भाई अंत तक सच पर टिके रहे और उन्होंने किसानों द्वारा कहे गए झूठ को नहीं कहा।
उन्होंने शाम को इस खबर की पुष्टि के लिए आशीष मिश्रा को कॉल किया था।
श्याम के पीछे उनकी पत्नी और दो बेटियाँ हैं, जिनमें एक अभी मात्र तीन वर्ष की है और एक मात्र सात महीने की। श्याम परिवार के सबसे बड़े बेटे थे, और वह ठेके पर खेती का कार्य करते थे।
श्याम ने भी यह पुष्टि की कि उन्हें 6 अक्टूबर को उनकी भाभी अर्थात श्याम की पत्नी के नाम पर चेक प्राप्त हो गया था। और परिवार को प्रशासन की ओर से एक सरकारी नौकरी का आश्वासन मिला है और लेखपाल ने उनके घर आकर उनकी भाभी की शैक्षणिक योग्यताओं और शेष दस्तावेजों के बारे में पूछताछ की थी।
संजय ने भी टाइम्स ऑफ इंडिया की इस रिपोर्ट को नकार दिया जो श्याम सुन्दर के पिता के हवाले से कही गयी है कि कोई भी भाजपा नेता श्याम सुन्दर के घर नहीं आया। उन्होंने कहा कई भाजपा के नेता और कार्यकर्ता घर पर आए और उन्हें सुरक्षा भी प्राप्त हुई। संजय ने यह भी कहा कि अजय मिश्रा उस इलाके में बहुत ही लोकप्रिय हैं और उनका काफी सम्मान है। उनकी बहन के विवाह में भी आशीष मिश्रा आए थे। संजय ने कहा कि यह हर कोई जानता है कि आशीष मिश्रा उस कार में था ही नहीं, जिसने किसानों को कुचला।
फिर संजय ने जो कहा, वह चौंकाने वाला है। उन्होंने कहा कि कुछ पत्रकार परिवार से यह भी कहलवाने का प्रयास कर रहे हैं, कि श्याम को पुलिस को जिंदा सौंपा गया था और बाद में किसी और ने मार डाला!
यह अत्यंत खतरनाक और घातक है क्योंकि यह प्रवृत्ति बहुत ही तेजी से अब फ़ैल रही है। पत्रकार अपनी व्यक्तिगत रुचियों के आधार पर और व्यक्तिगत दुराग्रह के आधार पर रिपोर्टिंग करते हैं और उसी के अनुसार लिखते हैं, जैसे कंवरदीप सिंह ने इस रिपोर्ट को बनाते हुए किया। उनकी ट्विटर पर जाकर देखा जा सकता है कि वह इस पार्टी और हिन्दुओं के प्रति क्या विचार रखते हैं?
ऐसा नहीं है कि मीडिया ने पहली बार ऐसा कुछ किया हो! जनता को भड़काने के लिए इसी आन्दोलन में 26 जनवरी को आयोजित हुई ट्रैक्टर रैली में भी नवदीप की मृत्यु पुलिस की गोली से हुई थी, जबकि वह अनियंत्रित होकर गिरे ट्रैक्टर के कारण मृत्यु का ग्रास बने थे।
ऐसा क्यों बार बार हो रहा है, और बार बार भाजपा के कार्यकर्ताओं को भड़काने के लिए रिपोर्ट बनाई जा रही है, क्या हम यह मानकर चलें कि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय इन सब गतिविधियों पर रोक नहीं लगा पा रहा है?
क्यों हिन्दुओं के विरोध एक ऐसा वातावरण बनाया जा रहा है, जिसमें वही दोषी हैं। हिन्दू बहुत आसानी से इन दरबारी मीडिया का शिकार हो जाते हैं, जैसा हमने कोविड की दूसरी लहर में भी देखा था, वह सहज रूप से अपने दिल की बात बता देते हैं, उन्हें यह तनिक भी नहीं पता होता है कि जिन्हें दिल की बात बता रहे हैं, वह उनका प्रयोग अपने एजेंडा के लिए करेंगे।
कई हिन्दुओं को इसलिए उन पर विश्वास होता है क्योंकि वह हमारे जैसे ही दिखते हैं और हमारे जैसे ही होते हैं, और उन्हें उनके विषैले एजेंडे का भान ही नहीं होता है।
विषैले एजेंडे को चलाने वाले यह पत्रकार और एकेडेमिक्स अपने आर्थिक एवं सामाजिक विशेषाधिकार द्वारा एक सुरक्षित गुफा में रहते हैं। और इसी सुरक्षा के चलते वह हमारे घरों तक आ जाते हैं और हममें घुलमिल कर हमारी बात निकलवाते हैं और फिर घर से निकलते ही अपनी कहानियाँ पकाने लगते हैं।
मीडिया से लेकर बुद्धिजीवियों तक एक बंगाल में हिन्दुओं के प्रति हिंसा और इस आन्दोलन के में हुई हिंसा के प्रति भेदभाव परक रवैया दिखाई दिया। जहां पश्चिम बंगाल में चुनावों के बाद हुई हिंसा के प्रति मीडिया से लेकर न्यायपालिका तक बहुत अधिक मुखर नहीं रही तो वहीं मीडिया से लेकर विपक्ष, बुद्धिजीवी तक इस आन्दोलन में एक त्वरित प्रतिक्रिया में सबसे आगे रहे। यहाँ तक कि माननीय उच्चतम न्यायालय ने भी स्वत: संज्ञान ले लिया था। मीडिया, से लेकर बुद्धिजीवी और लेखकों की यह स्थिति देखकर हिन्दुओं के लिए एक सबक ही दिखाई देता है कि चाहे आप श्याम निषाद हों, हरी ओम मिश्रा हों, अविजित सरकार हों, हरन अधिकारी हों, वी रामलिंगम हों, आप के हिस्से एक उपेक्षित मृत्यु ही है, आप मात्र शिकार हैं। हिन्दुओं पर सबसे घातक प्रहार सीमा पार से नहीं बल्कि बुद्धिजीवी वर्ग से होता है!