रामकथा में एक बहुत ही महत्वपूर्ण पड़ाव उन महिला का है, जिन्होनें भक्ति की धारा को एक नया आयाम दिया है। उन्होंने भक्ति को एक परिभाषा दी, उन्होंने बताया कि भक्त की प्रतीक्षा क्या होती है. वह स्त्री शक्ति की एक ऐसी परिभाषा हैं, जिन्हें सहज कोई भी व्यक्ति न ही लिख सकता है और न ही समझ सकता है. वह राम कथा का महत्वपूर्ण पड़ाव है, इतना महत्वपूर्ण कि उसके बिना राम कथा पूर्ण नहीं हो सकती। राम कथा ही क्यों, उसके बिना भक्ति पूर्ण नहीं हो सकती। वह अपने राम की प्रतीक्षा में नित आश्रम में बाट जोहती थी। नित मार्ग बुहारती, नित सोचती “आज आएँगे क्या राम?”
वह राम कथा में ऐसा पात्र है जिसके स्मरण मात्र से भक्ति के एक नए रूप से आपका परिचय होता है। जिसकी भक्ति के सम्मुख विश्व के समस्त सुख तुच्छ प्रतीत होती है। जहाँ हम देखते हैं कि सुग्रीव अपने राज्य छिन जाने से व्याकुल हैं, दुखी हैं, परन्तु शबरी जीवन का तो एक ही आधार है कि राम उसकी कुटिया में आए और वह उनके दर्शन कर स्वर्ग में जाए। यद्यपि वाल्मीकि रामायण में यह नहीं है कि उन्होंने शबरी के झूठे बेर खाए। हाँ यह अवश्य है कि शबरी ने उनके लिए कंदमूल एकत्र कर रखे थे।
यह कहा जा सकता है कि राम की प्रतीक्षा में प्रतीक्षारत शबरी के साथ कई कथाएँ जुड़ती गईं और भक्ति की जो सूक्ष्म धारा थी वह मात्र झूठे फलों की कहानी में दब गयी? जिस शबरी को श्रमणी की संज्ञा प्राप्त हुई है, जिस श्रमणी ने योग और तपबल से स्वयं को विकसित किया है, जिस शबरी ने इतने वर्ष मात्र इस प्रतीक्षा में व्यतीत कर दिए कि एक दिन राम उसकी कुटिया में आएँगे, अत: उसे रुकना है, रुकना ही नहीं है अपितु राम और लक्ष्मण के आने तक वन को भी उसी प्रकार रखना है, जैसा ऋषि छोड़ गए हैं। शबरी भक्ति का वह अध्याय है जिसका अध्ययन प्रत्येक भक्त को करना चाहिए।
राम ने शबरी के बेर खाए या नहीं, यह तो नहीं पता परन्तु राम ने शबरी से उसकी तपस्या के विषय में अवश्य पूछा जो यह प्रमाणित करता है कि शबरी एक ज्ञानी स्त्री थी।
परन्तु राम कहते हैं न कि भक्त और ज्ञानी में से भक्त महान होता है, इसी प्रकार शबरी का तपस्या वाला रूप भक्ति के रूप के कहीं पीछे दब जाता है। राम उनसे पूछते हैं:
“कच्चिते निर्जिता विघ्ना कच्चिते वर्धते तप:
कच्चिते नियत: क्रोध आहाराश्च तपोधने।
(वाल्मीकि रामायण अरण्य काण्ड 74/8)
अर्थात कामादि छ: रिपुओं को जो तपस्या में विघ्न डाला करते हैं वह तुमने जीत तो लिया है? तुम्हारी तपस्या उत्तरोत्तर बढ़ती तो जाती है? तुमने क्रोध को वश में कर रखा है? हे तपोधने, तुम आहार में संभल कर तो रहती हो?
फिर उसके उपरान्त वह लिखते हैं:
कच्चिते नियम: प्राप्त: कच्चिते मनस: सुखम
कच्चिते गुरुशुश्रषा सफला चारुभाषिणी
(वाल्मीकि रामायण अरण्य काण्ड 74/9)
अर्थात हे चारुभाषिणी, तुम्हार सभी व्रत तो ठीक ठाक चले जाते हैं? तुम्हारा मन संतुष्ट तो रहता है? क्या तुम्हारी सेवा शुश्रुषा सफल हुई?
राम के इन प्रश्नों का शबरी उत्तर देते हुए कहती हैं
अद्य प्राप्ता तप: सिद्धिस्तव संदर्शनानम्या
अद्य में सफलं तप्तं गुरुवश्च सपूजिता:
(वाल्मीकि रामायण अरण्य काण्ड 74/11)
अर्थात आपके दर्शन करके मुझे आज तप करने का फल मिल गया। आज मेरा तप करना और गुरु की सेवा करना सफल हुआ।
वाल्मीकि रामायण में आगे लिखा है कि जब शबरी राम से कहती हैं कि उन्होंने पम्पा सरोवर के निकटवर्ती वन से वन में उत्पन्न होने वाले अनेक कंदमूल फलों को इकट्ठा कर रखा है।
वाल्मीकि रामायण में आदि कवि वाल्मीकि शबरी को अति दुर्लभ परमात्मा का ज्ञान रखने वाली की संज्ञा देते हैं।
शबरी कोई बेचारी वृद्ध स्त्री नहीं है जो राम की प्रतीक्षा में है, अपितु वह तो इतनी मजबूत स्त्री है कि वह इतने बड़े आश्रम का रखरखाव एवं देखभाल कर रही है, अकेली। इसीके साथ वह तप और जप भी कर रही है।
राम और लक्ष्मण को भली भांति आश्रम दिखाने के उपरान्त वह आज्ञा मांगती है और स्वयं को अग्नि में समर्पित कर इस देह को त्याग देती है।
अब प्रश्न यह है कि जिस शबरी को श्रमणी कहकर संबोधित किया गया है एवं जिस शबरी को तप जप एवं यज्ञ का ज्ञान है उसे मात्र झूठे बेर खिलाने तक ही सीमित क्यों किया गया? वह अध्यात्म की वह गंगा है जो कईयों को राह दिखा सकती है। शबरी को तप के समस्त नियमों का ज्ञान है, अर्थात वह शिक्षित है। वह महानारी है जो अपने गुरु के आदेश का पालन कर रही है। मतंग ऋषि का आश्रम अत्यंत ही सुन्दर है, अत: राम के आने पर वह निराश न हो जाएं, इसलिए शबरी का रहना आवश्यक है।
क्योंकि वह स्त्री ही है जो प्रतीक्षा कर सकती है? वह स्त्री ही है जो किसी की प्रतीक्षा में जन्मों तक तपस्या कर सकती है। वह स्त्री ही है जो प्रतीक्षा करना जानती है, इसलिए ऋषि मतंग एक स्त्री पर यह दायित्व सौंप गए। सत्य है स्त्री कभी किसी को निराश करती है भला! वह तो शबरी है है जो राम की प्रतीक्षा में आश्रम सजाए रखती है, राम अपनी पत्नी को खोजने की यात्रा पर निकले हैं, राम निराश न हों, ऐसी व्यवस्था मात्र एक स्त्री ही कर सकती है।