चुनाव हर पार्टी का चेहरा बड़े ही पारदर्शी रूप से जनता के समक्ष दिखाता है। वह यह भी समझाता है कि जो लोग आज आप से धर्मनिरपेक्ष रहने की बात कह रहे हैं, उन्होंने अतीत की सीढ़ियों पर ऐसे फैसले लिए थे जिन्हें न तो भुलाया जा सकता है और न ही मिटाया जा सकता है। ऐसा ही कुछ हिन्दुओं के प्रति अटपटे व्यवहार का इतिहास जुड़ा है समाजवादी पार्टी के साथ।
उत्तर प्रदेश में कुछ ही पार्टियों ने अपना दबदबा जैसे का तैसा रखा है, जिनमें से एक है समाजवादी पार्टी। इसके साथ ही 2022 में आयोजित हो रहे उत्तर प्रदेश चुनाव में मुख्य दो पार्टियों में कांटे की टक्कर होने का अनुमान राजनीतिक विश्लेषक जता चुके हैं। भारत की राजनीति में चुनावों में धर्म न आए, ऐसा नहीं हो सकता। और समाजवादी पार्टी का कथित अल्पसंख्यक प्रेम जगजाहिर है, ऐसा इसलिए क्योंकि पार्टी का वोटबैंक इसी एक विषय पर निर्भर करता है। पार्टी के विषय में मुस्लिम+यादव का फैक्टर ही मायने रखता है, ऐसा जानकार बताते हैं और यही कारण है कि हाल ही में कर्नाटक के उडुपी से शुरू हुए हिजाब विवाद की गूंज उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में सुनना इसका एक ताजा उदाहरण है।
इसके साथ जैसे-जैसे चुनाव अपने अंतिम दौर में प्रवेश कर रहा है वैसे-वैसे समाजवादी पार्टी का समुदाय विशेष के प्रति प्रेम उमड़-उमड़ कर सबके सामने आ रहा है। परन्तु इस बार यह विशेष बात है कि इफ्तारी दावतें गायब हैं, और अखिलेश दरगाहों के स्थान पर मंदिरों में जा रहे हैं एवं भगवा वस्त्रधारियों के साथ स्वयं को दिखा रहे हैं!
परन्तु क्या उनके इस प्रकार भगवा के निकट दिखाने से लोग वह सब घाव भूल जाएंगे जो उन्होंने और उनके पिता ने समाजवादी पार्टी के पिछले कार्यकालों में हिन्दुओं को धार्मिक आधार पर दिए थे? पाठकों को यह स्मरण होगा कि समाजवादी पार्टी पर हिन्दुओं की भावनाओं को लेकर तब से ही प्रश्न चिन्ह खड़ा हो गया था, जब सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने शांति से प्रदर्शन कर रहे कारसेवकों पर गोलियां चलाने का आदेश दिया था, और बाद में यह कहते हुए खेद व्यक्त किया था कि वह मुस्लिमों की रक्षा कर रहे थे। प्रत्यक्षदर्शी बताते हैं कि सरकारी आंकड़े से विपरीत इस गोलीकांड में मरने वालों की संख्या सैंकड़ों में थी।
हाल ही में एक स्टिंग में भी इस सम्बन्ध में कई खुलासे हुए थे।
मुरादाबाद में कांठ में लाउडस्पीकर मामला
अब जब चुनाव छठवें चरण की ओर बढ़ रहा है तो रह रह कर कई मामले स्मृति में कौंध रहे हैं, जिनमें एक घटना है, तुष्टिकरण के उस चरम की, जो समाजवादी पार्टी में ही हो सकता था। और जिसमें हाल ही में निर्णय आया है और भाजपा विधायक रितेश गुप्ता समेत सभी आरोपी बरी हो गए हैं. यह घटना हुई थी वर्ष 2014 में. जब मुरादाबाद में कांठ थाना क्षेत्र में गाँव लगे लाउड स्पीकर को उतारने के लिए सरकार की मशीनरी लग गयी थीं।
अमर उजाला के अनुसार
“लगभग सात साल पहले मुरादाबाद जनपद के कांठ थाना क्षेत्र अकबरपुर चैंदरी में मंदिर पर लाउडस्पीकर बजाने को लेकर दो पक्षों में विवाद हो गया था। उस वक्त प्रदेश में सपा की सरकार थी और अखिलेश यादव मुख्यमंत्री थे। दोनों पक्षों की लिखित सहमति के बाद पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों ने मंदिर से लाउडस्पीकर उतरवा दिए थे। जिसके विरोध में भाजपा की ओर से कांठ में महापंचायत बुलाई गई थी। महापंचायत को रोकने को लेकर पुलिस और भाजपाइयों में भिड़ंत हो गई थी, जिसमें जमकर बवाल हुआ था। तत्कालीन डीएम समेत कई अन्य घायल हो गए थे।“
मंदिर से लाउडस्पीकर हटाने को लेकर ही विवाद आरम्भ हुआ था। तब सपा की सरकार थी और मंदिर से लाउडस्पीकर हटवाने का आदेश सरकार द्वारा दिया गया था। उसके उपरान्त हिन्दू और मुस्लिम दोनों समुदायों के बीच समझौता हुआ था, परन्तु इस मामले में बाद में महापंचायत बुलाई गयी थी। इसमें भारतीय जनता पार्टी के कई नेता शामिल हुए थे और जिसमें भारतीय जनता पार्टी के नेताओं पर आरोप लगा था कि उन्होंने ही लोगों को भड़काया है!
जनवरी 2022 में इस मामले का निर्णय आया, जिसमें कोर्ट ने इस मामले में सभी 72 आरोपियों को दोषमुक्त कर दिया और बाइज्जत बरी कर दिया था।
डिम्पल यादव हाल ही में कर चुकी हैं भगवा रंग का अपमान
आपको यह भी बताते चलें कि हालही में समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव ने भगवा रंग को लेकर विवादित बयान दिया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि “ये बताइए कि जंग का रंग क्या होता है? जब लोहे में जंग लग जाती है तब उसका रंग क्या होता है, मुझे लगता है जिस रंग के हमारे मुख्यमंत्री कपड़े पहनते हैं उसी रंग का है।”
उनके इस बयान पर हिन्दू धर्म गुरुओं ने कड़ी आपत्ति दर्ज करवाई है। अयोध्या के महंत परमहंस दास ने समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव की तुलना शूर्पणखा से की है। जिससे आम जनता में काफी नाराजगी दिख रही है।
देखना होगा कि जनता इन सब पर कैसी प्रतिक्रिया देती है!