भारतीय जनता पार्टी के निलंबित नेता टी राजा, जिन्हें न्यायालय ने जमानत दे दी थी, उन्हें अंतत: फिर से दबाव के चलते हिरासत में ले लिया गया है। टी राजा को जमानत मिलने के बाद से हैदराबाद में प्रदर्शन हो रहे थे। बार बार यह कहा जा रहा था कि टी राजा को छोड़ा क्यों गया? और पुलिस का मुस्लिम कट्टरपंथियों के प्रति समर्पण साफ़ देखा गया।
कहा जा सकता है कि एक बार फिर से वह भीड़तंत्र जीत गया, जो अब तक मात्र इस्लामिक देशों में ही देखा जाता था, या फिर हम जिसे अपने पड़ोसी मुल्कों जैसे पाकिस्तान और बांग्लादेश में देखते थे, परन्तु वह कैसे धीरे धीरे हमारे यहाँ, हमारे यहाँ की व्यवस्था में पैर पसार चुका है, यह नहीं पता चल पाया। या फिर देखा नहीं? समस्या यह नहीं कि देखा नहीं, समस्या यह है कि जानबूझकर अनदेखा किया जा रहा है, उस उन्माद को जो देश को लीलने के लिए तैयार बैठा है।
और सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि पुलिस भी इस उन्माद को लेकर न जाने कैसा दृष्टिकोण अपनाए है,
यह कैसा विरोधाभास है कि हिन्दुओं के विश्वास पर और हिन्दू हितों के नाम पर आई सरकार आज “सर तन से जुदा” के नारों के आगे आत्मसमर्पण कर रही है? क्योंकि भारतीय जनता पार्टी ने टी राजा को पार्टी से निलंबित करने में देर नहीं लगाई थी। न ही भारतीय जनता पार्टी ने नुपुर शर्मा को निलंबित करने में विलम्ब किया था। भारतीय जनता पार्टी के इस कदम से भारतीय जनता पार्टी के ही प्रशंसकों में खासी नाराजगी है और हर ओर से इस कदम का विरोध किया जा रहा है कि आखिर ऐसा क्यों किया जा रहा है? आम लोग पूछ रहे हैं कि क्यों?
क्या इस देश में मुनव्वर फारुकी जैसे लोग, जो खुले आम हिन्दू देवी देवताओं का अपमान करते हैं, वह आजाद घुमते रहेंगे, फिर चाहे वह जुबैर हो या फिर मुनव्वर फारुकी! और नुपुर शर्मा और टी राजा जैसे लोग जो हिंदुत्व की बात करते हैं, वह जेल जाते रहेंगे? यह विरोधाभास अत्यंत दुखद है, और सबसे बढ़कर दुःख की बात यह है कि आज हिन्दुओं के खिलाफ मुस्लिमों के नन्हे बच्चे भी नारे लगा रहे हैं।
हालांकि इसे लेकर बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने नोटिस भेजा है, परन्तु वह कितना कारगर होगा, यह एक प्रश्न ही है क्योंकि जिन्होनें नारे लगाए हैं क्या उनके अभिभावकों को यह नहीं पता होगा कि नारे आखिर क्यों लगाए गए हैं?


बिना यह जाने कि वह क्या कह रहे हैं? बिना यह जाने कि इसका उद्देश्य क्या है? वह नारे लगा रहे हैं, या उनसे लगवाए जा रहे हैं! और सबसे बड़े दुःख की बात यह है कि लोग झूम रहे हैं बच्चों के इस तरह नारे लगाने पर! यह जहरीले नारे कब तक लगते रहेंगे, यह जहरीले नारे कब से लग रहे होंगे, अब समय इन सबका डेटा बनाने का नहीं है, बल्कि आगे बढ़कर यह प्रश्न करने का है कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है और क्यों क़ानून का डंडा मात्र हिन्दुओं के लिए है?
क्यों हिन्दू आराध्यों का उपहास उड़ाने वाले मुनव्वर फारुकी को पुलिस द्वारा संरक्षण दिया जाता है और क्यों हिन्दू समाज में ऐसे लोग हैं, जो मुनव्वर फारुकी जैसों को सुनते हैं? क्यों उनके दिल में यह पीड़ा नहीं होती कि उनके ही आराध्यों का अपमान यह व्यक्ति कर रहा है? क्यों उनकी आत्मा नहीं कचोटती कि यह लोग कितना गलत कर रहे हैं?
