अहमदाबाद की आयशा की तरह एक और मामला जहेज का सामने आ रहा है और वह है केरल की मोफिया परवीन का! 21 साल की लॉ की विद्यार्थी मोफिया ने अपने घरवालों द्वारा जहेज मांगे जाने की प्रताड़ना पर पुलिस से सहायता मांगी, परन्तु पुलिस ने उलटा उसे ही अपमानित कर दिया. इससे क्षुब्ध होकर निकाह के मात्र सात महीनों बाद ही आत्महत्या कर ली!
केरल की मोफिया परवीन, जो मात्र 21 साल की थी और दिलशाद और फरिसा की बेटी मोफिया पेंटिंग और मेहँदी में बहुत होनहार थी। वह जीवन से भरी हुई थी और वह कई सम्मान, पुरस्कार और सराहनाएं जीत चुकी थी। उसने अपने अम्मी अब्बू से कैरियर बनाने के बाद ही शादी के लिए कहा था। और इसी कारण उसने सुहैल से पहले शादी से इंकार कर दिया था। पर सुहैल से उसकी दोबारा मुलाक़ात फेसबुक पर हुई और उसे जानने के बाद उसने शादी के लिए हाँ कर दी।
3 अप्रेल 2021 को हुए निकाह के बाद उसे पता चला कि सुहैल कुछ काम ही नहीं करता है। और उसने अपने दोस्तों को बताया था कि सुहैल उसके याद शारीरिक हिंसा भी करता है। वह सेक्स के लिए पागल था और वह चाहता था कि मोफिया अपने निजी अंगों पर भी टैटू बनवाए।
मोफिया को उसकी सास भी सताती थी और उसे ही मानसिक रोगी बताती थी। उन्होंने उसकी ऑनलाइन क्लास भी बंद करने का प्रयास किया और फिर वह एक महीने बाद ही अपने मायके लौट आई। सुहैल ने मस्जिद से संपर्क किया और कहा कि मोफिया का दिमाग स्थिर नहीं है। जब मोफिया पर प्रताड़ना नहीं झेली गयी और जब उसे और उसके घरवालों को पुलिस ने ही अपमानित किया, तो उसने घर आकर उसने अपना जीवन समाप्त कर लिया।
अहमदाबाद की आयशा ने भी की थी जहेज को लेकर आत्महत्या:
हम सभी को हाल ही में अहमदाबाद में आयशा द्वारा की गयी खुदकुशी की घटना याद होगी। अहमदाबाद में आयशा नामकी एक लड़की ने अपने शौहर की बेवफाई से दुखी होकर और जहेज के चलते ही आत्महत्या कर ली थी। और उसने अपनी आत्महत्या का लाइव टेलीकास्ट किया था, आखिर उसने ऐसा क्यों किया था?
उसने भी जहेज अर्थात दहेज़ के कारण ही यह कदम उठाया था। आत्महत्या की उस लाइव टेलीकास्ट से पूरा देश सन्न रह गया था और जहेज पर बहस शुरू हो गयी थी।
आयशा की आत्महत्या के बाद बार बार यह मांग उठी कि जहेज लेना बंद किया जाए। पर यह अपील किससे और कौन कर रहा है?
आयशा के अब्बू ने बहुत भावुक होकर कहा कि हम हर मामले पर हिन्दू मुस्लिम करते रहते हैं, यहाँ पर सभी बेटियों की बात हो रही है। आयशा के अब्बू की यह यह सच है कि हर मामले पर हिन्दू मुस्लिम होता है, तो इस पर होगा ही, क्योंकि यह मामला पूरी तरह से मुस्लिम पहचान और मुस्लिम कुरीति से जुड़ा मामला ही था।
मुस्लिमों में जहेज/दहेज़ न होने के कारण हिन्दू लड़कियों को उनके मातापिता मुस्लिम लड़कों के पीछे भेजते हैं:
जी हाँ! जब ऐसे समय में मुस्लिम समाज में लड़कियां जहेज के चलते आत्महत्या कर रही हैं और मुस्लिम समाज इस कुरीति से नहीं लड़ रहा है। उस समय ऐसी बेहूदा सोच रखने वाले इस्लामिक विद्वान टीवी पर आकर ऐसे दावे करते हैं।
एक टीवी शो में राजनीतिक विश्लेषक बनकर आए मसूद हाशमी ने हिन्दू मातापिता पर एक अत्यंत घिनौनी टिप्पणी करते हुए यह कह डाला कि हिन्दू मातापिता ही अपनी बेटियों को मुस्लिम लड़कों के पीछे यह कहते लगाते हैं कि हिन्दुओं में दहेज़ हैं और मुस्लिम दहेज़ नहीं लेते हैं। हालांकि उसके बाद उसे शो से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। परन्तु क्या वास्तव में मुस्लिमों में दहेज़ नहीं है?
