कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव का परिणाम आ गया है, जिसमें मल्लिकार्जुन खड़गे जीत गए हैं। उन्हें कुल 7,897 वोट मिले हैं, वहीं उनके प्रतिद्वंदी शशि थरूर को भी 1,000 से ज्यादा वोट मिले हैं, जिसके पश्चात थरूर ने अपनी हार भी स्वीकार कर ली है। मल्लिकार्जुन खड़गे के बारे में माना जा रहा था कि उन्हें पार्टी हाईकमान की ओर से आरम्भ से ही समर्थन प्राप्त था। यही कारण है कि ज्यादातर नेताओं का समर्थन भी उन्हें ही मिला है। कर्नाटक से 9 बार विधायक रहने और कई बार सांसद रहने वाले मल्लिकार्जुन खड़गे को गांधी परिवार का अत्यंत निष्ठावान नेता माना जाता है।
मल्लिकार्जुन खड़गे का कांग्रेस अध्यक्ष चुना जाना पार्टी में कथित रूप से बड़े बदलाव की शुरुआत माना जा रहा है। उनके अध्यक्ष बनने के साथ ही गांधी परिवार नेपथ्य में चला गया है, जो लगातार 24 वर्षों से कांग्रेस अध्यक्ष पद पर आसीन था। 1998 से अब तक सोनिया गांधी ही कांग्रेस अध्यक्ष थीं, जबकि बीच में दो वर्षों के लिए 2017 से 2019 के मध्य राहुल गांधी ने यह पद संभाला था। लोकसभा चुुनाव में हार के पश्चात राहुल गांधी ने पद छोड़ दिया था। यही नहीं तभी उन्होंने साफ कर दिया था कि अब गांधी परिवार से कोई अध्यक्ष नहीं होगा। अंत तक वह इस जिद पर अड़े रहे और फिर चुनाव हुआ, जिसमें मल्लिकार्जुन खड़गे को चुना गया है।
राहुल गाँधी ने बताया चुनाव को ‘ऐतिहासिक‘
इस बीच कांग्रेस ने अध्यक्ष के लिए चुनाव कराने के निर्णय को भुनाना भी शुरू कर दिया है। भारत जोड़ो यात्रा पर निकले राहुल गांधी ने कहा कि कांग्रेस एकमात्र राजनीतिक दल है, जिसमें चुनाव प्रक्रिया का पालन किया जाता है। उन्होंने कहा कि भाजपा से कोई इस बारे में प्रश्न नहीं करता, किसी और दल में अध्यक्ष के लिए चुनाव नहीं होता है। राहुल गांधी ने कहा कि मल्लिकार्जुन खड़गे और शशि थरूर दोनों ही अनुभवी नेता हैं। देश में इस समय नफरत और हिंसा फैलाई जा रही है, और कांग्रेस इसका कड़ा मुकाबला कर रही है।
कांग्रेस का अध्यक्ष चुनाव समाप्त, लेकिन आतंरिक द्वन्द शुरू
कांग्रेस ने कथित रूप से अध्यक्ष पद का चुनाव करवा दिया है, लेकिन इस चुनाव ने पार्टी के भीतर जारी अंतर्द्वंद को उभार दिया है। शीर्ष पद के लिए इन दोनों नेताओं में से किसका समर्थन किया जाए, इसे लेकर केरल के कांग्रेस नेताओ में मतभेद भर गया था। केरल विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष वी डी सतीशन सहित कुछ वरिष्ठ नेताओं ने खुले तौर पर खड़गे को समर्थन किया था, तो लोकसभा सांसद हिबी ईडन जैसे कुछ युवा नेताओं ने थरूर का समर्थन किया था।
शशि थरूर ने गुरुवार को कहा कि पार्टी की राज्य इकाइयों के अध्यक्ष उनके प्रचार के समय उनके साथ नहीं आये थे। उन्होंने कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष पद चुनाव के लिए पार्टी निष्पक्षता का पालन नहीं कर रही थी। कांग्रेस सांसद ने रविवार को दिए गए एक साक्षात्कार में कहा, “मैंने कई जगहों पर देखा है कि पीसीसी (प्रदेश कांग्रेस प्रमुख), सीएलपी (कांग्रेस विधायक दल) के नेता और बड़े नेता मल्लिकार्जुन खड़गे का स्वागत करते हैं, उनके साथ बैठते हैं, लोगों को आमंत्रित करते हैं और उन्हें उपस्थित होने के लिए कहते हैं, यह सब एक उम्मीदवार के लिए हुआ लेकिन मेरे लिए कभी नहीं।”
थरूर ने यह भी कहा कि उन्हें सोमवार के चुनाव में मतदान करने वाले कांग्रेस प्रतिनिधियों की एक अधूरी सूची मिली थी। साथ ही उनसे संपर्क करने के लिए सूची में कोई फ़ोन नंबर नहीं है। उन्होंने बताया कि “मुझे दो सूचियां मिलीं, पहली सूची में फोन नंबर नहीं थे, तो कोई प्रतिनिधियों से कैसे संपर्क कर सकता है? मैं यह नहीं कह रहा हूं कि यह जानबूझकर है। 22 वर्षों से चुनाव नहीं हुए थे, इसलिए हो सकता है कि कुछ चूक हुई है।”
