असहिष्णुता की बात आते ही एक बड़ा वर्ग तलवार तानकर खड़ा हो जाता है, और कहता है कि इस सरकार में या कहें हिन्दुओं में असहिष्णुता बढ़ गयी है। यह असहिष्णुता बहुत ही कमाल चीज़ होती है, हिन्दुओं का जरा सा विरोध असहिष्णुता हो जाता है और कट्टर मुस्लिम और वामपंथी कुछ भी करते रहे, कितना भी लोगों को वैचारिक रूप से लिंच करते रहें, यह लिंचिंग नहीं होती है। वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता होती है और इस दायरे में वह सभी लोग आते हैं, जो या तो हिंदुत्व के या फिर इस सरकार के हिन्दू रूप के समर्थक हैं।
खैर, इस बार इस असहिष्णु गैंग का शिकार बनी हैं, रुबिका लियाकत! रूबिका लियाकत से घृणा हालांकि नई नहीं है और वह समय समय पर फूटती रहती है। इस बार उनके साड़ी पहने हुए गेटअप पर लोगों की घृणा निकली है। यह ध्यान रहे कि यह वही वर्ग है जो औरतों को परदे में बंद करना चाहता है, उन्हें काले तम्बू में बंद करना चाहता है और साड़ी पहनने पर रोक लगाना चाहते हैं।
रूबिका लियाकत ने 5 मार्च को साड़ी, बिंदी और गजरे में अपनी एक तस्वीर ट्विटर पर पोस्ट की और लिखा कि
“लोग क्यों सोचते हैं कि जब एक महिला पूरी तरह से तैयार है और सजीधजी है, तो उसे ड्राइवर की सीट पर नहीं होना चाहिए ।।। कोई गलती न करें, स्टीयरिंग हमेशा आपके हाथ में होनी चाहिए चाहे आप तैयार हों या नहीं
अब इस ट्वीट पर लोगों की घृणा और नफरत उछल उछल कर बाहर आने लगी। दरअसल रूबिका से इनकी नफरत इस कारण भी है क्योंकि रूबिका लियाकत ने उनके इस एजेंडे में इनका साथ देने से इंकार कर दिया था, जो वह लड़कियों के लिए बना रहे थे। उन्होंने बुर्के वाले एजेंडे में फंसने से इंकार कर दिया था। रूबिका ने कहा था कि
मैं हैरान हूँ इनके डबल स्टैंडर्ड से।।औरतों के हक़ की डफली बजाने का ढोंग करने वाली ये सारी ख़ालाएँ अपने पर्दे, हिजाब, बुर्का दुपट्टा सब पीछे छोड़ चुकी और आज लड़कियों को आगे लाने के बजाए पीछे ढकेल रही हैं।।solidarity स्वाँग रच रही है ताकि इनका एजेंडा चलता रहे।। #HijabNahiKitaabDo
इस गैंग के निशाने पर हर वह मुस्लिम महिला रहती है जो बार बार यह कहती है कि मुस्लिम औरतों को कट्टरपंथ से मुक्ति चाहिए। इनके निशाने पर हर वह मुस्लिम महिला रहती है जो आजादी की बात करती है। रूबिका को न जाने क्या क्या सुनाया गया और रूबिका को आरएसएस और भाजपा का एजेंट तक बोला गया था। यहाँ तक कि यह भी कह दिया गया था कि इस्लाम पर वह कुछ न बोलें।
और अब जैसे एक नया अवसर मिला और उन्होंने रूबिका को अपनी नफरत का शिकार फिर से बना लिया। एक यूजर ने कहा कि अपनी मर्जी से साड़ी पहनती है, परन्तु अपनी मर्जी से कोई पर्दा करे तो मैडम को आग लगती है
लोगों ने उनके फोटो के साथ छेड़छाड़ भी की
सारा अली खान भी होती रहती हैं इसका शिकार:
ऐसा नहीं है कि यह घृणा केवल रूबिका तक ही है। उनकी इस घृणा का शिकार सारा अली खान भी बनती रहती है। सारा अली खान ने अभी हाल ही में शिवरात्रि की शुभकामनाएँ दी थीं। उन्होंने महादेव के मंदिर में बैठकर माथे पर चन्दन आदि लगाकर फोटो खिंचवाई और फिर उसी फोटो के आधार पर उन्होंने शिवरात्रि की शुभकामनाएं दीं।
