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Sunday, May 5, 2024

निक्की यादव हत्याकांड: वर्ष 2020 में ही कर ली थी निक्की और साहिल ने आर्यसमाज मंदिर में शादी: परन्तु मूल प्रश्न जस का तस है!

निक्की यादव हत्याकांड में नया मोड़ आया है और अब पता चल रहा है कि निक्की यादव और साहिल गहलोत ने शादी कर ली थी और अब वह दूसरी शादी करने जा रहा था। जिसका विरोध निक्की कर रही थी और यही कारण है कि उसे रास्ते से हटा दिया गया।

और पुलिस के अनुसार निक्की की ह्त्या में वह अकेला नहीं था, उसकी हत्या में उसका परिवार भी शामिल था। पुलिस के अनुसार आरोपी साहिल ने वर्ष 2020 में ही निक्की से शादी कर ली थी। इन दोनों ने आर्यसमाज मंदिर में शादी की थी।

यह भी बात बहुत चौंकाने वाली है और परेशान करने वाली है कि निक्की के घरवालों को यह पता ही नहीं चल पाया कि उनकी बेटी शादी कर चुकी है। मीडिया के अनुसार निक्की के पिता को इस विषय में पता नहीं था कि वह दोनों शादी कर चुके हैं।

निक्की यादव के पिता का कहना है कि निक्की और साहिल की शादी के विषय में परिवार में किसी को कुछ भी नहीं पता था। उनका कहना है कि उन्हें विश्वास नहीं हो रहा है और उन्होंने यह भी कहा कि हत्या में शामिल सभी लोगों को अधिकतम सजा मिलनी चाहिए।

मीडिया के अनुसार यही बातें निकलकर आ रही हैं कि साहिल से लम्बी पूछताछ से यही सामने निकलकर आ रहा है कि मृतक निक्की उसे दूसरी लड़की से शादी नहीं करने दे रही थी क्योंकि वह दोनों पहले ही शादी कर चुके थे और वह तबसे उसकी पत्नी ही थी।

इन दोनों ने आर्यसमाज के मंदिर में शादी की थी। आर्यसमाज के मंदिरों में जो शादियाँ होती हैं, क्या उनका कोई कानूनी महत्व होता है? यह इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि आर्यसमाज मंदिरों में की गयी शादियों पर एवं विवाह प्रमाणपत्र पर उच्चतम न्यायालय पहले ही अपनी टिप्पणी कर चुके हैं। माननीय न्यायालय ने पिछले ही वर्ष एक महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए कहा था कि आर्यसमाज के मंदिरों को शादी के प्रमाणपत्र जारी करने का अधिकार नहीं है।

यहाँ तक कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने भी कहा था कि मात्र आर्यसमाज के प्रमाणपत्र से विवाह प्रमाणित नहीं होता है।

पहले जनवरी में उच्चतम न्यायालय ने आर्यसमाज के विषय में टिप्पणी करते हुए कहा था कि “आर्य समाज मंदिरों की शादी कानूनी तौर पर वैध नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने ये अहम फैसला सुनाते हुए आर्य समाज की ओर से जारी विवाह प्रमाणपत्र (Marriage Certificate) को कानूनी मान्यता देने से इनकार कर दिया। जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस बी वी नागरत्ना की पीठ ने कहा था कि आर्य समाज का काम विवाह प्रमाणपत्र जारी करना नहीं है, ये काम सक्षम प्राधिकरण ही करते हैं। इसलिए कोर्ट ने विवाह का असली प्रमाणपत्र पेश करने का निर्देश दिया।“

इस मामले में एक लड़की के घरवालों ने लड़की को नाबालिग बताया था और अपहरण और बलात्कार की एफआईआर दर्ज कराई थी तो वहीं आरोपी युवक ने कहा था कि वह लोग आर्यसमाज में विवाह कर चुके थे।

वहीं इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने भी कहा था कि आर्य समाज सोसायटी द्वारा जारी किए गए विवाह प्रमाणपत्रों की बाढ़ आ गई है, जिन पर इस अदालत और अन्य उच्च न्यायालयों ने गंभीरता से सवाल उठाया है। अदालत ने कहा कि आर्य समाज दस्तावेजों की वास्तविकता पर विचार किए बिना, विवाह के आयोजन में विश्वासों का दुरुपयोग करता है।

आर्य समाज के मंदिरों द्वारा विवाह कराए जाने पर उच्च न्यायालय एवं उच्चतम न्यायालय टिप्पणी कर चुके हैं। हालांकि यह दोनों ही मामले निक्की एवं साहिल के आर्यसमाज मंदिर में विवाह के बाद सामने आए हैं, परन्तु यह बात गौर करने योग्य है कि आखिर आर्यसमाज के मंदिर में परिवारों को सूचित करना अनिवार्य नहीं माना जाता क्या? निक्की अभी शायद पढ़ ही रही थी, तो क्या ऐसे में आर्यसमाज के मंदिरों का यह उत्तरदायित्व नहीं बनता कि लड़की के परिवारवालों को एक बार सूचित करें क्योंकि ऐसी शादियाँ कानूनन मान्य नहीं होती हैं।

इन्हें हिन्दू विवाह अधिनियम के अंतर्गत पंजीकृत कराना होता है।

परन्तु यह जानकारी निक्की को नहीं होगी और फिल्मों एवं ओटीटी में दिखाए गए कंटेंट से प्रभावित होकर एवं प्यार की आजादी से प्रभावित होकर आर्यसमाज में शादी को पर्याप्त मान बैठी होगी।

इस विषय में व्यापक चर्चा होनी अनिवार्य है कि विवाह करने वाले जोड़ों का विवाह कौन करवा सकता है और कहाँ पर विवाह से यह कानूनन मान्य हो सकता है, क्योंकि आर्यसमाज मंदिर से शादी के छलावे में निक्की की जान चली गयी।

परन्तु निक्की की जान एक और कारण से गयी है और वह है अपने परिवार पर विश्वास न करना! निक्की ने आर्यसमाज पर विश्वास किया, निक्की ने साहिल पर विश्वास किया, परन्तु अपने मातापिता पर विश्वास नहीं किया। काश कि जब यह समाचार आ रहे थे कि आर्यसमाज द्वारा कराए जा रहे विवाह मान्य नहीं हैं, उस समय भी वह बात करती अपने घर पर!

इस बात पर चर्चा और विमर्श होना ही चाहिए कि विवाह कराने वाली संस्थाएं ऐसी लड़कियों का विवाह कैसे करवा सकती हैं, जो आर्थिक रूप से अभी अपने मातापिता पर निर्भर हैं? क्या 18 वर्ष की कागजी उम्र होते ही उन अभिभावकों के अधिकार बच्चियों पर शून्य हो जाते हैं, जिन्होनें उन्हें बचपन से पालपोस कर बड़ा किया है?

स्वतंत्रता की परिभाषा पर अब बात होनी ही चाहिए!

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