HinduPost is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma

Will you help us hit our goal?

HinduPost is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma
23.2 C
Sringeri
Thursday, June 8, 2023

मनोज मुन्तशिर: हंगामा है क्यों बरपा

इन दिनों गीतकार मनोज मुन्तशिर कथित वाम बुद्धिजीवियों के निशाने पर हैं। यूं तो उनके निशाने पर हर वह व्यक्ति होता है, जो उनके एजेंडे से जरा भी इधर उधर होता है। साहित्यिक चोरी का आरोप अब उनपर लगा है। कहा जा रहा है कि उनकी एक कविता किसी अंग्रेजी कविता का गूगल अनुवाद है।

हिन्दू पोस्ट उनके उत्तर की प्रतीक्षा में हैं, हालांकि आज उन्होंने उत्तर दे दिये हैं। परन्तु यहाँ पर बात कथित प्रगतिशीलों की आ जाती है, उन्हें मनोज मुन्तशिर पसंद नहीं है, उन्हें अनुपम खेर पसंद नहीं है, उन्हें कंगना रनावत पसंद नहीं हैं और उन्हें फिल्म उद्योग की हर वह आवाज़ नापसंद है जो उनके बताए हुए एजेंडे पर नहीं चलती है, या फिर उनके एजेंडे से हटकर भारतीय या कहें हिंदूवादी दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है।

जब तक मनोज मुन्तशिर का विश्लेषण किया जाए, हम प्रगतिशीलों द्वारा की गयी कुछ साहित्यिक चोरियों या प्रेरणाओं पर एक दृष्टि डालते हैं।

एक बेहद क्रांतिकारी कवि हैं अवतार सिंह संधु पाश! जिनकी हत्या खालिस्तानियों ने कर दी थी। वह इन क्रांतिकारियों के प्रिय कवि हैं और उनकी रचनाएं वास्तव में क्रांति के लिए उत्प्रेरित करती हैं। परन्तु उनकी एक रचना है मैं घास हूँ, इसे पढ़ते हैं:

मैं घास हूँ

मैं आपके हर किए-धरे पर उग आऊँगा

बम फेंक दो चाहे विश्‍वविद्यालय पर

बना दो होस्‍टल को मलबे का ढेर

सुहागा फिरा दो भले ही हमारी झोपड़ियों पर

मेरा क्‍या करोगे

मैं तो घास हूँ हर चीज़ पर उग आऊँगा

बंगे को ढेर कर दो

संगरूर मिटा डालो

धूल में मिला दो लुधियाना ज़िला

मेरी हरियाली अपना काम करेगी।।।

दो साल।।। दस साल बाद

सवारियाँ फिर किसी कंडक्‍टर से पूछेंगी

यह कौन-सी जगह है

मुझे बरनाला उतार देना

जहाँ हरे घास का जंगल है

मैं घास हूँ, मैं अपना काम करूँगा

मैं आपके हर किए-धरे पर उग आऊँगा ।

अब पढ़ते हैं “grass” कविता को, जो लिखी थी CARL SANDBURG ने और जिनका जीवनकाल 1878-1967 था। जबकि पाश का जन्म 1951 में हुआ था।

Pile the bodies high at Austerlitz and Waterloo।

Shovel them under and let me work—

                                          I am the grass; I cover all।

And pile them high at Gettysburg

And pile them high at Ypres and Verdun।

Shovel them under and let me work।

Two years, ten years, and passengers ask the conductor:

                                          What place is this?

                                          Where are we now?

                                          I am the grass।

                                          Let me work।

पाश की मैं घास हूँ, कविता हूबहू grass कविता की प्रति दिखाई देती है। हाँ, पाश ने अपने भारतीय सन्दर्भ ले लिए। कहा जा सकता है कि उन्होंने कविता का स्थानीयकरण करके अनुवाद कर दिया। जैसा आरोप मनोज मुन्तशिर पर है। और इस कविता के विषय में पंजाबी कवि अमरजीत चन्दन का कहना है कि ऐसा पाश को नहीं करना चाहिए था, घास कविता में grass का अनुकूलन कर लिया है, जबकि आधी कविता अलग है!

जबकि पाश की सबसे क्रान्तिकारी कविता “सबसे खतरनाक होता है, सपनों का मर जाना” पर भी रह रह कर विवाद उठते हैं, कुछ का कहना है कि यह कविता रूसी कवि mikhail kulchitsky की कविता The most terrible thing in the world से प्रेरित है, परन्तु यह मात्र अनुमान ही हैं, ऐसा प्रमाण प्राप्त नहीं होता है! हो सकता है कि उन्होंने कभी कोई कविता पढ़ी हो और वह उनके मस्तिष्क में रह गयी हो, ऐसा अमरजीत सिंह चन्दन का मानना है, जिन्होनें पाश की मृत्यु के उपरान्त उनकी अप्रकाशित कविताओं को प्रकाशित किया था!

