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Friday, April 26, 2024

पंडित दीनदयाल उपाध्याय जयंती विशेष: जनसंघ के नीतिनिर्देशक और एकात्म मानववाद के प्रणेता, जिन्होंने हमारे समाज को सकारात्मक दिशा दी

कल 25 सितंबर 2022 को देश महान राष्ट्रवादी नेता और गरीब और असहायों की आवाज पंडित दीनदयाल उपाध्याय की 160वीं जयंती मनाई गयी। भारतीय राजनीति के महामानवों में से एक माने जाने वाले पंडित दीनदयाल उपाध्याय को समाज में चेतना का सम्प्रेषण करने और अपनी विचारधारा से समाज को सही दिशा दिखाने वाला व्यक्तित्व माना जाता है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पंडित दीन दयाल उपाध्याय को उनकी जयंती पर श्रद्धांजलि दी और उन्हें “असाधारण विचारक” कहा। उन्होंने ट्विटर पर कहा, मैं पंडित दीन दयाल उपाध्याय जी को उनकी जयंती पर श्रद्धांजलि देता हूं। अंत्योदय और गरीबों की सेवा पर उनका जोर हमें प्रेरणा देता रहता है। उन्हें एक असाधारण विचारक और बुद्धिजीवी के रूप में भी व्यापक रूप से याद किया जाता है।

जब भी कोई सरकारी योजना बनती है तो उसका एक ही उद्देश्य होना चाहिए, समाज के अंतिम व्यक्ति तक लाभ को पहुँचाना। हम अक्सर सुनते हैं कि “समाज के अंतिम पायदान पर खड़े लोगों के लिए योजनाएं बननी चाहिए”, हम ‘अंत्योदय‘ के बारे में काफी सुनते हैं, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है यह पवित्र विचार किस महापुरुष का था, जिसे भाजपा ने अपना मन्त्र बना लिया है? वह महापुरुष पंडित दीनदयाल उपाध्याय ही थे।

पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितम्बर 1916 को जयपुर के निकट धानकिया गांव में उनके ननिहाल में हुआ था। उनके पिता का नाम भगवती प्रसाद उपाध्याय था, जो मथुरा के निवासी थे, और उनकी माता का नाम रामप्यारी था। 1937 में जब वे कानपुर से बी.ए. कर थे, अपने सहपाठी बालूजी महाशब्दे की प्रेरणा से वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सम्पर्क में आए। जहाँ उन्हें संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार का सान्निध्य मिला और अन्य कई संघी प्रणेताओं से उनका संपर्क हुआ, जिनका प्रभाव उनके व्यक्तित्व पर पड़ा।

अपनी पढ़ाई पूरी करने के पश्चात उन्होंने संघ का दो वर्षों का प्रशिक्षण पूर्ण किया और संघ के जीवनव्रती प्रचारक बन गए। वह आजीवन संघ के प्रचारक रहे और इसी माध्यम से उनका आगमन राष्ट्रीय राजनीती में हुआ था। 21 अक्टूबर 1951 को डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी की अध्यक्षता में ‘भारतीय जनसंघ’ की स्थापना हुई और 1952 में इसका प्रथम अधिवेशन कानपुर में हुआ था। डॉ. मुखर्जी उनकी कार्यकुशलता और क्षमता से अत्यंत प्रभावित थे, इसीलिए उन्होंने ही पंडित दीनदयाल उपाध्याय को जनसंघ का महामंत्री भी बनाया था। जनसंघ के प्रथम अधिवेशन में पारित 15 प्रस्तावों में से सात प्रस्ताव उपाध्याय जी ने ही प्रस्तुत किए थे।

पण्डित दीनदयाल उपाध्याय जी की विचारधारा

पण्डित दीनदयाल उपाध्याय अपने चिंतन के लिए प्रसिद्द थे। उन्होंने भारत की सनातन विचारधारा को ना मात्र समझा, बल्कि उसे युगानुकूल रूप में बदल कर देश को एकात्म मानव दर्शन जैसी प्रगतिशील विचारधारा दी। उपाध्याय जी ने एकात्म मानववाद के दर्शन पर श्रेष्ठ विचार व्यक्त किए हैं। उन्होंने अपनी पुस्तक ‘एकात्म मानववाद’ में पूंजीवाद और साम्यवाद, दोनों की वृहद समालोचना की है, और दोनों ही पक्षों के लाभ और हानि को विस्तार से समझाया है।

उन्होंने एकात्म मानववाद में मानव जाति की मूलभूत आवश्यकताओं और सृजित कानूनों के अनुरुप राजनीतिक कार्यकलापों हेतु एक वैकल्पिक सन्दर्भ भी दिया है, जिससे यह संकल्पना हर कोई आसानी से समझ सकता है। उनका मानना था कि हिन्दू कोई धर्म या संप्रदाय नहीं, बल्कि यह भारत की राष्ट्रीय संस्कृति है। वह यह भी मानते थे कि भारत में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति की संस्कृति एक ही है। उन्हें भारतीय जनसंघ का आर्थिक नीति का रचनाकार भी माना जाता है।

उन्होंने दैनिक स्वदेश और साप्ताहिक पांचजन्य जैसी प्रसिद्द पत्रिकाओं का सृजन भी किया, जो भारतीय सभ्यता और संस्कृति परिचारक एवं ध्वजवाहक भी हैं। उन्होंने दो योजनाएं,राजनीतिक डायरी तथा एकात्म मानववाद जैसी प्रसिद्द पुस्तकें भी लिखी, जो उनके चिंतन और लेखन कला के बारे में बहुत कुछ बताती हैं।

पंडित दीनदयाल उपाध्याय की मृत्यु – एक अनसुलझी पहेली

11 फरवरी, 1968 को पं. दीनदयाल जी की अत्यंत रहस्यमय हालत में मृत्यु हो गयी थी। उनका शव मुगलसराय रेलवे यार्ड में मिला था, और दुर्भाग्य देखिये कि आज तक उनकी मृत्यु का सही कारण नहीं पता चल पाया है। अपने प्रिय नेता के निधन से भारतीय जगसंघ के कार्यकर्ताओं को बहुत बड़ा आघात लगा था, वहीं देश को भी एक बहुत बड़ी हानि हुई, क्योंकि एक स्वप्नदृष्टा और समाजसेवक अब इस संसार में नहीं था। जनसंघ को इस मृत्यु से उबरने में बहुत समय लगा। पंडित दीनदयाल उपाध्याय जैसे महान लोग सदियों में एक बार ही जन्म लेते हैं, उनका व्यक्तित्व और विचार हमारे समाज को दिशा देते ही रहेंगे।

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1 COMMENT

  1. I bow my head and pay my sincere tribute to Pt Deendayal ji! I am sure if the leaders/ or pracharaks who know/ ever read him and his work can follow even 25 & of his teaching and his life time principles. I am sure we can make make a Ek Bharat shresth Bharat and Visjwa guru very soon.

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