इन दिनों कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ‘भारत जोड़ो यात्रा’ में व्यस्त हैं। उनकी यह यात्रा कन्याकुमारी से शुरू हो कर अब दिल्ली तक पहुंच चुकी है। दिल्ली देश की सत्ता का केंद्र है, और मीडिया का भी जमघट यहाँ लगता है। यूँ तो मीडिया का एक ख़ास हिस्सा, जिसे हम लुटियेन्स मीडिया कहते हैं, वह पहले ही दिन से राहुल गाँधी की यात्रा को क्रांतिकारी और सत्ता बदल देने में सक्षम राजनीतिक कदम बताने पर तुला है। लेकिन अब इस यात्रा के दिल्ली पहुंचने पर उनका शोर कई गुणा बढ़ चुका है, और अब वह राहुल गाँधी की छवि चमकाने के लिए हिंदुत्व का दुरूपयोग करने से भी पीछे नहीं हट रहे हैं।
लुट्येन्स मीडिया कर रहा है राहुल की छवि को बदलने का भरसक प्रयास
राहुल गाँधी ने इस यात्रा में ज्यादातर चर्च और मदरसों में समय व्यतीत किया, देश विरोधी तत्वों के साथ मंच साझा किया, उनके साथ वार्तालाप किया। लेकिन साथ ही साथ उन्होंने एकाध हिन्दू मंदिर में पूजा अर्चना भी की, वो दिखावटी थी, लेकिन मीडिया ने ऐसा दिखाया जैसे वह कोई संत महात्मा हों। दरअसल मीडिया का एक ख़ास वर्ग रात दिन लेख लिख कर, सोशल मीडिया पर पोस्ट लिख कर राहुल गाँधी की छवि एक गंभीर राजनेता के रूप में स्थापित करना चाह रहा है।
यहां आप देख सकते हैं, कि कैसे लुट्येन्स मीडिया के कुख्यात युगल राजदीप सरदेसाई और उनकी पत्नी सागरिका घोष राहुल गाँधी की छवि को बदलने का प्रयास कर रहे हैं। जहां राजदीप उन्हें ‘मैराथन मैन’ कह रहे हैं, वहीं सागरिका ने राहुल गाँधी को एक परिपक़्व राजनेता का दर्जा दिया है। उनके अनुसार भारत जोड़ो यात्रा से राहुल गाँधी पर लगा ‘पप्पू’ नामक दाग मिट गया है।
जब यात्रा दिल्ली पहुंची तो राहुल गाँधी अपनी मां सोनिया गांधी से मिले। अमूमन मोदी जी की अपनी मां से मिलने पर उन्हें मीडिया साथ ले जाने का उलाहना देने वाली कांग्रेस और लुट्येन्स मीडिया ने राहुल गाँधी और सोनिया गाँधी के मिलने को किसी ऐतिहासिक घटना के रूप में दिखाया। उन्होंने दोनों की तस्वीरों को मां-बेटे के लिए स्नेह के प्रतीक के रूप में प्रचारित करने का प्रयास किया।
मीडिया ने ऐसे दिखाया जैसे राहुल गाँधी दुनिया के सबसे होनहार पुत्र हैं, जो अपनी मां का ख्याल रखते हैं, अपनी सभी उत्तरदायित्वों का निर्वहन करते हैं। हालांकि लुट्येन्स मीडिया, राहुल गाँधी को श्रवण कुमार बताने के चक्कर में यह भूल गया कि राहुल गाँधी अकेले होने के बावजूद अपनी मां के साथ नहीं रहते। अगर वह इतने ही अच्छे बेटे हैं तो उन्हें अपनी माँ की देखभाल करनी चाहिए, लेकिन असल में ऐसा है नहीं।
