उत्तर प्रदेश में चुनावों की घोषणा होने के साथ ही हर पार्टी की ओर से अपने अपने दावे किए जाने लगे हैं। कोई कुछ भी कहे, उत्तर प्रदेश में मात्र दो ही मुद्दों पर चुनाव लड़े जा रहे हैं, एक है धर्म एवं दूसरा कानून व्यवस्था। कानून व्यवस्था इसलिए मुख्य मुद्दा है क्योंकि प्रदेश की मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी के शासनकाल में कानून व्यवस्था का हाल बहुत बुरा था। माफियाओं का राज चरम पर था और राह चलती लड़कियों के हाथों से चेन, पर्स खिंच जाना आम बात थी।
परन्तु यदि अखिलेश यादव से पहले उनके पिता के शासनकाल पर नजर डाली जाए तो भी स्थिति भिन्न नहीं दिखाई देती है। आज हम ऐसी ही अपराध की कहानी पर नजर डालते हैं, जिसका महिमामंडन फिल्मों में बहुत किया जाता है और इस बहाने उसके पीड़ितों की पीडाएं कहीं छिप जाती हैं। फिल्मों में डकैतों का महिमामंडन बहुत अधिक किया जाता है। परन्तु वह लोग कभी उन आम लोगों की पीड़ा नहीं दिखाते हैं, जो वास्तव में पीड़ित होते हैं। वह कभी उनकी पीड़ा नहीं दिखाते जो पूरे जीवन अपने अपनों की प्रतीक्षा में रह जाते हैं।
सपा का नजदीकी बताता था खुद को दुर्दांत डकैत निर्भय गुर्जर
यह कहानी है इटावा के बीहड़ों में अपने आतंक का निर्विघ्न राज्य चलाने वाले दस्यु निर्भय गुर्जर की। यह कहानी है उस डकैत की जिसका अंत उसी के हाथों हुआ, जिसका नजदीकी होने का दावा किया करता था। वह खुद को सपा पार्टी का हीरो नंबर वन कहा करता था।
और राजनीतिक पहुँच का प्रभाव करते हुए ही वह लोगों की पकड़ किया करता था। वह मीडिया को बुलाकर यह भी इंटरव्यू दिया करता था कि वह अमीरों को लूटकर गरीबों में पैसे बांटता है।
परन्तु उसके पीड़ितों के पास, या उनकी पीड़ा दिखाने का समय न ही चैनलों के पास था और न ही सरकार के पास!
समय समय पर उसकी क्रूरता के किस्से सामने आते। जो पीड़ित थे वह डर के कारण कहानी भी बताने से बचते थे। चोरी, डकैती, मर्डर करता था और साथ ही वह लोगों के हाथ पैर भी काट लेता था। 200 से ज्यादा मामले निर्भय गुर्जर पर दर्ज थे। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश दोनों राज्य की सरकारों ने उस पर ढाई ढाई लाख रूपए का इनाम रखा था।
पकड़ अर्थात अपहरण उसका मुख्य काम था। जो उस दौर के लोग हैं, वह आज भी किस्से सुनाते हैं कि कैसे चम्बल के किनारे बसे शहरों में लोग अपने घरों में रंगों रोगन कराने से डरते थे। क्योंकि उन्हें नहीं पता होता था कि कब पकड़ हो जाएगी! और पकड़ एक जिले तक सीमित नहीं थी। पकड़ को कैसे नियंत्रित किया जाता था, यह उसकी चौथी पत्नी नीलम गुप्ता ने खुद “आजतक” चैनल को बताया था:
वह खुले आम बाद में स्वयं को सपा का खास आदमी बताने लगा था।
अय्याश भी था
निर्भय गुर्जर जितना दुर्दांत था, उतना ही अय्याश भी था। उसने चार शादियाँ की थीं। सीमा परिहार से लेकर नीलम गुप्ता तक उसकी चार बीवियां थीं। सीमा परिहार ने आत्मसमर्पण के बाद राजनीति में कदम रखकर नई शुरुआत की थी, और वह बिग बॉस में भी भाग ले चुकी हैं। मगर एक समय में उन पर 70 हत्याओं के मुक़दमे चल रहे थे। परन्तु उन्होंने वर्ष 2003 में आत्मसमर्पण कर दिया था।
उसकी चौथी और अंतिम बीवी नीलम गुप्ता उसे छोड़कर उसके दत्तक बेटे के साथ भाग गयी थी, जिस पर गुस्सा होकर उसने यह कहा था कि वह उसे पकड़ कर लाने वाले को इक्कीस लाख रूपए का इनाम देगा। मगर बाद में नीलम गुप्ता ने भी वर्ष 2004 में आत्मसमर्पण कर दिया था और वर्ष 2017 में उसे न्यायालय ने रिहा कर दिया था।
एक ओर अपराध भयानक तो दूसरी ओर बटेश्वर के मंदिर के जीर्णोद्धार का कारण भी