फिल्मफेयर ने यह ट्वीट किया था:
उसके बाद लोगों ने इस ट्वीट पर कहना आरम्भ कर दिया कि यह शिर्क है, सारा असली मुसलमान नहीं हैं।
फिल्मों के साथ साथ कथित अकादमिक वर्ग में भी जो बातें कहीं जाती हैं, उनके अनुसार यदि कोई शांतिपूर्ण मजहब है तो वह केवल और केवल इस्लाम है, यदि किसी ने कला का निर्माण किया तो वह इस्लाम है और यदि किसी ने संगीत बनाया तो वह इस्लाम है। और असलियत में उसमे कितना कट्टरपंथ है, वह कभी रूबिका लियाकत तो कभी सारा अली खान पर हुई टिप्पणियों को देखकर पता लग जाता है।
एक यूजर ने लिखा कि “लिबरल बॉलीवुड और लुटियन पत्रकारों द्वारा बताती सबसे सबसे सेक्युलर कम्युनिटी सारा को केवल मंदिर जाने पर ही धमकी दे रही है:
यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य है कि बार बार हिन्दुओं की आस्था को अपमानित किया जा सकता है, हिन्दुओं को मारने वाले लोग, भारत माता को डायन कहने वाले लोग कथित अल्पसंख्यकों के नायक होते हैं, परन्तु हिन्दू आस्था को सम्मान देने वाली सारा अली खान या मुस्लिमों की कट्टरपंथिता पर प्रहार करने वाली रूबिका हर बार इन कट्टरपंथी मुस्लिमों के निशाने पर होती हैं।
इसका अर्थ क्या है? इसका अर्थ क्या हो सकता है? क्या इसका अर्थ इतना ही है या फिर इसका अर्थ इससे कहीं हटकर है? क्या इसका उद्देश्य उन्हें ही चुप कराना है या फिर और कुछ है इसका उद्देश्य?
हिन्दू घृणा मूल में है
जब भी सारा अली खान या रूबिका लियाकत को इस बात के लिए निशाना बनाया जाता है कि उन्होंने हिन्दू धर्म की पहचान को धारण किया है, तो आप उस घृणा को अनुभव कर सकते हैं, जो यह वर्ग हिन्दुओं से करता है। यह घृणा साधारण नहीं है। यह घृणा हिन्दुओं के अस्तित्व तक से घृणा है। परन्तु इस घृणा को जस्टिफाई भी किया जता है। इस घृणा को यह कहकर सही ठहराया जाता है कि यह कुछ कट्टरपंथियों का काम है, या फिर अब यह कहा जाने लगा है कि इस्लाम तो शान्ति ही फैलाता है, परन्तु यह तो कुछ लोग है जो इस सरकार से चिढ़े हैं, तो उनके निशाने पर सारा और रूबिका जैसी लडकियां आ जाती हैं।
परन्तु मात्र हिन्दू पहचान के चिन्ह धारण किए जाने से ही जब कट्टरपंथियों की नफरत इस सीमा तक बाहर आती है तो यह समझा जा सकता है कि वह हिन्दुओं से कितनी घृणा करते होंगे। लगभग हर रोज ही मुस्लिम “गौ-माता”, “गौ-मूत्र” आदि कहकर हिन्दुओं को उकसाते हैं। जबकि यह बात पूरी तरह से सत्य है कि जब तक गाय आधारित अर्थव्यवस्था थी, तब तक भारत अर्थव्यवस्था में सिरमौर था। जब से गाय खाने वाले आए, और गाय को मात्र एक पशु मानकर उसका दोहन किया जाने लगा, उसके बाद भारत की अर्थव्यवस्था कैसी हुई?
जब भी रूबिका या सारा पर इस कारण से हमला हो कि वह हिन्दू पहचान प्रतीकों को धारण किये हुए हैं, तो आपको यह समझ जाना चाहिए कि कट्टरपंथी मुस्लिमों की हिन्दू घृणा की सीमा किस सीमा तक है!