आमिर खान की लाल सिंह चड्ढा की ओपनिंग अत्यंत निराशाजनक रही है और साथ ही इसकी आलोचना भी हो रही है। और समीक्षाएं भी नकारात्मक आ रही हैं। इंडिया टुडे से लेकर हिन्दुस्तान टाइम्स तक इसकी आलोचना हो रही है। फिल्म में क्या विशेष है, क्या नहीं, यह बात की जा रही है। यह भी देखा गया कि कई स्थानों पर शो भी निरस्त करने पड़े। हालांकि यह एक लंबा वीकेंड है और लोगों को अभी भी आशा है कि यह फिल्म रफ्तार पकड़ेगी।
क्या कहते हैं समीक्षक:
समीक्षक इस फिल्म के विषय में क्या कहते हैं? फिल्म समीक्षक तरण आदर्श का कहना है कि एक शब्द में समीक्षा अर्थात बेकार! रेटिंग दो स्टार!
वहीं फिल्म समीक्षक रोहित जायसवाल का कहना है कि यह फिल्म एक प्रेरक फिल्म है और यह आपको प्रेरणा देती है कि आप पास के मेडिकल स्टोर में जाएं और पैरासीटामोल या सैरिडोन खरीदें! आमिर आपने एक मास्टरपीस को मार डाला और अपने जीवन के चार साल बर्बाद किये
इंडिया टुडे की समीक्षा में इसे हालांकि तीन स्टार दिए हैं परन्तु यह भी कहा गया है कि लाल सिंह चड्ढा में यदि कोई सबसे बड़ी गलती है तो वह आमिर हैं। इसमें लिखा है कि सब कुछ आमिर की कार्टून वाले अभिनय के चलते नष्ट हो गया है। फारेस्ट की देर से समझने की क्षमता को आमिर खान ने मानसिक विकलांगता क्यों बना दिया, यह नहीं पता चलता है।
वहीं फारेस्ट गंप में जहाँ फारेस्ट अपनी ही यूनिट चीफ लेफ्टिनेंट डैन को वियतनाम में बचाता है, उसे अपनी पीठ पर लेकर जाता है और दोनों सुरक्षा के लिए भागते हैं, तो वहीं “सेक्युलर” चड्ढा, एक पाकिस्तानी आतंकवादी को बचाता है।
अब यहीं पर सबसे बड़ा प्रश्न आता है कि क्या भारतीय सेना में यह तक नहीं समझाया जाता है कि कैसे शत्रु सैनिकों को और अपने सैनिक को पहचाना जाए? आमिर खान एक प्रशिक्षित सैनिक की भूमिका निभा रहे हैं और उन्हें यह तक नहीं पता है कि कौन भारतीय है और कौन पाकिस्तानी! परन्तु यही तो एजेंडा है! भारत से प्यार करने का दावा करने वाले आमिर खान ने यह फिल्म पूरी तरह से भारत के विरोध में बनाई है। इसकी समीक्षा करते हुए इंडिया स्पीक्स डेली के विपुल रेगे लिखते हैं कि
यह फिल्म भारत की ह्त्या ही है और ऐसी हत्या कि जिसे आप प्रमाणित नहीं कर सकते। क्योंकि इस फिल्म में स्वर्ण मदिर से लेकर कारगिल तक भारत के पक्ष को ही निर्बल किया गया है। स्वर्ण मंदिर पर सेना के नियंत्रण के दृश्य को इस प्रकार फिल्माया गया है जैसे कि सेना अत्याचार कर रही हो और पवित्र स्थान को स्वतंत्र करवाकर मानवता को रौंद रही हो!