लुट्येन्स मीडिया को ‘टूलकिट मीडिया‘ के नाम से भी जाना जाता है, इसका अर्थ यह है कि किसी भी घटना के पश्चात यह वर्ग एक प्रकार के लक्षित लेख और सोशल मीडिया पोस्ट करता है। इस मीडिया की विशेषता यही है कि यह दूसरों को गोदी मीडिया बोलते हैं, लेकिन स्वयं वही कार्य करते हैं, वो भी पूरी बेशर्मी से। राहुल गाँधी का सोनिया गाँधी के साथ में जो चित्र है, उसे लुट्येन्स मीडिया ने ‘क्यूट’ बोल कर प्रचारित किया है, जबकि यही मीडिया मोदी जी और उनकी मां के चित्र पर कैसे कैसे प्रश्न उठाता है, यह हमने देखा ही है।
हिंदुत्व का मज़ाक उड़ा कर राहुल गाँधी को बताया जा रहा है ‘तपस्वी’
सनातन धर्म में तपस्या का बड़ा महत्व है, ऐसा कहा जाता है कि तपस्या किसी अभीष्ट सिद्दी को प्राप्त करने के लिए कठिन साधना करने और शारीरिक मानसिक कष्ट उठाने को ही तपस्या कहा जाता है। ऐसी कड़ी साधना का ध्येय यूं तो जनकल्याण ही होता है, लेकिन राहुल गाँधी के मामले में कथित सेक्युलर पत्रकारों ने तपस्या शब्द की परिभाषा ही बदल दी है।
दिल्ली में इन दिनों कड़ाके की ठण्ड पड़ रही है, तापमान गिरने से जनजीवन अस्तव्यस्त हो गया है। जहां आम जनता गर्म कपडे पहन रही है, वहीं राहुल गाँधी इन दिनों एक टी-शर्ट पहन कर घूमते हुए दिख रहे हैं। राहुल गांधी सफेद रंग की टी-शर्ट पहने देश के दिग्गज नेताओं की समाधियों पर श्रद्धांजलि अर्पित करने पहुंचे थे। और इसी के पश्चात सेक्युलर प्रजाति और लुट्येन्स मीडिया उनकी तुलना प्रधानमंत्री मोदी से करने लगे, कुछ तो उन्हें ‘तपस्वी’ ही बताने लगे।
‘द वायर’ की आरफा ने दिखाया तथाकथित ‘तपस्वी’ राहुल का विलासिता से भरपूर ट्रक
11 जनवरी को, जब समस्त उत्तर भारत सर्दी से ठिठुर रहा था, तब ‘द वायर’ की कथित पत्रकार आरफा खानम शेरवानी ने राहुल गांधी की ‘तपस्वी’ की छवि को चमकाने का प्रयास करते हुए उनके ट्रक का मुआयना किया, देश को यह बताने का प्रयास किया कि कैसे राहुल गाँधी अपनी भारत जोड़ो यात्रा के दौरान मितव्ययता से जीवन यापन कर रहे हैं।
आरफा कंटेनर में पहुँचती हैं जहां कांग्रेस के नेता जयराम रमेश उनका इन्तजार कर रहे थे। वह उन्हें कंटेनर दिखाते हैं और आरफा इसे एक साधारण जगह बता रही हैं, और उनका पूरा जोर था राहुल गाँधी को तपस्वी बताने पर। आरफ़ा ने वीडियो में एक ‘सादा’ शौचालय दिखाया है जिसमे एक शॉवर, गीजर, दो जेट विकल्पों के साथ अंग्रेजी शौचालय, दर्पण, हैंड वॉश डिस्पेंसर और एक वॉश बेसिन भी है।
