भारत में सेक्युलरिज्म की अवधारणा है, अर्थात धर्म निरपेक्षता, अर्थात शासन का किसी धर्म पर विशेष ध्यान न देकर सभी मत, सम्प्रदायों को एक समान मानना, परन्तु भारत में सेक्युलरिज्म का मापदंड दूसरा है। भारत में सेक्युलरिज्म का अर्थ है हिन्दू त्योहारों से घृणा, हिन्दू जीवन शैली में निरंतर हस्तक्षेप, हिन्दू जीवन शैली का विकृतीकरण, हिन्दू विमर्श को अपने अनुसार ढालना, हिन्दुओं से असीम घृणा एवं हिन्दुओं को पिछड़ा मानना!
यह कई स्तरों पर चालू है और यह कई स्तरों पर लगातार चल रहा है। परन्तु हिन्दू पर्वों एवं हिन्दू संस्कारों के मामले में यह और स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। हिन्दू पर्व कहाँ पर मनाए जाएं, कहाँ पर नहीं, उनमें पटाखे चलाए जाएं या नहीं, उनमें रंग कितनी देर तक खेलें या फिर मटकी की ऊंचाई कितनी हो?
कई धार्मिक अनुष्ठान तो हिन्दुओं के इन सरकारी अध्यादेशों द्वारा समाप्त ही हो गए हैं, अब तो हिन्दू समाज इस हद तक निरीह हो चुका है, कि वह लगभग भूल ही चुका है कि उसके भी धार्मिक अधिकार हैं। हाल ही में जो गणेश चतुर्थी को लेकर जो न्यायालय ने निर्णय दिया है, उस पर अधिक न जाते हुए, यह देखते हैं कि अंतत: लिबरल या उदार माना जाने वाला कट्टरपंथी समाज क्या सोचता है? गहराई से देखने में प्रतीत होता है कि राना अयूब जैसों के माध्यम से यह अनुभव किया जा सकता है कि कैसे कथित सेक्युलरिज्म केवल हिन्दुओं के हवाले करके शेष लोग किनारे हो जाते हैं।
बंगलुरु में उच्चतम न्यायालय ने यथास्थिति का निर्णय देते हुए कहा कि हाल फिलहाल ईदगाह मैदान में गणेश पूजा नहीं होगी। इस निर्णय को लेकर जहाँ हिन्दू समाज में रोष है क्योंकि लोगों को लगता है कि कहीं न कहीं उनके साथ न्याय नहीं हो रहा है, उनके साथ अन्याय की पराकाष्ठा हो रही है क्योंकि उन्हें उनके पर्व मनाने के लिए स्थान नहीं मिल रहा है।
वही हर शुक्रवार को सड़क पर नमाज पढ़ने की वकालत करने वाले लोग इस बात से आहत हैं कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है कि हिन्दू “उनके” मैदान पर पर्व मनाना चाहते हैं? दुर्भाग्य ही बात यह है कि जिन्हें इस बात से समस्या है कि हिन्दू “उनके” ईदगाह मैदान पर पूजा करना चाहते हैं, वही लोग वह हैं, जो हिन्दुओं के मंदिरों को तोड़ने को भी गलत नहीं मानते हैं और जब हिन्दू मंदिरों को तोड़े जाने की सूचनाएं आती हैं, तो वह अपने कानों में रुई डालकर बैठ जाते हैं।
हर बात में हिन्दुओं को कोसने वाली यह पूरी की पूरी लॉबी अंकिता के कातिल शाहरुख पर नहीं बोली है। वह यह नहीं कह पाई है “शाहरुख” ने पाप किया है, “शाहरुख” ने गुनाह किया है, और न ही किसी ने शाहरुख के बहाने कट्टरपंथी इस्लामी तत्वों पर हमला बोला है, बल्कि अंकिता की मृत्यु एक गुमनामी की तरह चली गयी। या आलोचना की भी है तो इस प्रकार कि यह क़ानून व्यवस्था या “प्रेम-प्रसंग” का मामला है, तभी अंकिता की तस्वीरें अचानक से वायरल हो गयी थीं!
हिन्दुओं की मृत्यु भी हिन्दू पहचान के साथ जिनके विमर्श में स्थान नहीं पा पाती हैं, वह मैदान में हिन्दुओं द्वारा पूजा के अधिकार के लिए कानूनी गुहार को लेकर भी राजनीति कर देते हैं।
हर मामले में हिन्दू मुस्लिम करने वाली एजेंडा पत्रकार राना अयूब ने इस मामले को लेकर ट्वीट किया कि
“कल्पना करें कि आपके पास पूरे भारत के जमीन हा, फिर भी आपको गणेश चतुर्थी मनाने के लिए ईदगाह चाहिए! यह कितना अजीब है!”
