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Thursday, March 28, 2024

इस्लाम न स्वीकारने पर गुरु तेगबहादुर और गोकुल जाट की हत्या करने वाले औरंगजेब की कब्र पर पहुंचे किसान और जाट नेता राकेश टिकैत?

अभी बहुत दिन नहीं हुए थे जब किसान नेता राकेश टिकैत सरदार की पगड़ी बांधे हुए सरदार बने रहते थे। असली सरदार जैसी फीलिंग पैदा करते थे। फिर अचानक से ही वह पहुँच जाते हैं ऐसे इंसान की मजार पर, जिसने न केवल हिन्दुओं का खून बहाया था, बल्कि हर गैर-मुस्लिम को उसने मुसलमान बनाने का कुत्सित प्रयास किया था। और न मानने पर अत्यंत नृशंसता से हत्या कर दी थी! फिर चाहे वह सिख गुरु हों या फिर जाट या फिर मराठा, या ब्राह्मण!

उसने भारत की आत्मा पर सबसे अधिक प्रहार किये थे और वह मुगल इतिहास का सबसे क्रूर बादशाह था। और इतना ही नहीं, उसने सरदारों के नौवें गुरु, गुरु तेगबहादुर की भी सबसे सामने हत्या की थी। अर्थात औरंगजेब! तो ऐसे में यह प्रश्न उत्पन्न होता है कि कल तक सरदार बने हुए राकेश टिकैत आखिर में औरंगजेब की मजार पर क्यों चले गए?

पत्रकार अमीश देवगन ने उनसे प्रश्न किया कि, “किसान औरंगजेब की मजार पे! यह किस लाइन में आ गए आप?”

खुद को जाट नेता कहने वाले राकेश टिकैत यह भूल गए कि गोकुल जाट ने किस प्रकार औरंगजेब का इसलिए विरोध किया था, क्योंकि औरंगजेब ने मथुरा के मंदिरों को तोड़ने का फरमान दिया था। और उन्हें किस प्रकार इसी औरंगजेब ने तड़पा तड़पा कर मारा था?

और साथ ही उनका समर्थन करने वाले भी यह भूल गए कि औरंगजेब किस हद तक गैर मुस्लिमों के प्रति अत्याचार करता था। लोग औरंगजेब की तुलना और कथित पीरों और फकीरों से कर रहे हैं। परन्तु क्या जो लोग औरंगजेब को और मुस्लिमों जैसा बता रहे हैं, वह यह स्थापित करने का प्रयास कर रहे हैं कि “जैसा औरंगजेब था, मने अपने अब्बा को तड़पा कर मारने वाला, अपने भाइयों को मारने वाला, अपने भाई का सिर काटकर अपने अब्बा को भेजने वाला और जाटों को मारने वाला। सिख गुरु तेगबहादुर का सिर कलम करने वाला?”

सिखों के नौवें गुरु श्री तेगबहादुर जी की हत्या – औरंगजेब के आदेश द्वारा

आइये आज पढ़ते हैं जाटों ने किस तरह औरंगजेब का विरोध किया था?

गोकुल जाट का विद्रोह

औरंगजेब ने मथुरा के मंदिर तोड़ने का फरमान शहर के फौजदार अब्दुल बनी खान को दे दिया था कि मंदिर तोड़कर उनके स्थान पर मस्जिदें बना दी जाएं।

मगर उसी समय मठुता में तिलपत तालुका में गोकुल जाट नामक जमींदार थे। उन्होंने आसपास के लोगों को एकत्र किया और विद्रोह के स्वर उठाने आरम्भ कर दिए। और फिर जिसके कारण मुगलों की एक बड़ी सेना उन्हें पराजित करने के लिए निकल पड़ी थी।

