बॉलीवुड का हिन्दू विरोधी खेमा एक बार फिर से मुंह की खाने को है। रणवीर कपूर की फिल्म शमशेरा, जिससे फिल्म उद्योग को यह आशा थी कि वह अच्छा व्यवसाय करेगी और साथ ही पैसा लाएगी, उसके शो निरस्त हो रहे हैं, क्योंकि दर्शक जा ही नहीं रहे हैं।
इस फिल्म में बॉलीवुड द्वारा वही पुराना घिसापिटा फोर्मुला अपनाया गया है कि एक बागी डाकू टाइप का शमशेरा है और उसमें खलनायक है शुद्ध सिंह और वह और कोई नहीं बल्कि धर्मनिष्ठ हिन्दू है और हिन्दू प्रतीकों को धारण किये है।
काम से डकैत और धर्म से आजाद शमशेरा अंग्रेजों का दुश्मन है और वह तिलकधारी शिखाधारी शुद्ध सिंह को भी मारकर अपना लक्ष्य हासिल करेगा! शुद्ध सिंह का चरित्र और किसी ने नहीं बल्कि संजय दत्त ने निभाया है और जेम्स ऑफ बॉलीवुड ने लिखा कि इसमें शिवभक्त आशुतोष राणा भी हैं:
फिल्म समीक्षक तरण आदर्श ने इस फिल्म की समीक्षा करते हुए लिखा कि एक शब्द में कहा जाए तो “असहनीय!”
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एएनआई के अनुसार रणबीर की फिल्म शमशेरा टिकट विंडो पर बहुत ही खराब प्रदर्शन कर रही है और इसने पहले दिन मात्र 10.25 करोड़ रूपए की कमाई की है,
कोविड की महामारी के बाद यह दूसरी सबसे बड़ी रिलीज़ है, जिसे 4000 से अधिक थिएटर में रिलीज किया गया था और इसे देखते हुए पहले दिन बहुत ही बुरा प्रदर्शन रहा है, और उसके बाद सबसे खतरनाक है कि नकारात्मक समीक्षाओं का लगातार सामने आना, जिसके कारण अब इस फिल्म का उबरना कठिन होगा।
फिल्म ट्रेड विश्लेषक कोमल नहता के अनुसार शमशेरा की खराब ओपनिंग ने पहले ही से नर्वस हिन्दी फिल्म व्यापार को सकते की स्थिति में डाल दिया है। दुर्भाग्य से बड़ी फिल्म के कलेक्शन बहुत कम हैं!
इस फिल्म के ट्रेलर से ही लोगों में नकारात्मक विचार थे। यह स्पष्ट दिख रहा था कि यह फिल्म कहीं न कहीं पूरी तरह से हिन्दुओं को अपमानित करने के लिए ही बनाई गयी है। अंग्रेजों के समय का काल्पनिक कथानक समस्या नहीं है, समस्या है खलनायक का जो प्रारूप प्रस्तुत किया जा रहा है वह कितना घातक है?
वहीं एक यूजर ने लिखा कि उसने कंगना रनावत की फिल्म की शूटिंग के समय मशीनी घोड़े का दृश्य लीक किया था और कंगना की कड़ी मेहनत पर पानी फेरने की कोशिश की थी। अब वह खुद ही मेकैनिकल घोड़े पर सवारी कर रहा है। अब कोई मीडिया हाउस ऐसा नहीं करेगा?
बाहुबली की रेग्रेसिव अर्थात पिछड़ी राजनीति का प्रत्युत्तर है यह फिल्म?
फर्स्टपोस्ट के अनुसार शमशेरा भारतीयों की जाति व्यवस्था के खिलाफ एक फिल्म है और इसमें जो नायक है वह ऊंची जातियों द्वारा किये जा रहे शोषण एवं अंग्रेजों द्वारा किए जा रहे शोषण के खिलाफ कड़ा संघर्ष करता है। इसमें लिखा है कि मुगलों की छवि हिन्दुओं पर अत्याचारियों के रूप में प्रस्तुत की गयी है, परन्तु अंग्रेजों के आने के बाद समकालीन सामाजिक-राजनीतिक विमर्श में वह हममें से ही एक हो गए। यह दरअसल वह झूठ है जो कथित प्रगतिशील और वामपंथी लेखक साहित्य में दिखाते हुए आए हैं और इसी के आधार पर पाठ्यपुस्तकों तक में विमर्श बनाए गए हैं, जबकि इतिहास एकदम अलग है!
इसमें यह भी लिखा है कि उच्च जातियों की क्रूरता दिखाने के चक्कर में यह फिल्म अंग्रेजों के प्रति बहुत ही विनम्र है, शायद इसलिए क्योंकि यदि दोनों को ही एकसमान दिखाने से इस स्क्रिप्ट में और भी अधिक जटिलता हो जाती, जो अभी है!

