HinduPost is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma

Will you help us hit our goal?

HinduPost is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma
22.2 C
Sringeri
Sunday, June 4, 2023

योगी आदित्यनाथ के प्रति नफरत से भरे वामपंथियों ने विज्ञापन में मुसलमानों को ठहरा दिया दंगाई?

वामपंथी इस हद तक हिन्दू मुस्लिम करते रहते हैं कि वह छोटी छोटी चीज़ों में “डरा हुआ मुसलमान” खोजते रहते हैं। आज इंडियनएक्सप्रेस में फ्रंट पेज पर उत्तर प्रदेश सरकार का विज्ञापन है जिसमें बेहतर कानून व्यवस्था की तस्वीर दिखाते हुए लिखा है

“फर्क साफ़ है,

2017 से पहले  और 2017 के बाद! और उसमें फिर एक व्यक्ति की तस्वीर है जिसमें लिखा है दंगाइयों का खौफ, और फिर 2017 के बाद में लिखा है “मांग रहे हैं माफी!”

इस विज्ञापन को लेकर वामपंथी तबका चिढ गया है। इसमें उन्होंने दंगाइयों को मुस्लिमों से जोड़ दिया है, जबकि इसमें कहीं भी हिन्दू मुसलमान लिखा नहीं है। फिर भी कविता कृष्णन और स्वरा भास्कर जैसी वामपंथी महिलाऐं इस विज्ञापन को इस्लाम के खिलाफ बताती हुई ट्विटर पर उतर आईं। कविता कृष्णन ने ट्वीट किया कि

जिसमें कविता कृष्णन ने लिखा कि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा इस बड़े इस्लामोफोबिक विज्ञापन पर एक नजर डाली जाए। और आप इस बात का बहाना नहीं बना सकते हैं कि यह एक वाणिज्यिक निर्णय है। यह विज्ञापन फासिज्म को बढ़ाने वाला है। इसे देखना हैरान करता है

इस बात पर यूजर्स बहुत ही आश्चर्यचकित हो गए और उन्होंने कविता कृष्णन से प्रश्न पूछने आरम्भ कर दिए कि आखिर वह यह कैसे कह सकती हैं कि दंगाई मुसलमान हैं?

इस विज्ञापन को लेकर जैसे ही कविता कृष्णन ने शोर मचाना आरम्भ किया, वैसे ही कई मुस्लिम और वामपंथी हैंडल भी इस विज्ञापन के विरोध में उतर आए। परन्तु इस विज्ञापन में कहाँ मुसलमान का प्रयोग किया है और कहाँ पर वह कपड़ों से ही दिख रहे हैं? यह पता नहीं चलता! इंडियन मुस्लिम हिस्ट्री नामक हैंडल ने लिखा कि ऐसा लगता है जैसे इंडियन एक्सप्रेस ने अपने सारे पत्रकारिता एवं मीडिया मूल्यों को इस विज्ञापन के बदले में खो दिया है। यह विज्ञापन बहुत ही शर्मिंदा करने वाला है।

एक अशरार अली ने लिखा कि इंडियन एक्सप्रेस में यह विज्ञापन मुस्लिमों के खिलाफ हिंसा को सही ठहराता है।

इंडियन एक्सप्रेस का सेक्युलर होने का प्रमाणपत्र कैंसल करने के लिए जैसे लिबरल और मुस्लिम जगत आज उतारू है। एक हैंडल ने लिखा कि इंडियन एक्सप्रेस भारत के सबसे प्रगतिशील पेपरों में से एक है और भारत में अल्पसंख्यकों को बदनाम करते हुए दिखाना अपने आप में बहुसंख्यक आतंकवादियों द्वारा हमला करने जैसा है।

rohiniरोहिनी सिंह भी पीछे नहीं रहीं और उन्होंने भी प्रश्न किया, आपने ऐसा क्यों किया इंडियन एक्सप्रेस?

