ट्विटर पर दीपावली की रात को लोगों के भीतर पटाखों पर प्रतिबन्ध को लेकर उस तुगलकी फरमान पर लोगों का गुस्सा स्पष्ट दिखाई दिया, जिसमें बार बार हिन्दू पर्वों को ही निशाना बनाया जाता है। हिन्दुओं में इस बात को लेकर भी गुस्सा था कि जहां एक ओर प्रदूषण के तमाम जो बड़े कारण हैं, उन पर कुछ नहीं कहा जाता है, बल्कि हिन्दुओं को ही उनके हर त्यौहार के प्रति हीन भावना से भर दिया जाता है। और यह किसी एक पर्व की बात नहीं है, बल्कि यह हर पर्व की बात है।
दीपावली का पर्व चूंकि जीवंत धर्म प्रभु श्री राम से जुड़ा हुआ है, इसलिए इस पर वार करना और भी आवश्यक और आसान हो गया है। जैसे एक अनिवार्यता हो गयी है कि दीपावली को अपना शिकार बनाना है। प्रदूषण के कारकों में पटाखे कौन से स्थान पर हैं। बार बार यह निर्धारित होता जा रहा है कि पटाखों का योगदान हवा को विषैली बनाने में नहीं है, फिर भी दीपावली के पटाखों को ही प्रदूषण का कारक बना दिया है।
वायु प्रदूषण के लिए जो मुख्य कारक हैं, उन पर काम नहीं किया गया है और इसका उल्लेख उच्चतम न्यायालय ने भी पटाखों पर अपने हाल के निर्णय में किया था। उन्होंने कहा था कि पटाखा समस्या नहीं है, पराली जलाना है।और यह आज नहीं वर्ष 2019 की बात है। दो साल बीत गए हैं, पराली की समस्या पर काम किया नहीं, और सारा दोषारोपण मात्र दीपावली पर कर दिया।
भारत का संविधान यह अधिकार प्रदान करता है कि कोई भी व्यक्ति अपना धार्मिक पर्व श्रद्धा से और अपने धर्म के अनुसार मना सकता है। यह धार्मिक स्वतंत्रता भारत का संविधान हिन्दुओं को देता है, परन्तु किसी न किसी कारण से कभी पशु क्रूरता के नाम पर, तो कभी पर्यावरण के नाम पर तो कभी स्त्री विमर्श के नाम पर हिन्दुओं के पर्व और त्योहारों पर सार्वजनिक विमर्श और बहसें होती हैं।
हाल ही में हेलोवीन नाम का कोई फेस्टिवल यूरोप और अमेरिका में मनाया गया। हैलोवीन को अब भारत में भी कई शहरों में मनाया जाने लगा है। यह कथित रूप से उन संभ्रांत और औपनिवेशिक गुलाम लोगों का फेस्टिवल बन गया है, जिन्हें शिवरात्रि पर दूध चढ़ाने को लेकर समस्या होती है। वर्ष 2020 में यह समाचार था कि हैलोवीन में कई मिलियन टन कद्दू बर्बाद हो जाता है। ग्लोबल सिटीजन की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2020 में ब्रिटेन में ही मात्र एक दिन में 13 मिलियन कद्दू बर्बाद हुए थे।
इतना ही नहीं weforum।org की एक रिपोर्ट के अनुसार हैलोवीन के अवसर पर जो कद्दू फेंके जाते हैं, इनसे जो लैंडफिल होता है, उससे मीथेन पैदा होती है और जो एक ग्रीन हाउस गैस होती है और जो कार्बन डाइऑक्साइड के चेतावनी प्रभाव से 20 गुना अधिक होती है।
परन्तु कहीं भी कोई हो हल्ला नहीं होता और वहां के सेलेब्रिटी भी इस बर्बादी पर कुछ नहीं कहते और न ही यह अपील करते हैं, कि फेस्टिवल न मनाएं!
