भारत में कथित रूप से हिजाब का प्रकरण दिनों दिन जितना तेज होता जा रहा है, वह पूरे विश्व के सामने पिछड़ेपन और कट्टरपन की ऐसी तस्वीर प्रस्तुत कर रहा है, जिससे उबरने में मुस्लिम समुदाय को न जाने कितने वर्ष लग जाएंगे। ताजा समाचार इस्लामी सहयोग संगठन, जिसमें पाकिस्तान सहित कई मुस्लिम देश सम्मिलित हैं, उनका हिजाब के विवाद में कूदने का है। इस संगठन के अध्यक्ष ने हिजाब के मामले में कूदते हुए कहा कि वह अंतर्राष्ट्रीय समुदाय और विशेषकर संयुक्त राष्ट्र के अधिकारियों से अनुरोध करता है कि वह कर्नाटक में हिजाब को लेकर भारत पर कदम उठाएं
हालांकि भारत की ओर से इस पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा गया है कि यह भारत का आतंरिक मामला है और भारत को यह पता है कि उसे क्या कदम उठाना है। विदेश मंत्रालय ने यह स्पष्ट किया कि ओआईसी ने भारत के मामलों में बहुत ही भ्रामक एवं प्रेरित बयान दिया है। भारत ने कहा कि हम अपने मामले अपने क़ानून और संवैधानिक दायरे में रखकर हल करते हैं।
पाकिस्तान में हो रही औरतों की हत्याओं पर ओआईसी और पाकिस्तान की चुप्पी रहती है
भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप कर यदि पाकिस्तान और ओआईसी को ऐसा लगता है कि वह मुस्लिम औरतों के रहनुमा बन जाएँगे तो उन्हें अपने घर पर देखना चाहिए। अफगानिस्तान में मजहब के नाम पर औरतों के साथ क्या हो रहा हैं, अब तो उसकी कहानी भी बाहर आनी बंद हो गयी हैं क्योंकि अफगानिस्तान में मीडिया कर्मियों को केवल उन्हीं शर्तों पर काम करने दिया जा रहा है, जो तालिबान ने निर्धारित की है। न जाने कितने मीडिया आउटलेट बंद हो चुके हैं।
और जो औरतें तालिबान के कट्टरपंथी इस्लामी नियमों के खिलाफ प्रदर्शन कर रही हैं, उन्हें गिन गिन और चुन चुन कर गिरफ्तार किया जा रहा है। जैसे 29 वर्षीय तलाकशुदा राबिया बताती हैं, कि जब से तालिबान ने सत्ता सम्हाली है, तब से औरतों का जीवन जहन्नुम है और साथ ही चूंकि उनके साथ कोई मरहम (आदमी) नहीं है तो वह आदमियों का रूप धरकर काबुल की सड़कों पर चल रही हैं।
राबिया ने कहा कि “अफगानिस्तान में औरत होना वैसे भी बहुत कठिन है, मगर एक एकल माँ के लिए यह सबसे बदतर है और जब से तालिबान ने कब्जा किया है तब से तो यह और भी मुश्किल हो गया है!”
तालिबान धीरे धीरे उन सभी औरतों की आवाज़ शांत कर रहा है, जो औरतों के अधिकारों के लिए आवाज उठा रही थीं। इस्लामी कट्टरपंथ का शिकार तसलीमा नसरीन तो न जाने कब से अपने देश बांग्लादेश से निर्वासित होकर भारत में रह रही हैं।
परन्तु ऐसी मुखर महिलाओं की चिंता न ही इमरान खान के पाकिस्तान को है और न ही ओआईसी को!
