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Friday, April 26, 2024

म्युज़िक कम्पनी सारेगामा झुकी, “मधुबन वाले गाने” को तीन दिन में बदलने के लिए कहा, पर गाने पहले भी हिन्दू विरोधी बनते रहे हैं!

म्युज़िक कंपनी सारेगामा ने अपने नए गाने पर बढ़ते विरोध को देखते हुए कहा है कि वह गाने के बोल बदलेगी और वह तीन दिनों के भीतर नए गाने से पुराने गाने को बदल देगी। यह निर्णय उसने हिन्दू समाज द्वारा बढ़ते हुए विरोध के कारण लिया। हिन्दू समूह और सोशल मीडिया उपयोगकर्ता इस गाने पर प्रतिबन्ध की मांग कर रहे थे।

यह गाना हिन्दुओं की आराध्य राधा रानी पर है। मथुरा वृन्दावन के संतों में इस गाने को लेकर बहुत आक्रोश था और अभी तक बना हुआ है। शायद यही कारण है कि co कंपनी ने गाने को लेकर एक वक्तव्य जारी किया है, जिसमें लिखा है कि

“अपने देश वासियों की भावनाओं का ध्यान रखते हुए, हम इस गाने के बोल बदलेंगे और मधुबन गाने का नाम भी बदलेंगे।”

हालांकि गाने के बोल बदलने की बात शायद गुस्सा शांत करने के लिए कही है या फिर मध्यप्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम mishraमिश्रा द्वारा दी गयी चेतावनी? क्योंकि सारेगामा ने twitter पर अपना कवर तो मधुबन ही बना रखा है।

गानों के माध्यम से हिन्दू भावनाओं को आहत करने का इतिहास आज का नहीं है। राधा जी का नाम भी अब जैसे नाचने वाली के रूप में ही किया जाने लगा है। यह दिमागी अतिक्रमण है।

ऐसा ही एक गाना था “शूट आउट एट “लोखंडवाला”! यह एक शूटआउट की कहानी है, परन्तु उसमें एक गाना है

“ए गनपत चल दारू ला!”

गनपत सभी जानते हैं कि गणपति अर्थात प्रथम पूज्य श्री गणेश जी का ही नाम है, परन्तु इस फिल्म के इस गाने में हिन्दुओं के प्रथम पूज्य गणेश जी से दारू मंगवाई गयी थी।

ऐसे एक नहीं कई गाने हैं, जिन्होनें बार बार हिन्दू आस्था को चोट पहुंचाई।

अभी इस शब्द के लिए तो इतना गुस्सा भड़क रहा है, इसलिए गाना शायद बदला भी जाए, नहीं तो कई ऐसे शब्द हिन्दुओं के दिमाग में भरे जा रहे हैं, जो हिन्दुओं के अस्तित्व के लिए ही घातक हैं। जैसे एक शब्द है, जो हिन्दुओं के अस्तित्व को ही कठघरे में खड़ा करता है, और वह है काफिर!

जिसके विषय में नुसरत फ़तेह अली खान गाते हैं कि

“कुछ तो सोचो मुसलमान हो तुम,

काफिरों को न घर में बिठाओ,

लूट लेंगे ये ईमां हमारा,

इनके चेहरे से गेसू हटाओ!

हालांकि कुछ लोग कहते हैं कि इस कव्वाली को गलत अर्थ में लिया जा रहा है, परन्तु फिर एक और कव्वाली है जिसमें वह हैदर की तलवार की कसीदे पढ़ रहे हैं और गा रहे हैं

“जरा सी देर में मैदान भरा काफिर की लाशों से!”

हैदर की तलवार को दस लाख से अधिक लोग सुन चुके हैं!

और इसी काफिर शब्द को हिन्दुओं के बीच अत्यंत आम बनाकर पेश किया गया है, जैसे

“मैं काफिर तो नहीं

मगर ऐ हसीं

जब से देखा मैंने तुझको

मुझको बंदगी आ गयी”

काफिर का अर्थ है किसी ऐसी चीज़ या इंसान से है जिसका इस्लाम में विश्वास नहीं है, अत: एक गाया है, “ओ हसीना जुल्फों वाली जाने जहाँ, ढूंढती है काफिर आँखें किसका निशाँ!”

आँखें कैसे काफिर हो सकती हैं? पर काफिर आँखें हैं, न, वह डांसर गाती है कि शमा को जलाकर जो छिप गया है, यह काफिर आँखें उसे खोज रही हैं!

काफिर का अर्थ है जिस पर विश्वास न किया जा सके, और काफिर शब्द को बार बार उन गानों में प्रयोग किया गया है, जो आसानी से याद होने वाले हैं, जैसे इश्क फिल्म का एक गाना था, नींद चुराई मेरी तूने ओ सनम उसमें एक लाइन है “दिल का भरोसा क्या है दिल तो काफिर है!”

ऐसी ही एक फिल्म थी तीस मार खां उसमें भी एक गाना था वल्ला रे वल्ला,, उसमें एक पंक्ति थी

“काफिर झुक जाए, दर पे फरमाए मुझसे तू ही है बंदगी!”

अर्थात काफिर (हिन्दू) मेरे दरवाजे पर आकर झुकता है और कहता है कि मैं तुम्हारा गुलाम हूँ!

हिन्दू देवी देवताओं का अपमान और काफिर का महिमामंडन इस हद तक हिन्दुओं को बेचा गया है कि भीतर से उनके द्वारा बहुत विरोध सहज हो ही नहीं पाता था, क्योंकि हिन्दुओं से यह कहा जाता था कि “आपका तो दिल और परम्परा बहुत विशाल है, आप लोग क्षुद्र नहीं हैं”

पर इस विशालता का सबसे बड़ा दुष्परिणाम यह हुआ कि हिन्दुओं के देवी देवताओं के प्रति अतिरिक्त स्वतंत्रता तो ली ही जाने लगी, बल्कि इसके साथ काफिर, कुफ्र, जैसे शब्दों के प्रति उसके दिल में एक सहजता उत्पन्न कर दी, जो शब्द दरअसल उसका सबसे बड़ा शत्रु है। इस्लाम में काफिर की परिभाषा क्या है, यह अब आकर सभी को पता चल गयी है, और वह भी स्वयं जाकिर नाइक जैसे लोगों के माध्यम से।

समय विरोध करने का ही है, क्योंकि एकतरफा सहिष्णुता दुर्बलता का दूसरा नाम है

सारेगामा कंपनी दवारा उठाया गया यह कदम कब क्रियान्वित होगा, यह भी देखना होगा! और सामूहिक स्तर पर विरोध करते रहना होगा, क्योंकि एक तरफ़ा विशालता और एकतरफ़ा सहिष्णुता अधिक दिनों तक नहीं चल सकती है!

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