राम नवमी के दौरान कई राज्यों में हिंसक झड़पें हुई, जिसमे कई हिन्दू घायल हुए और गुजरात में एक वृद्ध की मृत्यु भी हो गयी। दरअसल हुआ यह था कि पूरे देश में रामनवमी जोर शोर से मनाई जा रही थी, जगह जगह शोभयात्राएँ निकाली जा रही थी तथा इस वर्ष रामनवमी पर लोगो में अभूतपूर्ण उत्साह भी था, लेकिन हमारे समाज का एक वर्ग है, जिसे किसी भी और धर्म के अनुयाइयों से सदियों पुरानी शत्रुता है।
जी हाँ, हम बात कर रहे हैं कट्टर इस्लामिक तत्वों की, जिनका एक ही उद्देश्य है, कुछ भी करके हिन्दुओ का अहित करना। रामनवमी की शोभा यात्राओं और उनमें सम्मिलित होकर अपने प्रभु श्री राम के जनोत्सव के उल्लास में रंगे हिन्दुओं पर पहले से इकट्ठे किये गए हथियार, पेट्रोल बम, तलवारो से हमला किया गया, और त्यौहार के हर्षोल्लास को शोक में बदल डाला। बाद में जब प्रशासन ने आरोपियों के खिलाफ कार्यवाही की तो इनका अंतर्राष्ट्रीय इकोसिस्टम इनकी रक्षा के लिए आ गया एवं जैसे ही वह इकोसिस्टम सक्रिय हुआ वैसे ही यह लोग अपना कमजोर और डरा हुआ मुसलमान का नैरेटिव चलाने लगे क्योंकि यह इनका वह ट्रंप कार्ड है, जिसे वह आवश्यकता होने पर प्रयोग करने से चूकते नहीं।
यदि इसे और विस्तार से हम देखते हैं तो इसे मजहबी संघर्ष कहा जा सकता है, जहां कट्टर इस्लामिक लोग काफिरो के साथ सहअस्तित्व को नकार देते हैं, और काफिरों के मन में डर फैलाने का हर तौर तरीका प्रयोग करते हैं। इस्लामिक लोगो का एक पूरा इकोसिस्टम है, जिसका एक ही ध्येय है, मुस्लिमो का प्रभुत्व भारत में बनाये रखना। इसके लिए ये लोग हिन्दुओ पर ‘हजार साल तक राज’ करने का एक जुमला प्रयोग करते हैं, ताकि ये हिन्दुओ को ग्लानि का अनुभव करा सकें, और उनके दिमाग से खेल कर ये स्थापित कर दें कि उनकी कौम ही सर्वश्रेष्ठ है।
यह दरअसल एक वर्चस्व की लड़ाई है, आप देख सकते हैं कि कैसे मुस्लिम अपनी जनसँख्या बढ़ा रहे हैं, और जिन इलाको में यह लोग बहुसंख्यक होते हैं, उन्हें इन दिनों ‘मुस्लिम इलाके’ के नाम से प्रचारित भी किया जा रहा है। इन्हे अपने मजहब के हिसाब से कपडे पहनने हैं, पुरानी मजहबी बुराइयों को ढोना है, हलाल का उपयोग करना है,पर्सनल लॉ बोर्ड बनाने होते हैं, शरिया लागू करना होता है। ये सब कार्य ये लोग अपने धर्म का वर्चस्व दूसरो पर थोपने के लिए करते हैं।
दरअसल ये छोटे मोटे हमले, हिन्दू त्योहारों पर होने वाली झड़प, हिजाब और ट्रिपल तलाक के नाम पर मुस्लिम अधिकारों के दमन का शोर, ये सब कोई एकाएक नहीं होने लगा है। ये एक बड़ी ही दूरदर्शी नीति के तहत लिए जाने वाले छोटे कदम हैं, इनका एक ही लक्ष्य है, भारत को दारुल-उल-इस्लाम बना देना।
क्या कट्टर इस्लामिक तत्व ‘ब्रिटेन मॉडल’ का प्रयोग कर रहे हैं ?
