उत्तर प्रदेश के कद्दावर नेता रहे मुलायम सिंह यादव, जिन्हें उनके मुस्लिम तुष्टिकरण के चलते मुल्ला-मुलायम भी कहा जाता था, और जिन्होनें मुस्लिम समुदाय का विश्वास जीतने के लिए प्रभु श्री राम के भक्तों पर गोलियां भी चलवाई थीं, उनके निधन के बाद मुस्लिमों के एक वर्ग ने यही कहा कि “काफिरों की रूह जन्नत नहीं जाती!, उन्हें दोजख ही मिलता है!”
यह बहुत ही हैरान करने वाली बात है कि उनके निधन पर जहाँ एक ओर हिन्दुओं का भी एक वर्ग भी यह कह रहा था कि राम भक्तों के हत्यारे से कोई सहानुभूति नहीं, तो वहीं यह बहुत हैरानी से भरने वाला तथ्य था कि मुस्लिमों का भी एक बड़ा वर्ग था जो मुलायम सिंह यादव के मरने पर FNJ लिख रहा था। हिन्दुओं को क्या, कई मुस्लिमों को भी नहीं पता था कि यह एफएनजे क्या है?
हिन्दुओं के लिए यह भाषा एकदम अलग थी। एफएनजे का अर्थ हुआ, फिन्नारे जहन्नुम! नार-ए-जहन्नुम का अर्थ रेख्ता में लिखा है कि “नरक की आग, दोजख की आग”
मगर मुलायम सिंह यादव, जिन्होनें बाबरी मस्जिद को बचाने के लिए कारसेवकों पर गोलियां तक चलाईं और उन्होंने इस विषय में यह तक कहा कि उन्हें इस गोली चलाने का कोई भी अफ़सोस नहीं है! फिर ऐसा क्या हुआ है कि उन्हें मुस्लिमों के एक ऐसे वर्ग का जो खुद को मजहबी कहता है, उसके गुस्से का सामना करना पड़ रहा है? वह ऐसा क्यों कर रहा है? अली सोहराब नामक कथित पत्रकार ने लिखा कि
“…मुलायम यादव
अब इस दुनिया में नहीं रहे…
#FNJ”
अली सोहराब की इस पोस्ट पर कई ऐसे लोग थे जिन्होनें हंसी का इमोजी दिया! यहाँ तक कि कईयों ने लव का निशान दबाया! किसी ने इसी पोस्ट पर कहा कि “पनौती दूर हुई!”
तो इसी पोस्ट पर एक लोग ने कहा कि “जुम्मनों का तो बाप मर गया!”
इस बात को लेकर अली सोहराब की पोस्ट पर चर्चा हुई कि मुस्लिम कैसे किसी गैर मुस्लिम के लिए जन्नत की बात कर सकता है, या फिर रेस्ट इन पीस लिख सकता है?
लोगों ने कहा कि काफ़िर है तो जहन्नुम में ही जाएगा!
अली सोहराब ने एक और पोस्ट लिखा जिसमें उसने लिखा कि “तुम्हें याद हो कि न याद हो, इधर मुजफ्फरनगर में मुसलमानों का क़त्लेआम कर रहे थे हुनूड उधर “रफीक़ ए मिल्लत” सैफई में खुशियाँ माना रहा… #fnj
twitter पर लोगों ने ट्रेंड चलाकर कहा कि
“तुम्हें याद हो कि न याद हो…
इधर मुजफ्फरनगर में मुसलमानों का क़त्लेआम कर रहे थे हुनूड उधर “रफीक़ ए मिल्लत” सैफई में खुशियाँ माना रहा… #fnj”
जिन मुलायम सिंह ने मुसलमानों के लिए हिन्दुओं पर गोलियां चलवाईं और जो इफ्तार की दावतें दिया करते थे, जो कभी भी गोल टोपी पहनने से नहीं हिचके, और जो हमेशा ही मुस्लिमों को कहीं न कहीं प्राथमिकता देते रहे, उनके लिए मुस्लिमों का एक बड़ा वर्ग यह कह रहा हो तो कहीं न कहीं बहुत अधिक प्रश्न खड़े होते हैं। एक और स्क्रीनशॉट वायरल हो रहा है:
सबसे पहला प्रश्न तो यही है कि बार बार जो लोग यह कहते हैं कि इस्लाम समानता की बात करता है, तो उसे मानने वाले कुछ लोग यह दावा कैसे कर सकते हैं कि जन्नत में केवल ईमान वाले ही जाएंगे? ऐसा दावा कैसे कोई कर सकता है?