यह बात अपने आप में अत्यंत विरोधाभासी है कि ह्त्या, अपहरण, लूट, अंग भंग करने वाले और आतंक के दम पर सरकारों में अच्छा खासा दखल रखने वाले निर्भय गुर्जर ने ऐतिहासिक बटेश्वर के मंदिरों के जीर्णोद्धार में सहायता की थी। यह उन डकैतों का ही सहयोग था, जिसके कारण वह मंदिर सुरक्षित रह सके।

दरअसल चम्बल घाटी में आगरा में बाह में बटेश्वर धाम एक पवित्र स्थान है, यहाँ पर आठवीं एवं दसवीं शताब्दी के ऐतिहासिक मंदिर थे, जिनका निर्माण गुर्जर-प्रतिहार वंशों द्वारा कराया गया था। यह कहा जाता है कि यह मंदिर खुजराहो के मंदिरों से प्राचीन हैं। परन्तु तेरहवीं शताब्दी के दौरान वह भूकंप के कारण खँडहर में बदल गए थे।
डकैत यहाँ पर रहते थे, छिपे रहते थे। और बीहड़ था। अत: लोग यहाँ आने से डरते थे। हालांकि तस्करी आदि से यह मूर्तियाँ सुरक्षित थीं, परन्तु ऐतिहासिक धरोहरों का दिन प्रतिदिन क्षरण हो रहा था।
भारतीय पुरातत्व विभाग में कार्यरत श्री के के मोहम्मद ने इन मंदिरों के जीर्णोद्धार के लिए निर्भय गुर्जर से बात की और समझाया कि एक समय में आपके पूर्वजों ने ही इन मंदिरों को बनाया था, इसलिए आप लोग सहायता करें।
निर्भय गुर्जर को यह समझ में आ गया। और उसके पूरे गैंग ने इस ऐतिहासिक धरोहर को संसार के सामने लाने में सहायता की। के के मोहम्मद के अनुसार डाकू अपने पापों का प्रायश्चित भी करना चाहते थे। इसलिए भी उन्होंने यह किया था। परन्तु धीरे धीरे पुलिस द्वारा उन डाकुओं का एनकाउन्टर शुरू हो गया था।
आज बटेश्वर के यह मंदिर बहुत बड़े पर्यटन का स्थल बन गए हैं।
कैसे अंत हुआ था आतंक का
यह बहुत रोचक है कि आखिर इतने शहरों में फैले हुए इस आतंक के साम्राज्य पर रोक कैसे लगी थी? जो गिरोह आसपास के सभी चुनावों पर असर डालता था, घोषणाएं जारी करता था, और सपा का खास आदमी बताता था, उसका अंत कैसे हुआ था? क्यों मारा गया था? दरअसल कहा जाता है कि सत्ता की नजदीकियों नें नहीं, उनकी स्वीकारोक्ति ने उसकी हत्या कराई थी।
जैसे जैसे वह यह कहता गया कि वह सपा का ख़ास है, और उसने यह कह दिया था कि शिवपाल यादव उसके भैया हैं, उसके बाद से ही कहा जाता है कि सपा में उसके प्रति नाराजगी पैदा होने लगी थी।
और जैसे ही उसने यह कहना शुरू किया कि वह सपा से चुनाव लड़ना चाहता है, इतना ही नहीं यह भी वीडियो सामने आए थे कि वह मुलायम सिंह के सामने ही आत्मसमर्पण करना चाहता है। यह भी सुनने में आया कि उसने सपा के लोगों को हरवा दिया था, उसके बाद ही उसके सफाए का अभियान गति पकड़ने लगा था। अमिताभ यश को उसे मारने का उत्तरदायित्व सौंपा गया। और फिरउसे बीहड़ में ही घेरा जाने लगा, उसके गैंग के करीबियों के एनकाउन्टर किए गए और अंतत: 7 नवम्बर 2005 को उसकी मुठभेड़ में मौत हो गयी।
सत्ता और अपराध का अनोखा गठजोड़ था
निर्भय गुर्जर द्वारा ऐतिहासिक मंदिरों के संरक्षण में योगदान एक ओर, परन्तु सत्ता की नजदीकी की हनक के चलते किए गए अपराध एक ओर रखे जा सकते हैं। जिनकी पकड़ होती थी, वह साधारण लोग होते थे। और न जाने कितने लोग तो उन बीहड़ों से बाहर नहीं निकल पाए। न जाने कितने परिवार थे जो घर बार छोड़कर चले गए, न जाने कितने लोगों की शामें पांच बजते ही घर के भीतर ही कटती थीं।
आज जब उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के मुखिय अखिलेश यादव अपराध मुक्त सरकार देने का नारा लगाते हैं, तो उनके पिता के शासनकाल में अपराध और सत्ता के इस गठजोड़ को याद करके लोग अभी भी सिरह उठते हैं।
हालांकि यह मात्र एक ही कहानी है, अपराध और सत्ता के गठजोड़ की और कहानियाँ भी उत्तर प्रदेश चुनावों से पहले हम अपने पाठकों के लिए लाते रहेंगे!