अब आते हैं, हाल ही में प्रकाशित ऐसी रिपोर्ट पर, जिस पर पकिस्तान में औरतों को बात करनी चाहिए या फिर ओआईसी को हस्तक्षेप करना चाहिए। यह रिपोर्ट है पाकिस्तान के मानवाधिकार संगठन की, जिसमें यह कहा गया है कि पाकिस्तान में पिछले छ महीनों में एक या दो नहीं बल्कि 2400 महिलाओं के साथ इज्जत के नाम पर बलात्कार किया गया।
और यह कोई मनगढ़ंत रिपोर्ट या भारत के हिजाब जैसा जानबूझकर बनाया गया मुद्दा नहीं है और न ही इस शोषण में कोई हिन्दू शामिल है। इन औरतों के यौन उत्पीडन या बलात्कार में केवल और केवल मुस्लिम ही शामिल है और यह मामला इसलिए भी दुखद है क्योंकि इसमें अपराधियों को सजा भी नहीं दी जाती है और घूम फिर कर सारा आरोप केवल औरतों पर ही आ जाता है।
पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग की हालिया रिपोर्ट के अनुसार देश में हर दिन बलात्कार के 11 मामले दर्ज किए जाते हैं और पिछले छ वर्षों में अर्थात वर्ष 2015 से 2021 तक देश मने 22 हजार ऐसे मामले दर्ज किए गए हैं, और इस रिपोर्ट में यह विशेष बल देकर कहा गया है कि पीड़ित को ही समाज में दोषी माना जाता है, जिस कारण से ऐसे अपराध करने वाले अपराधियों के हौसले बुलंद हैं।
सबसे रोचक बात यही है कि हिजाब के मामले पर भारत को नसीहत देने वाले पकिस्तान के वजीर-ए-आजम अपने देश की उन बाईस हजार औरतों में से केवल और केवल 77 ही मामलों में दोषियों को दंड दे पाए हैं। लाहौर विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर निदा किरमानी का कहना है कि “यह बहुत दुःख की बात है कि पकिस्तान में इज्जत लूटने वाली तहजीब अभी बनी हुई है, यहाँ पर औरतों को ही कसूरवार ठहराया जाता है और साले आदमियों को तो स्वभाव से ही हिंसक बताया जाता है। अभी पिछले महीने ही लाहौर से 200 किलोमीटर दूर सरगोधा जिले में एक आदमी ने अपनी शादीशुदा बहन की इसलिए हत्या दी क्योंकि उसका गैगरेप हुआ था!”
लैंगिक समानता के मामले में पाकिस्तान सबसे बुरे देशों में से एक है?
भारत में हिजाब के मामले को हवा देने वाला पाकिस्तान अपने देश की लड़कियों के साथ जो करता है वह इस रिपोर्ट में पता चला। परन्तु विश्व आर्थिक फोरम के अनुसार पाकिस्तान लैंगिक समानता के मामले में सबसे बुरे देशों में से एक है। मीडिया के अनुसार पाकिस्तान में पांच मिलियन से अधिक स्कूल जाने वाली उम्र के बच्चे स्कूल नहीं जा पाते हैं और जिनमें से अधिकांश लडकियां हैं।
भारत में हिजाब के लिए वहां की वह औरतें आवाज उठा रही हैं, जो अपने ही देश में औरतों के अधिकारों के लिए निकलने वाले आजादी मार्च में भाग नहीं लेती हैं।
पकिस्तान में आजादी मार्च निकालने वाले इस बात को लेकर बहुत दुखी हैं। बीबीसी के अनुसार महिला मार्च की एक आयोजक ने कहा, “हमारे लिए पाकिस्तानियों का दिमाग़ और सोच बहुत छोटी है। मैं अब तक केवल एक प्लेकार्ड बनाने की वजह से घर में क़ैद हूं। मुझे किस तरह की गालियां नहीं दी गईं? चूंकि हिजाब पहनना हमारी सामूहिक सोच को दर्शाता है, इसलिए इसका पुरज़ोर समर्थन किया जा रहा है।”
जैसे जैसे यह मामला आगे बढेगा, वैसे वैसे एक समुदाय के कुछ ऐसे लोगों की पिछड़ी सोच आगे आएगी जो बार बार औरतों को अँधेरे में रखना चाहते हैं, जो औरतों के नाम पर मुस्लिम राजनीति करना चाहते हैं और सबसे बढ़कर जो औरतों को भीड़ और भेड़ बनाकर रखना चाहते हैं,
और हाँ, इस मामले में भारत में वामपंथी फेमिनिस्ट किस पाले में खड़ी हैं, उनकी भूमिका को सदा के लिए स्मरण रखना आवश्यक है, क्योंकि यही फेमिनिस्ट वाम मादाएं हिन्दू महिलाओं को मात्र बिंदी लगाने को लेकर पिछड़ा घोषित करती रहती हैं!