भारत में वामपंथी फेमिनिस्ट अधिकतर इसी बात पर रोती हुई दिखाई देती हैं कि बहनापा नहीं है। अर्थात सिस्टरहुड की अवधारणा नहीं है। हिंदी साहित्य में कुछ वरिष्ठ लेखिकाएं हैं, जो उस फेमिनिज्म को खरीदने से इंकार कर देती हैं, जो कथित नई पीढ़ी की लेखिकाएँ बेचती हैं। उस पर यह कहा जाता है कि “औरत ही औरत की दुश्मन है!”
परन्तु बहनापा क्या है, इस परिभाषा को आज तक कोई प्रमाणित नहीं कर सका है। दरअसल बहनापा अत्यंत ही संकुचित शब्द है, जिसमें मात्र वही वामपंथी औरतें इनके साथ इस समय रह सकती हैं, जिनमें दो तीन विशेषताएँ होनी चाहिए। एक तो वह पूरी तरह से हिदू विरोधी होनी चाहिए, एवं दूसरी वह भाजपा और विशेषकर मोदी एवं योगी विरोधी होनी चाहिए।
ऐसी ही एक कट्टरपंथी इस्लामी पत्रकार हैं राना अयूब, जो लिब्रल्स की बहुत प्रिय हैं, मोदी, योगी एवं अमित शाह की विरोधी हैं, कट्टर मुस्लिम हैं, एवं हिन्दुओं से दिल से नफरत करती हैं। राना अयूब वैसे तो मोदी और अमित शाह की विरोधी मानी जाती हैं, परन्तु वह अपने ही उन लोगों की विरोधी भी हैं जो तालिबान की हिंसा में मारे जा रहे हैं। जैसे उनके दोस्त दानिश सिद्दीकी, जो तालिबान की गोलियों का शिकार हुए थे, उनके मारे जाने पर भी राना अयूब ने यह नहीं कहा था कि उन्हें तालिबान ने मारा, बल्कि राना ने कहा था कि “दानिश, भाई तुम बहुत जल्दी हमें छोड़ गए!”
आज राना अयूब की बातें क्यों?
परन्तु बहनापे और इंसानियत की बात करने वाली फेमिनिस्ट ने इस बात का विरोध नहीं किया कि आखिर आप लोग उन लोगों का विरोध क्यों नहीं कर रहे, जिन्होनें आपके दोस्त को गोली मारी है?
अभी हम राना अयूब के विषय में क्यों बात कर रहे हैं क्योंकि कल राना अयूब को लंदन जाने से रोक दिया गया। कल रात को राना अयूब का ट्वीट आया कि उन्हें मुम्बई से लंदन की उड़ान नहीं लेने दी गयी। जबकि उन्हें ‘भारतीय लोकतंत्र पर भाषण देने के लिए बाहर जाना था।
उन्होंने लिखा कि “मुझे मुम्बई इम्मीग्रेशन पर देश से बाहर जाने से रोक दिया गया। मुझे भारतीय लोकतंत्र पर भाषण देने के लिए बाहर जाना था, और मैंने इस की घोषणा कई दिन पहले कर दी गयी थी, फिर भी मुझे ईडी का समन तब भेजा गया,, जब मुझे रोका गया!”
राना अयूब को क्यों रोका गया
अब प्रश्न यह उठता है कि राना अयूब को रोका क्यों गया? क्या उन्हें इसलिए रोका गया क्योंकि वह प्रधानमंत्री या गृह मंत्री के विरोध में बोलती हैं या लिखती हैं? या वह बहुसंख्यक हिन्दुओं की भावनाओं को ठेस पहुंचाती हैं? या फिर और कुछ कारण है? यदि ऐसा कुछ होता तो ईडी का सम्मन तो उनके पास नहीं जाता?
उन्हें देश से बाहर जाने से इसलिए रोक दिया गया है क्योंकि उनके विरुद्ध ईडी ने “लुकआउट नोटिस” जारी किया है! अब यह लुक आउट नोटिस क्यों जारी हुआ है? उन्होंने ऐसा क्या किया है? और क्या उनके इस कार्य पर इंसाफ के लिए लड़ने वाले फेमिनिस्ट जगत में कोई हलचल हुई थी?
दरअसल राना अयूब पर कोविड, बाढ़ राहत और प्रवासियों के लिए दान लिए गए धन का व्यक्तिगत मदों पर व्यय करने का आरोप है। उन पर आरोप है कि उन्होंने जिन उद्देश्यों के लिए यह पैसा लिया था, उसे उन मदों पर खर्च नहीं किया। राना अयूब के विरुद्ध 10 सितम्बर को शिकायत और मनी लौंड्रिंग की शिकायत दर्ज की गयी। और उसके बाद 10 फरवरी को ईडी ने 1।77 करोड़ रूपए उनसे जब्त किए।
राना अयूब ने चंदे के पैसे से अपने पिता के लिए फिक्स्ड डिपोजिट कर लिया था और इतना ही नहीं अपनी बहन के नाम पर भी जमा कर दिए थे।
एक और प्रश्न उठता है कि आखिर ऐसा क्या है कि जिस पर भी आर्थिक हेराफेरी का आरोप होता है, वह लन्दन ही जाता है।
विक्टिम कार्ड खेला जाने लगा है?
वहीं इस घटना को लेकर अब लोगों का विक्टिम कार्ड का खेल आरम्भ हो गया है। पश्चिम का हिन्दुफोबिक मीडिया एकदम से राना के पक्ष में कूद गया है। परन्तु उनका भी विरोध हो रहा है,
भारत में लोग प्रश्न कर रहे हैं कि आखिर जिस पर चंदे के धन की हेराफेरी का आरोप है, उसे विदेश जाने की अनुमति कैसे दी जा सकती है?
लोग कह रहे हैं कि राना को मात्र इसीलिए रोका जा रहा है क्योंकि उसने चंदे के धन में हेराफेरी की है
जहाँ हम देखते हैं कि राना अयूब के पक्ष में फेमिनिस्ट और क्रांतिकारी पत्रकार आ जाते हैं, वहीं पर वह इस बात पर राना अयूब का विरोध करने नहीं आए कि राना अयूब ने जिस काम के लिए पैसे लिए, उस पर खर्च न करके अपने निजी खर्चों पर खर्च कर दिए?
क्या फेमिनिस्ट जिस सिस्टरहुड की बात करती हैं, यह वही भ्रष्टाचारी और वामपंथी एवं कट्टर इस्लामी सिस्टरहुड है, जिसमें चाहे भ्रष्टाचार हो या फिर गंभीर से गंभीर आरोप, यदि वह मोदी, योगी और हिन्दुओं को कोसने वाला है, उसके किसी भी कुकर्म पर बोलना नहीं है!
वामपंथी और कट्टर इस्लामी फेमिनिज्म का रास्ता इतना संकरा क्यों है?