ज्ञानवापी में चल रहे मामले को लेकर नित ही नए दृष्टिकोण सामने आ रहे हैं। जहाँ ऐसे लोग विरोधाभासी वक्तव्य दे रहे हैं, जिनपर हिन्दू धर्म को मानने वाले लोग बहुत ही अधिक विश्वास करते हैं। कई ऐसे लोग कथित रूप से दिल तोड़ने वाली बातें कर रहे हैं, जिनके लिए लगभग पूरा हिन्दू समुदाय उन लोगों का उपहास झेलता है, जो हिन्दू धर्म का अपमान करते हैं। और अंत में आकर वह ही कुछ ऐसा कर देते हैं जिससे हिन्दुओं की आस्था अपमानित होती है।
ऐसे ही हैं सद्गुरु! सद्गुरु अपने शिवरात्रि उत्सव में भी अली मौला गाने की अनुमति देकर और उसे अपने आयोजन का हिस्सा बनाकर हिन्दुओं के निशाने पर आए थे। सद्गुरु के इस कार्य के चलते ही लोगों ने उनकी जमकर आलोचना की थी और सोशल मीडिया पर उनका विरोध किया था।
अब सद्गुरु ने एक और ऐसी बात कह दी है जो हिन्दुओं को चुभने वाली है, एक ऐसी बात जो हिन्दुओं के पक्ष में नहीं है। ज्ञानवापी परिसर में जहाँ पर हिन्दू पक्ष का दावा है कि महादेव हैं, जहाँ पर हिन्दू पक्ष कह रहा है कि महादेव हैं, और अब उन्हें पूजा का अधिकार मिलना चाहिए तो वहीं सद्गुरु ने यह कहकर लोगों को निराश कर दिया है कि हजारों मंदिर तोड़े गए थे। लेकिन तब उन्हें नहीं बचाया जा सका। अब उस बारे में बात करने का कोई फायदा नहीं क्योंकि इतिहास को कभी फिर नहीं लिखा जा सकता। आजतक के अनुसार उन्होंने हालांकि ज्ञानवापी परिसर के विषय में टिप्पणी करते हुए यह कहते हुए इंकार कर दिया कि वह इस मामले में अपडेटेड नहीं है।
परन्तु इससे पूर्व उन्होंने यह भी कहा कि हजारों मन्दिर तोड़े गए थे, लेकिन तब उन्हें बचाया नहीं जा सका था, और अब उस विषय में बात करने का कोई लाभ नहीं क्योंकि इतिहास को कभी फिर से नहीं लिखा सकता। उन्होंने कहा कि दोनों समुदायों को साथ बैठकर फैसला लेना चाहिए किन दो तीन जगहों को लेकर विवाद है, फिर सभी का एक साथ एक बार में ही समाधान निकाल लेना चाहिए। एक बार में सिर्फ एक विवाद पर मंथन कर विवाद को बढ़ाने का कोई फायदा नहीं है। कुछ लेना कुछ देना जरूरी रहता है। इसी तरीके से कोई देश आगे बढ़ सकता है। हर विवाद को सिर्फ हिंदू-मुस्लिम के चश्मे से देखने की जरूरत नहीं है!