इस समीक्षा में “जाति” की क्रूरता दिखाने के लिए यशराज फिल्म की प्रशंसा की गयी है और यह कहा गया है कि यह बहुत साहस का काम है। और इसमें यह भी कहा गया है कि “बाहुबली की रेग्रेसिव अर्थात पिछड़ी राजनीति के सामने खड़ी होती है!”
यहाँ पर यह ध्यान देने योग्य बात है कि आखिर बाहुबली में क्या रेग्रेसिव है? क्या पिछड़ापन है? क्या उसमें हिन्दू वीरता और महादेव को कंधे पर उठाकर स्थापित करना आदि दिखाया है, उससे समस्या थी? हिन्दू देवों का पूजन एवं हिन्दू चेतना की बात करना रेग्रेसिव अर्थात पिछड़ा कैसे हो सकता है? इसका अर्थ यह है कि इस फिल्म को जानबूझकर ही हिन्दुओं को और विशेषकर पंडितों को नीचा दिखाने के लिए और उनकी छवि खराब करने के लिए बनाया गया है जैसा फर्स्टपोस्ट की समीक्षा पढ़कर पता चलता है!

जिसे जबरन बनाकर स्थापित किया जाता है, वह सहज नहीं होता है और उसे जनता नकार देती है, जैसा शमशेरा को नकार रही है। और उसके शो कैंसल हो रहे हैं:
बॉलीवुड हिन्दू समाज के प्रति इतना दुष्ट और खल कैसे हो सकता है कि वह उसके विघटन को लेकर जबरन प्लाट लेकर फिल्म बनाए जिससे कि बैलेंस किया जा सके क्योंकि केसरी फिल्म में समुदाय विशेष को बुरा दिखाया गया है। क्या केसरी में जो घटनाएं दिखाई गयी हैं, वह काल्पनिक हैं? क्या कश्मीर फाइल्स में जो घटनाएं दिखाई गयी हैं वह काल्पनिक हैं? आखिर इन दोनों फिल्मों में ऐसा क्या था कि जनता जुड़ गयी और आलोचक नहीं?
क्योंकि यह दोनों ही फ़िल्में सत्यता पर आधारित हैं, इनमें बैलेंस करने के लिए एजेंडा नहीं है! उनमे तथ्य हैं, पीड़ा है!

बॉलीवुड हिन्दुओं को नीचा दिखाकर इतिहास के साथ बैलेंस बनाता है और इतिहास को अपनी बेसिरपैर की फिल्मों के माध्यम से प्रभवित करने का कुचक्र रचता है जैसा अभी तक करता आया था, जैसा मुग़लए आजम में किया, जैसा जोधा अकबर में किया और जैसा कश्मीर से जुडी तमाम फिल्मों जैसे फिज़ा, मिशन कश्मीर और फना या फिर हिन्दू आतंकवादी दिखाते हुए फराह खान की मैं हूँ न, और दिलजले फिल्म!
इस समय जब पूरा भारत यह देख रहा है कि खलनायक कौन है और वह कौन से विचार हैं जो सिर तन से जुदा के नारे लगाकर सिर वास्तव में काट रहे हैं और उस समय पर “बैलेंस” बनाने के लिए फिल्म में खलनायक शिखाधारी दिखाया जा रहा है!
यही कारण है कि जनता बॉलीवुड से दूर हो रही है, लोग फिल्म को फ्लॉप कह रहे हैं:
यह भारत का दुर्भाग्य है कि हिन्दू घृणा और हिन्दू समाज में विघटन वाले एजेंडा वाली फ़िल्में जानबूझकर बनाई जाती हैं और जबरन उन्हें हिट भी कराने के लिए पीआर एक्सरसाइज की जाती हैं!