कश्मीर से धारा 370 हट गया है और कथित रूप से यह कहा जा रहा था कि अब वहां पर लक्षित हत्याएं रुक जाएँगी। परन्तु ऐसा नहीं हुआ है, बल्कि अब तो कश्मीरी पंडितों के साथ साथ अन्य हिन्दुओं की भी हत्याएं बढ़ गयी हैं, परन्तु इन सभी के बीच जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला ने जो कहा है, वह अत्यंत चौंकाने वाला है। उन्होंने कहा कि यह तब तक नहीं रुक सकती, जब तक इन्साफ नहीं मिल जाता! उन्होंने कहा कि पहले भारतीय जनता पार्टी यह कहा करती थी कि यह सब धारा 370 के चलते हो रहा है,मगर वह तो अब हट गयी है। तो अब तक हत्याएं क्यों नहीं रुकी हैं? कौन जिम्मेदार है?”
यह कहना ही अपने आप में कितना घातक है, इसे इस बात से समझा जा सकता है कि फारुख अब्दुल्ला ने जो भी कहा है वह एक प्रकार से हिंसा और आतंकवाद को बढ़ावा तो देने वाला है ही साथ ही यह उस जीनोसाइड का डिनाइल भी है, जो इतने वर्षों से होता चला आ रहा है। कश्मीरी पंडितों का संहार आज की बात नहीं है और न ही यह बात नई है कि आखिर इन्साफ का क्या अर्थ है? किस बात का इन्साफ ऐसा चाहिए, कि जिसके लिए हिन्दुओं को मारना आवश्यक है?
इन्साफ की यह कैसी परिभाषा है, यह भारतीयों के समझ से परे ही लग रहा है क्योंकि जैसे ही फारुख अब्दुल्ला ने यह बात कही, वैसे ही आतंकी गुटों ने गैर कश्मीरियों पर हमले और तेज करने की धमकी दे दी!
फारुख अब्दुल्ला ने यह बयान ऐसे समय में दिया है जब कश्मीर में लगातार हत्याएं हो रही हैं। तीन दिन पहले अर्थात 15 अक्टूबर को कश्मीरी पंडित पूरण कृष्ण भट की हत्या आतंकवादियों ने कर दी थी। आज तक के अनुसार
“आतंकियों ने उस समय वारदात को अंजाम दिया जब वह शोपियां के चौधरी गुंड में बाग लगाने जा रहे थे। उन्हें तुरंत इलाज के लिए अस्पताल ले जाया गया, जहां उन्होंने दम तोड़ दिया
जम्मू कश्मीर के राज्यपाल मनोज सिन्हा ने ट्वीट करके इस घटना की निंदा की और कहा कि यह बहुत ही कायराना हरकत है।
इस घटना के विरोध में कश्मीर में कश्मीरी पंडित कर्मचारियों ने विरोध प्रदर्शन किया था। परन्तु ऐसा लगता है जैसे न ही कुछ सुनवाई हो रही है और न ही कोई कदम उठाया जा रहा है। इस हत्या के तीसरे ही दिन एक बार फिर से कश्मीर थर्रा उठा और इस बार हमला कश्मीरी पंडितों पर न होकर उत्तर प्रदेश के दो मजबूरों पर हुआ। उन को लक्ष्य बनाकर मारा गया।
पूरण कृष्ण भट की हत्या के बाद कन्नौज में रहने वाले दो मजदूरों मुनीश कुमार और राम सागर पर ग्रेनेड से हमला हुआ।
यह बात स्पष्ट है कि यह घटनाएं रुक नहीं रही हैं। यह सिलसिला थम नहीं रहा है। क्या वास्तव में भारत सरकार के तमाम प्रयास नाकाफी प्रमाणित हो रहे हैं, आखिर क्या कारण है कि हमले थम नहीं रहे हैं और लोग मारे जा रहे हैं।