और इस बयान के बाद एक बार फिर से सद्गुरु लोगों के निशाने पर आ गए हैं। हालाँकि अब यह कहा जा रहा है कि सद्गुरु ने यह कहा कि जो भी दो तीन “आइकोनिक” स्थान हैं, उन पर बातचीत से हल निकाल लेना चाहिए।
यही बात हिन्दुओं की ओर से पहले भी कही जाती रही है कि अयोध्या, काशी और मथुरा पर मुस्लिम यह मानें कि जबरन अधिकार करे बैठे हुए हैं और काशी और मथुरा के जो पूजा स्थल हैं वह वापस कर दें! परन्तु ऐसा नहीं होता दिख रहा है। बल्कि उसके स्थान पर ज्ञानवापी परिसर में जब हिन्दू पक्ष ने दावा किया कि उन्हें बाबा दिखे तो मुस्लिम पक्ष ने कहा कि वह वुजुखाने का फुव्वारा है। और उसके बाद मुस्लिम एवं कथित लिबरल हिन्दू वर्ग ने को महादेव को अपमानित करने के लिए किया, वह पूरी दुनिया ने देखा और हमने यह भी देखा कि कैसे निकृष्टतम उपहास उड़ाए गए।
यहाँ तक कि इकॉनोमिक टाइम्स तक ने हिन्दुओं को अपमानित करने वाला meme प्रकाशित किया था
परन्तु हिन्दुओं को बार बार यह ज्ञान देने वाले लोग कि हर मामले को हिन्दू मुसलमान नहीं करना चाहिए, किसी भी मुद्दे पर हिन्दुओं के साथ पूरी तरह से नहीं आते हैं। सद्गुरु यह भूल जाते हैं कि जिन पूजा स्थलों को पूर्व में नहीं बचाया जा सका, हिन्दू धर्म के अनुसार उनका धार्मिक स्वभाव अभी भी मंदिर ही है। किसी भी अतिक्रमण से मंदिर मस्जिद नहीं हो जाता है।
आज जब हिन्दू धर्म के लोग उस इतिहास की परत को तोड़कर अपनी वास्तविक चेतना में जाने की प्रक्रिया में है जिसे बचपन से ही नहीं बल्कि कई पीढ़ियों से घुट्टी में वामपंथियों द्वारा पढ़ाया जा रहा है, जिसमें जानबूझकर हिन्दुओं को नीचा दिखाया जाता तो, ऐसे में सद्गुरु जैसों का उत्तरदायित्व है कि वह उस चेतना के विस्तार में सहायक बनें और उन धार्मिक स्थलों की और बातें करें जिन्हें तोड़कर मस्जिद बनाई गयी है।
परन्तु वह ऐसा नहीं कर रहे हैं! वह उन घावों को ढाकने की बात कर रहे हैं, जबकि आवश्यकता अभी घावों के उपचार की है। कोई भी धार्मिक चेतना का व्यक्ति यह कह ही नहीं सकता कि उस समय मंदिरों को बचाया नहीं जा सका था तो अब उन्हें भुला दिया जाए, क्योंकि आक्रान्ता समुदाय को बुरा लगेगा?
यह सलाह कोई आक्रान्ता समाज को अपना आदर्श मानने वाले मुस्लिम समुदाय को कोई नहीं दे रहा कि भाई तुम्हारे पुरखों ने उन्हीं आतताइयों के कारण अपना धर्म बदल लिया था, जिन्होनें इन मन्दिरों को तोड़कर मस्जिद बनाई। इन मस्जिदों को मंदिर ही होना चाहिए।
पुरी पीठ के शंकराचार्य ने कहा है कि आक्रांताओं द्वारा विकृत किए गए हमारे हिंदू देवस्थानों को वापस प्राप्त करना हमारा शाश्वत अधिकार है।
जहाँ एक ओर सद्गुरु जिन्हें लोग आधुनिक धर्म रक्षक आदि आदि कहते हैं, वह हिन्दुओं को अपनी पीड़ा को स्थाई बनाने के लिए कह रहे हैं तो वहीं पुरी पीठ के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद महाराज जी हिन्दुओं की पीड़ा को समझते हैं। वह यह स्पष्ट कहते हैं कि आक्रान्ताओं द्वारा विकृत किए गए हमारे हिन्दू देव स्थानों को वापस लेना हमारा शाश्वत अधिकार है।
पश्चिम बंगाल में दीक्षा कार्यक्रम के मध्य उन्होंने यह बातें कहीं उन्होंने कहा कि ज्ञानवापी में तो नींव को देखने से ही पता चलता है कि वहां पर मंदिर के चिन्ह मौजूद हैं। उन्होंने कहा कि यह सबका दायित्व है कि हमारे उन देवस्थानों को वे हमें वापस सौंपे और हमें (हिंदूओं) उन स्थानों पर अपने प्रभुत्व का पूर्ण अधिकार प्राप्त हो।
यह दो वक्तव्य यह स्पष्ट करने के लिए पर्याप्त है कि हिन्दू धर्म के लिए किस प्रकार की सलाह धार्मिक चेतना को बनाए रखने के लिए आवश्यक है। कम से कम यह बात और मुखरता से होनी चाहिए कि हिन्दुओं के मंदिरों को कब कब और किसने मस्जिदों में बदला, नहीं तो एक दिन ऐसा भी आ सकता है कि जब इन आक्रान्ताओं को ही कोई पीर बनाकर उनकी शान में ही मंदिरों में कव्वाली करवा दें!