जैसा कि इस फिल्म के ट्रेलर से ही पता चलता है कि यह फिल्म सेना पर है परन्तु सेना में ऐसे व्यक्ति को कैसे लिया जा सकता है जो मानसिक विकलांग है और यही सेना का सबसे बड़ा अपमान है। इस फिल्म में सेना के अपमान पर इंग्लैण्ड के क्रिकेट खिलाड़ी मोंटी पानेसर ने विरोध किया है और ट्विटर पर लिखा है कि फारेस्ट गंप अमेरिकी सेना पर इसलिए फिट बैठती है क्योंकि अमेरिका कम बुद्धि वाले लोगों को वियतनाम युद्ध के लिए भर्ती कर रहा था, परन्तु यह फिल्म पूरी तरह से भारत के सशत्र बलों और सिखों के लिए अपमान है!
आमिर खान ने जानते बूझते किया है यह दुस्सहास!
यह हर कोई जानता है कि आमिर खान की किस फिल्म से लोग सबसे ज्यादा चिढ़े हुए हैं, यह हर कोई जानता है कि आमिर खान ने पीके फिल्म में किस प्रकार हिन्दू धर्म का अपमान किया था। आमिर खान जो खुद को देशभक्त होने का दावा करते हैं, वह बहुसंख्यक जनता के प्रति इस सीमा तक असहिष्णु है कि पीके फिल्म में वह महादेव की भूमिका निभा रहे कलाकार को बाथरूम में बंद करते हैं, वह इधर उधर भगाते हैं, पेशाब करते समय भगवान जी के चित्रों वाला सूटकेस अपने साथ रखते हैं, आदि आदि! और लोग उन्हीं दृश्यों के माध्यम से चिढ़े हुए हैं, फिर भी आमिर खान ने लाल सिंह चड्ढा के चरित्र को “पीके” जैसा मासूम बताया है!
अर्थात जो लोग पीके की अभद्रता का विरोध कर रहे थे उन्हें जैसे उकसाकर कहा कि आमिर खान के लिए पीके क्या है और शेष जनता क्या है? हिन्दू जनता क्या है?
इतना ही नहीं आमिर खान यह भली तरह से जानते हैं कि लोग उनसे क्यों गुस्सा हैं और कैसे वह लोगों का गुस्सा शांत कर सकते हैं। उन्हें और कुछ नहीं कहना है, बस अपनी एजेंडा वाली फिल्मों के लिए क्षमा ही तो मांगनी है, और ऐसा करके वह उस वर्ग की आँखों के तारे हो सकते थे, परन्तु उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया। वह यह जानते हैं कि वह जो एजेंडा परोसने जा रहे हैं, उसे भी लोग समझ जाएंगे और अंतत: विरोध में ही उतरेंगे, परन्तु फिर भी उन्होंने यह फिल्म बनाई है, एजेंडा डाला है, और इस बार भारत की जो रीढ़ है, जो भारत को दुश्मनों से बचाकर रखे हुए है, जो पाकिस्तान द्वारा फैलाए गए छद्म युद्ध का न जाने कब से सामना कर रही है, उस पर प्रहार किया है।
मस्तिष्क के धीमे विकास और मानसिक विकलांगता में बहुत अंतर होता है, और वियतनाम पर अमेरिका द्वारा किए गए आक्रमण तथा भारत में हुए कारगिल युद्ध में भी जमीन आसमान का अंतर है!
वियतनाम युद्ध अमेरिका ने वियतनाम पर थोपा था, तो वहीं कारगिल युद्ध भारत पर थोपा गया था। और ऐसे में यह किस दृष्टिकोण से दिखाया जा सकता था, कि भारत में भी कम बुद्धि वाले लोगों को सेना में लेना आरम्भ कर दिया है? और उसके बाद पाकिस्तानी आतंकवादी को बचाकर ले आया और फिर उस आतंकवादी का यह कहना कि “आप नमाज माने पूजा अदि नहीं करते” तो उस पर लाल सिंह चड्ढा का यह कहना कि “मम्मी कहती है कि उससे मलेरिया फैलता है!”
