गोरखपुर में मंदिर के बाहर हुए हमला करने वाले मुतर्जा पर जहाँ उसकी पूर्व पत्नी और उसका इंटरनेट इतिहास कुछ और बोल रहा है तो वहीं अब अखिलेश यादव भी मुर्तजा के बचाव में उतर आए हैं। अखिलेश यादव, जिनकी पार्टी इस बार भी मुस्लिमों के लिए सबसे प्राथमिकता वाली पार्टी रही है, उन्होंने मुर्तजा के बचाव में अजीबोगरीब तर्क दिया है। उनका कहना है कि भारतीय जनता पार्टी मामले को बढ़ा चढा कर बताती है।
“अखिलेश यादव ने मीडिया से बातचीत के दौरान गोरखनाथ मंदिर पर हुए मामले के विषय में कहा कि उसके पिता ने कहा है कि उसे मनोवैज्ञानिक समस्या है, और उसे बायपोलर समस्या है, तो मुझे लगता है कि यह पहलू भी देखना पड़ेगा। भाजपा तो वह पार्टी है, जो बात को बढ़ा चढ़ाकर दिखाती है।’
मुर्तजा के अब्बा जहाँ बार बार यही कह रहे हैं कि मुर्तजा की दिमागी हालत ठीक नहीं हैं तो वहीं मुर्तजा की पहली बीवी का कहना यह है कि मुर्तजा दिमागी रूप से पूरी तरह से ठीक है। उसके पूर्व ससुर ने भी कहा कि उन्होंने इंजीनियर समझकर शादी कर दी थी। फिर उसके बाद उसकी माँ ने उनकी बेटी के साथ बहुत बुरा व्यवहार किया था, जिसके कारण तलाक हो गया था। तलाक के बाद उनका कोई संपर्क नहीं था। और उसने तलाक भी फोन पर दे दिया था।
जाकिर नाइक के भी वीडियो उसकी माँ देखती थी
उसकी पहली बीवी के अनुसार पूरा परिवार ही मजहबी था तथा मुर्तजा की माँ भी कभी कभी जाकिर नाइक के वीडियो देखा करती थी। मुर्तजा अपना लैपटॉप भी अपनी बीवी को छूने नहीं देता था। उसने केवल अपने घरवालों के लिए शादी की थी।
मुस्लिमों पर होने वाले कथित अत्याचारों से दुखी था
गोरखपुर में गोरखधाम मंदिर पर हमला करने वाला मुर्तजा मुस्लिमों पर कथित रूप से हो रहे अत्याचारों से दुखी था। अब उसकी पूछताछ का जो वीडियो सामने आया है, उसके अनुसार मुर्तजा सीएए, एनआरसी और कर्नाटक में हुए विवाद (हिजाब) को लेकर वह गुस्से में था। उसने यह भी बताया कि 400-500 रुपए में हथियार खरीदे थे और एक टेंपो में सवार होकर गोरखपुर पहुंचा था।
हिन्दुस्तान.कॉम के अनुसार वीडियो में मुर्तजा कहता है कि ”दोनों सामान लेकर हम टेंपो में चढ़े। 400-500 रुपए का सामान था। उसने कहा कि हम तुम्हें गोरखपुर पहुंचा देंगे। तो हमने कहा कि गोरखपुर में ही रुकवा देना। उसी में कुछ कर देंगे, हम भी चले जाएंगे काम तमाम हो जाएगा। थोड़ा हमारा भी नाम हो जाएगा।”
अर्थात यह स्पष्ट होता है कि वह मानसिक रोगी नहीं था बल्कि वह कट्टरता का शिकार था। यही होता है कि साधारण से मामलों को मुस्लिमों पर अत्याचार के रूप में प्रचारित किया जाता है और फिर उनमें कट्टरता का प्रचार प्रसार किया जाता है।
यह सभी जानते हैं कि नागरिकता संशोधन अधिनियम किसी भी प्रकार से भारतीय मुस्लिमों के विरोध में नहीं था, एवं मात्र पड़ोसी देशों में सिख, हिन्दू, बौद्ध आदि वहां के अल्पसंख्यकों के लिए था। परन्तु फिर भी उसका विरोध यह कहते हुए किया गया, कि यह मुस्लिम विरोधी है। वह अधिनियम कहाँ से मुस्लिम विरोधी था, अभी तक कोई प्रमाणित नहीं कर पाया है, फिर भी मुसलमानों के ही नहीं बल्कि विश्व भर के लोगों में यह कहा गया कि मुस्लिमों के साथ भारत में अत्याचार हो रहे हैं।
मुर्तजा जैसे लोग पढ़ाई के बाद भी कट्टरता नहीं छोड़ पाते
जो सीएएस के विरुद्ध आन्दोलन हुआ था, उसमें भी कथित रूप से शिक्षित मुस्लिमों की एक बहुत बड़ी संख्या थी। जिन्होनें न ही बिल को पढ़ा, न समझा बस ऐसा प्रचारित किया जैसे यह मुस्लिम विरोधी है एवं इसके आने से भारतीय मुस्लिमों को देश से बाहर निकाल दिया जाएगा। मुर्तजा जैसे कई लोग हैं, जो पढने के बाद और भी अधिक कट्टर होकर हिन्दू धर्म के प्रति अपनी नफरत दिखाते हैं।
जिस आईआईटी मुम्बई से मुर्तजा ने पढ़ाई की थी, उसी आईआईटी मुम्बई से शरजील इमाम ने भी पढ़ाई की थी, और उसके बाद वह जेएनयू से आगे की पढ़ाई कर रहा था, जब उसने शाहीनबाग़ में भड़काऊ भाषण दिया था। पाठकों को याद होगा कि कैसे शाहीन बाग़ ने दिल्ली का दम घोंट दिया था, परन्तु इसे ही शरजील इमाम ने मॉडल बताया था और एक फेसबुक पोस्ट में लिखा था
‘शाहीन बाग का मॉडल चक्का जाम का है, बाक़ी सब सेकेंडरी हैं, चक्का जाम और धरने में फ़र्क समझिए, हर शहर में धरने कीजिए, उसमे लोगों को चक्का जाम के बारे में बताइए, और फिर तैयारी करके हाईवेज पर बैठ जाइए।’
और असम को कैसे अलग करने का भी भाषण दिया था।
यह देखना अत्यंत वेदनापूर्ण है कि शिक्षा भी उस कट्टरता को नहीं निकाल पाती है जो अपने मजहब को लेकर कुछ लोगों के दिल में होती है, उच्च शिक्षा भी उस घृणा को नहीं निकाल पाती है जो हिन्दुओं के विरुद्ध एवं हिन्दू बाहुल्य होने के कारण इस भारत से उन्हें है!
और इस घृणा के भरे होकर जब वह हिन्दुओं पर हमला करते हैं तो अब विक्टिम कार्ड खेलने के स्थान पर मानसिक रोगी का दाँव खेला जा रहा है!