दिल्ली में राष्ट्रपति भवन में बना हुआ उद्यान जिसे अब तक मुग़ल गार्डन के नाम से जाना जाता था, उसका नाम बदलकर अब अमृत उद्यान कर दिया गया है। यह अंग्रेजों के जाने के बाद का अमृत वर्ष है या कहें अमृत महोत्सव सरकार मना रही है, तो इसके अंतर्गत यह नाम बदला गया है।
इस सम्बन्ध में भारतीय जनता पार्टी के नेता कपिल मिश्रा ने ट्वीट करते हुए कहा कि गुलामी का एक और प्रतीक समाप्त! मुग़ल गार्डन अब नहीं रहा
अब है अमृत उद्यान
हर हर महादेव
वैसे तो शेक्सपियर ने कहा है कि नाम में क्या रखा है, परन्तु जब भी ऐतिहासिक प्रतीकों की बात होगी तो यह तो निश्चित है कि नाम का महत्व बहुत अधिक है। यह प्रभु श्री राम का नाम ही है जो पूरे भारत क्या पूरे विश्व को एक प्रकार से जोड़े रखता है। कई देशों में राम कथाएँ आयोजित की जाती हैं, और यह भारत ही है जहाँ पर मंदिरों को तोड़ने वाले आततायियों के नाम पर शहर हैं, जिन मुगलों ने भारत की आत्मा, भारत के करोड़ों लोगों के आराध्य प्रभु श्री राम के नाम को मिटाने का हर प्रकार का प्रयास किया, उनके नाम पर ही बना हुआ मुग़ल गार्डन दिल्ली में प्रमुख स्थान बना हुआ था।
ऐसे में यह मानसिक गुलामी का भी प्रतीक दिख रहा था। आखिर ऐसा क्यों हो रहा है कि हिन्दुओं को काटने वालों के नाम पर अभी तक स्मारक क्यों है?
क्यों अभी तक उन शहरों के नाम गाजियों के नाम पर हैं, जहाँ पर हिन्दू रहते हैं? क्या गाज़ी का अर्थ नहीं पता है? गाज़ी का अर्थ सभी को पता है, परन्तु फिर भी गाज़ियाबाद जैसे जिलों पर बात नहीं होती है, जबकि वह दिल्ली से ही सटा हुआ है।
दिल्ली में मुग़ल गार्डन नाम ऐसा लगता था जैसे अभी तक औरंगजेब का ही शासन चला आ रहा हो। वैसे तो जब भारत अंग्रेजों के शासन से स्वतंत्र हुआ था, तो स्व-तंत्र लाते हुए भारत की सरकार को गुलामी की निशानियों से छुटकारा पाना चाहिए था, क्योंकि आततायी मात्र अंग्रेज तो थे नहीं!
जिन मुगलों को अंग्रेजों ने महिमामंडित किया और जिन्हें कथित रूप से उस भारत का निर्माता बताया गया, जिस भारत में सहस्त्रों वर्षों से सभ्यता चली आ रही थी, वह भी आततायी ही थे। उनकी यादें क्यों दिल्ली में थीं? और वह भी देश के प्रथम नागरिक के साथ!
यह कैसा उपहास था भारत की आत्मा पर? जिन लोगों ने मंदिर तोड़े, हिन्दुओं को मार कर भूमि लाल कर दी, उनके नाम पर राष्ट्रपति भवन में “मुग़ल गार्डन?” और उस पर हिन्दू ही वहां पर घूमने जाते थे! यह कैसा आत्म-विस्मृति बोध है हिन्दुओं का? मुग़ल गार्डन में सेल्फी लेते हुए कैसा लगता होगा?
परन्तु आज भारत सरकार ने इस उद्यान का नाम मुग़ल गार्डन से बदलकर अमृत उद्यान कर दिया।
मुग़ल गार्डन का निर्माण किसी मुग़ल ने नहीं बल्कि अंग्रेजों ने कराया था। इसका निर्माण ब्रिटिश वास्तुकार सर एडिवन लुटियंस की परिकल्पना थी।
लुटियंस ने वर्ष १९१७ में मुग़ल गार्डन की डिजाइन को अंतिम रूप दिया और वर्ष १९२८ में वह बनकर तैयार हो गया। आज लगभग ९५ वर्षों के बाद उस नाम से दिल्ली को छुटकारा मिल रहा है, जो उसे उस इतिहास का स्मरण कराता रहता होगा जिसमें हिन्दुओं का खून ही खून है!
आखिर भारत क्यों अपने ऊपर हुए अत्याचारों के महिमामंडन को ढोता रहे?
आज के अवसर पर बरखा दत्त का पुराना ट्वीट भी वायरल हो रहा है, जो उन्होंने वर्ष 2018 में किया था कि क्या मुग़ल गार्डन का नाम भी बदला जाएगा? इस पर लोग मजे ले रहे हैं और तरह तरह के ट्वीट कर रहे हैं और कह रहे हैं कि जो इच्छा है वह पूरी हो जाए! एक यूजर ने लिखा “हाउ इज द जोश!”
मुग़ल गार्डन से इस प्रकार का इश्क अंतत: किस कारण था? क्या नाम मुग़ल है इस कारण या फिर लुटियंस ने बनाया था इस कारण? मुगलों के प्रति इस आसक्ति का कारण आज तक शायद ही कोई समझ पाया हो? कथित लुटियंस ज़ोन के पत्रकारों को हिन्दुओं से घृणा और मुग़ल एवं अंग्रेजों से प्यार है। यदि मानसिक गुलामी की पराकाष्ठा यह है कि मुगलों एवं अंग्रेजों ने ही भारत का “डेवलपमेंट” किया तो फिर वह १५ अगस्त को क्या मानते हैं?
यदि १५ अगस्त को वह आजादी का दिन मानते हैं तो उन्हें मुग़ल गार्डन या फिर अंग्रेजों के प्रमाणपत्र की इतनी चाह क्यों है?
कोई कुछ भी कहे, कैसी भी बात करे यह बात सत्य है जो सीएफ एंड्रूज़ ने लिखी थी कि भारत के युवाओं को अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा देते रहिये, यदि ईसाइयत का प्रचार भारत में करना है तो, क्योंकि अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा का अर्थ ईसाई प्रचार ही है।
किसी भी देश की संस्कृति यदि शिक्षा से पृथक हो जाएगी तो उसका परिणाम ऐसे ही स्वर होंगे जो हम आज कथित बुद्धिजीवी देखते हैं, हिन्दू धर्म से घृणा करने वाले और मुग़ल एवं ईसाइयत से प्रेम करने वाले! यही कारण है कि मुग़ल गार्डन जैसे नामों को परिवर्तित किया जाए, एवं उसके स्थान पर अंग्रेजों के भारत छोड़ने से सम्बन्धित ही कोई प्रतीक स्थापित किया जाए जैसे भारत सरकार ने किया है अर्थात “अमृत उद्यान!”