ब्रिटेन एक ईसाई देश है, ये वो देश है जिसने दुनिया भर पर राज किया। लेकिन क्या आप जानते हैं, इस समय ब्रिटेन में एक कुत्सित अभियान चल रहा है, उसे एक इस्लामिक देश बना देने का? और ये कोई ‘fake news‘ नहीं है, एक कटु सच्चाई है, और ये हम नहीं बल्कि ब्रिटेन की 2011 में हुई जनगणना के आंकड़े कहते हैं, जिसके अनुसार इस्लाम अब ब्रिटेन का दूसरा सबसे बड़ा धर्म है। ब्रिटेन के मुस्लिम समय समय पर देश में इस्लामिक शासन या शरिया कानून की मांग करते रहते हैं। अगर आप आंकड़ें देखेंगे तो पाएंगे कि पिछले कुछ सालों में ब्रिटेन के कई प्रशासनिक और सरकारी पदों पर मुस्लिमो को नियुक्त किया जा रहा है।
ब्रिटेन में ‘शरिया जोन’ बनाये जा रहे हैं, और कई ऐसे इलाके भी हैं जहां दुसरे धर्मो के लोगो के जाने पर अघोषित रोक लगी हुई है, इन्हे ‘No Go Zone‘ कहा जाता है। ब्रिटेन में मुस्लिमो ने ‘इस्लामिक शरिया कौंसिल‘ नाम का संगठन बनाया है, जो एक तरह का इस्लामिक कोर्ट होता है, जो मुसलमानो के मुद्दों पर निर्णय देता है। पिछले कुछ सालों से ब्रिटेन के मुस्लिमो ने अपने विवादों को सुलझाने के लिए शरिया कौंसिल का सहारा लेना शुरू कर दिया है। शादी, तलाक और यहाँ तक कि आम अपराधों के निबटारे के लिए भी यही कौंसिल निर्णय करती है। इस समय ब्रिटेन में 85 से ज्यादा शरिया कोर्ट और शरिया कौंसिल हैं।
यहां ये समझना जरूरी है कि शरिया कानून या कोर्ट की कोई कानूनी वैधता नहीं है, लेकिन मुस्लिम इन्ही का प्रयोग अपने मामलो के निबटारे के लिए करते, और इस तरह से वो ब्रिटेन के कानून और संविधान को नीचे दिखाते हैं। ब्रिटेन में मुस्लिमो की जनसँख्या अभी बेशक कम है, लेकिन पिछले चुनावो में 19 मुस्लिम MP बने और वे हाउस ऑफ़ कॉमन्स के लिए चुने गए। इसी के साथ पूरे ब्रिटेन में मुस्लिम मेयर की संख्या भी अप्रत्याशित रूप से बढ़ती जा रही है।
ब्रिटेन के कई स्कूलों में बच्चो के लिए हलाल मीट अघोषित रूप से अनिवार्य कर दिया गया है। ऐसे कई मामले देखने में आये हैं, जहां बच्चो के परिजनों को अचानक पता लगा कि उनके बच्चो को स्कूल में हलाल मीट दिया जा रहा है, और इस पर काफी बवाल भी हुआ। हलाल अर्थव्यवस्था के नाम पर ना सिर्फ खाना, बल्कि कपडे, बैंकिंग, और FMCG सामान तक हलाल लिया जा रहा है, जिसका फायदा कट्टर इस्लामिक संगठनो को होता है, क्योंकि इस प्रकार से यह लोग एक वैकल्पिक अर्थव्यवस्था तैयार कर रहे हैं।
अगर आप भारत में देखेंगे तो पाएंगे कि कट्टर इस्लामिक तत्व इसी तरीके का प्रयोग यहां भी कर रहे हैं। पिछले कुछ समय से पाठक समझ सकते हैं, कि कैसे एकाएक हिजाब, हलाल, मुताह निकाह, ट्रिपल तलाक जैसे मुद्दों पर मुस्लिमो ने आक्रामक रुख अपना रखा है। वामपंथियों और अंतराष्ट्रीय इकोसिस्टम भी इन्हे पूर्ण रूप से समर्थन कर रहा है, और हर मुद्दे को इस तरह से दिखाया जा रहा है कि जैसे भारत में मुस्लिमो पर ना जाने कितने जुल्म किये जा रहे हैं।
हालांकि ये सब एक छद्म युद्ध का एक छोटा स्वरुप है, वहीं एक डरे हुए और पिछड़े मुसलमान के नैरेटिव के अंतर्गत मुस्लिमो को ‘पीड़ित‘ बता कर उनके लिए ज्यादा सुविधाएं प्रदान करने का एवं समाज में उन्हें अलग स्थान देने का प्रयास किया जा रहा है। कहीं न कहीं ऐसा प्रतीत होता है कि सामाजिक न्याय के नाम पर सरकारें भी इस प्रयास में उनका सहयोग कर रही हैं, उन्हें पढ़ाई लिखाई, UPSC की तैयारी, मस्जिदों में लाउडस्पीकर लगाने की अघोषित व्यवस्था, और अलग अलग तरह के आरक्षण या विशेषाधिकार दिए जा रहे हैं, ताकि ये लोग भारत के प्रशासनिक तंत्र में पैठ बना लें।
भारत में इस समय रणनीतिक रूप से इस्लामिक कुरीतियों के बचाव के नाम पर आम मुस्लिमो को भड़का कर उन्हें इकट्ठा किया जा रहा है। वहीं ओवैसी जैसे नेता और छद्म सेक्युलर पार्टियां भी अब खुल कर इस्लामिक विचारधारा के पक्ष में आ गए हैं तथा साथ ही PFI और SDFI जैसे संगठन भी जमीनी स्तर पर मुसलमानो को ब्रैनवॉश करने में लगे हैं। भारत के कई इलाको में जनसांख्यिकीय बदलाव आ गया है, और उन इलाको में मुस्लिम अब बहुमत में हैं, और जैसे जैसे इनकी संख्या बढ़ रही है, ये इस्लामिक राज, शरिया, ग़ज़वा-ऐ-हिन्द जैसे मुद्दों को उठा रहे हैं।
ये ब्रिटेन की ही स्क्रिप्ट पर काम कर रहे हैं, और इनका एक ही ध्येय है, अगले 40-50 सालो में भारत को दारुल-उल-इस्लाम में बदल देना। आज की आवश्यकता है कि इस षड्यंत्र को सरकारी स्तर पर समझा जाए एवं उचित कदम उठाए जाएं।