अब यहाँ के कथित प्रगतिशील लोग यह कह सकते हैं कि यूरोप की बातें यूरोप के लोग जानें, हमें अपनी बात कहनी है। यह भी बात ठीक है, परन्तु वही लोग जो पटाखों को लेकर हो हल्ला करते हैं, हैलोवीन पार्टी आदि में सहज ही जाते हैं, और करवाचौथ एवं दीपावली को पिछड़ा बताने वाले यह लोग भूत बनकर खुश होते हैं। खैर वह कोई भी फेस्टिवल मना सकते हैं, पर उन्हें यह कोई अधिकार नहीं है कि वह हिन्दुओं के धार्मिक त्योहारों में अपनी नाक घुसेड़ें।
दिल्ली और हरियाणा बॉर्डर पर बैठे अराजकवादी लोग अत्यंत ही कुटिलता से बार बार उच्चतम न्यायालय के निर्णयों की अवहेलना कर रहे हैं, परन्तु उन पर कोई कार्यवाही नहीं की गई है। और वहीं कार्यपालिका, एनजीओ, सेलेब्रिटीज से लेकर न्यायपालिका तक हिन्दुओं के हर पर्व पर पा हस्तक्षेप करने के लिए तैयार हो जाती है, और वह भी वो लोग, जिन्हें हिन्दू धर्म पर विश्वास ही नहीं होता।
कल हिन्दुओं ने पटाखों के मामले को लेकर जो प्रतिरोध किया है, वह यह बताने के लिए पर्याप्त है कि अब हिन्दू यह सुनने के लिए तैयार नहीं है कि उसके पर्वों का निर्धारण न्यायालय में किसी एनजीओ की याचिका पर होगा, या हिन्दुओं से घृणा करने वाले लोगों के हाथों होगा या फिर उन लोगों के हाथों होगा, जिनके लिए हिन्दू का अर्थ दोयम दर्जे का नागरिक होना है।
कल सुरेश नखुआ ने ट्वीट किया कि आज भारत एक बड़े, प्रसन्न परिवार की भांति ही लग रहा है।
कई ऐसे यूजर्स थे, जिन्होनें कहा कि बढ़ते प्रदूषण के कारण उन्होंने स्वयं ही पटाखे चलाने बंद कर दिए थे, पर चूंकि दीपावली पर पटाखों को लेकर इतना ज्ञान दिया जा रहा है, इसलिए उन्हें गुस्सा आया और वह पटाखे चला रहे हैं!
एक यूजर ने अनिल कपूर और सोनम कपूर की उस तस्वीर के साथ ट्वीट किया, जिसमें वह एक लम्बी लड़ी बिछाते हुए दिख रहे हैं, और लिखा कि आज का प्रतिरोध दोगलेपन को दिया गया उत्तर है, हमें कोई यह नहीं बताए कि हमें अपने त्यौहार कैसे मनाने हैं!
एक यूजर ने एक वीडियो साझा किया जिसमें एक वृद्ध महिला हाथ में राकेट पकड़ कर चला रही हैं और फिर हाथ से ही उसे हवा में छोड़ रही हैं
इस पूरे ट्रेंड में हिन्दुओं का गुस्सा दिखाई देगा। एक यूजर ने लिखा कि इस दीपावली पटाखे चलाइये, शेष बाद में देखा जाएगा, और साथ ही यह भी कहा कि लिब्रल्स को धन्यवाद, जिन्होनें उसे दीपावली फिर से उत्साह से मनाने के लिए प्रेरित किया
दिल्ली पुलिस ने कल एक व्यक्ति राजेश चावला को हिरासत में लिया, जिन्होनें एक पोलीथिन में पटाखे लिए हुए थे। इस बात को लेकर लोगों ने दिल्ली पुलिस को उनकी लाल किले वाली घटना याद दिलाई
हालांकि दिल्ली पुलिस ने बाद में वह ट्वीट डिलीट कर दिया, परन्तु दिल्ली पुलिस के इस कदम की बहुत थूथू हुई।
प्रशांतपटेल उमराव ने लिखा कि “दिल्ली में चोरी, स्नैचिंग की घटनाएं सबसे अधिक हैं। पटाखे ले जा रहे हिन्दू को अरेस्ट करने से अब दिल्ली में सब अपराध समाप्त हो जाएंगे?”
क्या हिन्दुओं को अब अपना पर्व मनाने के लिए जेल जाना होगा? माननीय न्यायालय ने ही अभिव्यक्ति के स्वतंत्रता के विषय में कहा था कि यह प्रेशर कुकर के समान है, इसे दबाया न जाए नहीं तो कुकर फट जाएगा। फिर प्रश्न यह उठता है कि हिन्दुओं को उनके पर्व मनाने की ही स्वतंत्रता क्यों नहीं दी जा रही है?
क्या कोई उस व्यक्ति की पीड़ा और वेदना को समझ पाएगा जिसे मात्र अपने पर्व को मनाने के अधिकार के लिए जेल जाना पड़ा? और दिल्ली पुलिस और दिल्ली सरकार और यहाँ तक कि न्यायालय भी हिन्दुओं के पर्व सामने आते ही जैसे हर सिद्धांत आदि को ताक पर रख देते हैं और अपने दुराग्रह, अपने कथित ज्ञान के अज्ञानी हठ और अपनी जिद्द के चलते निर्णय दे देते हैं।
फिर से प्रश्न यही है कि जब पटाखे का स्थान प्रदूषण के मुख्य कारकों में है ही नहीं, तो फिर बार बार हिन्दुओं के पर्व पर आक्रमण क्यों? कल का प्रतिरोध यह दिखाने के लिए पर्याप्त है कि हिन्दुओं का सन्देश स्पष्ट है कि “डियर वोक, डियर कथित पर्यावरणवादियों, कथित प्रगतिशीलों, प्लीज़ हमारे त्यौहार से दूर रहें!”
जैसे माई बॉडी माई चॉइस का राग यह सब अलापती रहती हैं, वैसे ही हिन्दू कह रहा है “माई त्यौहार, माई चॉइस!”
कल रात के पटाखे के धमाके एक प्रतिरोध के रूप में जाने जाएंगे