यूं तो पाकिस्तान में हो रहे मानवाधिकारों के उल्लंघन के विषय में आम तौर पर लोग मौन ही रहते हैं, फिर चाहे वह हिन्दुओं पर अत्याचार हों या फिर सिखों, ईसाइयों पर, परन्तु जो अभी मामला निकल कर आया है, वह एक व्यापक विमर्श की मांग करता है और साथ ही यह भी बताता है कि कैसे पूरा विश्व इस बात पर मौन है, कहीं कोई चर्चा ही नहीं हो रही है कि कैसे यह हो सकता है? कैसे एक अस्पताल की छत पर लाशें ही लाशें मिल सकती हैं और वह भी बिना अंगों के और इस विषय में कोई भी अंतर्राष्ट्रीय विमर्श ही नहीं है?
यह लाशें किसकी हैं? कहाँ से आई हैं? कौन से अंग निकले हैं, इन सबके विषय मेंऐसी चुप्पी है, जो हैरान करने के लिए पर्याप्त है! पाकिस्तान में एक अस्पताल की छत पर सड़ी गली लाशें मिली हैं और यह लाशें भी साधारण स्थिति में नहीं मिली हैं। इन लाशों के अंग गायब हैं! यह अंग कहाँ गए इनका कोई विमर्श नहीं है!
इस बात को लेकर पूरे पाकिस्तान में हंगामा मच गया है। लोग बातें कर रहे हैं और लोग यह प्रश्न भी पूछ रहे हैं कि फिलिस्तीन में एक भी व्यक्ति के मरने पर इतना हाय तौबा मचाते हैं, वह इतने जघन्य अपराध पर क्यों नहीं बोल रहे हैं? एक यूजर ने प्रश्न किया कि निश्तर अस्पताल में इतनी सारी लाशें देखने के बाद भी क्या वह मौलवी कुछ बोलेंगे जो फिलिस्तीन पर हुई एक हत्या पर आन्दोलन करने लगते हैं!
पाकिस्तान में इस भयावह घटना के कई पहलू हैं। क्योंकि इससे कई प्रश्न ऐसे भी खड़े होते हैं, जो यह बताने के लिए पर्याप्त हैं कि उस देश में स्थिति आखिर क्या है? और क्या जो यह अंगविहीन सड़े गले शव मिले हैं, क्या वह गुमशुदा बलोचों के हैं? द सिन्धी नैरेटिव नामक हैंडल ने इस सिलसिले में बहुत ही झकझोरने वाली बात करते हुए लिखा है कि जो शव मिले हैं, वह कहा जा रहा है कि बलोचों के हैं! हम चाहते हैं कि अधिकारी इसका पता लगाएं और इस मुद्दे पर कदम उठाएं
पूर्व फ़ेडरल मंत्री मूनिस इलाही ने निश्तार मेडिकल यूनिवर्सिटी के शरीर एनाटोमी विभाग के विभागाध्यक्ष (एचओडी) की प्रारंभिक प्रतिक्रिया साझा की। एचओडी ने तर्क दिया कि ये अज्ञात शव पुलिस द्वारा उन्हें पोस्टमार्टम के लिए सौंपे गए हैं और उन्होंने कहा यह इसलिए सौंपे गए थे ताकि “यदि आवश्यक हो” तो एमबीबीएस छात्रों के लिए “शिक्षण उद्देश्यों” के लिए उपयोग किया जा सके। उन्होंने कहा कि ये शव इतनी बुरी स्थिति में थे कि इनका उपयोग शिक्षण उद्देश्यों के लिए भी नहीं किया जा सकता था और इसलिए “पूर्ण सड़न की प्रक्रिया” के बाद, मेडिकल छात्रों के लिए “हड्डियों को ले लिया जाता है”।
एचओडी ने दावा किया कि ऐसा नहीं था कि शवों का कोई अपमान किया गया है और हड्डियों को लेने के बाद, शवों को “हमेशा ठीक से दफनाया जाता है”, इससे यह पता चलता है कि यह अस्पताल में एक नियमित अभ्यास है। शवों की संख्या को लेकर अभी तक किसी भी सरकारी अधिकारी द्वारा कोई पुष्टि या खंडन नहीं किया गया है, हालांकि अन्य ट्विटर उपयोगकर्ताओं ने भी ‘500 अज्ञात शवों’ के पाए जाने के आंकड़े को दोहराया है।
यदि पाकिस्तानी सेना के प्रति पिछले कुछ वर्षों से उमड़ कर आ रहे रोष को देखें तो पाएंगे कि पिछले दो दशकों में न जाने कितने लोगों के अपहरण का आरोप उस पर लगा है। कई बार बलोच कार्यकर्ता इस बात को लेकर आन्दोलन कर चुके हैं कि उनके यहाँ के लोगों को सेना उठाकर ले जाती है और फिर वह वापस नहीं आते! पाकिस्तानी अधिकारियों द्वारा इस प्रकार अपहरण की कई कहानियाँ भी बलोच नागरिक सुनते हैं। अभी हाल ही में आठ जून 2022 को वौइस फॉर बलोच मिसिंग पर्सन्स ने बलोच छात्र नेता जाकिर मजीद बलोच के पाकिस्तानी सेना द्वारा किए गए अपहरण एवं उनके गायब होने को लेकर विरोध प्रदर्शन किये थे। उनका अपहरण 14 वर्ष पहले किया गया था और आज तक उनका कोई पता नहीं चला है। इस बात को लेकर आन्दोलन होते रहे हैं।
अब सिंधी समुदाय ने भारत सरकार, यूरोपियन युनियन और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सदस्यों से यह अपील की है कि वह इस मामले को अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में उठाने की अपील की है। जय सिंध फ्रीडम मूवमेंट के अध्यक्ष सोहेल अबरो ने कहा कि मुल्तान के निश्तर अस्पताल की छत पर मिली लाशें मानव इतिहास की सबसे बड़ी त्रासदी है।
वह अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में मानवाधिकारों एवं अंतर्राष्ट्रीय शर्तों के उल्लंघन को लेकर पाकिस्तान के विरुद्ध मुकदमा करना चाहते हैं। वह चाहते हैं कि युद्ध अपराधों को लेकर पकिस्तान पर मुकदमा दर्ज हो। सिंधी समूह पकिस्तान के विरुद्ध राष्ट्रवादी संघर्ष कर रहा है।
वहीं जेएफएसएम ने यह भी आरोप लगाया कि अस्पताल की छत पर शव उनके उन “राजनीतिक कार्यकर्ताओं” के हैं, जिन्हें सिंध और बलूचिस्तान से जबरन अगवा किया गया था। इसलिए उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ से अनुरोध किया कि वह उनकी इस अपील पर ध्यान दें!
फिर भी वैश्विक विमर्श में इन लाशों का मिलना कोई भी हलचल उत्पन्न नहीं कर पा रहा है, यह हैरानी की बात है, भारत को मानवाधिकार की नसीहतें देने वाले लोग इस समय मौन हैं यह और भी अधिक चौंकाने और क्षोभ की बात है!