श्रद्धा और आफताब के मामले में जो अब जो नई बातें निकलकर सामने आ रही हैं, वह इस मामले को और गंभीर बना रही हैं। ऐसा प्रतीत होता है जैसे आफताब के घरवालों को भी इसकी जानकारी थी। मगर आफताब के घरवाले कहाँ गायब हैं यह नहीं समझ आ रहा है। मीडिया भी उन तक नहीं पहुँच पा रहा है। और इसी बीच श्रद्धा के पिता का बड़ा बयान सामने आया है कि वह लोग शादी का प्रस्ताव लेकर आफताब के घर गए थे और उन लोगों ने उन्हें अपमानित करके भगा दिया था।
मीडिया के अनुसार श्रद्धा के पिता विकास वालकर ने बताया कि वो और उनकी पत्नी हर्षिला वाल्कर अगस्त 2019 में शादी का प्रस्ताव लेकर आफताब के घर गए थे। विकास वाल्कर ने आफताब के घरवालों से कहा दोनों की शादी कराने का प्रस्ताव रखा था, लेकिन उन्हें अच्छा रिस्पॉन्स नहीं मिला। उन्होंने कहा कि वो अपनी पत्नी के साथ आफताब के माता-पिता से मिलने उनके घर गये थे, लेकिन आफताब के चचेरे भाई ने हमें यह कहते हुए बेइज्जत किया कि फिर कभी दरवाजे पर मत आना।
ऐसे में आजाद ख्याल वाली लड़कियों के विषय में कई प्रश्न उठते हैं कि वह अपने मातापिता को इतना विवश और अपमानित देखकर भी उसी लड़के के साथ क्यों चली जाती हैं, जिसके कारण उसके मातापिता का इतना अपमान हुआ होता है। मातापिता का अपमान अर्थात एक प्रकार की अस्वीकृति कि आपकी बेटी हमें पसंद नहीं है, तो फिर ऐसा क्या कारण है, कि कथित आत्मसम्मान वाली फेमिनिस्ट लड़कियों का तमाम आत्मसम्मान गायब हो जाता है?
क्योंकि फेमिनिज्म सबसे पहले परिवार के विरुद्ध ही विष भरता है और साथ परिवार के साथ ही वह उन तमाम संबंधों के प्रति विष भरता है! उसका पहला हमला ही पिता और भाई पर होता है और हर सफल वैवाहिक जीवन जीने वाली महिला उसके लिए एक ऐसी महिला होती है जिसके भीतर पितृसत्ता के प्रति गुलामी छिपी होती है।
फिर ऐसा क्या होता है कि श्रद्धा जैसी औरतें उस हिंसा से बाहर नहीं निकल पाती हैं, जो आफताब जैसे लोग उसके साथ करते हैं?
क्योंकि फेमिनिज्म उन्हें इतना कमजोर बना चुका होता है कि वह हमेशा ही एक सहारा खोजती रहती हैं। उनकी दृष्टि में उन्हें मारने वाला ही उनका उद्धारक हो जाता है। यह बेहद जटिल दृष्टिकोण हो जाता है और विशेषकर आजाद ख्याल वाली फेमिनिस्ट इसकी बहुत बड़ी शिकार होती है। यह नहीं समझ आता है कि खुद को इतना आजाद बताने वाली, जिसके लिए परिवार सबसे बड़ी बाधा होती है, वह परिवार को तो तोड़ और छोड़ देती हैं, परन्तु वह आफताब जैसों को नहीं छोड़ पाती हैं!
दरअसल फेमिनिज्म औरतों को इतना असहाय बना देता है कि वह आफताब जैसों का विरोध कर ही नहीं पाती हैं। आजादी के नाम पर वह औरतों को सामाजिक रूप से अकेला कर देता है। वह उनका सपोर्ट सिस्टम अर्थात सहयोग एवं समर्थन प्रणाली को एकदम जड़ों से समाप्त कर देता है और इस हद तक मानसिक रूप से आफताब जैसों पर निर्भर कर देता है कि वह आफताब जैसों से पिटती हैं मगर उसका प्रतिरोध नहीं कर पाती हैं।
महिलाओं की सुरक्षा के लिए सबसे पहले परिवार और फिर उसके बाद समाज सामने आता है। उसके लिए उसके पारिवारिक मूल्य उसकी सुरक्षा ढाल होते हैं। परन्तु फेमिनिज्म किसी भी महिला से उसके यही आधार छीन लेता है। जहां विवाहित स्त्री के पास यह अधिकार होता है कि वह अपने बच्चे को कभी भी जन्म दे सकती है तो वहीं फेमिनिज्म लड़कियों को वैध मातृत्व के अधिकार से वंचित करता है।
वह लड़कियों को तमाम तरह की शारीरिक समस्याओं की गर्त में फेंकता है। जब परिवार छोड़कर जब आजाद ख्याल वाली लड़की अपने शरीर की आजादी को भोगती है तो यह भी स्पष्ट है कि गर्भधारण को रोकने के लिए वह कुछ न कुछ कदम उठाएगी ही। या तो वह गर्भ नियंत्रक पिल्स लेगी या फिर गर्भपात कराएगी।
दोनों ही स्थितियां किसी भी लड़की को शारीरिक और मानसिक रूप से तोड़ने के लिए पर्याप्त होती हैं, क्योंकि इन दोनों ही परिस्थितियों में लड़की का स्वास्थ्य प्रभावित होता ही है। इसके कारण लड़कियों का मानसिक संतुलन बिगड़ता है और वह अपने परिवार, अपने बच्चे को खोने के बाद यह बर्दाश्त करने की स्थिति में नहीं होती हैं कि एक दिन भी वह अपने उस प्रेमी से दूर रह सकें, जिसे वह अपने परिवार के लिए छोड़कर आई हैं। गर्भ नियंत्रक गोलियां उन्हें मोटा भी बना सकती हैं और इसके साथ ही हार्मोनल समस्याएँ भी उत्पन्न हो सकती हैं।
वह अपने प्रेमी और मारने वाले प्रेमी अर्थात ताकत दिखाने वाले प्रेमी के प्रति इस हद तक आसक्त हो जाती हैं कि वह बिछड़ने के अहसास से ही तड़प उठती हैं। उसके बाद उसके साथ वही होता है, जो श्रद्धा के साथ हुआ।