पंजाब विधान सभा चुनाव 2022 के परिणाम अप्रत्याशित रहे और इनकी कल्पना भी किसी ने नहीं की थी। बड़े से बड़े राजनीतिक विश्लेषक भी पंजाब में इस जीत की अपेक्षा नहीं कर रहे थे। अरविन्द केजरीवाल की पार्टी आम आदमी पार्टी ने जो चमत्कार किया है, वह सभी को हैरानी में डालने वाला है, परन्तु यह भी एक बात है कि इस जीत से पंजाब की जनता तो प्रसन्न है, लेकिन देश की जनता में संदेह का वातावरण है। देश की जनता का आशंकित होना भी स्वाभाविक है क्योंकि केजरीवाल पर खालिस्तान का समर्थन करने का आरोप लगा है।
कभी अरविन्द केजरीवाल के अत्यंत निकट रहे कवि कुमार विश्वास ने भी चुनावों से ठीक पूर्व यह कहते हुए सनसनी फैलाने का असफल प्रयास किया था कि अरविन्द केजरीवाल को हर मूल्य पर पंजाब में जीत चाहिए और उनके खालिस्तानी तत्वों के साथ संपर्क हैं। यद्यपि कुमार विश्वास के इस वक्तव्य पर बहुत हंगामा हुआ था, परन्तु परिणाम कहीं न कहीं इस बात को दर्शाते हैं कि इन कथित “खुलासे” ने अरविन्द केजरीवाल का लाभ ही किया।
इस कारण कवि कुमार विश्वास की विश्वनीयता पर भी प्रश्नचिन्ह लगा क्योंकि वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी के नेता एवं कवि कुमार विश्वास के साथ आम आदमी पार्टी में कार्य कर चुके कपिल मिश्रा ने भी एक पत्र को ट्वीट करके यह दावा किया था कि कुमार विश्वास को सब कुछ पता था और उन्होंने उस समय मुंह नहीं खोला। कहीं न कहीं, इस कथित खुलासे ने उन सभी तत्वों को एकत्र होने में सहायता प्रदान की। यही कारण था कि राजनीतिक विश्लेषकों ने भी इस वक्तव्य को गंभीरता से नहीं लिया था।
चुनावों के तुरंत बाद ही जो आरोप हवाओं में अपुष्ट रूप से तैर रहे थे, उनकी पुष्टि प्रतिबंधित संगठन सिख फॉर जस्टिस द्वारा आम आदमी पार्टी के नेता भगवंत मान को भेजे गए एक पत्र से हुई। इस पत्र में पन्नू ने यह आरोप लगाया कि आम आदमी पार्टी की ओर से एक झूठा पत्र लोगों के बीच वितरित किया गया, जिसमें सिख फॉर जस्टिस के समर्थन का दावा किया गया था ।

जब उन्होंने इस बात का खंडन किया कि यह पत्र उनका नहीं है तो राघव चड्ढा ने उन्हें यह कहते हुए प्रलोभन दिया कि इस पत्र का वितरण जारी रखने की अनुमति दी जाए और इसके बदले में वह उन्हें धन देंगे और विधानसभा चुनावों में “खालिस्तान रेफरेंडम” लाने की अनुमति देंगे।
इस सम्बन्ध में opindia पर एक सिख फॉर जस्टिस की ओर से एक वीडियो भी उपलब्ध है जिसमें पन्नू यह दावा कर रहा है कि आम आदमी पार्टी ने उसके संगठन के नाम का दुरूपयोग किया। वह भगवंत सिंह मान को धमकी भी दे रहा है कि वह इससे दूर रहे। पन्नू ने धमकी दी है कि वह मुद्दा खालिस्तानी सिख और भारत सरकार के बीच का है और उसे इन सबसे पूरी तरह से दूर रहना चाहिए।
फिर उसने धमकी दी कि भगवंत मान को बेअंत सिंह की मृत्यु एवं बादल तथा कैप्टन अमरिंदर सिंह की राजनीतिक मृत्यु से सीखना चाहिए।
