केरल उच्च न्यायालय ने एक बार फिर से मीडिया को उसके एजेंडे वाली रिपोर्टिंग पर फटकार लगाई है। न्यायालय ने मीडिया को लताड़ते हुए कहा कि “एक लोकतंत्र में लोगों की यह भूमिका होती है कि सक्रिय संवाद किया जाए, और तभी लोकतंत्र चल सकता है। और इस शक्ति के साथ उत्तरदायित्व का भी बोझ आता है। उन तक सूचनाएं मीडिया के माध्यम से जाती हैं, तो ऐसे में मीडिया का यह उत्तरदायित्व है कि वह जनता को गलत तथ्यों वाली सूचनाएं न दें, वह ऐसी सूचनाएं न दें जो दुराग्रही हैं और साथ ही सरल असत्यापित सूचनाएं हैं।”
न्यायालय द्वारा लगाई गयी इस फटकार का कारण क्या है?
केरल उच्च न्यायालय द्वारा लगाई गयी इस फटकार का कारण क्या है? न्यायालय ने यह फटकार मीडिया को अपने ही द्वारा लिए गए स्वत: संज्ञान वाले मामले को खारिज करते हुए कहा। दरअसल फरवरी में एक न्यूज़ रिपोर्ट आई थी, जिसमें कहा था कि श्री पूर्णनाथरायसा मंदिर, त्रिपुनिथुरा में भक्तों से पुजारियों के पैर धुलवाए गए हैं। इस पर बहुत ही अधिक हंगामा हुआ और लोगों को मंदिरों के विरुद्ध अपना एजेंडा चलाने का अवसर एक बार फिर से मिल गया था।
इस मामले पर जब अधिक हंगामा हुआ तो केरल उच्च न्यायालय ने स्वत: संज्ञान लेते हुए कोचीन देवस्वम बोर्ड से इसका उत्तर माँगा कि वह इस विषय में उत्तर दाखिल करें कि क्या वास्तव में ‘पंथरंडु नमस्कारम’ के हिस्से के रूप में भक्तों से प्रायश्चित के रूप में 12 ब्राह्मणों के पैर धोने के लिए कहा गया था।
हालांकि कोचीन देवस्वम बोर्ड के वकील ने अपने उत्तर में कहा था कि “भक्तों से प्रायश्चित के रूप में 12 ब्राह्मणों के चरण धोने के लिए नहीं कहा गया था। बल्कि यह परम्परा है, जिसे मंदिर के तंत्री द्वारा संपन्न किया जाता है। और फिर उन्होंने 25 फरवरी तक समय माँगा था, जिससे वह विस्तृत उत्तर प्रस्तुत कर सकें।
जब स्थानीय मीडिया ने इस बात पर हंगामा किया था तो कोचीन देवस्वम बोर्ड के अध्यक्ष और मंत्री के राधाकृष्ण ने मामले की रिपोर्ट मांगते हुए कहा था कि यदि यह भक्तों द्वारा करवाया गया है, तो वह इसे स्वीकार नहीं करेंगे क्योंकि ‘पंथरंडु नमस्कारम’ तंत्री या पुजारी द्वारा संपन्न किया जाता है। उन्होंने कहा था कि यह तो कई वर्षों से प्रचलन में है एवं इसे अतिथियों के स्वागत के रूप में किया जाता है। जैसे दूल्हे के चरण धोए जाते हैं।
केरल उच्च न्यायालय द्वारा स्वत: संज्ञान लिए जाने पर जब कोची देवस्वम बोर्ड ने एफिडेविट दायर किया तो उससे न्यायालय को ज्ञात हुआ कि ‘पंथरंडु नमस्कारम’ को मंदिर के तंत्री या पुजारी द्वारा संपन्न किया जाता है। इसमें भक्त कहीं से भी सम्मिलित नहीं थे, जैसा मीडिया रिपोर्ट में दावा किया गया था।
न्यायालय ने निर्णय देते हुए कहा कि
“श्री पूर्णनाथरायसा मंदिर में ‘पंथरंडु नमस्कारम’ के हिस्से के रूप में, भक्तों से उनके पापों के प्रायश्चित के रूप में 12 ब्राह्मणों के पैर धोने के लिए नहीं कहा गया जैसा कि 4 फरवरी, 2022 को केरल कौमुदी दैनिक में प्रकाशित समाचार रिपोर्ट में कहा गया है।”
न्यायालय के कहा कि उनके पास यह अधिकार नहीं कि वह वर्षों से चली आ रहे धार्मिक संस्कारों में हस्तक्षेप करें
सारिका बनाम श्री महाकालेश्वर मंदिर समितिमें उच्चतम न्यायालय के निर्णय को ध्यान में रखते हुए न्यायालय ने कहा कि वह उस संस्कार और अनुष्ठान में हस्तक्षेप नहीं कर सकते हैं जो अनंत काल से किए जा रहे हैं।
न्यायालय ने इस निर्णय में एक और बात महत्वपूर्ण कही कि त्रावणकोर – कोची हिन्दू रिलीजियस इंस्टीट्यूशन अधिनियम 1950 की धारा 73ए के अनुसार देवस्वम बोर्ड का यह दायित्व है कि वह मंदिर के समस्त अनुष्ठानों का संरक्षण करें तथा यहाँ तक कि देवस्वम बोर्ड द्वारा इस अनुष्ठान का नाम “समर्धन” करना भी कानूनी रूप से वैध नहीं है।
न्यायालय ने यह भी कहा कि यह न्यायालय के अधिकार में नहीं है कि वह किसी भी मंदिर के भीतर की पूजा पद्धति, पूजा कैसे की जाए, आदि पर टिप्पणी करे, धार्मिक उपासना एवं पूजा को उसी प्रकार किया जा सकता है जैसा कि सदियों से उसे किया जाता आ रहा है
उसके बाद न्यायालय ने मीडिया के उत्तरदायित्व पर टिप्पणी की
न्यायालय ने मीडिया की भूमिका पर टिप्पणी करते हुए कहा कि यह मीडिया का उत्तरदायित्व है कि वह सही सूचना प्रदान करे! चूंकि न्यायालय ने इस मामले पर मीडिया की ही रिपोर्ट के आधार पर संज्ञान लिया था।
न्यायालय ने टिप्पणी करते हुए कहा कि “चूंकि मीडिया का प्रभाव बहुत दूर तक जाता है क्योकि यह लोगों की मानसिकता को प्रभावित करती है। यह विचारों को पैदा करती है, कई तरह के विचारों को स्थान देती है आदि”
यह अत्यंत ही हैरानी की बात है कि मीडिया हिन्दू धर्म के प्रति बिना सत्यता जाने, बिना घटना की जांच करे समाचार प्रकाशित कर देता है एवं उस पर इतना हंगामा हो जाता है कि उच्च न्यायालय भी स्वत: संज्ञान ले लेते हैं!
क्या यह सब हिन्दुओं के प्रति दुराग्रह पूर्ण व्यवहार के उदाहरण नहीं है, जो मीडिया हिन्दू धर्म के प्रति प्रदर्शित करती रहती है?