खड़गे और थरूर के मध्य विचारधारा का द्वन्द
वयोवृद्ध मल्लिकार्जुन खड़गे को पार्टी हाईकमान की अनधिकृत रूप से अधिकृत पसंद माना गया था। वह 45 वर्षों से कांग्रेस से जुड़े हुए हैं, और गाँधी परिवार के विश्वस्त माने जाते हैं। खड़गे कॉलेज के दिनों से ही मजदूर आंदोलन से जुड़े रहे थे, वह छात्र संघ के महासचिव भी बने थे। वह 1969 में कांग्रेस से जुड़े और उसी वर्ष गुलबर्ग कांग्रेस के जिला अध्यक्ष भी बन गए थे। 1972 में उन्होंने अपना प्रथम चुनाव लड़ा, उसके पश्चात वह 8 बार विधायक और 2 बार लोकसभा सांसद भी बने। अभी वह राज्यसभा में विपक्ष के नेता के रूप में अपना उत्तरदायित्व निभा रहे हैं।
खड़गे एक खांटी राजनीतिज्ञ हैं, और विचारधारा की बात की जाए तो वह पेरियारवाद से निकटता से जुड़ाव रखते हैं। वहीं दलित उत्थान का कथित रूप से समर्थन करते हैं, यह बात और है कि उन्होंने दलितों के अधिकारों की लड़ाई के नाम पर अकूत संपत्ति बना ली है। हिंदी भाषण में कमजोर होने के कारण वह कई बार उपहास का पात्र भी बनते हैं, लेकिन लगता है यही कारण था जो गाँधी परिवार ने उन्हें अध्यक्ष पद के उम्मीदवार के रूप में चुना। गाँधी परिवार को ऐसा ही कोई व्यक्ति चाहिए होगा, जो उनका अनुसरण करे और किसी भी प्रकार का प्रश्न नहीं पूछे।
वहीं शशि थरूर अपनी स्टाइलिश पोशाकों, लहराती जुल्फों और उच्च कोटि की अंग्रेजी के लिए जाने जाते हैं । वह एक राजनयिक
रह चुके हैं, उन्होंने संयुक्त राष्ट्र में कई दशकों तक कार्य किया है, और उन्हें एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जाना जाता है, जो बाहरी है लेकिन कांग्रेस के अंदरूनी नेतृत्व में सेंध लगाने का प्रयास कर रहा है। वहीं थरूर को कांग्रेस में रहकर बगावत करने वाले जी-23 गुट से जुड़ा हुआ माना जाता है, जो कांग्रेस में ही रह कर गाँधी परिवार के प्रभुत्व को चुनौती देने का प्रयास कर रहा है।
थरूर ने कांग्रेस की हाईकमान संस्कृति के विरुद्ध मोर्चा खोलने वाले गुट का नेतृत्व किया था, साथ ही उन्होंने पार्टी में संरचनागत बदलावों और सभी स्तरों पर चुनाव कराने की मांग करने वाले पत्र पर भी हस्ताक्षर किए थे। थरूर अपने राष्ट्रवादी विचारों के लिए विपक्षी दलों द्वारा भी सराहे जाते हैं। ब्रिटिश कुशासन के विरोध में उनके वक्तव्य दक्षिणपंथी लोगों द्वारा ज्यादा पसंद किये जाते हैं, बजाये कांग्रेस कैडर के।
हालांकि वह एक ऐसे दल में हैं जहां किसी भी तरह की असहमति को बगावत समझा जाता है। ऐसे में ऐसे में उन्हें सांत्वना जरूर मिली होगी कि उनका पूरी तरह से सफाया नहीं हुआ, जैसे कि 2000 में सोनिया गांधी के सामने खड़े हुए उम्मीदवार जितेंद्र प्रसाद का हुआ था। थरूर को निश्चित रूप से काम वोट मिले हैं, लेकिन उन्होंने यह दिखा दिया है कि कांग्रेस के भीतर ही एक सामानांतर व्यवस्था चल रही है, और कहीं ना कहीं वह इसका नेतृत्व करने में सक्षम हैं।
ऐसे में यह स्पष्ट है कि कांग्रेस अब दो धड़ों में बंट चुकी है, गाँधी परिवार ने बेशक अभी किसी भी प्रकार की बगावत को निष्फल कर दिया है, लेकिन भविष्य के लिए गाँधी परिवार के लिए मुसीबतें बढ़ गयी हैं। जिस प्रकार से यह चुनाव हुए हैं, और जिस प्रकार कांग्रेस में असंतुष्ट नेताओं की गिनती बढ़ती जा रही है, उससे यह स्पष्ट है कि आने वाले वर्षों में गाँधी परिवार के लिए कांग्रेस के नेतृत्व पर बने रहना या उन्हें नियंत्रण में रखना अत्यंत कठिन होने जा रहा है।