उत्तराखंड के हल्द्वानी रेलवे स्टेशन के पास बनी अवैध कॉलोनी को हटाने के निर्णय का विरोध बढ़ता ही जा रहा है। नैनीताल उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए आदेश के पश्चात भारतीय रेलवे की 2.2 किमी लंबी पट्टी पर बनी अवैध कॉलोनी बनभूलपुरा के 4 हजार से ज्यादा घरों पर संकट मंडरा रहा है। स्थानीय लोगों ने इस निर्णय का विरोध करना शुरू कर दिया है, जिसमे उनका सहयोग कर रहे हैं सपा, बसपा, कांग्रेस, एआईएम्आईएम् जैसे राजनीतिक दल, मीडिया, मजहबी तत्व, और एनजीओ आदि।
इस अतिक्रमण को हटाने के लिए रेलवे द्वारा समाचार पत्रों में विज्ञप्ति भी प्रकाशित कर दी गयी थी, जिसमे कहा गया है कि रेलवे की जमीन पर एक हफ्ते के बाद अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई की जाएगी। अतिक्रमण की जद में आने वाली सभी संपत्तियों को गिरा दिया जाएगा और गिराने में आने वाला खर्च भी अतिक्रमणकारियों से वसूल किया जाएगा। गफूर बस्ती और ढोलक बस्ती का यह इलाका हल्द्वानी रेलवे स्टेशन के पास ही बसा हुआ है, और यहाँ लोगों ने रेलवे लाइन के आस पास कब्ज़ा किया हुआ है।
उच्च न्यायालय ने अतिक्रमण हटाने के काम में पुलिस और प्रशासन से रेलवे का सहयोग करने के लिए कहा था। लेकिन स्थानीय लोगों का कहना है कि वे सालों से सीवर लाइन, बिजली, पानी आदि चीजों का बिल देते हुए आ रहे हैं। लोगों ने कहा है कि वे अपनी जान भी दे देंगे लेकिन अपने घरों को छोड़कर नहीं जाएंगे। अतिक्रमण की जद में चार सरकारी स्कूल, 11 निजी स्कूल, एक बैंक, दो ओवरहेड पानी की टंकियां, 10 मस्जिद और चार मंदिर, दशकों पुरानी दुकानें भी आ रही हैं।
उच्चतम न्यायालय ने अतिक्रमणकारियों को हटाने पर लगाया स्टे
इस मामले में राहत पाने के लिए मुस्लिम पक्ष ने उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। उच्च न्यायालय के आदेश के विरुद्ध हल्द्वानी के विधायक सुमित हृदयेश, सपा के प्रदेश प्रभारी अब्दुल मतीन सिद्दीकी सहित कई लोगों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। विधायक सुमित हृदयेश ने बताया था कि उनके वकील सलमान खुर्शीद हैं और उनकी याचिका सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार कर ली थी। वहीं सपा के प्रदेश प्रभारी अब्दुल मतीन सिद्दीकी ने बताया था कि उन्होंने भी एसएलपी दायर की है, उनके वकील प्रशांत भूषण हैं।
ताज़ा समाचारों के अनुसार उत्तराखंड हाईकोर्ट के आदेश पर उच्चतम न्यायालय ने फिलहाल रोक लगा दी है। उच्चतम न्यायालय के इस आदेश के बाद 4000 अतिक्रमणकारियों को नहीं उजाड़ा जाएगा। बता दें कि जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस अभय एस. ओक की बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही थी। अब इस मामले की सुनवाई सात फरवरी को होगी।
आइये जानते हैं ‘हल्द्वानी अतिक्रमण’ के इतिहास को
वर्ष 2013 में नैनीताल उच्च न्यायालय में हल्द्वानी रेलवे स्टेशन और रेल पटरी के पास से बहने वाली गोला नदी में अवैध खनन को लेकर एक याचिका दायर की गई थी। उस याचिका में बताया गया था कि यहां रहने वाले लोग नदी में अवैध खनन करते हैं, जिसके कारण रेल की पटरियों और पुल को खतरा है। वर्ष 2016-17 में रेलवे और जिला प्रशासन ने इस इलाके में एक संयुक्त सर्वे किया था, जिसके पश्चात 4365 संपत्तियों को अतिक्रमण के तौर पर चिन्हित किया गया था।
रेलवे के अनुसार यह जमीन उसकी है, उसके पास साक्ष्य के रूप में पुराना नक्शा, 1959 का नोटिफिकेशन, 1971 का रेवेन्यू रिकॉर्ड और 2017 के सर्वे के नतीजे हैं। रेलवे ने उच्च न्यायालय से कहा था कि कोई भी अतिक्रमणकारी उस जमीन पर दावा करने के लिए कोई कानूनी दस्तावेज पेश नहीं कर सका था, इसलिए यह अतिक्रमण जल्दी हटाया जाए और उसकी संपत्ति का अधिकार वापस दिया जाए।