यह ट्वीट यह बताने के लिए पर्याप्त है कि राना अयूब जैसे लोगों के लिए हिन्दू क्या हैं? उनके लिए हिन्दू ऐसे हैं जो उनके लिए तो घर खोल दें, मगर खुद अपने लिए कुछ न मांगे।
और चूंकि इस बार हिन्दुओं ने ईदगाह मैदान मांग लिया था, इसलिए मिर्च लगनी स्वाभाविक थी। कर्नाटक में दो स्थानों को लेकर मामला न्यायालय पहुंचा था। जिसमें बंगलुरु के ईदगाह मैदान में गणेश चतुर्थी के आयोजन को लेकर यथास्थिति बनाए रखने के आदेश दिए गए थे। अर्थात वहां पर फिलहाल गणेश पूजा नहीं होगी।
परन्तु हुबली धारवाड़ के ईदगाह मैदान में ऐसा नहीं हो पाया और कर्नाटक उच्च न्यायालय ने यह निर्णय दिया था कि मैदान पर धारवाड़ नगरपालिका का स्वामित्व है, जबकि मुस्लिम समुदाय के पास मात्र रमजान और बकरीद पर ही नमाज अदा करने की अनुमति है। अर्थात वह भूमि उन्हें सदा के लिए नहीं दी गयी है।
कर्नाटक उच्च न्यायलय ने दिनांक 30 अगस्त को रात में सुनवाई करते हुए यह निर्णय दिया कि वहां पर पूजा हो सकती है और उसके बाद तत्काल ही गणेश प्रतिमाएं स्थापित हो गईं।
यह भी हिन्दुओं का दुर्भाग्य ही है कि उन्हें अपने ही देश में अपने ही देवों की पूजा करने के लिए सरकार या फिर न्यायालय का मुंह देखना पड़ता है। अभी हमने रामनवमी पर भी देखा था कि कैसे “उनके इलाके” से शोभायात्रा निकालने को लेकर प्रभु श्री राम की शोभायात्राओं पर पूरे देश में सुनियोजित तरीके से हमले कर दिए गए थे।
उनके इलाके, उनके मैदान, सब उनके, और हिन्दू के मंदिर तक हिन्दुओं के नहीं।
यहां तक कि जो एक बड़ा वर्ग यह कहता हुआ आ रहा है कि ईदगाह के मैदान पर पूजा की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए, जबकि ईदगाह मैदान का स्वामित्व नगर निगम के पास है, वह भी यह चाहता है कि उन सड़कों पर नमाज पढने की अनुमति दी जाए, वही वह वर्ग है जो गणेश पंडालों में नमाज की अनुमति चाहता है।
अंशुल सक्सेना ने ट्वीट किया कि “हर ही वर्ष हम लोग सुनते हैं कि गणेश पंडाल में नमाज के लिए जगह दी गयी, दुर्गा पूजा में दुर्गा पंडाल में अजान की गयी, मगर जब सरकारी मैदान, जिसे नमाज के लिए प्रयोग किया जाता है, उसे लेकर वक्फ बोर्ड पहुँच गया न्यायालय!“
यही एकतरफा सेक्युलरिज्म है, जो केवल हिन्दुओं का दोहन और शोषण करने के बाद प्राप्त होता है!
वहीं राना अयूब जिन्हें इस बात को लेकर आपत्ति थी कि सारी जमीन तो हिन्दुओं के पास है, फिर ईदगाह पर गणेश चतुर्थी की पूजा क्यों?
वही गुरुग्राम में सड़क पर नमाज को लेकर क्या कहती हैं
राना के ट्वीट पर लोगों ने राना अयूब को आइना दिखाया है
लोग ट्वीट कर के राना से कुछ पूछ रहे हैं, परन्तु राना को पता है कि उन्होंने कौन सा एजेंडा खेलना है:
लोग पूछ रहे हैं कि एक पूरा देश लेने के बाद भी आप यहीं हैं:
लोग कुपित हैं, लोग क्रोधित हैं, परन्तु राना पर इसका कोई प्रभाव नहीं होगा क्योंकि राना अयूब जैसों की शक्ति कट्टरपंथी मुस्लिम समाज ही नहीं बल्कि वह हिन्दू भी हैं, जिन्हें राजनीतिक कारणों से भारतीय जनता पार्टी से चिढ है और वह अपनी राजनीतिक घृणा निकालने के लिए हिन्दुओं के विरुद्ध विष उगलने वाले पत्रकारों को महान मानते रहते हैं।
यह हिन्दुओं का दुर्भाग्य ही है कि वह राजनीति का हिन्दू धर्म में एकीकरण नहीं कर सकते, परन्तु इस कथित लोकतंत्र की राजनीति ने हिन्दुओं का राजनीतिकरण कर दिया एवं विमर्श को हिन्दू विरोधी स्वयं ही बना दिया है!