जयराम रमेश आरफा को राहुल गाँधी का वार्डरोब दिखाते हुए सफेद टी-शर्ट के बारे में बात करते हैं , जिसे राहुल गांधी हर दिन पहनते हैं। आरफा ने मजाक में कहा, “तो वे यहां कपड़े टांग सकते हैं। राहुल गांधी की 30-40 टी-शर्ट यहां आसानी से फिट हो जाएंगी । जिसका उत्तर देते हुए जयराम ने कहा, “यह एक राष्ट्रीय विषय बन गया है।” आरफा ने मजाक में कहा कि वह जांच करना चाहती हैं कि क्या गांधी के कंटेनर में जैकेट छिपाई गई थी, लेकिन दुर्भाग्य से वह यह सब यही देख पाई।
राहुल गाँधी के लिए निजी कंटेनर है, जिसमे सब सुख सुविधाएं हैं। उनके पास आरामदायक बिस्तर हैं, ढेरों कपडे हैं, वातानुकूलित कमरे हैं। सभी आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित शौचालय हैं, लोगो ने मिलने के लिए अत्याधुनिक मंत्रणा कक्ष है। 24 घंटे खाना पीना उपलब्ध है और चिकित्सा सुविधा भी है। क्या यह एक तपस्वी का जीवन है? क्या तपस्वी ऐसे जीते हैं? आरफा चाहे कितना ही प्रयास कर लें, लेकिन वह राहुल गाँधी की ‘तपस्वी’ छवि को सुदृढ़ करने में असफल रही हैं।
कांग्रेस के लोग और तथाकथित सेक्युलर मीडिया के लोगों ने तपस्वी शब्द को इतना छोटा बना दिया है, कि एक अधेड़ नेता जिसने दाढ़ी मूछ बढ़ा रखी है, जो कड़ाके की सर्दी में टी-शर्ट पहने घूम रहा है, उसे तपस्वी की उपाधि दी जा रही है। उन्हें इसी कारण प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार भी बताया जा रहा है, जो अपने आप में बड़ी ही हास्यास्पद बात है।
जबकि राहुल गाँधी का उद्देश्य मात्र देश में सत्ता प्राप्त करना ही है, उसके लिए वह साम दाम दंड भेद की नीति अपना रहे हैं। ऐसा दिखाया जा रहा है जैसे कि राहुल गाँधी ने कितना बढ़ा क्रांतिकारी कारनामा कर दिया है, और अब तो उन्हें प्रधानमंत्री बना ही देना चाहिए। जबकि हमारे देश में ऐसे हजारों लाखों साधु संत, फ़ौज के सैनिक, और सामान्य व्यक्ति भी हैं, जो अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण कर अपने शरीर को किसी भी परिस्थिति और मौसम के अनुसार ढाल सकते हैं। लेकिन उन्हें तो कोई प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार नहीं बताता, उन्हें तो कोई क्रांतिकारी नहीं बताता।
लुट्येन्स मीडिया एक और बात फैला रही है, कि हर वर्ष राहुल गाँधी छुट्टियां मनाने विदेश जाते थे, लेकिन इस बार ‘यह तपस्वी’ सब कुछ छोड़ कर जनता की भलाई के लिए देश भर में घूम रहा है। यही मीडिया राहुल गाँधी के आम लोगो से मिलने पर खींचे गए चित्रों को दिन रात दिखाता रहता है, और एक अनचाही सहानुभूति पैदा करने का असफल प्रयास करता है। हमे यह समझ नहीं आ रहा, कि एक व्यक्ति जो बचपन से ही विदेशों में छुट्टियां मनाने जाता हो, वो अगर एक बार किन्ही कारणों से नहीं गया, तो क्या उसे तपस्वी या देश के प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार मान लिया जाएगा?