वहीं कौन बनेगा करोड़पति का वह दृश्य भी वायरल हो रहा है, जिसमें आमिर खान की एकमात्र है शो में जो सैल्यूट नहीं कर रहे हैं,
आमिर ने इस शो में वन्देमातरम भी नहीं बोला है,
क्या आमिर को यह नहीं पता था कि लोग और गुस्सा होंगे, परन्तु आमिर को यह विश्वास है कि वन्देमातरम न बोलकर और सैल्यूट न करके वह उस वर्ग को साध रहे हैं, जिसे उनसे यही अपेक्षा थी कि वह किसी भी भारतीय या हिदू गौरव के प्रतीक का सम्मान नहीं करेंगे!
दरअसल आमिर के लिए हिन्दू मात्र उनकी फिल्म के माध्यम से कमाई करने का जरिया हैं और आमिर ऐसे व्यक्ति हैं, जो इस इकोसिस्टम के दुलारे हैं। वह बौद्धिक रूप से हमला करना जानते हैं और आमिर को यह पता है कि कैसे महीन से महीन नैरेटिव को लोगों के दिलों में घुसाना है।
जैसे थ्री इडियट्स में राजू की बहन की शादी और दहेज़, जबकि मुस्लिम समाज में जहेज और हलाला के चलते न जाने कितनी लडकियां आत्महत्या तक कर रही हैं, और हलाला के मामले सामने आ रहे हैं फिर भी आमिर ने कमला भसीन के साथ रक्षाबंधन और करवाचौथ पर हिन्दू आस्था का उपहास उड़ाया था,
परन्तु कौन बनेगा करोड़पति के उस एपिसोड में आमिर खान ने जो किया है, क्या उसे क्षमा किया जा सकता है? क्या उसे यह कहा जा सकता है कि वह किसी निर्देशक की कलम पर अभिनय कर रहे थे? जैसा पीके फिल्म के लिए कहा जाता है कि वह तो केवल राजकुमार हीरानी के निर्देशन पर अभिनय कर रहे थे? यदि नहीं तो फिर उस एपिसोड में आमिर ऐसे कट्टर मुस्लिम के रूप में क्यों उभर आए जो वन्देमातरम से परहेज करता है और जो सैनिक को सैल्यूट नहीं करता है?
क्या यह समझा जाए कि आमिर वास्तव में वही आमिर है जो भारत को नीचा दिखाने की तमन्ना लिए हुए लाल सिंह चड्ढा बनाते हैं और फिर पाकिस्तानी आतंकवादी को अच्छा बनाकर प्रस्तुत करते हैं और भारत को ही युद्ध करने वाला देश बता देते हैं?
ऐसा कैसे संभव है?
ऐसा कैसे संभव है कि वियतनाम और ईराक और अफगानिस्तान आदि पर हमला करने वाली अमेरिकी सेना की तुलना उस भारतीय सेना से की जाए जिसने मात्र अपनी धरती की रक्षा के लिए ही युद्ध किए हैं?
यहाँ तक कि इस फिल्म का एजेंडा भी मात्र यही दिखाने के लिए है कि पाकिस्तानी कितने अच्छे होते हैं:
लोगों के दिल में इस फिल्म को लेकर बहुत आक्रोश है और दुर्भाग्य की बात यही है कि अभी भी बॉलीवुड इसे समझ नहीं रहा है कि आखिर लोग क्यों गुस्सा हैं? अभी भी लोग यह लिख रहे हैं कि आमिर खान की इस फिल्म के इतने बुरे प्रदर्शन से इंडस्ट्री सदमे में हैं, परन्तु आज तक हिन्दू समाज को और भारत की छवि को जो सदमा देते हुए आए हैं, उसका क्या?
हालांकि लोगों को अभी भी आस है कि इस लम्बी वीकेंड पर फिल्म अच्छा करेगी, देखते हैं कि क्या आमिर खान अपना भारत और हिन्दू विरोधी एजेंडा बेचने में सफल होते हैं या फिर उन्हें चीन पर ही निर्भर रहना होगा?