पूरण कृष्ण भट के परिजनों का कहना है कि उनके बच्चों ने इस बार बहुत मना किया था कि कश्मीर न जाएं क्योंकि उन्हें बुरे ख्याल आ रहे थे। भट की बहन ने कहा कि श्रेया ने अपने पिता से इस बार कश्मीर न जाने की गुहार लगाई थी, क्योंकि उसके दिल में बुरे विचार आ रहे थे, परन्तु फिर भी भट गए क्योंकि सेब का व्यापार ही उनके परिवार के लिए पैसे का एकमात्र स्रोत था। परिवार अब 50 लाख रुपये मुआवजा और भट की पत्नी को नौकरी देने की मांग कर रहा है ताकि बच्चों के पालन-पोषण और भविष्य की शिक्षा की जरूरतों का ध्यान रखा जा सके।
पुलिस ने पूरण भट की लक्षित हत्या में स्थानीय गार्ड के शामिल होने की संभावना से इंकार नहीं किया है।
उप महानिरीक्षक (डीआईजी) सुजीत कुमार ने कहा, ‘शुरुआती जांच में चश्मदीदों का कहना है कि केवल एक ही व्यक्ति था जिसने उसे निशाना बनाया था और वह उसके सामने था। किसी और को किसी ने नहीं देखा जो शायद छिपा हो…।वह (पूरण भट) अपनी स्कूटी पर बाहर गए थे और उसी पर वापस आए। वह अकेला नहीं थे; दो लोग थे। अगर घटना यहां तैनात गार्ड की मौजूदगी में हुई तो कार्रवाई में न केवल उसे बल्कि क्षेत्र के सभी संबंधित अधिकारियों को सम्मिलित किया जाएगा।“
90 के दशक में जब आतंकवाद अपने चरम पर था और हिन्दुओं को चुन चुन कर निशाना बनाया जा रहा था, तब भी स्थानीय लोगों की संलिप्तता पाई गई थी और इन्ही कहानियों को अपनी फिल्म द कश्मीर फाइल्स में विवेक रंजन अग्निहोत्री ने दिखाया था।
अभी भी न जाने कितने स्थानीय कश्मीरी पंडित तो वहीं शेष भारत से काम करने वाले हिन्दुओं पर निशाना साधा जा रहा है, उन्हें मारा जा रहा है और लोग अब प्रश्न करने लगे हैं कि आखिर ऐसा क्या कारण है कि सरकार नियंत्रण नहीं कर पा रही है। आखिर ऐसा क्या कारण है कि सरकार इन हत्याओं को रोकने में नाकाम है? आखिर क्यों हिन्दुओं की हत्याएं नहीं रुक पा रही हैं और ऐसे में फारुख अब्दुल्ला जैसे लोग यह कह रहे हैं कि यह हत्याएं नहीं रुकेंगी जब तक इन्साफ नहीं मिलेगा?
वहीं कश्मीरी पंडित एवं वहां पर मारे जा रहे शेष भारत के हिन्दू भी यही प्रश्न कर रहे हैं कि आखिर हिन्दुओं को निशाना क्यों बनाया जा रहा है, क्यों उन्हें इन्साफ नहीं मिल रहा है?
अभी तक घाटी में कश्मीरी हिन्दुओं को बसाए जाने के सभी प्रयास नाकाफी प्रमाणित हो रहे हैं ऐसा लग रहा है जैसे बहुत हड़बड़ी में यह निर्णय लिया जा रहा है। जब तक उनकी सुरक्षा का प्रबंध नहीं होता तब तक क्या ऐसा किया जाना चाहिए, यह भी एक प्रश्न है!
बहरहाल जिस इन्साफ की बात फारुख अब्दुल्ला कर रहे हैं वह उस न्याय पर बहुत भारी पड़ता दिखाई दे रहा है, जो कश्मीरी हिन्दू दशकों से मांगते चले आ रहे हैं!