‘तपस्वी’ और ‘तपस्या’ का राजनीतिक लाभ लेने का कुकृत्य
अगर आप राहुल गाँधी के पिछले कुछ दिनों की यात्रा को देखेंगे तो समझ आ जाएगा कि उन्हें तपस्वी बताने का यह षड्यंत्र मध्यप्रदेश से ही शुरू हो गया था। राहुल गाँधी ने महाकाल के मंदिर में दर्शन करने के बाद कहा था, “शिव, कृष्ण, राम की ‘तपस्या’ का कोई समानांतर नहीं है और भारत ‘तपस्वियों’ की भूमि है। हिंदू धर्म सभी ‘तपस्वियों’ का सम्मान करता है। उन्होंने कोरोना काल में पैदल चलने वाले प्रवासी मजदूरों के बारे में बात करते हुए उन्हें तपस्वी कहा था।
वहीं उन्होंने देश के उद्योगपतियों पर निशाना साधते हुए कहा था कि 2-5 लोग हैं जो प्रधानमंत्री की ‘पूजा’ करते हैं, और इसी कारण उन्होंने अकूत धन संपत्ति बना ली है। इस वक्तव्य में उन्होंने पूजा पद्द्ति का मखौल उड़ाया है, और मीडिया ने उनके इन वक्तव्यों को जोरशोर से दिखाया, और उद्योगपतियों के विरुद्ध एक छद्म दुष्प्रचार भी किया। जबकि यह बढ़ा ही आपत्तिजनक कृत्य है, क्या राहुल गाँधी ऐसा ही वक्तव्य किसी दूर धर्म या मजहब की पूजा पद्धति पर दे सकते हैं?
सलमान खुर्शीद ने राहुल गाँधी की तुलना की भगवान् श्रीराम जी से
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद ने राहुल गांधी को ”अलौकिक” और ”तपस्या करने वाला योगी” बताया। उन्होंने चाटुकारिता की सारी सीमाएं पार कर राहुल गांधी की तुलना भगवान राम और स्वयं की तुलना उनके भाई भरत से की। यात्रा के राज्य समन्वयक खुर्शीद ने सोमवार को पत्रकारों से बात करते हुए कहा, “राहुल गांधी अतिमानवीय हैं, वह एक योगी की तरह हैं।
खुर्शीद ने भगवान राम और अपने भाई भरत की तुलना करते हुए कहा, “भगवान राम की ‘खड़ाउ’ बहुत दूर तक जाती है। कभी-कभी जब राम जी नहीं पहुंच पाते हैं, तो भरत अपनी ‘खड़ाउ’ लेकर जगह-जगह जाते हैं। जैसे कि, हम उत्तर प्रदेश में खड़ाऊ लेकर आए हैं।”
सलमान खुर्शीद के इस आपत्तिजनक वक्तव्य पर जहां भाजपा, आरएसएस, देश भर के साधु संत, और कई हिन्दू संगठनों ने आपत्ति जताई है, वहीं लुट्येन्स मीडिया ने इस वक्तव्य को पुनः बढ़ा चढ़ा कर दिखाया है। यह लोग राहुल गाँधी की तुलना प्रभु श्री राम से कर रहे हैं, क्या इनमे हिम्मत है कि यह राहुल गाँधी की तुलना किसी मजहबी पैगंबर या किसी रिलिजन के गॉड के साथ कर सकें? बिलकुल नहीं, इन्हे बस हिंदुत्व और हिन्दुओं का ही अपमान करना आता है, और सलमान खुर्शीद ने अपने वक्तव्य से उन्हें एक और अवसर ही दिया है।
राहुल का उलाहना – जय श्रीराम नहीं, जय सियाराम बोलिए
पिछले दिनों राहुल गाँधी ने ‘जय सियाराम’ और ‘जय श्री राम’ के नारों पर अनावश्यक विवाद खड़ा करने का प्रयास किया था, जिसमे मीडिया ने उनका सहयोग किया था। राहुल गाँधी ने कहा था, ‘जय सीता और जय राम’ का अर्थ है कि दोनों एक ही हैं। इसलिए हमे ‘जय सियाराम’ या ‘जय सीताराम’ नारा ही लगाना चाइये, ना कि ‘जय श्रीराम’। भगवान राम सीता जी की इज्जत के लिए लड़े। हम जयसिया राम कहते हैं और समाज में महिलाओं का सीता की तरह आदर करते हैं। राम ने समाज को जोड़ने का काम किया था,और सभी वर्गों को सम्मान दिया था।