बार-बार राजनीतिक विश्लेषक यह स्पष्ट करते हैं कि अरविन्द केजरिवाल की कोई विचारधारा नहीं है और उन्हें मात्र सत्ता पाने से ही मतलब है। अरविन्द केजरीवाल को लोगों को प्रयोग करना आता है, उन्होंने वामपंथी लेखकों का भी दोहन किया, उन्होंने योगेन्द्र यादव जैसे लोगों का भी दोहन किया एवं बाद में सभी ने देखा कि अरविन्द केजरीवाल ने कैसे योगेन्द्र यादव जैसे लोगों को अपनी पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया।
परन्तु समस्या यह है कि योगेन्द्र यादव हों या फिर सिख फॉर जस्टिस, या फिर जनता से कटे कथित बुद्धिजीवी, यह सभी जनता के समक्ष इतने वैचारिक रूप से नग्न हो चुके हैं कि यदि अरविन्द केजरीवाल उनके साथ कुछ बुरा भी करते हैं, तो आम जनता की सहानुभूति लेने में न केवल योगेन्द्र यादव, बल्कि कुमार विश्वास भी विफल रहते हैं, जिन्होनें सही समय पर मुंह न खोलकर तब खोला जब आम आदमी पार्टी से राज्यसभा सीट न मिलने पर उनका दर्द जनता के समक्ष झलक चुका था।
अरविन्द केजरीवाल पर यह आरोप आज से नहीं लग रहे हैं कि उन्होंने खालिस्तानी तत्वों का समर्थन लिया या किया, बल्कि यह आरोप उन पर कई वर्षों से लग रहे हैं। ऐसे में प्रश्न यह खड़ा होता है कि यह राष्ट्रीय सुरक्षा का मामला है, तथा यदि आरोपों की पुष्टि होती है तो क्या केंद्र सरकार द्वारा कोई कदम उठाया जाएगा? वर्ष 2017 में उनके विषय में मीडिया यह लिख रहा था कि उन्होंने आतंकी की कोठी में समय बिताया है आदि आदि!

परन्तु उस वर्ष के चुनावों में चूंकि कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व में एक मजबूत कांग्रेस सामने थी तो इन तत्वों को हवा नहीं मिली एवं कांग्रेस की सरकार बनी थी। इस वर्ष कांग्रेस स्वयं के अंतरविरोधो के चलते ही खोखली हो चुकी थी। यह हम सभी ने देखा कि कैसे दस जनपथ के संकेत पर कैप्टन अमरिंदर सिंह को पहले नवजोत सिंह सिद्धू के चलते कमजोर किया गया तथा बाद में उन्हें इस प्रकार अपमानित किया गया कि उन्हें कांग्रेस से जाना पड़ा।
फिर वह दलित मुख्यमंत्री के नाम पर चन्नी को ले आए, जो इन चुनावों में अपनी दोनों सीटें हार गए। सिद्धू और चन्नी के मध्य जो सीटों को लेकर लड़ाई चली वह भी जनता ने देखी। कैप्टन अमरिंदर सिंह के पास नियत ठीक हो सकती थी, परन्तु उनके पास न ही कैडर था और न ही संगठन। अत: आम जनता के सामने कोई भी ऐसा राजनीतिक विकल्प नहीं था जिसे वह चुनती। भारतीय जनता पार्टी का अपना कोई भी आधार पंजाब में नहीं था, अत: उसके संबंध में बात करने का कोई लाभ नहीं है।
एक अनिश्चित राजनीतिक स्थिति किसी भी अलगाववादी तत्व के लिए उर्वरक भूमि होती है, देखना होगा कि आम आदमी पार्टी सिख फॉर जस्टिस की इस धमकी का प्रतिवाद किस प्रकार करती है? या उन सभी आरोपों को कैसे झुठलाती है कि वह देश तोड़ने वाली पार्टी है?