इसके पश्चात उच्च न्यायालय में एक और याचिका दायर की गई थी, जिसमे कहा गया था कि रेलवे द्वारा अतिक्रमण हटाने में देरी की जा रही है, इस पर त्वरित कार्यवाही की जाए। जिसके पश्चात मार्च 2022 में उच्च न्यायालय ने सभी पक्षों को सुनने के पश्चात रेलवे को अतिक्रमण हटाने की रूपरेखा बनाने का आदेश दिया था। इसी याचिका पर आदेश देते हुए उच्च न्यायालय ने 20 दिसंबर अतिक्रमण हटाने को कहा था, इससे पहले उन्होंने लोगों को 7 दिन का नोटिस भी देने का आदेश दिया था।
बनभूलपुरा को दूसरा ‘शाहीन बाग़’ बनाने का प्रयास किया जा रहा है
ऐसा बताया जा रहा है कि बनभूलपुरा में व्याप्त अतिक्रमण हटाने से लगभग 50 हजार लोगों को विस्थापित होना पड़ेगा। इनमे से बड़ी संख्या मुस्लिमों की है, लेकिन हजारों हिन्दुओं को भी इस कार्यवाही का सामना करना पड़ेगा। लेकिन मीडिया, राजनीतिक दलों और मजहबी तत्वों ने इस विषय को पूरी तरह से सरकार बनाम मुसलमान बना दिया है। उन्होंने सीएए विरोध प्रदर्शन की तर्ज पर इस अतिक्रमण विरोधी कार्यवाही को मुस्लिम विरोधी घोषित कर दिया है।
स्थानीय लोगों के द्वारा विरोध प्रदर्शन की जो तस्वीरें वायरल हुई हैं उसमें छोटे-छोटे बच्चे हाथ में पोस्टर लिए खड़े हैं। इन पोस्टरों में लिखा है कि अब हम कहां पढ़ेंगे, हमारे बुजुर्ग मां-बाप कहां जाएंगे, पहले हमें कहीं और बसाया जाए और उसके पश्चात ही कार्रवाई की जाए। धरना दे रहे लोगों के हाथों में जो होर्डिंग्स हैं उनमें लिखा है कि हमारे घरों में माता-पिता और बुजुर्ग हैं। धरने में सम्मिलित हुई महिलाओं ने कहा है कि वह इस जगह से नहीं हटेंगी। स्थानीय लोगों के बढ़ते विरोध को देखते हुए क्षेत्र में भारी संख्या में पुलिस बल तैनात कर दिया गया है और आसपास के इलाकों को सील कर दिया गया है।
अगर आप सभी घटनाओं को सही परिप्रेक्ष्य में देखेंगे तो पाएंगे कि बनभूलपुरा को दूसरा ‘शाहीन बाग़’ बनाने का प्रयास किया जा रहा है। यहाँ भी स्थानीय लोगों के बैठने के लिए कालीन बिछा दी गयी है, लोगों को भड़काने के लिए भाषण देने के लिए स्टेज-माइक-लाउडस्पीकर लगा दिए हैं। बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों से भावुकता भरे वक्तव्य दिलवाए जा रहे हैं, वहीं मुस्लिम लड़कियों से ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ के भावुक अपील और ‘हमारा शिक्षा मंदिर’ हमें बचाना है का राग गवाया जा रहा है।
जहाँ एक ओर राजनीतिक दल इस विषय पर अपनी रोटियां सेंक रहे हैं, वहीं सोशल मीडिया पर आरफा, जुबैर, शरजील, रवीश, अंजुम, और अभिसार इसे मुस्लिमों के अधिकार की लड़ाई बनाने का प्रयास का रहे हैं। वहीं अंतराष्ट्रीय एनजीओ एमनेस्टी और इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल इस विषय को अंतराष्ट्रीय स्तर पर भड़काने के लिए सक्रिय हो चुके हैं।
हालांकि यहाँ लोगों को भड़काने के लिए गलत बयानी की जा रही है। रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण किया है तो उसे छोड़ना ही पड़ेगा, यह लोग संविधान और न्यायालय की बात करते हैं, लेकिन उसी संविधान के अंतर्गत इन्हे न्यायालय कोई आदेश देता है तो उसे यह लोग मानते नहीं हैं।
बनभूलपुरा की कार्यवाही को मुस्लिम विरोधी बताया जा रहा हैं जबकि यहाँ हजारों हिन्दुओं के घर भी तोड़े जाएंगे, उनके बारे में कोई बात नहीं कर रहा। दो महीने पहले रांची के बिरसा मुंडा चौक पर भी रेलवे की जमीन से अवैध अतिक्रमणकारियों को हटाया गया था, लेकिन तब किसी ने शोर नहीं मचाया। वहां सरकार किसी और राजनीतिक दल की है, क्या इस कारण वहां कोई आंदोलन नहीं हुआ ?