वहीं उन्होंने आरएसएस और भाजपा पर हमला लरते हुए कहा था, कि वह लोग भगवान राम के जीने के तरीके को नहीं अपनाते। वह सियाराम और सीताराम कर ही नहीं सकते, क्योंकि उनके संगठन में एक महिला नहीं है, तो वो जय सिया राम का संगठन ही नहीं है, उनके संगठन में सीता तो आ ही नहीं सकती, उन्होंने सीता को तो बाहर कर दिया। यह बातें मुझे एक पंडित जी ने बताई।
हालांकि राहुल गाँधी शायद यह भूल गए कि उनकी ही सरकार ने उच्चतम न्यायालय में यह कहा था कि भगवान श्री राम एक कल्पित चरित्र हैं और उनका कोई अस्तित्व ही नहीं है। और आज वह उन्ही भगवान् श्री राम और माता सीता के नारों पर लोगों को ज्ञान दे रहे हैं, राजनीतिक लाभ लेने के लिए अपने प्रतिद्वंदियों पर हमले कर रहे हैं। और इस षड्यंत्र में उनका सहयोग कर रहा है उनका प्रिय लुट्येन्स मीडिया।
क्योंकि जैसे ही राहुल गाँधी का यह वक्तव्य सामने आया, मीडिया ने उसे बढ़ा चढ़ा कर दिखाना शुरू कर दिया। ‘जय श्री राम’ के नारों को उद्वेलित करने वाला और आक्रामक बताने वाला मीडिया ‘जय सियाराम’ के नारे को ऐसा बताने लगा जैसे कोई नयी बात हो। यही मीडिया ‘जय श्री राम’ के नारों को ‘हत्या करने का लाइसेंस’ तक बता चुका है। ऐसे में मीडिया की मंशा पर प्रश्नचिन्ह लगाना सामान्य सी बात है। वहीं देखा जाए तो दोनों ही नारों को अर्थ लगभग सामान ही है, लेकिन चाकरी करने वाले इस कथित सेक्युलर मीडिया को इतना ही ज्ञान होता तो बात ही क्या थी?
कांग्रेस और गाँधी परिवार को यह पता है कि उनके छद्म सेकुलरिज्म, मुस्लिम तुष्टिकरण, और हिन्दू द्वेष के कारण लोग बहुतायत में उनसे छिटक चुके हैं, और यही कारण है कि वह मीडिया की सहायता से अपनी छवि को बदलने का प्रयास कर रहे हैं। लेकिन अपनी छवि को बदलने के लिए कुछ सत्कर्म करने के बजाये यह लोग हिंदुत्व को ही तोड़ मरोड़ कर अपने लाभ के लिए उसका दुरूपयोग कर रहे हैं। इस कार्य में मीडिया उनका सहयोग कर रहा है। लेकिन यह सब कर के यह लोग हिंदुत्व को ही बदनाम करने का प्रयास कर रहे हैं।
एक आम हिन्दू यह कभी भी नहीं सहन करेगा कि राहुल गाँधी की तुलना उनके आराध्य श्री राम जी से की जाए। वह यह कभी सहन नहीं करेगा कि हिन्दू धर्म में विदित तपस्या जैसे गूढ़ संकल्पना का दुरूपयोग एक अधेड़ नेता की छवि को सुधारने में किया जाए। वह यह कभी नहीं चाहेगा कि एक विदेशी माता से उत्पन्न, बैंकाक में छुटियाँ मनाने वाले व्यक्ति को ‘तपस्वी’ कहा जाए। इन सभी प्रकल्पों का उल्टा ही प्रभाव होगा, और जितना जल्दी हो कांग्रेस और लुट्येन्स मीडिया को यह समझ लेना चाहिए, अन्यथा बाद में ईवीएम को दोष देने के अलावा कुछ बचेगा नहीं।