इंटरनेट पर मौलाना जर्जिस अंसारी का एक वीडियो वायरल हो रहा है, उसमें वह मुस्लिम औरतों को यह सलाह दे रहा है कि अगर किसी औरत का शौहर उसके साथ तब भी जिस्मानी सम्बन्ध बनाने की बात कहे जब वह ऊँट पर बैठी हो, तो भी उसे इंकार नहीं करना चाहिए क्योंकि उसे जन्नत तभी मिलेगी जब वह अपने शौहर को जिस्मानी तौर पर खुश रखेगी!
अब यह बात भी स्पष्ट की गयी है कि ऊंटनी के ऊपर बैठना क्या होता है? ऊंटनी के ऊपर बैठने का अर्थ है जब औरत के बच्चा होने वाला होता था और उसके प्रसव को सरलता से कराए जाने के लिए उसे ऊंटनी पर अरब में बैठाया जाता था। तो मौलाना का कहना था कि अगर औरत अपनी गर्भावस्था की उस स्थिति में भी है, कि उसे ऊंटनी पर बैठाया गया है अर्थात उसकी डिलीवरी का समय भी निकट है और उस समय भी उसका शौहर यह कहता है कि वह जिस्मानी ताल्लुक करना चाहता है तो भी वह इंकार नहीं कर सकती है।
मौलाना का कहना है कि यह औरत की जिम्मेदारी है कि वह अपने शौहर के दिल में लगी आग को बुझाए, नहीं तो वह कहीं और भी जा सकता है!
इस वीडियो को लेकर सोशल मीडिया पर यूजर बहुत हैरान हैं। एक यूजर ने कहा कि यह मौलाना अजीबोगरीब सन्दर्भ देता है, जिनका कोई लोजिक नहीं होता तो वहीं एक यूजर का कहना था कि मौलाना ने एकदम सही कहा है!
लोगों का कहना है कि कोई भी ऐसे कैसे बोल सकता है?
परन्तु यूजर्स ने विदेशों से भी ऐसे ही संदेश के वीडियो साझा किये जिसमें इस्लामी मजहबी प्रचारक यह कह रहे हैं कि मुस्लिम औरतों को इन टीवी धारावाहिकों ने बिगाड़ दिया है और यही कारण है कि वह बात नहीं मानती हैं, तो यह हुकुम है उनके लिए कि अगर उनका शौहर उन्हें बिस्तर पर तब भी बुलाता है जब वह ऊँट पर बैठी हों तो भी इंकार नहीं करना चाहिए!
इस वीडियो को देखकर लोग हैरान हैं क्योंकि वह कल्पना ही नहीं कर पा रहे हैं कि ऐसा भी कुछ हो सकता है?
इस पर लोगों ने भारतीय फेमिनिस्टों के दोहरे व्यवहार पर टिप्पणी करते हुए कहा कि भारतीय फेमिनिस्ट कहती हैं कि बिना अनुमति के शादीशुदा जीवन में भी किये गए सेक्स को मैरिटल रेप घोषित किया जाए और वही भारतीय फेमिनिस्ट इस मौलाना की बातों के साथ भी हैं!
और लोगों ने कई सन्दर्भ भी twitter पर प्रस्तुत किये।
पर एक बात तो है कि वामपंथी फेमिनिज्म जहां हिन्दू देवी देवताओं तक पर अभद्र और अश्लील टिप्पणी करने से नहीं चूकता है, तो फिर धर्मगुरुओं और साधुओं की तो बात ही क्या, तो वहीं वह इस्लाम में औरतों को सहमति के अधिकार को पूरी तरह से कुचलने वाले ऐसे वीडियोज पर शांत रहती हैं।
हिन्दू साधुओं को पाखंडी कहने वाली यह फेमिनिस्ट मादाएं इस्लाम की कट्टरता के सामने हमेशा अपना सिर झुकाती हैं, वह नकाब पहनती हैं, वामपंथी फेमिनिस्ट मादा प्रोफेसर्स अपनेविद्यार्थियों को कभी कभी तालिब भी कह उठती हैं, वामपंथी फेमिनिस्ट तालिबान का समर्थन करती हैं, और वह अपनी कला का प्रयोग हिन्दू देवी देवताओं को नीचा दिखाने में करती हैं!
वामपंथी फेमिनिस्ट माँ दुर्गा, माँ सीता, द्रौपदी जैसी हिन्दू स्त्रियों को बार बर अपमानित करती हैं और जहाँ पर वास्तव में विरोध की बात आती है वहां पर मौन रह जाती हैं!
परन्तु सोशल मीडिया आने के बाद और ऐसे वीडियो आने के बाद वामपंथी फेमिनिस्ट उस ग्लोरिफिकेशन को उचित नहीं ठहरा पा रही हैं, जो वह इतने वर्षों से इस्लाम की कट्टरता का करती आ रही थीं। चूंकि ऐसे वीडियोज में न ही कोई हिन्दू है जो झूठ बोल रहा हो, न ही कोई हिन्दू धार्मिक संगठन है जो इस प्रकार का कथित रूप से दुष्प्रचार कर रहा हो! ऐसे में जब वह यौन सम्बन्धों में सहमति के अधिकार की बात कर रही हैं तो क्या उन्हें ऐसे वीडियोज का विरोध नहीं करना चाहिए, जो सहमति को एकदम ख़ारिज कर रहे हैं?
क्या फेमिनिज्म भी धर्म का विरोध करने के लिए और मजहब और रिलिजन की कुरीतियों के सामने घुटने टेकने के लिए है? प्रश्न तो उठेंगे ही और फेमिनिज्म के नाम पर हिन्दू धर्म को कोसने वालों को यह उत्तर तो देना ही होगा कि अंतत: हिन्दू धर्म से इतनी घृणा का कारण क्या है?