अतिक्रमणकारियों को मीडिया के जिहादी तत्व दे रहे हैं हंगामे की ट्रेनिंग
इस विषय पर मुस्लिमों को भड़काने के अतिरिक्त मीडिया के जिहादी तत्व स्थानीय लोगों को अव्यवस्था फैलाने की ट्रेनिंग भी दे रहे हैं। नीचे दिए गए वीडियो में देखा जा सकता है कि लोगों को किस प्रकार ट्रेनिंग दी जा रही है, और उन्हें झांसा दिया जा रहा है कि उनका वीडियो ‘द वायर’ पर दिखाया जाएगा।
हमे पूरा अंदेशा है कि इस प्रकार के दुष्प्रचार और भड़काऊ हरकतों का फल बुरा ही होगा। इन लोगों ने ऐसा ही दुष्प्रचार नागरिकता अधिनियम के समय किया था, जिसकी परिणीति दिल्ली दंगो के रूप में हुई थी। क्या मीडिया, मुस्लिम समाज और यह जिहादी तत्व हल्द्वानी मामले का दुरूपयोग कर पुनः दंगे करना चाहते हैं?
पुलिस व प्रशासन कर रहा है कार्यवाही की तैयारी
प्रशासन का कहना है कि उच्च न्यायालय के आदेश पर ही अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई की जानी है, और पुलिस-प्रशासन अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई के लिए पूरी तरह तैयार हैं। पूरे इलाके को 14 जोन और 30 सेक्टरों में बांटे जाने की तैयारी है। अतिक्रमण की कार्रवाई को सुचारू ढंग से संपन्न कराने के लिए कुमाऊं और गढ़वाल से बड़ी संख्या में पुलिसकर्मियों को बुलाया गया है। पुलिस और पैरा मिलिट्री फोर्स की 14 कंपनियां 8 जनवरी तक हल्द्वानी पहुंच जाएंगी। इसके अलावा पीएसी, जीआरपी व आरएएफ की भी कई कंपनियां हल्द्वानी पहुंचने वाली हैं।
नैनीताल जिले के एसएसपी पंकज भट्ट ने कहा है कि इंटरनेट मीडिया से अगर माहौल बिगाड़ने की कोशिश की गई तो कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने कहा कि अतिक्रमण हटाने के काम में फोर्स की कमी नहीं होगी। एसएसपी ने कहा कि इंटरनेट पर लोग दुष्प्रचार कर रहे हैं लेकिन लोगों को इससे बचना चाहिए क्योंकि यह कार्रवाई हाईकोर्ट के आदेश पर हो रही है इसलिए अदालत के आदेश का सम्मान करें।
आगे क्या हो सकता है?
आज इस मामले की उच्चतम न्यायालय में सुनवाई हुई है, और इस मामले पर रोक लगा दी गयी है। यह मामला लम्बा खिंच सकता है, और इसी बीच हल्द्वानी के किसी मुख्य मार्ग अनिश्चितकालीन समय तक घेरा जा सकता है। मुस्लिम भीड़ शाहीन बाग़ की तरह फिर से धरने पर बैठेगी और किसी भी निर्णय को नहीं मानेगी। ऐसी परिस्थिति बना दी जायेगी कि हल्द्वानी और देहरादून जैसे क्षेत्रों में सप्ताह-दो सप्ताह में दंगे या पथराव हो जाएँ, क्योंकि तभी इस विषय पर शोर मचेगा और अंतराष्ट्रीय स्तर पर मुस्लिमों के प्रति सहानुभूति जुटाई जायेगी। कुल मिलाकर यह देश के संविधान और कानून के साथ एक भद्दा मज़ाक ही बन जाएगा।