हालांकि एक कविता के कारण अवतार सिंह संधु अर्थात पाश के पूरे रचनाकार जीवन पर किसी भी प्रकार का न ही आक्षेप लगाया जा सकता है और न ही साहित्यिक योगदान कम किया जा सकता है। ऐसा कई बार होता है। मगर कई बार ऐसा और भी बड़े नाम करते हैं। जैसे पाठकों को याद होगा गुलज़ार पर कई बार चोरी के आरोप लगे। जिनमें सबसे बड़ा आरोप था इश्किया फिल्म में गाने “इब्नबतूता बगल में जूता” पर! यह कविता हिंदी के विख्यात कवि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की थी।

मगर गुलज़ार इस बात पर मौन रहे और उन्होंने उत्तर नहीं दिया और न ही अपना पक्ष रखा।

अंग्रेजी धुन चोरी के तो न जाने कितने आरोप लगते रहे। खैर, अभी बात साहित्यिक चोरी की है।  हिंदी साहित्य में एक बहुत ही क्रांतिकारी कवयित्री हैं आभा बोधिसत्वा, उनपर भी कविता चोरी का आरोप लगा था और लेखक अरुण माहेश्वरी ने कहा था कि आभा बोधिसत्वा ने उनकी पत्नी सरला माहेश्वरी की कविता को चुराया है। उन्होंने पोस्ट लिखा था और कविता की तस्वीर और लिंक भी लगाया था।

अरुण महेश्वरी जी ने इस पीड़ा को अपनी फेसबुक पोस्ट पर भी व्यक्त किया था!

इतना ही नहीं, वामपंथियों की कथित प्रिय पत्रिका हंस, जिसे प्रगतिशील विचारों की मासिक कहा जाता है, उसमें प्रकाशित एक कहानी में तो लेखिका ने एक लेखक के फेसबुक पोस्ट ही जोड़ दिए थे, हालांकि कुछ लोगों का कहना था कि उक्त लेखक महोदय भी अंग्रेजी अनुवाद करते हैं। परन्तु जहां लेखिका की चोरी जगजाहिर थी, वहीं लेखक पर आरोप लगाने वाले अपनी बात नहीं साबित कर पाए।

साहित्य में प्रगतिशीलों द्वारा एक बार नहीं कई बार चोरियां की गई हैं, और कथित प्रगतिशील कविताएँ तो रूसी कविताओं का हिंदी अनुवाद ही लगती हैं, ऐसा लगता है जैसे बस स्थानीयकरण कर लिया है।  एक और प्रसंग हुआ था जिसमें हिंदी के दो बड़े प्रगतिशील लेखकों की दो कहानियाँ एक ही जैसी थी। एक थे राकेश बिहारी जिनकी कहानी थी बहुरुपिया और दूसरे थे प्रियदर्शन, जिनकी कहानी हंस में प्रकाशित हुई थी और वह थी प्रतीक्षा का फल। यह दोनों कहानियाँ लगभग एक ही जैसी थीं और इनका रचनाकाल भी लगभग समान ही था।

परन्तु यह सभी चोरी वाली समानताएं उन सभी लोगों के लिए इसलिए कुछ नहीं हैं क्योंकि जो जीवित हैं और जो साहित्यिक चोरी करते हुए पकड़े गए हैं, उनमें एक विशेष बात है, जो इन सभी को आपस में जोडती है और वह है इनका हिन्दुओं से और हिन्दू पहचान से विरोध एवं मुस्लिम प्रेम, और इनके वह खोखले वामपंथी विचार, जिसमें इतनी स्वतंत्रता नहीं है कि चोरी का विरोध भी कर सकें।

क्या इन वामपंथी लेखकों के लिए हर उस व्यक्ति की साहित्यिक चोरी क्षमा योग्य है जो भाजपा और हिन्दुओं की निंदा करता है, या फिर यह सभी चोरों के विरुद्ध बोलेंगे? प्रश्न उनसे भी है!

यहाँ हम अभी मनोज मुन्तशिर के औपचारिक उत्तर की प्रतीक्षा में हैं, एवं उस पर भी लिखेंगे, पर उन पर प्रश्न उठाने वाले सोचें कि क्या उन्होंने इन जीवित लोगों का विरोध करने का साहस किया है या उपहास किया है? या फिर मनोज मुन्तशिर का विरोध इसलिए है क्योंकि उन्होंने मुगलों के विषय में जो वामपंथी महिमामंडन है, उसे तोड़ा है!

साहित्यिक चोरियों की यह प्रगतिशील कहानी प्रमाणों के साथ पाठकों के सम्मुख और आएगी जिससे पाठक जान सकें, कि जिन्हें वह प्रगतिशील या लेखक मानते हैं, वह वास्तव में कितने डरपोक हैं और एजेंडा चलाने वाले हैं!

Subscribe to our channels on Telegram &  YouTube. Follow us on Twitter and Facebook

Related Articles

1 COMMENT

  1. Please add koo app to share your news and comments, as there are more than 10million subscribers for this app and Twitter is losing so many subscribers everyday due to their anti Hindu stance. Be Indian buy Indian and use Indian goods only

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Latest Articles

Sign up to receive HinduPost content in your inbox
Select list(s):

We don’t spam! Read our privacy policy for more info.