संघ प्रमुख मोहन भागवत के एक वक्तव्य को लेकर बहुत हंगामा हो रहा है, जिसमें कथित रूप से उन्होंने यह कहा है कि अगले 15 वर्षों में भारत अखंड भारत होगा और उसे लेकर कांग्रेस सहित सभी विपक्षी दल मोहन भागवत पर निशाना साध रहे हैं। कांग्रेस की प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने यहाँ तक कहा कि
‘भागवत जी कौन हैं? मैं ये पूछना चाहती हूँ कि क्या वो प्रधानमंत्री है, गृह मंत्री हैं, जज हैं। वो कौन हैं इन बातों को कहने वाले?’
जहाँ मीडिया इस बात को लेकर इतना शोर मचा रहा है, वहीं राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की ओर से स्थिति स्पष्ट की गयी है। संघ की ओर से कहा गया है कि “सन्यास रोड हरिद्वार स्थित कृष्णा निवास एवं श्री पूर्णानंद आश्रम के तत्वाधान में आयोजित 6 दिवसीय वेदांत सम्मलेन के अंतिम दिन दिनांक 13 अप्रेल 2022 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत द्वारा जनसमूह को उदबोधित किया गया । “इतना मंतव्यनिष्ठ होकर समाज चले, आप उसको ऐसा चलाएंगे आप अपने उदाहरण से इसको ऐसा बनायेंगे हम हमेशा आपके मंतव्यों को साकार करने के लिए उद्यमरत रहेंगे, समय लगेगा, एकदम सारी बाते नहीं होती जितना बताया गया है मेरे पास बिल्कुल सत्ता नहीं है, इसलिए मेरे पास कभी-कभी सत्ता आ जाती है। मेरे पास कुछ नहीं है, है जनता के पास। उनका अंकुश चलता है। वो तैयार होते हैं तो सबकी चाल बदल जाती है। उनको तैयार हम भी कर रहे हैं आप भी करिए। हम उदाहरणस्वरूप बनकर मिलकर ठीक ऐसे ही चलेंगे। ऐसे ही मिलकर चलेंगे, बिना हारे चलेंगे। बिना डरे चलेंगे। सफल होकर चलेंगे।”
उन्होंने कहा “दुनिया शक्ति को मानती है। अपनी शक्ति है, होनी चाहिए। दिखनी चाहिए। जागरुक रहकर हम चलेंगे और चल ही रहे हैं।”
साथ उन्होंने आवाहन किया “इसी गति से चले तभी गणना से काम होने वाला है। हम थोड़ी गति और बढ़ा देंगे तो आपने 20-25 साल कहा, मैं 10-15 ही कहता हूँ। उसमें जिस भारत का सपना देखकर हम चल रहे थे वो भारत स्वामी विवेकानंद ने जिसको अपने मनुचक्षों से देखा था। और जिसके उदय की महर्षि योगी अरविंद ने भविष्यवाणी की थी वो हम इसी देह में, इन्हीं आंखों से अपने इस जीवन में देखेंगे। मेरी शुभकामना भी है, ये आप की इच्छा भी है और हम सबका संकल्प भी है।”
अखंड भारत में समस्या क्या है?
यद्यपि संघ की ओर से यह स्पष्ट किया गया है कि मोहन भागवत जी ने क्या कहा है, फिर भी प्रश्न यह उठता है कि अखंड भारत की अवधारणा को लेकर कांग्रेस सहित विपक्षी दलों को समस्या क्या है? और राष्ट्र के उदय को लेकर वह इतने नकारात्मक क्यों रहते हैं?
क्या वह भारत को शक्ति और चेतना संपन्न नहीं देखना चाहते हैं या फिर वह भारत की उसके लोक की पहचान नहीं चाहते हैं?