गोकुल जाट के नेतृत्व में युद्ध हुआ और फिर मुग़ल सेना और विद्रोही सेना दोनों को ही भयानक जनहानि का सामना करना पड़ा। एक ओर थे मंदिर बचाने वाले तो एक ओर थे लश्कर-ए-इस्लाम के सिपाही। लश्कर-ए-इस्लाम के सिपाहियों को गोकुल जाट के नेतृत्व में हिन्दुओं ने कदम वापस लेने पर विवश कर दिया। परन्तु फिर भी मुग़ल सेना के पास किसी बात की कमी नहीं थी और गोकुल जाट के पास सीमित सेना थी। उन्हें शीघ्र ही तिलपत में शरण लेनी पड़ी।

परन्तु शाही सेना ने वहां भी उनका पीछा किया। और फिर तीन दिनों तक बन्दूकों और गोलाबारूदों की आवाज से वह क्षेत्र कांपता रहा। चौथे दिन मुगल सेना ने उन्हें चारों ओर से घेर लिया, और फिर भयानक युद्ध हुआ। जहाँ गोकुल जाट की ओर से 5000 लोग मारे गए तो वहीं शाही सेना को भी 4000 सैनिकों की हानि हुई।

गोकुल जाट को पकड़ कर ले जाया गया और उसके साथ उसके 7000 साथी भी थे।

उसके बाद जब उन्हें औरंगजेब के सामने प्रस्तुत किया गया तो औरंगजेब ने कहा कि “गोकुल जाट को ऐसी सजा दी जाए कि जिससे कोई भी ऐसा दोबारा करने का साहस न करे। उसके शरीर का एक एक अंग एक- एक करके काटा जाए!”

(फुतुहत-ए-आलमगिरी- पृष्ठ-84)

उनके सैनिकों को भी दंड दिया गया। उन्हें जंजीरों में बांधा गया और फिर कैद किया गया।

कहा जाता है कि जब गोकुल जाट के एक-एक अंग को काटा जाता था तो खून का फुव्वारे निकलते थे। आगरा किले में जहाँ उन्हें मारा गया, उस स्थान का नाम फुव्वारा है!

यह तो थी गोकुल जाट की कहानी, जिन्होनें उस औरंगजेब के सामने घुटने नहीं टेके, जो निर्दोष हिन्दुओं को मरवा रहा था, उनके मंदिर तुड़वा रहा था।

मगर अभी लोग औरंगजेब को महान बताते हैं। औरंगजेब को कबीर के समकक्ष रखते हैं! भारतीय जनता पार्टी का विरोध राजनीतिक रूप से ठीक है, परन्तु उसका विरोध करते हुए अपने ही धर्म के कातिलों के साथ खड़े हो जाना? यह कैसी राजनीति है?

लोगों ने यही प्रश्न ट्विटर पर भी किया कि राकेश टिकैत कभी भी अपने एजेंडा के लिए जाट नेता का कार्ड खेलना नहीं भूलते, मगर फिर भी वह उस औरंगजेब की कब्र पर गए, जिसका विरोध जाट नेताओं ने किया था और जाट हमेशा लड़ते रहे और जीवन बलिदान करते रहे!

वहीं कुछ लोगों ने यह भी कहा कि राकेश टिकैत गुरु तेगबहादुर के कातिल की दरगाह में गए हैं, तो किसान संगठनों को टिकैत के विषय में पुनर्विचार करना चाहिए!

ट्विटर पर इस बात का काफी विरोध हो रहा है और लोग कह भी रहे हैं कि

1669 में जाटों ने धार्मिक आतंकवादी औरंगजेब के खिलाफ विद्रोह किया था।

 2022 में Tikait ने उसकी समाधि पर सिर झुकाकर औरंगजेब को जीत दिलाई।

यह अत्यंत लज्जाजनक बात है कि लोग राजनीतिक विरोध में उन लोगों के समर्थन में चले जा रहे हैं, जिन्होनें इस देश की आत्मा, इस देश के नागरिकों को बार-बार अपनी मजहबी सनक के चलते मारा! और इस देश को इस्लामिक बनाने का प्रयास किया, हिन्दुओं के रक्त से अपनी तलवारों की प्यास बुझाई और लोग आज उसी खलनायक को नायक बनाने के लिए उसकी मजार पर जा रहे हैं!

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