ऐसा नहीं है! मुस्लिमों में जहेज लिया जाता है और जमकर लिया जाता है। यह दोनों मामले इसलिए चर्चा में आए हैं क्योंकि लडकियों ने अपना जीवन समाप्त कर लिया।
क्या कहती है जुलाई 2021 की दहेज़ पर विश्व बैंक की रिपोर्ट
विश्व बैंक ने हाल ही dowry अर्थात दहेज़ या कहें जहेज को लेकर एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जिसमें कहा था कि हिन्दू तो दहेज़ लेते ही हैं, परन्तु मुस्लिम भी उतना ही जहेज लेते हैं। हालांकि इस रिपोर्ट पर इसलिए संदेह उत्पन्न होता है क्योंकि इसमें वह दूल्हे को मिलने वाले उपहार भी गिन लिए गए हैं, जिन्हें कई रस्मों में हिन्दू परिवारों में दिया जाता है।
परन्तु मुस्लिम समुदाय में तो यह कहा जाता है कि वह कुरीति रहित मजहब है, और सबसे श्रेष्ठ है, इसलिए वहां पर जहेज का लिया जाना संदेह उत्पन्न करता है।
इतना ही नहीं, वर्ष 2018 में मौलानाओं ने मुस्लिम अभिभावकों से अपील की थी कि वह लोग अपने बच्चों की शादियों में दहेज़ लेना बंद करें।
कौन से प्रदेश में सबसे ज्यादा दहेज़/जहेज लिया जाता है:
यह सबसे रोचक है। दहेज का नाम आते ही हिन्दू परिवार का नाम सामने आता है और फिर आम धारणा के अनुसार उत्तर प्रदेश या बिहार जैसे ही किसी राज्य का नाम उभर कर आता है। परन्तु विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार यह केरल है जहाँ पर सबसे ज्यादा दहेज/जहेज लिया जाता है। और इस रिपोर्ट के अनुसार ऐसा नहीं है कि केवल हिन्दुओं में ही दहेज़ लिया और दिया जाता है, मुस्लिमों में जहेज उतना ही लिया और दिया जाता है, जितना हिन्दुओं में तो वहीं ईसाई और सिख ऐसे हैं, जिनमें तेजी से दहेज की प्रवृत्ति बढ़ रही है और दोनों की ही औसत दर हिन्दू और मुस्लिमों की दहेज/जहेज की औसत दर से अधिक है।
मोफिया परवीन और पुलिस प्रशासन का रवैया:
इस मामले में हालांकि पुलिस और प्रशासन की भी भूमिका संदिग्ध पाई गयी है। मोफिया ने अलुवरा ग्रामीण एसपी के पास सुहैल और उसके परिवार के खिलाफ एक शिकायत दर्ज कराई थी। एसपी ने सीआई से कहा कि वह इस मामले को देखें और दोनों परिवारों के बीच सुलह करा दें। और इसी वार्ता के बीच सीआई ने सुहैल की मौजूदगी में मोफिया और उसके परिवार को धमकी दी।
मोफिया पुलिस के पास कानूनी शिकायत लेकर गयी थी कि उसे कैसी मानसिक हिंसा का सामना करना पड़ रहा है। पर सीआई उसके प्रति क्रूर था और यहाँ तक कि वह उस पर चीख पड़ा कि “अब तुम मुझे कानून सिखाओगी? मैं जानता हूँ कि क्या करना है?”
इस बात को लेकर केरल उच्च न्यायालय ने भी सरकार की खिंचाई की थी और कहा था कि पुलिस का ऐसा हाल है तो हमें भगवान ही बचाए! उसके बाद ही आकर मोफिया ने आत्महत्या कर ली।
ऐसा कहा जा रहा है कि दिलशाद के परिवार ने सर्कल इन्स्पेक्टर सुधीर को रिश्वत दी है तो वहीं सुधीर का एक विवादित अतीत रह चुका है और वह उस मामले में भी लीपापोती कर चुका है, जिस मामले ने सभी को हैरान करके रख दिया था, जिसमें सूरज ने अपनी पत्नी को एक जहरीले सांप से कटवा दिया था।
हालांकि उस पर कोई कदम नहीं उठाया गया था। खबर के फैलते ही सुहैल और उसके परिवारवाले भाग गए थे। पर मामला अधिक बढ़ने पर उसे हिरासत में ले लिया गया था!
रहस्यमयी कामरेड
मोफिया के पिता दिलशाद को ऐसा लगता है जैसे इसमें राजनीति भी शामिल है और एक रहस्यमयी कामरेड की भी चर्चा मोफिया ने की थी। वहीं आरएसएस कार्यकर्ता एस संजित की राजनीतिक हत्या पर आवाज न उठाने वाले केरल के मुख्यमंत्री और गृह मंत्री ने दिलशाद को फोन किया और सहयोग का वचन दिया। दिलशाद का अब कहना है कि उसने जिस कामरेड का उल्लेख किया था, वह दरअसल एक कांग्रेस का कार्यकर्ता था। और उन्हें नहीं पता है कि उनकी बेटी ने उन्हें क्या बताया है।
दिलशाद का कहना है कि वह अपनी बेटी को न्याय दिलाएँगे।
पहले भी आवाजें उठी हैं, पर नतीजा सिफर रहा है
आयशा की आत्महत्या के बाद ओवैसी का वह भाषण बहुत लोकप्रिय हुआ था, जिसमें उन्होंने मुस्लिम समाज से जहेज न लेने की अपील की थी।
ऑल इंडिया पर्सनल लॉ बोर्ड भी यह अपील कर चुका है कि जहेज की बीमारी को मिटाया जाए:
यह प्रश्न भी उठता है कि कब तक आयशा और मोफिया जैसी युवा लडकियों का सपने मजहबी जहेज के नीचे दबते रहेंगे और कब यह लोग अपील से बढ़कर दंड की मांग करेंगे? आखिर यह मांग क्यों नहीं होती है कि समाज की ओर से दंड दिया जाएगा?