खुले आम सड़कों पर हिन्दुओं को मारने की नारे लग रहे हैं और सब मौन हैं
मौन हैं, कि राजनीतिक समीकरण कहीं बिगड़ न जाएं, मौन हैं कि राजनीति में कहीं कुछ सरक न जाए, मौन हैं कि कहीं जो धर्मनिरपेक्षता का व्याख्यान हो रहा है कहीं पर उसमें खलल न पड़ जाए, मौन हैं कि विश्व गुरु का तमगा कहीं हाथों से छिन न जाए!
फिर दोषी कौन है? कौन है दोषी उन खूबसूरत आवाजों के हिंसक आवाजों में बदल जाने का, जिसमें वह निकल पड़ी हैं “सर तन से जुदा का नारा लगाने!” कौन है, जिन्होनें इनके हाथो में बारूद थमा दिया है?
सीएए आन्दोलन और किसान आन्दोलन में भी बच्चों का प्रयोग देखा गया था
ऐसा नहीं है कि सर तन से जुदा के नारे लगाने में ही बच्चों का प्रयोग हुआ है। पाठकों को स्मरण होगा कि कैसे नागरिकता क़ानून के विरोध में आन्दोलन के मध्य भी हमने देखा था कि कैसे छोटे छोटे बच्चों का प्रयोग अपने एजेंडे के लिए किया गया था। कैसे उनके मन में मोदी के बहाने पूरे हिन्दू धर्म के खिलाफ जहर भरा गया था। यह कोई संयोग नहीं था, बल्कि यह प्रयोग था।
उनका संकेत आरएसएस हो सकता है, नुपुर शर्मा हो सकती है या फिर टी राजा, मगर वृहद् रूप में उनका लक्ष्य काफिर हैं, अर्थात हिन्दू ही हैं! हर वह व्यक्ति जो उनके अनुसार नहीं है।
सीएए के विरोध के बहाने ‘जो हिटलर की चाल चलेगा, वो हिटलर की मौत मरेगा, जामिया तेरे खून से इंकलाब आएगा, जेएनयू तेरे खून से इंकलाब आएगा।।हम लड़कर लेंगे आजादी, के नारे अभी तक कानों में गूंजते हैं।
उसके बाद किसान आन्दोलन के दौरान भी हमने देखा था कि कैसे बच्चों को आन्दोलन के नाम पर निशाना बनाकर प्रयोग किया गया था। बच्चों के मन किसानों के हितों के नाम पर सरकार के विरुद्ध विष भरा गया था और उन्हें भी उस वर्ग के खिलाफ भड़काया जा रहा था, जो वर्ग सरकार का समर्थन करता है अर्थात कहीं न कहीं हिन्दुओं के प्रति घृणा भरी जा रही थी।
कई महिलाएं “मोदी मर जा तू” के गाने गाती हुई दिखाई दी थीं। यह सब क्या है? यह सब समाज में घृणा फैलाने वाले टूल हैं।
यह सब हिन्दुओं के विरुद्ध संगठित टूल हैं जो कभी सीएए, एनआरसी तो कभी किसान आन्दोलन के विरोध के बहाने नजर आते थे, जो तब तक किसी और ढाल के पीछे थे, हाँ, सीएए में जरूर फक हिन्दुइज्म के नारे लगे थे तो यह लग ही गया था कि आन्दोलन का स्वरुप क्या है
टी राजा के विरुद्ध भी बच्चे और औरतें उतरे हैं
टी राजा का विरोध करने के लिए भी बच्चे और औरतें उतरे हैं। परन्तु यह हमारी राजनीति और कथित बुद्धिजीवियों की भीड़ है जो उनके इस आन्दोलन को मजहबी पहचान के नाम पर दुलारती है, हिन्दू आराध्यों के विरुद्ध गाली देने वालों को सम्मान देती है क्योंकि हिन्दू धर्म की आलोचना उदारता कहलाती है क्योंकि हिन्दू धर्म असहिष्णु नहीं है, तो हिन्दू धर्म को अपनी सहिष्णुता का दंड मिलता है और वह एक बार फिर से अपने ही अनुयाइयों के विरुद्ध लगते नारों में जिनमें खुले आम सर तन से जुदा की धमकियां होती हैं, अपनी सहिष्णुता की सीमा खोजता है!
वह देखता है भीड़तंत्र को जीतते हुए और सहिष्णुता को हारते हुए!