कैसे कोई भी व्यक्ति इतना असहिष्णु हो सकता है कि मृत्यु के बाद की जन्नत और जहन्नुम पर भी यह कह सकता है कि केवल इस्लाम को मानने वाले ही जन्नत में जाएंगे और काफ़िर जहन्नुम में? आखिर इस हद तक कोई कैसे एकतरफा सोच सकता है कि जो उनके मजहबी विचार नहीं मानता है, वह मरने के बाद दोजख में जलेगा?
परन्तु वह मानते हैं! और ऐसा वह उस व्यक्ति के लिए मानते हैं, जिसने पूरी ज़िन्दगी हिन्दुओं के एक बड़े वर्ग की घृणा इसीलिए सहन की क्योंकि हिन्दुओं पर गोली और किसी कारण नहीं बल्कि बाबरी ढाँचे की रक्षा के लिए चलाई गयी थी!
कारसेवकों पर जब गोली चलवा दी गयी थी!
यह बात और भी ध्यान देने योग्य है कि आखिर हिन्दुओं का एक बड़ा वर्ग क्यों मुलायम सिंह यादव से नाराज था? इसका सबसे बड़ा कारण है 2 नवम्बर 1990 का वह दिन, जब हिन्दू संत और हजारों की संख्या में कारसेवक अपने प्रभु श्री राम की जन्मभूमि से उस कलंक की ओर बढ़ रहे थे, जो आक्रान्ता बाबर ने बनवाया था।
उन्होंने मुख्यमंत्री रहते हुए कहा था कि “बाबरी मस्जिद पर एक परिंदा भी पर नहीं मार सकेगा”! इस एक वाक्य ने उन्हें जहाँ मुस्लिमों के करीब ला दिया तो वहीं हिन्दुओं का एक बड़ा वर्ग उनसे छिटक गया था। उन्होंने 2 नवम्बर 1990 को बाबरी ढांचे की ओर बढ़ते हुए कारसेवकों पर लाठी चार्ज कराया था और फिर निहत्थे कारसेवकों पर गोलियां चलवा दी थीं! उस समय की मीडिया ने क्या कहा था?
इस घटना ने उन्हें जहाँ सेक्युलर जमात का ऐसा नायक बना दिया था, जो मुस्लिमों का करीब था, और जो भारतीय जनता पार्टी का मुकाबला कर सकता था। और वर्ष 2014 में मुलायम सिंह यादव ने यह कहा भी था कि अगर वह गोली नहीं चलवाते तो देश के मुसलमानों का विश्वास सपा से टूट जाता!
इसी दिन कोठारी बन्धु अर्थात 22 साल के रामकुमार कोठारी और 20 साल के शरद कोठारी भी प्रभु श्री राम की सेवा करते हुए पुलिस की बर्बरता का शिकार हुए थे! आज भी उस दिन को स्मरण करते ही लोगों की आँखों में पीड़ा एवं क्षोभ से आंसू आ जाते हैं!
आज जब मुलायम सिंह यादव इस दुनिया में नहीं हैं, तो ऐसे में उनकी मृत्यु पर उसी समुदाय में से एक बड़े वर्ग का यह उपहास उड़ाना यह बताने के लिए पर्याप्त है कि उन्हें किसी पर विश्वास नहीं है, फिर चाहे उनका विश्वास जीतने के लिए कोई अपने धर्म के लोगों पर गोलियां ही क्यों न चला दे!