वहीं सेक्युलर इतना शोर मचा रहे हों, और स्वरा भास्कर पीछे रह जाएं, ऐसा हो नहीं सकता है। स्वरा भास्कर ने लिखा

“sickening इंडियन एक्सप्रेस! क्या यही साहस की पत्रकारिता है?”

परन्तु इसमें इस्लाम का विरोध कैसे है? और कैसे यह मुस्लिमों के खिलाफ है, यह समझ नहीं आ रहा है! लोग प्रश्न कर रहे हैं! और दंगाइयों का कौन सा मजहब होने लगा? क्या वामपंथी दंगाइयों को मुसलमान और मुसलमानों को दंगाई साबित करना चाहते हैं? यह एक विचारणीय प्रश्न है!

इस तस्वीर में मुस्लिम कैसे दिख गया, यह लोग पूछ रहे हैं!

उच्चतम न्यायालय में अधिवक्ता शशांक शेखर झा ने स्वरा को आड़े हाथ लेकर कहा कि जिस प्रकार से वह दंगाइयों को बचा रही हैं और घृणा फैला रही हैं, वह अजीब है!

परन्तु एक बात समझ में नहीं आती है कि स्वरा भास्कर या कविता कृष्णन और मीडिया एवं वामपंथी फिल्म निर्माता सब मिलकर दंगाइयों की छवि तिलक धारी के रूप में प्रस्तुत कर रहे थे, लगभग हर फिल्म में जिसमें दंगे भड़कते दिखाए जाते हैं, उसमें दंगाई और कोई नहीं बल्कि तिलकधारी हिन्दू ही होता है, भगवा रंग को हिंसा का रंग दिखा दिया गया, परन्तु हिन्दुओं ने सहज विरोध नहीं किया।

यहाँ तक कि तब भी नहीं जब मुस्लिम तांत्रिकों को हिन्दू साधु बनाकर प्रस्तुत किया जाता रहा। ऐसे एक नहीं कई मामले थे, जिनमें दोषी मुस्लिम पीर, फ़कीर था मगर भगवा वस्त्रों वाले साधू के रूप में दिखाया जाता रहा। गुरुग्राम से लेकर लखनऊ तक ऐसे मामले होते रहे और हिन्दुओं की तंत्र विद्या को दुष्टता के रूप में प्रस्तुत किया जाता रहा, हालांकि अधिकांश मामलों में न ही हिन्दू और न ही तंत्र विद्या का कोई हाथ था। अधिकाँश मामलों में मुस्लिम पीर और फकीर दोषी थी, परन्तु बहुत ही आराम से उनका सारा दोष मीडिया अभी तक हिन्दुओं के भगवा रंग पर मढ़ता आ रहा था।

इंडियन एक्सप्रेस के विज्ञापन में कपड़े देखकर भी नहीं पता चल रहा मुसलमान है दंगाई

जब तक हिन्दू साधुसंतों को उन अपराधों के लिए दोषी ठहराया जाता रहा, जो उन्होंने किए ही नहीं थे, तब तक कोई शोर नहीं हुआ, परन्तु अब इस विज्ञापन में जिसमें कपड़ों से भी यह पहचान नहीं की गयी है कि दंगाई मुसलमान है, वामपंथी तबका और मुस्लिम भड़क गए हैं, परन्तु वह क्यों भड़के हैं यह पता नहीं चल रहा है!

 एक यूजर ने प्रश्न किया है कि क्या कपड़ों से पहचान लिया?

अशोक पंडित ने भी स्वरा भास्कर से यही प्रश्न किया कि दंगाइयों का किसी धर्म से क्या लेना देना ?

इस दंगाई की तस्वीर आपके किसी साथी के साथ मिलती है क्या ?

इसी को कहते हैं चोर की दाड़ी में तिनका !

जो भी हो, इस विज्ञापन ने वामपंथियों के दिमाग की गंदगी को एक बार फिर से बाहर ला दिया है!

Subscribe to our channels on Telegram &  YouTube. Follow us on Twitter and Facebook

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Latest Articles

Sign up to receive HinduPost content in your inbox
Select list(s):

We don’t spam! Read our privacy policy for more info.