कर्नाटक उच्च न्यायालय ने हिजाब विवाद के मामले में महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए कहा कि कहीं से भी यह प्रमाण प्राप्त नहीं होता है कि हिजाब इस्लाम का अभिन्न अंग है। न्यायालय ने यह कहा कि सिर ढाकना इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं है। इसके साथ ही सरकार द्वारा यह निर्धारित किया जाना कि कक्षा के भीतर विद्यार्थी क्या पहनते हैं, वह किसी की भी मजहबी आजादी को किसी भी प्रकार से अवरोधित नहीं करता है।
न्यायालय ने यह भी कहा कि सरकार के पास यह अधिकार है कि वह सरकारी आदेश जारी कर सके, तो हमारा यह मत है कि किसी भी कॉलेज के अधिकारियों के खिलाफ किसी भी प्रकार की अनुशासनात्मक कार्यवाही नहीं की जा सकती है। अत: सभी रिट याचिकाएं खारिज की जाती हैं।
न्यायालय ने अपने निर्णय से पहले यह भी कहा कि “ऐसा तो हैं नहीं कि अगर कथित रूप से हिजाब पहनने की परम्परा का पालन नहीं किया जाता है तो हिजाब न पहनने वाले लोगपापी हो जाएंगे और इस्लाम की चमक खो जाएगी”
उन्होंने स्कूल यूनीफोर्म को गुरुकुल परम्परा से भी जोड़ते हुए कहा कि
“कोई भी समझदार व्यक्ति यूनीफोर्म के बिना स्कूल की कल्पना नहीं कर सकता है। यूनीफोर्म कोई विदेशी चीज़ नहीं है। ऐसा तो है नहीं कि मुग़ल या अंग्रेज इसे पहली बार लाए। यह यहाँ पर प्राचीन गुरुकुल के दिनों से है।
न्यायालय ने यह भी कहा कि स्कूल यूनीफोर्म धार्मिक या वर्गीय विभिन्नताओं के बीच आम भाईचारे की भावना को बढ़ाती है।
न्यायालय ने यह भी कहा कि उडुपी में कॉलेज से छात्राओं ने याचिकाएं दायर की थीं, और हमारे समक्ष जो रिकॉर्ड प्रस्तुत किए गए थे, उनमें हमने नोटिस किया कि वर्ष 2004 से ही ड्रेस कोड के साथ सभी सहज थे। और हम इस बात से प्रभावित हैं कि अष्ट मठ सम्प्रदाय में हिन्दू पर्वों में मुस्लिम भी सहभागिता करते हैं। हम यह देखकर हैरान हैं कि एकदम से कैसे अचानक से ही अकादमिक सत्रों के मध्य हिजाब का मुद्दा उठा और इतनी तेजी से उठा कि एकदम से फ़ैल गया।
हिजाब पर जो बहस हुई है, इससे कहीं न कहीं यह भी संदेह उठता है कि यह स्वाभाविक नहीं था। इसके पीछे कहीं न कहीं अनदेखे हाथ हैं। यह अनदेखे हाथ सामाजिक असंतोष और विवाद पैदा करने के लिए हैं। और कुछ विशेष नहीं कहा जाना है।
उन्होंने यह भी कहा कि हम अभी पुलिस की जांच में कुछ नहीं कह रहे हैं, नहीं तो उस पर प्रभाव पड़ेगा। हमने पुलिस की सीलबंद लिफ़ाफ़े में रिपोर्ट पढ़ ली है और हम यह अपेक्षा कर रहे हैं कि जांच हो और दोषियों को शीघ्र दंड मिले
मजे की बात तो यही है कि जहां इस निर्णय में उच्च न्यायालय ने बाबा साहेब भीम राव अम्बेडकर द्वारा कही गयी इस बात का उल्लेख किया कि मुस्लिमों में महिलाओं को परदे में रखा जाता है और उन्हें जिस प्रकार बुर्के में कैद करके रखा जाता है, उसके कारण वह बाहरी दुनिया से कट जाती हैं और फिर वह घर की देहरी के अन्दर ही बस लड़ाई झगड़े में फंस जाती हैं। वह किसी भी बाहरी गतिविधि में भाग नहीं ले सकती हैं और वह एक गुलाम मानसिकता एवं हीन भावना से पीड़ित रहती हैं। विशेष रूप से पर्दा में औरतें एकदम मजबूर हो जाती हैं। भारत में मुस्लिमों के बीच इतने अधिक पर्दा देखकर कोई भी आसानी से समझ सकता है कि पर्दा की समस्या कितनी बड़ी है।”
तो वहीं उन लड़कियों ने भी कहा कि अगर बाबा साहेब आज जिंदा होते तो वह भी रो रहे होते!
लड़कियों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह हिजाब के लिए लड़ेंगी। हिजाब उनके लिए अनिवार्य है।
कट्टरपंथी मुस्लिमों ने भड़काने वाले ट्वीट करने आरम्भ कर दिए
इस बात की पूरी संभावना है कि आने वाले दिनों में इस मुद्दे को लेकर सड़कों पर फिर से संग्राम देखने को मिले या फिर टूलकिट को नया टूल मिल जाए क्योंकि कट्टरपंथी मुस्लिमों ने इस बात पर भड़काना आरम्भ कर दिया है कि अब मुस्लिमों का मजहबी अधिकार छिन गया है। आने वाले समय में विद्रोह के लिए तैयार रहें
बात बात पर संविधान का आदर करने वाले मुस्लिम समुदाय ने इस निर्णय के बाद उच्च न्यायालय को कोसना जिस प्रकार आरम्भ किया, उससे यह प्रतीत होता है कि वह कितना आदर करते हैं। अब कर्नाटक की वही विद्यार्थी हिजाब को लेकर उच्चतम न्यायालय पहुँच गयी हैं।
एजेंडा पत्रकार आरफा खानम ने इस निर्णय पर टिप्पणी करते हुए कहा कि भारत में अब मात्र बहुसंख्यक वाद रह गया है।
देखना होगा कि उच्चतम न्यायालय में क्या नई दलीलें प्रस्तुत की जाती हैं? और यह भी देखना होगा कि उच्चतम न्यायालय क्या इस प्रथा को इस्लाम की आवश्यक प्रथा घोषित करेंगे या फिर उनके लिए संविधान ही सर्वोच्च होगा?
यह तो स्पष्ट है कि एक बार किसी प्रथा को किसी भी मत का अभिन्न अंग बताने से उस समुदाय पर प्रभाव पड़ता ही है और यदि इसे स्कूलों में आने के लिए भी अभिन्न अंग बता दिया जाता है, तो यह उन लाखों लड़कियों के लिए अन्धेरा लाएगा जो कहीं न कहीं इन अंधेरों से मुक्त रहना चाहती हैं!
कर्नाटक उच्च न्यायालय के इस निर्णय को यहाँ पढ़ा जा सकता है